लेख

भ्रष्टाचार देश की बड़ी समस्या

 सुनील कुमार बंसल

आज देश के सामने कई प्रकार की समस्यायें हैं जिनके साथ हम रोजाना जूझ भी रहे हैं व उनके साथ जी भी रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या कौन सी है इसको लेकर समाज में अलग-अलग प्रकार के लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं। अनुभव ऐसा है कि जो जिस समय जिस समस्या से प्रभावित होता है उसके लिए वह उतनी ही बड़ी समस्या बन जाती हैं।

एक आम आदमी के लिए दो समय का खाना जुटा पाना कठिन है तो उसके लिए मंहगाई समस्या है। बिहार असम और पूर्वोत्तर के प्रान्तों में बढ़ रही बांगलादेशी घुसपैठ उनके लिए बड़ी समस्या है I बेरोजगार युवकों के लिए रोजगार न मिलना समस्या हैI अभिभावकों के लिए शिक्षा का व्यापारीकरण समस्या हैIजिन परिवारों के लोग आतंकवाद के कारण से मारे गये उनके लिए आंतकवाद बड़ी समस्या है।

पर मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह हैI जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर दें और उसे अपने जीवन का एक हिस्सा मान कर जीनें लगें। इस प्रकार देखा जाय तो भ्रष्टाचार आज देश की सबसे बड़ी समस्या बन गई है जिसे आज आम आदमी एक शिष्टाचार के रूप मे मानता है। आज काम के बदले रिश्वत लेना व देना एक नियम सा बन गया। अब समाज में इसे गलत नहीं समझा जाता बल्कि जो विरोध करता है उसे बेवकूफ या आदर्शवादी कह कर उसका मजाक बनाया जाता है। पहले समाज मे रिश्वत लेने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था- लोगों के मन में समाज निन्दा कर डर रहता था। रिश्वत लेता था तो भी घर पर लेकर नहीं आता था, परिवार से छुपा कर उसका उपयोग करता था क्योंकि परिवार में गलत संस्कार पड़ेगा। अब तो वही व्यक्ति रिश्वत यह कहकर मांगने लगा है कि मेरे भी तो बच्चे हैं, परिवार हैIउसके लिए भी कुछ चाहिये।

कुछ माह पूर्व तक समाज में सभी स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार आम चर्चा का विषय भी नहीं था। लोगों ने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया था- कि यह तो होगा ही या ये सब तो आवश्यक है।

भ्रष्टाचार का यह महारोग अभी पनपा है ऐसा नहीं है, मुगलो के समय में भी भ्रष्टाचार था पर वह आटे में नमक की तरह था। अंग्रेज तो भारत को लूटने ही आये थे इसलिये येन-केन-प्रकारेण अंग्रेजों ने तो हमें लूटा हीं। पर आजादी के बाद आये प्रजातन्त्र मे यह रूकना चाहिये था पर हुआ उल्टा देश मे पैदा हुये काले अंग्रेजों ने ही हमें लूटना शुरू कर दिया। भ्रष्टाचार की नाली दिन ब दिन चौड़ी होती गई और अब इसने महासागर का रूप ले लिया। कारण देश में प्रजातन्त्र तो आया पर प्रजा की सुनने वाला कोई तन्त्र नहीं बना। अगर देश का राजनैतिक नेतृत्व भ्रष्ट नहीं होता तो प्रजा भी ईमानदार बनी रहती इन्हीं राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के कारण पारदर्शी तन्त्र को बनने नहीं दिया उल्टे जनता को भी ईमानदार नहीं रहने दिया।

सन् 1949 में जीप घोटाले और 1958 मे प्रताप सिंह केरो से जुडे घोटालों के आरोपित लोगों को राजनैतिक शह मिलना, 1971 में लगे आरोपों के जबाब में इन्दिरा गांधी द्वारा करप्शन इज ग्लोबल फैनोमिना कहना या राजीव गांधी द्वारा यह मानना कि केन्द्र सरकार से भेजे जाने वाले 100 पैसे में से 15 पैसे आम आदमी के पास पहुंचते हैंI 85 पैसे भ्रष्ट बिचौलिआ व नेता खा जाते हैं पर उनके द्वारा व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं करना जैसे मुद्दों ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा ही दिया। स्वाधीनता के बाद जीप घोटाले को घोटालो का बीज कहा जा सकता है।

आजादी के बाद से लेकर अब तक प्रमुख घोटोले- जिनमें से अधिकांश को हम भूल चुके हैं।

– जीप घोटाला (1948) वी.के. कृष्णा मेनन (आजाद) भारत का पहला घोटाला।के सचिव फंसे)।

– मुद्रा मैस घोटाला (1956) टीटी कृष्णामाचारी व हरिदास मुद्रा (फिरोज गांधी ने किया खुला

– सायकल आयात इंपोर्टस घोटाला (1951) एस.ए. वेंकटरमन। (वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय सा] फंसे वित्त मंत्री)

– 1956 बीएचयू फंड घोटाला] आजाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला।

– तेजा लोन (1960)।

– कैंरों घोटाला (1963) प्रताप सिंह कैंरों (पंजाब)। (आजाद भारत में मुख्यमंत्री पद के दुरूपयोग का पहला मामला)।

– पटनायक घोटाला (1965) बीजू पटनायक।

– नागरवाला कांड (1971) इंदिरा गांधी (दिल्ली के पार्लियामेन्ट स्ट्रीट स्थित स्टेट बैंक शाखा मे लाखों रूपये मांगने का मामला इसमे इंदिरा गांधी का नाम भी उछला)।

– मारूति घोटाला (1974) इंदिरा गांधी संजय गांधी।

– कुओ आइल डील (1976) इंदिरा गांधी संजय गांधी (आईओसी ने ह्यंगकांग की फर्जी कम्पनी के साथ डील की] बड़े स्तर पर घूस का लेनदेन)।

– अंतुले ट्रस्ट (1981) एआर अंतुले।

– बोफोर्स घोटाला (1987) राजीव गांधी।

– एचडीडब्ल्यू सबमरीन घोटाला (1987)।

– बिटुमेन घोटाला तांसी भूमि घेटाला सेंट किट्स घोटाला (1989) वी.पी. सिंह

पशुपालन मामला (1990)।

– अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब्सिडी स्कैम चुरहट लॉटरी स्कैम एयरबस स्कैंडल (1990)।

बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज घोटाला (1992) हर्षद मेहता।

-इंडियन बैंक घोटाला (1992)

सिक्योरिटी स्कैम (1992)

-जैन हवाला डायरी कांड (1993)

-हवाला कांड (1993) कई राजनीतिज्ञ

-चीनी आयात (1994)

-बैंगलोर-मैसूर इन्फ्रास्ट्रक्चर (1995)

जेएमएम सांसद घूसकांड (1995)

-जुता घोटाला (1995) जूता व्यापारियों ने फर्जी सोसायटी बनाकर सरकार को चूना लगाया।

-टेलीकॉम घोटाला (1996) सुखराम।

-चारा घोटाला (1996) लालू यादव।

-यूरिया घोटाला (1996) पीवी प्रभाकर राव।

-संचार घोटाला (1996) लखुभाई पाठक पेपर स्कैम (1996)

-ताबूत घोटाला (1996)

-मैच फिक्सिंग (2000)

-यूटीआई घोटाला केतन पारेख कांड (2001)

-बराक मिसाइल डील] तहलका स्कैंडल (2001)

-होम ट्रेड घोटाला (2002)

-ताज गलियारा मामले (2003) मायावती

-कैश फॉर वोट स्कैंडल (2003)

अब्दुल करीम तेलगी – स्टॉम्प घोटाला।

-तेल के लिए अनाज कार्यक्रम घोटाला (2005) ] नटवर सिंह

-कैश फॉर वोट स्कैंडल (2008) सत्यम घोटाला (2008)

-मधुकोड़ा मामला (2008)

-स्पेक्ट्रम घोटाला (2009) द्रमुक परिवार।

-झारखंड डकैती] हवाला लेनदेन (2009) मधु कोड़ा।

-आदर्श सोसायटी मामला (2010)।

-कॉमनवेल्थ घोटाला (2010)।

-2जी स्पेक्ट्रम घोटाला।

-हसन अली – विदेशी बैंको में काला धन।

 

पिछले छः माह से सीरियल ब्लास्ट की तरह सामने आ रहे घोटालो ने तो सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल स्वीकार करते हुए कहते हैं यह घोटाले 3 लाख करोड़ के नहीं हुए। माना कुल राशि इतनी होगी पर उसमें भ्रष्टाचार तो हुआ है। इन सबके कारण आज हमारा देश सदमें हैंI लोगों मे भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश उभरता दिखाई दे रहा है। जैसे चीनी हमले I आपातकाल व बोफोर्स घोटाले के समय दिखाई दिया था। परिणामस्वरूप 2 वर्षो मे जनता ने सत्ता का परिवर्तन कर दिया। वर्तमान में तो लग रहा है कि जैसे जगमगाता बल्ब अचानक फ्यूज हो जाता है ऐसा ही केन्द्र सरकार की प्रतिष्ठा के साथ हुआ जो इन सीरियल घोटालो के कारण एकदम पैंदे तले बैठ गयी।

प्रारम्भ में लोग कहते थे ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार इतनी भ्रष्ट कैसे हो सकती है Iआज कह रहे हैं इतनी भ्रष्ट सरकार के प्रधानमंत्री स्वयं ईमानदार कैसे हो सकते हैंIया कहें तो वे भ्रष्टाचार के प्रमोटर प्रधानमंत्री हैं।

प्रधानमंत्री कहते हैं कि वे मजबूर हैंI भ्रष्टाचार को नहीं रोक पा रहे हैंI गठबन्धन की सरकार हैI कार्यवाही करेंगे तो सरकार ही नहीं रहेगी। वे सत्ता और कुर्सी बचाने के लिये तो भ्रष्टाचार को बढ़ावा देत रहे हैं। क्या भारत में इससे पूर्व गठबंधन सरकारें नहीं रही- भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण गठबन्धन सरकारें नहीं है। जब कांग्रेस की सरकार पूर्ण बहुमत में हुआ करती थीI जिसने 50 वर्ष देश में शासन किया है उस समय जो घोटाले हुए उनके लिए कौनसा गठबन्धन व अन्य पार्टियां जिम्मेदार थी। यह तो एक स्वभाव व विकृति का परिणाम है जो कांग्रेस का एक हिस्सा बन गई है।

इन घोटालो की परते खुलने के बाद अब भारत भ्रष्टाचार में सुपर पावर बन गया है। मुट्ठीभर लोगों की बेइमानी के कारण देश की छवि को धक्का लगा है। दुनिया में भारत पहचान एक वैचारिकI आध्यात्मिक देश की रही है हमारे यहां समाज जीवन मे अर्थ कभी प्रधान नहीं रहा। इन घोटालों के कारण सारी दुनिया भारत की और हैरानी से देख रही है।

गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल इंडिया ने दुनियाभर के देशों के भ्रष्टाचार के आंकड़े जारी किये जिसमे भारत को 10 में से 3॰3 अंक मिले। 54 प्रतिशत लोगों ने माना कि उन्होंने कभी न कभी अपना काम कराने के लिए रिश्वत दी है। यहां पर 80 फीसदी नौकरशाह भ्रष्ट हैI ग्लोबल ऐंटी-करप्शन डे पर ग्लोबल बैरोमीटर के आधार पर भारत दुनिया का नवां भ्रष्टतम देश हैIभारत से आगे-ईरानI अफगानI पाकिस्तान जैसे देश हैं।

भ्रष्टाचार केवल पैसे का लेन-देन मात्र नहीं है यह जिस व्यक्ति के पास अधिकार हैं और वह अपने विवेक से आधार पर उनका दुरूपयोग कर जब किसी को लाभ पहुंचाता है तो वह भ्रष्टाचार है इसके बहुत सारे आयाम है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा- कि यह भ्रष्टाचार बहुआयामी है इसके कारण कैसे समस्यायें बढ़ती हैं या कैसे समस्याओं की जड़ में यह भ्रष्टाचार हैI इस पर विचार करें।

• भ्रष्टाचार के कारण व्यक्ति के पास जो पैसा आता है उसका यह क्या उपयोग करें- उसे वह बैंक में जमा नहीं कर सकताI अपने पास ज्यादा समय रख नहीं सकताI कहीं पर निवेश भी नहीं कर सकता तो उसे पैसे को खर्च करना उसकी मजबूरी हो जाती है जिसे वह अपनी विलासिता पर खर्च करता है। नया मकान बनायेंगेI मकान के डेकोरेशन पर खर्च करेंगेI सभी जगह आवश्यक न होते हुए एयरकंडीशनर (ए.सी.) लगायेंगे। मॉल में जाकर ब्रान्डेड कपड़ों व लग्जरी आइटम की शॉपिंग करेगें। नये-नये रेस्टोरेन्ट व होटलों मे जाकर खर्चे करेगें। इसी डिमाण्ड के कारण आज सभी शहरों में मॉल संस्कृति व नये-नये रेस्टोरेन्टों व होटलों की बाढ़ आ गयी है इसमे जाने वाले सभी के पास भ्रष्टाचार का पैसा है ऐसा भी नहीं है उनकी अपनी मेहनत की कमाई को वो खर्चे कर रहे होगें। पर भ्रष्टाचार का पैसा है ऐसा भी नहीं है उनकी मेहनत की कमाई को वो खर्चे कर रहे होंगे। पर भ्रष्टाचार से आया पैसा 75 फीसदी तक विलासिता के साधनों पर ही खर्च होता है। इन लोगों के कारण ही समाज मे एक होड़ लग गई हैIसभी अपना जीवन स्तर बढ़ाने में अधिक खर्च कर रहे हैंI पैसा नहीं तो बाजार मे ऋण सुविधा उपलब्ध हैI सामान्य आदमी की बचत करने का स्वभाव व आदत इस कारण कम हो रही है।

• भ्रष्टाचार से आये पैसे को चुनावो मे खर्च किया जाता है पहले उद्योगपति या धनवान लोग चुनाव लड़ने वालों को मदद करते थे] बाद में उनसे अपने काम कराया करते थे अब तो यही जिनके पास पैसा आ गया है तो वो स्वयं ही चुनाव लड़ने लगे हैं- सभी पार्टियां उनको उम्मीदवार बनाती हैंI अपराधियों के पास भी पैसा आने व राजनैतिक संरक्षण मिलने के कारण वो भी अब विधान सभा व लोक सभा में जनप्रतिनिधि बनकर आ गये हैं। राजनीति का आपराधिक हो गया है। गलत तरीके से आ रहे पैसे के कारण पूरी चुनाव प्रणाली भ्रष्ट हो गयी हैं।

• भ्रष्टाचार से आये काले धन को हवाला के माध्यम से विदेशों मे भेज देते हैंI यह पैसा या तो वहां के बैंकों में जमा हो जाता है या वहां की किसी कम्पनी में निवेश कर देते हैं। इन्हीं विदेशी कम्पनियो के माध्यम से यह पैसा फिर भारत मे निवेश कर दिया जाता है यानि हमारा ही पैसा भ्रष्टाचार के रूप मे बाहर जाकर वापस अपने ही देश में निवेश हो रहा है। उससे और पैसा बनाते हैंI काले धन को सफेद कर लेते हैं। हमारे पैसे से हमारे देश की इकोनोमी को ये पलीता लगा रहते हैं। हमारा स्टाक एक्सचेंज हमारे नहीं इन लोगों व इनकी कम्पनियों के कन्ट्रोल में रहता हैI अपनी इच्छा से उसे अप-डाउन करते रहते हैं। वायदा बाजार के माध्यम से ज्यादा खरीदारी करते हैं फिर मंहगाई बढ़ती है बाद में मुनाफा कमा कर बेच देते हैं। हमारे देश में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक देश कोई अमेरिका नहीं मारीशस है जहां से इस प्रकार की कम्पनियों के माध्यम से यह खेल खेला जाता है।

• इस काले धन को विदेशों मे भेजने व लेन-देन मे अपराधियो की महत्वपूर्ण भूमिका रहती हैI दुबई -पाकिस्तान मे बैठकर दाउद जैसे अपराधी इसी काले धन के आधार पर अपना कारोबार करते हैं। यानि हमारा देश ही देश की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न करने वालों का सहयोगी हो रहा है। यानि भ्रष्टाचार मात्र पैसे का लेन-देन ही नहीं यह सभी समस्याओ के बढ़ने का मूल कारण है जो देश को अन्दर ही अन्दर खोखला कर रहा है।

स्विटरलैण्ड बैंकिंग एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार स्विस बैंकों मे जमा धन में भारत का नाम सबसे ऊपर है। 65-223 अरब रूपये का काला धन इन बैंको मे जमा है। यह राशि भारत के वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार से पाँच गुणा अधिक है। भारत में जो विदेशी कर्ज है उसकी तुलना मे यह रकम 13 गुणा ज्यादा है। भारत में अब तक 462 अरब डालर की आर्थिक अनियमितताओ या घोटले हुए हैं जिसमे ज्यादातर भ्रष्टाचार और रिश्वत की है। यह तो वह राशि है जो सामने आई है जो भ्रष्टाचार के मामले सामने नहीं आये उनको जोड़ने पर तो आंकड़े आश्चर्यजनक हो जायेगें। वर्तमान में ही 3 घोटालों के आंकड़े लगभग 3 लाख करोड़ रूपये के हैं।

• 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला –

2008 मे 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला का आंवटन होना था। यू.पी.ए.-2 मे ए. राजा को प्रभावशाली लोगों ने लॉबिंग कर केन्द्रीय मंत्री बनवाया। उन्होंने यह नीति बनाई कि 2001 मे 1-जी जिस दाम में बेचे गये, 2008 मे भी उसी दाम में बेचे जायेगें जबकि 2001 मे 40 लाख मोबाइल उपभोक्ता थे और 2008 में 17 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता थे फिर से स्पेक्ट्रम की वही कीमत रखी गई। दूसरा 10 जनवरी 2008 को मात्र 1 घन्टे के नोटिस पर 1650 करोड़ का ड्राफ्ट जमा कराने वालों को ही स्पेक्ट्रम मिलेगा। परिणामस्वरूप ए.राजा के चहेतों को ही 2-जी स्पेक्ट्रम का आवंटन हुआ। अगले कुछ ही दिनो के अन्दर 2-जी स्पेक्ट्रम को 8-10 गुणा अधिक दामो पर अन्य विदेशी कम्पनियों को बेच दिया। इस प्रकार 1 लाख 76 हजार करोड़ रूपये का जो फायदा देश को होना था उसका नुकसान हो गया। इस सबमें जो ए.राजा व अन्य प्रभावशाली लोगों ने भ्रष्टाचार किया वह लगभग 60]000 हजार करोड़ रूपये का था।

• कॉमनवैल्थ खेल घोटाला –

कॉमनवैल्थ का अर्थ ही है सांझा सम्पत्ति। इसलिए सबने बांट कर लूटा। अकेले सुरेश कलमाड़ी ही नहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री व अनेक अफसरो ने भी इस खेल आयोजन के नाम पर करोड़ों रूपये की लूट की। घटिया निर्माण कार्य] आयोजन में अव्यवस्था] काम में देरी के कारण इन खेलों ने दुनिया मे भारत की छवि खराब करने का ही काम किया। भला हो हमारे खिलाड़ियो का जिन्होंने अपने प्रदर्शन से अभी तक के अधिकतम पदक प्राप्त कर हमे शर्मसार होने से बचा लिया। दिखावे के लिए इस घोटाले में छोटी आयोजन में किसने कितना खाया वह तो जांच के बाद भी शायद पूरी तरह से सामने नहीं आ पायेगा।

आदर्श हाऊसिंग सोसायटी घोटाला-

कारगिल शहीदों के नाम पर उनके परिवारों को फ्लैट दिये जाने के नाम पर सेना के अफसरों व महाराष्ट्र के नेताओं ने उन फ्लैटों को अपने-अपने रिश्तेदारों मे बांट दिया।

अब तो आये दिन नये-नये घोटाले सामने आ रहे हैं इन छः माह के घोटालो ने तो 60 वर्ष के घोटालों को भी पीछे छोड़ दिया। इन सभी घोटालों की राशि और विदेशों में जमा काले धन को जोड़ दिया जाय तो 10-15 साल तक भारत में किसी भी व्यक्ति की टैक्स देने की जरूरत नहीं है या काले धन को वापस लाकर हमारा बजट कर रहित बनाकर आमजन को राहत दी जा सकती है।

26 जनवरी 1950 को गणतन्त्र की स्थापना के समय देश के संविधान निर्माताओं को भी यह कल्पना नहीं होगी कि उनके द्वारा बनाई जा रही व्यवस्था 60 वर्ष के अन्दर ही इतनी नैतिक विहीन हो जायेगी। देश को चलाने के लिए बनाई जा रही संवैधानिक व्यवस्थाओं पर भी भ्रष्ट लोगों का कब्जा हो गया।

वर्तमान में तो कांग्रेंस की केन्द्रीय सरकार स्वयं भ्रष्ट लोगो को इन संस्थाओं मे नियुक्त कर रही है] सी.वी.सी. थामस की नियुक्ति इसका एक उदाहरण है। दुनिया का यह पहला उदाहरण होगा जिसमें भ्रष्ट व्यक्ति को ही भ्रष्टाचार जांचने वाली संस्था का प्रमुख बना दिया गया हो। जिस पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा हो वो स्वयं क्या भ्रष्टाचारियों पर निगारानी रखेगा। लगता है शायद वर्तमान में उभर कर आये घोटालों को दबाने व भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए थामस को नियुक्त किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्ट थामस की नियुक्ति पर प्रश्न किया तब भी सरकार उन्हें बचाने का प्रयास कर रही थी। प्रधानमंत्री ने मजबूरी कहकर पल्ला झाड़ लिया। उनकी मजबूरी समझ में आने लायक है उनका ही कार्मिक मंत्रालय उन्हें गलत जानकारियों दे रहा था। पहले भ्रष्ट को बनाओ] फिर उसे बचाने का प्रयास करो] फिर फंसो तो अपनी मजबूरी कहकर अपनी खाल बचाने का काम सरकार ने इस प्रकरण मे किया है।

बहुचर्चित घोड़ा व्यापारनी हसन अली पर कई हजार करोड़ रूपये का टैक्स बकाया था उस पर सरकार को हाथ डालने मे एक दशक लग गया। वो भी जब सुप्रीम कोर्ट यह पूछा कि सरकार इस मामले मे क्या कर रही है जिस पर करोड़ों रूपये का टैक्स बकाया है उसे गिरफ्तार करने में परहेज क्यों हो रहा है क्या वह कानून से बड़ा है सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार से पहले सरकार इस घोड़े के व्यापारी की तरफ से घोड़े बेचकर सो रही थी। कौन लोग हसन अली के संरक्षक हैं- जवाब स्पष्ट है जिनके काले धन को हसन अली ने ठिकाने लगाया होगा वो ही सरकार ने उसे बचाने की पैरवी कर रहे है।

जब भी इस प्रकार के मामले या घाटाले सामने आते हैं, सत्ता मे बैठ लोग वहीं रटा-रटाया जवाब देते हैं – जांच चल रही हैI दोषियों को नहीं छोड़ा जायेगा। जांच चलती रहती हैI दोषियों को छोड़ दिया जाता है। चार्जशीट दायर होती है पर आरोप सिद्ध नहीं होते। भ्रष्ट व्यक्ति सुरक्षित छूट जाते है हमेशा की तरह भ्रष्टाचारियों को सुरक्षित रखने की परम्परा का निर्वाह किया जाता रहा हैI सता के संरक्षण में प्रभावशाली हमेशा बच जाते है I वे शर्म से नहीं शान से समाज में जीते हैं। एक मात्र सी.बी.आई. के पासं जांच करने का अधिकार है बाकि सभी के पास सुझाव देने के अधिकार है लेकिन सी.बी.आई. की जांच के बाद भी आज तक एक भी राजनेता को सजा नहीं हुई यही प्रमाणित करता है। भ्रष्टाचार करने वालों पर आरोप सिद्ध होने जाने के बाद हमोर कानून में अधिकतम सजा सात वर्ष की कैद है कोई भी ए. राजाI मधु कोड़ा हजारो करोड़ रूपये का भ्रष्टाचार करने के बाद भी कुछ साल के लिए जेल में जाने को तैयार हो जायेगा। हमारे कानून में भ्रष्ट व्यक्ति के वापस वसूली की जाय यह व्यवस्था भी नहीं होने से लगता है ऐसे लोगो को आज कानून का डर ही समाप्त हो गया हैं।

सुप्रीम कोर्ट की कुछ माह की सक्रियता देखकर लगता है सरकार कोर्ट के डण्डे से ही चल रही है, 2जी स्पेक्ट्रम, हसन अली सी.वी.सी. थामस के मुद्दे पर कोर्ट की पहल ने जतना के मन की राशि को दूर करने का काम किया है आम आदमी के मन में एक एक बात जो बैठ गयी थी की कि इन भ्रष्ट लोगो का कुछ भी नही बिगड़ेगा पर अब कोर्ट के निर्णय से उसे सम्बल मिला है। पर लोकतन्त्र में न्यायिक सक्रियता की एक सीमा होनी ही चाहिए नही तो उसके दूरगामी परिणाम भी अच्छे नहीं होगे। वैसे तो लोकतंत्र के दो स्तम्भ विधायिका व कार्यपालिका पर भ्रष्ट होने के आरोप लगते रहे है पर आज कई प्रश्न न्यायपालिका व मिडीया पर खड़े होना परेशानी भरा है। यहा पर भी आत्मावलोकन करने की आज आवश्यकता है।

90 के दशक में अर्थव्यवस्था को हम मुक्त करके उदारीकरण की प्रक्रिया में शामिल हो गये। दुनिया के लिए हमने अपने दरवाजे खोल दिया इस पर उदारीकरण व वैश्वीकरण काहमारे यहा पड़ने वाले प्रभावों को देखकर उस प्रकार की व्यवस्था व कानूनों पर विचार नही हुआ परिणामतः उदारीकरण के कारण से शेयर घोटाले व प्रतिभूति घोटाले सामने आ गये। लेकिन उदारीकरण से ज्यादा वैश्वीकरण के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला। इस वैश्वीकरण के दौर में हमारे उपर पड़ रहे प्रभावों के कारण धीरे-धीरे हम अपनी संस्ति को भूलते जा रहे है। हमारे नैतिक मूल्यों का अवलूल्यन ही भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण है। यह विचार की भौतिक विकास से ही आदमी सूखी होगा एक एकांगी विचार है परन्तु वैश्वीकरण में हमारे मानस पर विकास का अर्थ यही हो रहा है बड़ी-बड़ी बिल्डिंगेI मॉलI ब्रान्डेड शॉप्सI एडवान्स टैक्नोलोजीI कम्प्यूटर व फर्नीचरयुक्त कार्यालय, यही विकास के मानक बन गये है। सरकारे इस प्रकार के विकास पर खर्च करके ही खुशहाली लाने का दावा करती हैIयानि पैसा ही विकास का मानक बन गया है। सरकारी खर्चे के माध्यम से इस विकास में नौकरशाह और राजनेताओं का स्वार्थ है यहीं से तो उसनको लाभ होना इसलिए वो भी इसी प्रकार के विकस के हिमायती बने हुए है।

हमारे यहा भौतिक विकास के साथ अध्यात्मिकता के समन्वय से ही मनुष्य सुखी होगा यह विचार रहा है। एक बार स्वामी विवेकानन्द से पूछा गया कि आपके धर्म व संस्ति में दुनिया का मार्गदर्शन करने की ताकत है फिर आपके देश की ऐसी हालत क्यो हो गयी तो स्वामी जी ने कहा कि मेरे देश की ऐसी हालत धर्म के कारण से नहीं बल्कि मेरे देशवासियों ने धर्म का पालन करना छोड़ दिया। इसलिए ऐसी हालत हो गयी है।

मुख्य रूप से भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण … वैश्वीकरण के दोर मे समाज में पैसे का सम्मान बढ़ा नैतिक मूल्यों का अवलूल्यनI समाज का भय कम होना, कठोर कानून की कमी व दोषी व्यक्तियों पर कार्यवाही नहीं होना है।

भ्रष्टाचार के सुरसारूपी बढ़ने से समाज में व्याप्त आक्रोश व असंतोष के कारण आम आदमी की अपेक्षा है कि इस भ्रष्टाचार रूपी रावण का अंत होना चाहिए और यह केवल रानैतिक भ्रष्टाचार नही तो समाज में व्याप्त सभी स्तरों पर इसका खात्मा होना चाहिए।

वर्षो से जमी हुई इस काई को हटाना आसान नही है जो रोग समाज के अन्दर महारोग बन गया हो और जिसका अहसास खत्म हो गया हो उसका निदान भी उसी प्रकार ढूंढना पड़ेगा। जो भ्रष्टाचार बढ़ने के कारण है उन्हीं में उसका समाधान भी है। कुछ उपाय अल्पकालीन होगे व कुछ दीर्घकालीन लेकिन दोनो उपायों पर एक साथ ही काम करना होगा।

भ्रष्टाचार के तेज गति से बढ़ने कारण अगर कानून का प्रभावी नहीं होना है तो नये कानूनो पर विचार करना होगा। ख्त कानून बनाने पड़ेगे जो हर स्तर के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा सके। इस दिशा में जन लोकपाल विधेयक एक कदम है जिसे लेकर श्री अन्ना हजारे का प्रभावी आन्दोलन हुआ। बिहार राज्य में बना विशेष न्यायालय कानून भी उदाहरण योग्य है। श्री नीतिश कुमार द्वारा अपनी सम्पत्ति की घोषणा, सभी मंत्री विधायकों सहित नौकरशाह व निचले स्तर के बाबू तक इस प्रक्रिया का पालन होना एक शुरूआत है। बिहार में ही विशेष न्यायालय कानून के तहत भ्रष्टाचारियों पर तुरन्त कार्यवाही का परिणाम आना प्रारम्भ हो गया है, उदाहरणतः मधेपुरा पंचायत के एक सेवक ने 58 हजार रूपये का गबन किया तो इस कानून के डर के कारण क्षमा याचना सहित वह राशि उसने कलेक्टर को लौटा दी। दूसरा मोटर वाहन निरीक्षक रघुवंश कुंवर पर भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हो जाने पर उसकी सम्पत्ति जब्त कर उसके मकान में स्कूल खोल दिया गया। मध्य प्रदेश सरकार ने भी इसी प्रकार का कानून बनाया है। प्रभावी कानून बनाकर व प्रभावशाली लोगो पर कठोर कार्यवाही करके ही समाज में व्याप्त निराशा को दूर किया जा सकता है।

हमारी सरकार को विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने की प्रक्रिया प्रारम्भ करनी होगी व भविष्य में कालाधन बाहर न जाये इसके प्रावधान करने होगें।कालाधन जमा करने में 500 व 1000 रूपये के नोटो का बडा महत्व है अगर इनको किया जाये तेा सारा काला धन बाहर आ सकता है व भारत में चल रही जाली नोटो के व्यापार को रोक कर अर्थव्यवस्था को सुदृढ किया जा सकता है।

भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले राजनेताओं व नौकरशाहों को सत्ता के तंत्र से बाहर किये बिना कोई भी पहल सार्थक नही होगी। इसलिए देश को मजबूत नहीं मजबूत प्रधानमंत्री व उस प्रकार के तंत्र की आवश्यकता होगी। मात्र सत्ता परिवर्तन से भ्रष्टाचार का अन्त नही होगा। पूर्व मे हुये प्रयोग इसके प्रमाण है लेकिन बदलाव में यदि राजा बाधा उत्पन्न करता है तो पहले उसे बदलना है। इसलिए वर्तमान में सत्ता परिवर्तन आवश्यक है पर उसके साथ ही एक जन बदाव भी सत्ता तंत्र पर हमेशा बना रहे।

सत्ता परिवर्तन के साथ ही भ्रष्टाचार की जननी वर्तमान में चल रही व्यवस्था तंत्र में भी बदलाव लाना होगा। व्यवस्था परिवर्तन की एक व्यापक बहस देश में प्रारम्भ करनी होगी। जो व्यवस्था समाज में विषमता को बढ़ावा देती हो, शोषणकारी हो उसे बदलना आवश्यक हो जाता है, हमें भारत केन्द्रित चुनाव प्रणाली, न्याय, प्रशासन एवं शिक्षा व्यवस्था का निर्माण करना होगा या कहे तो सभी व्यवस्थाओं का भारतीयकरण करना होंगा। व्यवस्था के परिवर्तन के साथ ही समाज में व्यक्ति निर्माण की प्रक्रिया को भी बल प्रदान करना होंगा। यानि संस्कार व नैतिक मूल्यों की पुनः स्थापना करने के प्रयास तेज करने होगें। तभी इस भ्रष्टाचार रूपी दानव को हम समाप्त कर भारत को पुनः दुनिया का मार्गदर्शन करने वाले आध्यात्मिक गुरू के रूप में स्थापित कर पायेगें।

देश का नेतृत्व ड़गमग स्वार्थ में अंधा बना है

पनपता अपराध सत्ता के शिखर छाया घना है।

भ्रष्ट सत्ता नष्ट होगी, अडिग निश्चर्य कर्म लागों….

जगत के हित गरल पीले, आज डमरू तान जागो।

भरत भू सन्तान जागो, देव भू सन्तान जागो।

 

 

सुनील बंसल