कैसी पलटी है समय की धार

-जावेद उस्मानी-

कैसी पलटी है समय की धार।
हमसे रूठी हमारी ही सरकार।
उतर चुका सब चुनावी बुखार।
नहीं अब कोई जन सरोकार।
अनसुनी है अब सबकी पुकार।
बहरा हो गया हमारा करतार।
दमक रहा है बस शाही दरबार।
झोपड़ों में पसरा और अंधकार।
सुन लो अब भी एक अर्ज़ हमार।
आपकी पालकी के हमीं कहार।
जब फिर नाव पहुंचेगी मंझधार।
तब कौन बनेगा फिर तारणहार।

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