सिनेमा

विश्वरूपम को लेकर उठा विवाद – कुलदीप चंद अग्निहोत्री

 

vishwaकमल हासन ने अपनी सारी जमा पूँजी लगा कर एक फ़िल्म बनाई विश्वरूपम । एक मोटे अनुमान के अनुसार भी इस फ़िल्म के निर्माण में उनका लगभग सौ करोड़ रुपया लग गया । फ़िल्म आतंकवाद को लेकर एक जासूसी कहानी है , इसलिये इसमें अफ़ग़ानिस्तान भी आता है । अफ़ग़ानिस्तान पिछले लम्बे अरसे से आतंकवाद का अड्डा बना हुआ है । पाकिस्तान की सहायता व अमेरिका के सक्रिय सहयोग ने इस आतंकवाद को पाला परोसा । कहानी काफ़ी फैली हुई है , जिसमें अल क़ायदा से लेकर अनेक आतंकवादियों के जासूसी क़िस्से कहानियाँ हैं । क्योंकि कहानी में आतंकवादी अपने मिशन पर जाने से पहले या जुनून को और तेज करने के लिये अपने मज़हब से जुड़े संकल्प दोहराते हैं , इसलिये ंइससे मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुँचती है , यह मान कर लमिलनाडु की सरकार ने फ़िल्म पर प्रतिबंध लगा दिया । केन्द्रीय सेंटर बोर्ड ने इस फ़िल्म को प्रदर्शन का प्रमाण पत्र जारी कर दिया था । दुनिया भर में यह फ़िल्म प्रदर्शित हो गई । लेकिन तमिलनाडु में इससे मुसलमानों की भावनाएँ आहत होने लगीं ।वैसे यह समझ से परे है कि किसी आतंकवादी को पिटते देख , उसे सजा होते देख ,उसके काले और अमानवीय कृत्यों को देख कर मुसलमानों की भावनाएँ क्यों आहत होतीं हैं ? तमिलनाडु सरकार ने फ़िल्म को प्रतिबंधित कर दिया । इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार को ध्यान आया कि यहाँ भी आख़िर मुसलमान बसते हैं , उनकी भावनाएँ भी भडकनी चाहियें । इस लिये उसने स्वयं ही घोषणा कर दी कि सरकार फ़िल्म को प्रतिबंधित कर देगी , यदि इसमें मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल न किया गया ।

मुसलमानों की भावनाएँ अब कब और किस बात पर भड़क जायें , इसका कोई ठिकाना नहीं है । अभी पिछले दिनों तीन खानों में से एक शाहरुख़ खान को भी अचानक लगने लगा कि भारत में थोड़ी असुरक्षा की भावना तो रहती ही हैं , क्योंकि वे मुसलमान हैं । पाकिस्तान के उन्हीं उग्रवादियों ने , जिनसे मिलते जुलते उग्रवादी कमल हासन की विश्वरूपम में हैं , तुरन्त खान को पाकिस्तान में आकर बसने का न्यौता दिया । आपका अपना देश है । यहाँ आकर बसो । आपकी ओर कोई आँख उठा कर नहीं देख सकेगा । ताज्जुब है इस पर भारत के किसी मुसलमान संगठन की भावनाएँ नहीं भड़की । किसी ने नहीं कहा , यह भारत का अपमान है । हम बर्दाश्त नहीं करेंगे ।

ऐसा नहीं कि भारत सरकार मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल नहीं करती । अलबत्ता उसका तो एक अलग मंत्रालय ही इसका पता लगाने में लगा रहता है कि किस किस कृत्य से , किस किस दृश्य से मुसलमानों की भावनाएँ भड़कती हैं , और फिर उसमें संतुलन बिठाने व उनको शांत करने में जुट जाता है । आतंकवादी मुसलमान हैं , यह देख कर मुसलमान नाराज़ होता है , इस बात से नहीं कि वह आतंकवाद में क्यों लगा हुआ है , बल्कि इस बात के लिये कि बार बार इस का प्रचार क्यों किया जाता है । सरकार को वोट लेना है । इसलिये गृहमंत्री शिंदे हिन्दु आतंकवाद प्रचारित करके उन की भावनाएँ शान्त करते हैं । अब कमल हासन की दिक़्क़त यह है कि उसे वोट नहीं लेना है । इस लिये वह अफ़ग़ानिस्तान के आतंकवादियों और उनके शिविरों को वैसा ही दिखा रहे हैं , जैसे वे हैं । यदि उनको भी वोट लेने होते तो वे भी अल- क़ायदा के शिविर में किसी आतंकवादी के मुँह से हनुमान चालीसा गवा देते । आलोचक और दर्शक यही तो पूछ सकते थे कि यह दृष्य अकल्पनीय है , अल क़ायदा का आतंकवादी हनुमान चालीसा कैसे पढ़ सकता है ? यह तो गप्प है । कमल हासन उत्तर दे सकते थे , यह ज़रुरी है । इससे मुसलमानों की भावनाएँ शान्त रहेंगीं । मैं भी जानता हूँ यह गप्प है , लेकिन संतुलन बनाने के लिये यह ज़रुरी है । भारत सरकार भी तो हिन्दु आतंकवाद की गप्प मार कर संतुलन बिठा ही रही है । लेकिन दुर्भाग्य से कमल हासन को न तो जयललिता की तरह मुख्यमंत्री बनना है और न ही राहुल गान्धी की तरह प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न पालना है , इसलिये वे इतनी बड़ी गप्प क्यों मारें ?

तमिलनाडु को देख कर दूसरी राज्य सरकारें भी सक्रिय हुईं । उन्हें लगा , हम पीछे रह जायेंगे , तो हमारे यहाँ के मुसलमानों की की भावनाओं का क्या होगा ? जिन राज्यों में मुसलमानों को यह नहीं भी पता था कि इस फ़िल्म से उनकी भावनाएँ आहत होती हैं , उन को भी बाक़ायदा जगा कर बताया जाने लगा कि इससे तुम्हारी भावनाओं को ठेस लग रही है , इस लिये हम इस फ़िल्म पर प्रतिबंध लगा कर तुम्हारी भावनाओं का ध्यान रख रहे हैं । बाक़ी चुनावों में तुम लोग हमारी भावनाओं का ध्यान रख लेना । अपनी ममता दीदी भी पीछे नहीं रही । उन्हें और कुछ नहीं मिला तो उन्होंने सलमान रुषदी को ही पकड़ा । उसे कोलकाता में परोक्ष रुप से आने से रोक दिया । मुसलमानों की भावनाओं का ख्याल करके ही वामपंथी सरकार ने कोलकाता से तसलीमा नसरीन को निकाल दिया था । आपाधापी मची हुई है । सब अपने अपने तरीक़े से मुसलमानों की भावनाओं को ठेस न पहुँचे , इस काम में लगे हुये हैं । कभी अफ़ज़ल गुरु को फाँसी की संभावना से यह ठेस पहुँचती है तो कभी विश्वरूपम को देख कर । खुदा का शुक्र है अब कमल हासन को भी अकल आ गई है । उसने कह दिया है , भाई लोगो , जिन दृष्यों को देख कर आपको ठेस पहुँचती है , वे मैं निकाल देता हूँ । कमल हासन को अब तक इस बात का भी पता चल गया होगा कि यह कोई देवी देवताओं का मामला नहीं है कि जो चाहा संवाद बुलवा दिया । यह उनका मामला है जिनको हवा चलने पर भी ठेस पहुँचती है ।