ट्रंक कॉल सेवाओं से फाईव जी तक के सफर की साक्षी है वर्तमान प्रौढ़ पीढ़ी

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लिमटी खरे

एक समय था जब दूर रहने वाले अपने रिश्ते नातेदारों, मित्रों से संवाद के लिए खतो खिताब पर ही निर्भरता हुआ करती थी। बहुत जरूरी सूचना अगर होती थी तो टेलीग्राम भेज दिया करते थे। बहुत ही जरूरी सरकारी संदेशों को पुलिस के वायरलेस के जरिए भेजा जाता था जिन्हें ‘रेडियो मैसेज‘ कहा जाता था। इसके बाद आया टेलीफोन का जमाना।

टेलीफोन के जमाने में फोन उठाईए, दूसरी ओर से टेलीफोन एक्सचेंज से आपरेटर फोन उठाता, आप उसे नंबर लगाते, फिर वह आपको नंबर मिलाकर देता। यह शहर के अंदर ही होता था। अगर आपको किसी अन्य शहर में फोन लगाना होता तो आपको ट्रंक कॉल बुक करना होता था। इसकी तीन श्रेणियां होती थीं। पहली लाईटनिंग जो सबसे महंगी, फिर एक्सप्रेस उससे सस्ती और सबसे सस्ती आर्डनरी। साथ ही पर्टिकुलर पर्सन अर्थात पीपी कॉल भी बुक होते थे जिसमें जिस व्यक्ति के लिए कॉल बुक किया है वह अगर मिल गया तो ही पैसे देने होते थे।

राजीव गांधी जब प्रधान मंत्री थे उस वक्त राजीव गांधी के सलाहकार सेम पित्रौदा के द्वारा दूरसंचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास की इबारतें लिखी गईं थीं। देश में उस वक्त सी डॉट एक्सचेंज लाया गया और सीमित मात्रा में होने वाले टेलीफोन कनेक्शन्स में विस्फोटक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।

यह बात तो सभी जानते हैं कि एक समय अखबारों का बोलबाला हुआ करता था। सूचनाओं के प्रसार के लिए अखबारों की महती भूमिका हुआ करती थी। संचार क्रांति के युग में जबसे मोबाईल आया है, इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ी है उसके बाद से सोशल मीडिया का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा है।

देश में मोबाईल आया। 2जी सेवाओं के बाद 3जी, 4जी की सेवाओं का उपभोग आप सभी के द्वारा किया गया। अब 5जी की सेवाएं अगस्त माह से आरंभ होने की बात सामने आ रही है। अर्थात दूरसंचार क्षेत्र में अब पांचवी पीढ़ी का आगमन होने जा रहा है। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन शहरों में अगस्त माह से ही इन सेवाओं को आरंभ किया जा रहा है।

वैसे देखा जाए तो वर्तमान में 4जी की सेवाओं का उपभोग लोग कर रहे हैं किन्तु लोगों को 4जी की सेवाएं ही उचित तरीके से नहीं मिल पा रही हैं, इसलिए आने वाले समय में 5जी की सेवाएं उन्हें किस स्वरूप में मिल पाएंगी यह बात विचारणीय ही मानी जा सकती हैं।

वर्तमान समय में विशेषकर कोरोना काल में इंटरनेट और मोबाईल सेवाओं की उपयोगिता को बेहतर तरीके से प्रतिपदित किया गया है। आज एक युवा दिन भर मोबाईल की स्क्रीन पर ही उलझा नजर आता है। कोविड काल में ऑन लाईन पढ़ाई के दौरान शिक्षक और विद्यार्थी सभी मोबाईल और लेपटॉप पर ऑन लाईन क्लासेस की पढ़ाई करते दिखाई देते आए हैं।

केबल युक्त फोन वाली ब्राडबैण्ड सेवाओं के साथ ही साथ मोबाईल पर मिलने वाली ब्राडबैण्ड सेवाओं के परिदृश्य को अगर देखा जाए तो ये दोनों ही सेवाएं आज आम उपभोक्ता के जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। 2014 में ब्राडबैण्ड का आंकड़ा देश में 10 करोड़ के करीब था जो 2015 में 4जी आने के बाद अब अस्सी करोड़ के लगभग पहुंच चुका है।

भले ही लोगों को पुख्ता तरीके से इसकी सेवाएं नहीं मिल पा रहीं थीं, फिर भी सेवाओं को संतोषजनक माना जा सकता है। यह सब कुछ 4जी की सेवाओं के कारण ही संभव हो पाया है। अब 5जी की घोषणा सरकार के द्वारा की गई है। इसके लिए 5जी स्पेट्रम को मंजूरी भी देने की बात सामने आई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि वर्तमान में 4जी सेवाओं से दस गुना ज्यादा गति से चलने वाली 5जी सेवाएं हैं, जिनका लाभ जल्द ही उपभोक्ताओं को मिलने वाला है।

तेज गति की सेवाओं के लिए भारत प्रयास कर रहा है। वहीं, दूसरी ओर 5जी पर अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया सहित यूरोप के कुछ देश लंबे समय से परीक्षण भी करते आ रहे हैं। जापान इन सबसे आगे ही है। जापान में 5जी अब गुजरे जमाने की बात हो चकी है। जापान में 2030 के लगभग 6जी लाने की तैयारियां चल रही हैं।

एक समय था जब किसी का पता पूछते पूछते उसके घर तक पहुंचना होता था, रास्ते में जगह जगह भटका भी करते थे लोग, पर अब इंटरनेट सेवाओं के विस्तार के चलते लोग अपनी लोकशन मोबाईल पर शेयर कर देते हैं और आप बिना भटके ही गंतव्य पर पहुंच जाते हैं। इतना ही नहीं बस, कार, रेलगाड़ी जिसमें जीपीएस लगा है उसकी लाईव लोकेशन भी आप देख सकते हैं।

आज लोग मोबाईल पर पूरी तरह निर्भर हो चुके हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। अगर कुछ मिनटों के लिए इंटरनेट सेवाएं बाधित होती हैं तो लोगों को लगने लगता है मानो उन्हें प्राणवायू मिलना ही बंद हो गया है। मोबाईल पर आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का खामियाजा जरूर हमें भुगतना पड़ रहा है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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