अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!

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मन को करें प्रकाशमय, भर दें ऐसा प्यार !
हर पल, हर दिन ही रहे, दीपों का त्यौहार !!
दीपों की कतार से, सीख बात ले नेक !
अँधियारा तब हारता, होते दीपक एक !!
फीके-फीके हो गए, त्योहारों के रंग !
दीप दिवाली के बुझे, होली है बेरंग !!
दीये से बात्ती रुठी, बन बैठी है सौत !
देख रहा मैं आजकल, आशाओं की मौत !!
बदल गए इतिहास के, पहले से अहसास !
पूत राज अब भोगते, पिता चले वनवास !!
रुठी दीप से बात्तियाँ, हो कैसे प्रकाश !
बैठा मन को बांधकर, अंधियारे का पाश !!
पहले से त्यौहार कहाँ, और कहाँ परिवेश !
अंधियारे उर में भरे, मन में हुए कलेश !!
मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद !
जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद !!
— डॉo सत्यवान सौरभ,

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