दिल्ली नरसंहार के अपराधियों को बचाने का षडयंत्र–डा. कुलदीप चन्द अगिनहोत्री

सोनिया गांधी की पार्टी को छोड़कर, बाकी सभी राजनैतिक दल श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हुए भीषण नरसंहार को लेकर एकमत हैं । सभी यह स्वीकार करते हैं कि 1984 में दिल्ली में जो हुआ उसे दंगे तो बिल्कुल ही नहीं कहा जा सकता। दंगा तब माना जाता है कि जब दो फिरके आपस में लड़ते हैं। दिल्ली में दो फ़िरक़ों का आपस में न तो कोई विवाद था और न ही उनमें आपस मेंं कोई लड़ाई थी । इसीलिए दिल्ली में हुई इस घटना को दंगे नहीं बल्कि नरसंहार कहा जा सकता है। दूसरा तथ्य जिस पर सभी एक मत है वह यह है कि 1984 का जो नरसंहार हुआ , वह स्वत: स्फूर्त नहीं था बल्कि केन्द्र सरकार और उस पार्टी द्वारा, जिसे आजकल सोनिया गांधी की पार्टी के नाम पर पहचाना जाता है, संयुक्त रूप से एक बहुत ही बड़ी साजिश के अन्तर्गत किया गया था। उस समय के

प्रधनमंत्राी राजीव गांधी ने इस नरसंहार को परोक्ष रूप से उचित ठहराते हुए टिप्पणी की थी कि जब बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती हिलती ही है।

अब यह नरसंहार एक बार फिर चर्चा में है, जिसका कारण इस रहस्य का पता चल जाना भी है कि ब्रिटिश सरकार द्वारा भी आपरेशन बल्यू स्टार में भारत सरकार को कार्यनीति संबंधी सहायता मुहैया करवाई गयी थी। क्या ब्रिटिश सरकार को इस बात का अंदाजा हो गया था कि आपरेशन बल्यू स्टार के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं और उन्हीं को आगे बढ़ाने के लिए ब्रिटिष सरकार इन्दिरा गांधी को जानबूझकर इस रास्ते पर प्रेरित कर रही थी ? ध्यान रखना चाहिए कि 1947 में भारत से चले जाने के बाद भी ब्रिटिष सरकार का हिन्दुस्थान में अभी तक हेंगओवर समाप्त नहीं हुआ है। इंग्लैण्ड सरकार की नीति शुरु से ही भारत में अलग-अलग फिरकों को आपस में लड़ाने की रही है । उसकी मंशा किसी भी ढंग से भारत को कमज़ोर करने और पाकिस्तान को सुदृढ़ करने की रहती है। हो सकता है कि अपने इसी उददेश्य की पूर्ति के लिए उसने इन्दिरा गान्धी को इस दिशा में ले जाने का प्रयास किया हो। लेकिन मुख्य प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जब इन्दिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद भी दिल्ली में दंगे नहीं हुए तो सरकार को दिल्ली में यह सुनियोजित नरसंहार करवाने की क्या जरूरत थी? क्या यह मज़हबी कार्ड खेल कर वोट बटोरने की घटिया राजनीति ही थी या फिर इसके पीछे गहरी भारत विरोधी साज़िश थी ?

आज इस नरसंहार को हुए तीस वर्ष हो गए हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस नरसंहार के किसी एक सूत्रधार को भी अभी तक सजा नहीं हो पाई है। सजा की बात तो दूर, सोनिया गांधी की पार्टी ने उन सूत्रधारों को सत्ता के पद संभाल कर एक प्रकार से उनकी करतूतों को समर्थन ही प्रदान किया है। जांच के नाम पर अनेक नाटक हुए लेकिन उनका अंत भी नाटकों की शैली में ही हो गया। जांच दर जाँच के नाटक दरअसल अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें बचाने के लिए, एक व्यापक रणनीति के तहत प्रयोग किये गये ।

यह शायद पहली बार हुआ है कि सोनिया गांधी की पार्टी के ही उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जाने या अनजाने में यह स्वीकार किया है कि इस नरसंहार में कुछ कांग्रेसियाें का हाथ भी रहा है। कांग्रेस के ही एक दूसरे वरिष्ठ नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्राी कै० अमरिन्दर सिंह ने तो इस नरसंहार के लिए दोषी कुछ कांग्रेसियों यथा हरिकृष्ण लाल भक्त, धर्म दास शास्त्राी, अर्जुन दास ,ललित माकन तथा सज्जन कुमार आदि के नाम का खुलासा भी कर दिया है। ऐसा नहीं कि दिल्ली की जनता को इनके नामों का पता नहीं था लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी वरिष्ठ कांग्रेसी ने स्वयं आगे आकर इन नामों का खुलासा किया हो। जाहिर है कि राहुल गांधी और कै. अमरिन्दर सिंह के इस कनफैशन के बाद यह मांग तेजी से उठी कि दोषियों को दणिडत किए जाने की प्रक्रिया प्रारम्भ की जाए। इस मोड़ पर बहुत ही होशियारी से अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सोनिया गांधी की पार्टी की सहायता के लिए आगे आई । सोनिया गान्धी की पार्टी की सहायता से दिल्ली के मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र देने से पहले बहुत ही होशियारी से इस मांग को तूफान बनने से पहले रोकने के लिए एक नया पत्ता फैंक दिया। केजरीवाल ने कहा कि 1984 के नरसंहार की जांच के लिए एक बार फिर से एक विशेष जांच समिति गठित की जाएगी और यह जांच समिति एक साल के भीतर अपनी रपट प्रस्तुत करेगी। जो हश्र इससे पहले की जांच समितियों का हुआ उसी लाइन में इस जांच समिति का हश्र नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

सोनिया गांधी की पार्टी ने आम आदमी पार्टी के अल्पमत में होते हुए भी केजरीवाल को मुख्यमंत्राी बनाकर जो अहसान किया था, केजरीवाल ने विशेष जांच समिति बनाने का शोशा उछालकर एक प्रकार से उस कर्ज की अदायगी कर दी है। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने ठीक ही कहा है कि जरुरत जाँच समितियाँ बनाने की नहीं है , बल्कि दोषियों को सज़ा देने की है । इस नरसंहार के सूत्रधार कौन हैं , यह न तो दिल्ली की जनता से छिपाहुआ है और न ही दिल्ली समेत केन्द्र की सरकार से । लेकिन दुर्भाग्य से जाँच समितियाँ आजतक अपनी सारी क़ाबलियत इन अपराधियों को बचाने के लिये ही करती रहीं हैं । जब पंजाब के एक जाने माने वक़ील कपिल सिब्बल दिल्ली चले गये थे तो बहुत से लोगों को आशा थी कि वे अपनी क़ानूनी क़ाबलियत और राजनैतिक रसूख़ के चलते आम जन के क़ातिलों को अवश्य जेल के पीछे पहुँचा देंगे । लेकिन दुर्भाग्य से उन्होंने भी अपनी सारी क़ाबलियत भाजपा को गालियाँ निकालने और सोनिया गान्धी के कुनबे की सेवा में लगा दी । नरसंहार का दंश झेल चुके पंजाबियों के ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की जरुरत उन्होंने भी नहीं महसूस की । सोनिया गान्धी देश में हो रहे दंगों की चिन्ता में अपनी सेहत ख़राब कर रही हैं लेकिन दिल्ली के इस नरसंहार पर उनकी भी ज़ुबान नहीं खुलती । गुजरात में हुये २००२ के दंगों की याद करते हुये इस पार्टी के लोग रोने लगते हैं लेकिन १९८४ के इस नरसंहार पर उन्हें नींद ही नहीं आने लगती बल्कि वे इसे “क्रिया की प्रतिक्रिया” कह कर भौतिक विज्ञान के नियमों की व्याख्या में अपना सिर खपाने लगते हैं ।

जिन लोगों ने इन्दिरा गान्धी की हत्या का बहाना लेकर दिल्ली में इस नरसंहार को अंजाम दिया , वे केवल वोटों की राजनीति नहीं कर रहे थे , बल्कि हिन्दु और सिक्ख में दरार डालने की एक राष्ट्रघाती साज़िश का हिस्सा बने हुये थे । वे शायद यह भी जानते थे कि पंजाब के इन दो समुदायों में जो ज़हर वे डाल रहे हैं , इसका दूरगामी घातक प्रभाव हो सकता है । इस ज़हर के मारक प्रभाव को नष्ट करने में भी लम्बा समय लग सकता है । लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इस षड्यंत्र को सिरे चढ़ाया , तो ज़ाहिर है सूत्र संचालन पर्दें के पीछे से ही हो रहा था । यह नरसंहार भारत के पिछले पाँच हज़ार के इतिहास पर ऐसा कलंक है जिसे मिटाने के लिये न जाने कितनी तपस्या करनी होगी ।

1 COMMENT

  1. कांग्रेस को तो गर्व है उसने कभी भी खेद प्रकट नहीं किया राजीव ने तो इसे अपने कथन से जायज ही ठहराया था.कांग्रेस को भा ज पा के राज्यों में दंगे याद आते हैं , विशेषकर गुजरात के , लेकिन बिहार, आसाम,महाराष्ट्र की त्रासदियां याद नहीं आती.यह कांग्रेस का एक चुनावी हथकंडा मात्र है.दुःख की बात यह भी है कि मुस्लिम समाज ने भी कांग्रेस के प्रचार को sach मन.आसाम के दंगे तो कांग्रेस द्वारा ही प्रायोजित थे , जैसा कुछ समाचार पत्रों ने प्रकाशित भी किया था.गुजरात दंगों के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराने वाली कांग्रेस यह भूल जाती है, कि, एस आइ टी ने मोदी को कहीं भी जिम्मेदार नहीं बताया था. अब कांग्रेस को कुछ ज्यादा ही खतरा नज़र आ रहा है, जाते जाते केजरीवाल उस नरसंहार की जाँच के आदेश दे परेशानी पैदा कर गए हैं.

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