वह लड़की और नरभक्षी नक्सली

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-संजय द्विवेदी

ये ठंड के दिन थे, हम पूर्वी उत्तर प्रदेश की सर्दी से मुकाबिल थे। ससुराल में छुट्टियां बिताना और सालियों का साथ किसे नहीं भाएगा। वहीं मैंने पहली बार एक खूबसूरत सी लड़की प्रीति को देखा था। वह मेरी छोटी साली साहिबा की सहेली है। उससे देर तक बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर हमारी बातों का सिलसिला चलता रहा, उसने बताया कि उसकी शादी होने वाली है और उसकी शादी में मुझे रहना चाहिए। खैर मैं उसकी शादी में तो नहीं गया पर उसकी खबरें मिलती रहीं। अच्छा पति और परिवार पाकर वह खुश थी। उसके पति का दुर्गापुर में कारोबार था। उसकी एक बेटी भी हुयी। किंतु 28 मई,2010 की रात उसकी दुनिया उजड़ गयी।पश्चिम बंगाल के पास झारग्राम में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पर बरपे लाल आतंक में प्रीति के पति की मौत हो गयी। इस खबर ने हमें हिला सा दिया है। हमारे परिवार में प्रीति की बहुत सी यादें है। उसकी बोली, खनक और महक सब हमारे साथ है। किंतु उसके इस तरह अकेले हो जाने की सूचना हम बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। नक्सली हिंसा का यह घिनौना रूप दुख को बढ़ाता है और उससे ज्यादा गुस्से से भर देता है। हम भारत के लोग हमारी सरकारों के कारनामों का फल भुगतने के लिए विवश हैं।

नक्सली हमले में हुयी यह पहली मौत नहीं है। ये एक सिलसिला है जो रूकने को नहीं है। बस खून…मांस के लोथड़े…कराहें.. आंसू….चीखें…और आर्तनाद। यही नक्सलवाद का असली चेहरा है। किंतु नक्सलवाद के नाम पर मारे जा रहे अनाम लोगों के प्रति उनके आंसू सूख गए हैं। क्या हिंसा,आतंक और खूनखराबे का भी कोई वाद हो सकता है। हिंदुस्तान के अनाम, निरीह लोग जो अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में लगे हैं उनके परिवारों को उजाड़ कर आप कौन सी क्रांति कर रहे हैं। जिस जंग से आम आदमी की जिंदगी तबाह हो रही हो उसे जनयुद्ध आप किस मुंह से कह रहे हैं। यह एक ऐसी कायराना लड़ाई है जिसमें नक्सलवादी नरभक्षियों में बदल गए हैं। ट्रेन में यात्रा कर रहे आम लोग अगर आपके निशाने पर हैं तो आप कैसी जंग लड़ रहे हैं। आम आदमी का खून बहाकर वे कौन सा राज लाना चाहते हैं यह किसी से छिपा नहीं है।

क्या कह रही हो अरूंधतीः

न जाने किस दिल से देश की महान लेखिका और समाज सेविका अरूंधती राय और महाश्वेता देवी को नक्सलवादियों के प्रति सहानुभूति के शब्द मिल जाते हैं। नक्सलवाद को लेकर प्रख्यात लेखिका और बुकर पुरस्कार विजेता अरूंधती राय का बयान दरअसल आंखें खोलने वाला है। अब तो इस सच से पर्दा हट जाना चाहिए कि नक्सलवाद किस तरह से एक देशतोड़क आंदोलन है और इसे किस तरह से समर्थन मिल रहा है। नक्सलियों द्वारा की जा रही हत्याओं का समर्थन कर अरूंधती राय ने अपने समविचारी मानवाधिकारवादियों, कथित लेखकों और आखिरी आदमी के लिए लड़ने का दम भरने वाले संगठनों की पोल खोल दी है। उन्होंने अपना पक्ष जाहिर कर देश का बहुत भला किया है। उनके इस साहस की सराहना होनी चाहिए कि खूनी टोली का साथ तमाम किंतु-परंतु के साथ नहीं दे रही हैं और नाहक नाजायज तर्कों का सहारा लेकर नक्सलवाद को जायज नहीं ठहरा रही हैं। उनका बयान ऐसे समय में आया है जब भारत के महान लोकतंत्र व संविधान के प्रति आस्था रखनेवालों और उसमें आस्था न रखनेवालों के बीच साफ-साफ युद्ध छिड़ चुका है। ऐसे में अरूंधती के द्वारा अपना पक्ष तय कर लेना साहसिक ही है। वे दरअसल उन ढोंगी बुद्धिजीवियों से बेहतर है जो महात्मा गांधी का नाम लेते हुए भी नक्सल हिंसा को जायज ठहराते हैं। नक्सलियों की सीधी पैरवी के बजाए वे उन इलाकों के पिछड़ेपन और अविकास का बहाना लेकर हिंसा का समर्थन करते हैं। अरूंधती इस मायने में उन ढोंगियों से बेहतर हैं जो माओवाद, लेनिनवाद, समाजवाद, गांधीवाद की खाल ओढ़कर नक्सलियों को महिमामंडित कर रहे हैं।

तय करें आप किसके साथः

खुद को संवेदनशील और मानवता के लिए लड़ने वाले ये कथित बुद्धिजीवी कैसे किसी परिवार को उजड़ता हुआ देख पा रहे हैं। वे नक्सलियों के कथित जनयुद्ध में साथ रहें किंतु उन्हें मानवीय मूल्यों की शिक्षा तो दें। हत्यारों के गिरोह में परिणित हो चुका नक्सलवाद अब जो रूप अख्तियार कर चुका है उससे किसी सदाशयता की आस पालना बेमानी ही है। सरकारों के सामने विकल्प बहुत सीमित हैं। हिंसा के आधार पर 2050 में भारत की राजसत्ता पर कब्जा करने का सपना देखने वाले लोगों को उनकी भाषा में ही जवाब दिया जाना जरूरी है। सो इस मामले पर किसी किंतु पंरतु के बगैर भारत की आम जनता को भयमुक्त वातावरण में जीने की स्थितियां प्रदान करनी होंगी। हर नक्सली हमले के बाद हमारे नेता नक्सलियों की हरकत को कायराना बताते हैं जबकि भारतीय राज्य की बहादुरी के प्रमाण अभी तक नहीं देखे गए। जिस तरह के हालात है उसमें हमारे और राज्य के सामने विकल्प कहां हैं। इन हालात में या तो आप नक्सलवाद के साथ खड़े हों या उसके खिलाफ। यह बात बहुत तेजी से उठाने की जरूरत है कि आखिर हमारी सरकारें और राजनीति नक्सलवाद के खिलाफ इतनी विनीत क्यों है। क्या वे वास्तव में नक्सलवाद का खात्मा चाहती हैं। देश के बहुत से लोगों को शक है कि नक्सलवाद को समाप्त करने की ईमानदार कोशिशें नदारद हैं। देश के राजनेता, नौकरशाह, उद्योगपति, बुद्धिजीवियों और ठेकेदारों का एक ऐसा समन्वय दिखता है कि नक्सलवाद के खिलाफ हमारी हर लड़ाई भोथरी हो जाती है। अगर भारतीय राज्य चाह ले तो नक्सलियों से जंग जीतनी मुश्किल नहीं है।

हमारा भ्रष्ट तंत्र कैसे जीतेगा जंगः

सवाल यह है कि क्या कोई भ्रष्ट तंत्र नक्सलवादियों की संगठित और वैचारिक शक्ति का मुकाबला कर सकता है। विदेशों से हथियार और पैसे अगर जंगल के भीतर तक पहुंच रहे हैं, नक्सली हमारे ही लोगों से करोड़ों की लेवी वसूलकर अपने अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं तो हम इतने विवश क्यों हैं। क्या कारण है कि हमारे अपने लोग ही नक्सलवाद और माओवाद की विदेशी विचारधारा और विदेशी पैसों के बल पर अपना अभियान चला रहे हैं और हम उन्हें खामोशी से देख रहे हैं। महानगरों में बैठे तमाम विचारक एवं जनसंगठन किस मुंह से नक्सली हिंसा को खारिज कर रहे हैं जबकि वे स्वयं इस आग को फैलाने के जिम्मेदार हैं। शब्द चातुर्य से आगे बढ़कर अब नक्सलवाद या माओवाद को पूरी तरह खारिज करने का समय है। किंतु हमारे चतुर सुजान विचारक नक्सलवाद के प्रति रहम रखते हैं और नक्सली हिंसा को खारिज करते हैं। यह कैसी चालाकी है। माओवाद का विचार ही संविधान और लोकतंत्र विरोधी है, उसके साथ खड़े लोग कैसे इस लोकतंत्र के शुभचिंतक हो सकते हैं। यह हमें समझना होगा। ऐसे शब्दजालों और भ्रमजालों में फंसी हमारी सरकारें कैसे कोई निर्णायक कदम उठा पाएंगीं। जो लोग नक्सलवाद को सामाजिक-आर्थिक समस्या बताकर मौतों पर गम कम करना चाहते हैं वो सावन के अंधे हैं। सवाल यह भी उठता है कि क्या हमारी सरकारें नक्सलवाद का समाधान चाहती हैं? अगर चाहती हैं तो उन्हें किसने रोक रखा है? कितनी प्रीतियों का घर उजाड़ने के बाद हमारी सरकारें जागेंगी यह सवाल आज पूरा देश पूछ रहा है। क्या इस सवाल का कोई जवाब भारतीय राज्य के पास है,,क्योंकि यह सवाल उन तमाम निर्दोष भारतीयों के परिवारों की ओर से भी है जो लाल आतंक की भेंट चढ़ गए हैं।

22 COMMENTS

  1. Ye naksalwad to aatankwad ka bhe bda bhaee nikla. Lekin ab bi waqt he ki hum jane ki iska hal kya he ye samasya kyn he. Isse bhee kya fayda ki unke samasya na niptakar hum unko hi nipta de. Wese bhi har aabhavgrast vyakti naksali bnne ko tayyar he. Lekin ye jayaz nahe he ki sarkar ki galti me janta mare chahe wo naksali ho ya fir aam janta.
    Ese dekhne se to lagta he ki sirf shabdavali ka fark h. Varna atankvad or naksalvad alag alag nahee he.

  2. सर बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप…या तो आप नक्सलवाद के पक्षधर हैं अथवा विरोधी…कोई एक विचारधारा तो स्पष्ट होनी ही चाहिए… गुट निरपेक्ष वे ही होते हैं जो डरपोक होते हैं जिन्हें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है….अरुंधति राय जैसी महिलाएं सस्ते प्रचार के सिवाए कुछ नहीं चाहतीं…हालांकि वो किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं….आदिवासियों के हित की बात जो अरुंधति कर रहीं हैं उनसे पूछा जाए कि उन्होंने कितने आदिवासियों को विकास के पहिए पर बिठाने के लिए काम कियाहै…नक्सलियों के पक्ष में बयान देने से आदिवासियों का विकास नहीं होता..ये अरुंधति जैसी महिलाओं को जान लेना चाहिए…कितने बार अरुंधति दंतेवाड़ा,बीजापुर या अबूझमाड़ के आदिवासियों के घर गईं हैं…रायपुर आकर फाइवस्टार होटल में ठहरने वाले क्या जानें आदिवासियों का दर्द….ऐसे लोगों को तो अरबिक देशों में होना चाहिए जहां देशद्रोही बातें करने पर सरेआम फांसी दे दी जाती है…दुर्भाग्य से हमारे देश में आतंकवादियों तक को फांसी देने से कतराते हैं नेता..

  3. Sanjay jee, ko Dhanyawaad
    Naxalwaad k vishay par apni pakad ka loha manwa chuke sanjay jee ne is baar phir yeh bata diya hai ki Bharat me sabse bada loktantra hai or jo log loktantra ko nahi mante woh Janata ka pakshadhar ho hi nahi sakte.
    Priti ka jikr us har ek mahila ka jikr hai jo roz raat sone se phle ye dua karti hai ki subah koi apriya ghatna uske pati ke saath na ghat jaye,lekin afsoos ki har tisre din kisi na kisi ka Suhaag ujad raha hai…..bahut hi marmik or hridayavidarak lekh hai.
    saath hi janta ko gumrah karne wali har ek party apni rajnaitik Rotiya sekne ka kaam kar rahi hai
    chahe woh chatissgarh ki BJP ho ya W.B Ki CPIM.
    sabhi naxalwaad ko jeewit rakhna chahte hai taaki Janta ka dhyan vikas mulak muddon se hat jaye or ye hamesha jit ti hai or bechari lachar janta in Naxaliyo ka shikaar hoti hai……….
    Hame sirf naxaliyon k khilaaf hi nahi un sabhi k khilaaf andolan karna chahioye jo ki vikas or loktanra ko hi kamjoor karna chahte hain.. Chahe woh koi bhi kisi bhi shakl me kyu na ho…………
    Jaari rahe……..

  4. प्रीती के माध्यम से तथा अरुंधती एवं महाश्वेता देवी के सन्दर्भों से अपने विचार और भावनाएं इस तरह से व्यक्त की हैं की हर कोई आपके साथ खड़ा होना चाहेगा.सिधान्त में सर्कार का विरोध करना- कहना और आम आदमी को बंधक बनाना या मारना इस सिलसिले की अति है यह naxalwad इसमें उन लोगो को अपनी भूमिका बताने का वक़्त है जिनके नाम पर और जिनके लिए यह सब किया जा रहा है. अभी तो यह भी साफ नहीं है की उनका निजाम भी क्या ऐसी आज़ादी देगा जो इस तंत्र में मौजूद है. यह इसलिए भी जरूरी है की सत्ता के लिए जनयुद्ध के नाम पर आम आदमी को मारना किस निति या नैतिकता में जायज ठहराया जाता है. बधाई . अलख जगाते रहिये.

  5. sanjay sir, gyaneshwari ex jaise hadsoon ko sun jab hum sabka dil ro uthta he, to neta log kis mitti se bane hain. aapke sawaloon par sarkar ko gambhirta se sochna padega. nahi to aise hee na janne kitne ghar tabah hote rahenge

  6. संजय जी आपका लेख ने वाकेई उस विकराल होती समस्या पर प्रश्न चिन्ह खडा कर रही है जो देश की जड़ों को खोखला कर रही है…नक्सलवाद अगर ये कहा जाय कि आतंकवाद का ही प्रतिरूप है तो गलत नहीं होगा…जिस तरह से आतंकवाद का पालन-पोषण करने वाला पड़ोसी देश खुद भी इस समस्या से ग्रसित है…उसी तरह नक्सलवाद की आग को अगर किसी भी रूप में हमने चिंगारी दिखायी तो आने वाले दिनों में भारत के लिए ही नासूर बन जाएगा औऱ जिसे खत्म करना असंभव…..आपके अपने लेख में जिन प्रश्नों को उठाया है..उन पर आज नहीं तो आने वाले वक्त में हमारी सरकार को सोचना ही पड़ेगा…

  7. maoists and naxalites are synonym for terrorists. How could they be differently treated ? Aren’t they mercilessliy killing innocent people in the pretext of so-called sovereign state? how could they conceptualize a state on the blood bath of such innocent people? this is insane and inhumane act and does not deserve any mercy. They should be rightaway hanged till death.

  8. संजय जी , आपका लेख पढ़ा हमेशा की तरह आपकी धारदार लेखनी ने सवाल उठाये लेकिन ये सवाल क्या उन लोगो को भी चुभते है ? जो इस सारे खेल में शामिल हैं ? इक पुरुष होकर आपका मन प्रीती के दर्द से भीग गया मैं हैरान हूँ उन महिलाओं के व्यवहार पर जो स्त्री होकर भी , स्त्री के दर्द को अनुभव नहीं कर पाती है दर्द तो आखिर दर्द है उसकी कोई जाती नहीं होती और जो लोग खून की नदियाँ बहा रहे है यक़ीनन वे इंसान कहलाने योग्य नहीं लेकिन जो इस खूनी खेल में गर्व के साथ शामिल है उनके बारे में क्या कहा जाए ? देश की चिंता हम आप सबको है लेकिन हम फिर भी कुछ कर नहीं पाते है
    किसी ने क्या खूब कहा है “”की ,,देश की चिंता मेरे मन में भी उठती थी , देश की दशा पर आत्मा मेरी भी रोई थी
    मैं भी कुछ तो करता लेकिन , मेरा पेट भर गया और मुझे नींद आया गयी ”
    तो संजय जी जब सभी को नींद आ रही है लेकिन आप देहरी के दिए की तरह जलते रहे यूँ ही अलख जगाते रहे यही कामना है —ममता व्यास

  9. संजय जी,प्रीति के साथ जो कुछ भी हुआ,उसका बड़ा मार्मिक चित्रण किया आपने.ईश्वर प्रीति को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान करे.एक नारी होकर भी क्या अरुंधती का मन नहीं पिघलेगा इस घटना से.क्या अरुंधती किसी की बेटी या बहन नहीं है.अपने परिवार के किसी सदस्य को इस हादसे मे खोने के बाद भी इसे क्या अरुंधती जनक्रांति कहती.ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस की दुर्घटना में छत्तीसगढ़ के भी बहुत से यात्री मारे गए है.उनके परिवार वालो का दुःख देखा नहीं जाता.२८ मई को रायपुर में ऐसा भी एक परिवार था जहाँ शादी की खुशिया मनाई जा रही थी परन्तु इस हादसे ने उन खुशियों को मातम में बदल दिया क्योकि शादी में शामिल होने आ रहे जायसवाल परिवार के बेटे और बहु इसके शिकार हो गए.एक अन्य काबरा परिवार के सात सदस्य इस हादसे में मारे गए,सम्पूर्ण कृष्णा कालोनी के निवासी सदमे में थे.बेकसूर लोगों की जान लेकर कौन सी जनक्रांति ला रहे हैं ये माओवादी.इन हत्यारे माओवादियो के खिलाफ जनांदोलन होना चाहिए.आप अपनी लेखनी से इसी प्रकार जानकारी देते रहें- नारायण भूषणिया

  10. bhai ji,
    preeti ke bahane aapne ek sahi prashan uthaya hain.abhi kal hi raipur me apne bhai ko naxli bataka farji hatya ki ripaort karne ke liye ek pariwar aaya hua hain ,aapne chhsttisgarh me voh riport padhi hogi,dantewada me ek do nahi kai pritiyo ke ghar naxaliyo ne nahi hamari bahadur seniko ne ujade hain.ghar ujadne wala naxli ho ya senik iska fark ham aap jaise likhne walo par padt hoga preeti ya sodi par nahi jo sbhi bhi apne sath hue balatkar aur apne pariwar walo ko marte huea dekhti ho.ye theek hsin ki naxliyo ka virodh karna sarkar ka samrthan karna nahi hain , vese hi manavadhikar ki bat karna naxli samrthan nahi ho sakta.
    arundhi ne mumbai me bilkul aisa nahi kaha jo jhoot PTI ne frlaya ha desh me.unhone saf kaha tha ki ve yaha ** na to sarkar na maovadiyo dwara nirdosh logo ki hatya ka bachav karne aai hain^^unhone gandhi vad ki koi alochna nahi ki thi balki laha tha ki *janglo mr rah rahe log sanghrsh me gandhiwadi tarike nahi apna sakte kiyo ki unke liye sahanbhuti rakhne wale samuh ki jarurt hoti hain .mene pahle hi sawal kiya tha ki jo log pahle se hi bhooke ho vo anshan kaise kar sakte hain., is bayan ko PTI ne jo felaya he use hi arunshti na khbro ka green hunt kaha hain.
    unhone sahi kaha ki yah kiya opreshan ka shahri avtar hain ,jisme bharat ki prmukh samachar agency un logo ke khilaf mamle banane mesarkar ko madad karti hain,jinke khilaf koi sabut nahi hote.kiya voh ham jaise logo ko bahshi bheed ke supurd kar dena chahti hain,taki hame marne ya girftar karme ka kalank sarkar ke hatho par na aaye.
    yeh sarkaro ka dhurvikaran karne ki sajish he ki ^ jo log hamare sath nahi hain vo naxliyo ke sath nahi hain.
    kamal hain aap jaise lekhak preeti ki maemik kahani ke bahane samajik sarokar rakhnewalo ke khilaf mahol banane ka kam karte hain.maf karna me aapko hurt nahi karna chahta tha.

  11. संजय जी,
    प्रीति के बहाने आपने माओवादियो के बारे मे आंखे खोलने की कोशिश की है. अब बिना पक्षकार बने निदान नही- चाहे आप माओवादियो के समर्थक हो जाइये या विरोधी. अरूंधती राय और महाश्वेता देवी तो माओवादियो की समर्थक है. हमे और आपको तय करना है. ये भी बताना है कि माओवादियो का विरोधी होना सरकार का समर्थक होना नही है, सरकार हमने ही बनाई है, अच्छी या बुरी. हम इसका समर्थन या विरोध कर सकते है. लेकिन माओवादियो को जिसने बनाया है उन्हे भी उनका समर्थन करने दिजिये. लेकिन देश को बताइये, जनता को जगाइये कि इस जन युद्ध मे हम या हमारे जैसे लोग माओवादियो, अरूंधतियो के खिलाफ है. इससे अगर सरकार का समर्थन हो रहा है तो वो भी जरूरी है. माओवादी अरूंधती का भ्रमजाल और शब्द्जाल धोखा ही है. हमे इससे बचना और बचाना है.

  12. संजय का लेख नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे बौद्धिक आन्दोलन का एक हिस्सा है. यह अभियान जारी रहे. प्रीति ही क्यों, कितनी ही बहू, बेटिया, बेटे आदि ज्ञानेश्वरी हादसे में जान से हाथ धो बैठे. इसका दुःख होना चाहिए नक्सलियों को, लेकिन नहीं हो सकता . उनको लगता है की वे ”एक बड़े उद्देश्य” के लिए लगे है. हम लाख आँसूं बहाए, वे तो यही चर्चा करेंगे, की ‘परिवर्तन की माँ ‘ लाल लहू मांगती ही है. खैर, सुविचारित लेख के लिए संजय को सधन्यवाद

  13. mai bahut satbdha hoon. mujhe preeti ke saath hue is hadse ki jankaree ye lekh parkar hi hui hai. mai sabhee se kisi na kisi rup se jura hoon. mujhe behad dukh hua. preeti ke prate meri gahari sanvwdana hai. God preeti ho himmat aur haosala de.

    Rahi baat naxalwad ki to kabhee bhee kisi roop me sahi aur tarksangat nahi raha. Khoon Kharabe ki jamin par hi uska janm hua. usase kaise hum kisi prakar ke social justice ki umeed kar sakte hai. Hamaree sarkare pani ke naak ke upar jane tak ka hamesa se hi intazar karti rahi hai. jiska khamiyaja aam janta ko chukana parta hai.

  14. sar kisi bhee tarah kee hinsa uchit nahin chahe wah kisi naaam par kee jaye. mahashweta devi aur arundhati agar hinsa ko jayaz thahrane ke liye koi tark deti hain to unse yah poochh jana chahiye ki jin aurton kee maaang uzad gayee, jo bachche anath ho gaye, jin maan baaap ka budhape ka sahara uzad gaya wo agar naxaliyon ke khilaph goliyan barsane lagein to kya wah unhein bhee jayaz thahrayengee. sir ranveer sena aur mcc ka dard bahut paaas se mahsoos kiya hai maine aur kai eise logon ko dekha hai jo mcc ke madadgaron ko sandeh hone par spariwar uda dete hain goliyon se. bhagwan preeti ke pati kee aatma ko shanti dein aur preeti ke parijanon ko is dukh se ubarne ka hausala.

  15. सर आपने जिस प्रकार शब्दों को गुथा है उससे लेख बहुत मार्मिक बन गया है. भावनाओ के साथ- संवेदनाओ का भी ख्याल रखा गया है सुन्दर लेख के लिए बधाई सर

  16. बहुत ही मार्मिक लेख है. इन सारे आन्दोलन की समस्या है कि ये शुरू होते तो है किसी कारणों से पर ख़तम होते है किसी और कारणों पर जा कर और बीच में प्रीती जैसी आम लोगो कि जिन्दगिया तबाह हो जाती है….

  17. सर आपने जिस अंदाज़ मैं लिखा …………..उसे पढकर…न सिर्फ पढकर बल्कि महसूस करते हुए प्रीति के प्रति आँखों में आंसू छलक गए ………….आश्चर्य इस बात का है कि हमारे राज नेताओं की आँखों का पानी कहाँ चला गया है ? यह समझ नहीं आता………..आखिर क्यों विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र विवश है ? मुठ्ठी भर लोग पूरे देश में आतंक फैला रहे हैं और देश के नेता फाइव स्टार होटलों में अय्याशी कर रहे हैं…………….आपका लेख ऐसे नेताओं की आँखें खोल सके यही आशा करता हूँ………………………..ताकि भारत की छवि बाहरी देशों में संभली रह सके…………………………….

    सदर नमन के साथ ;
    मनीष शुक्ल
    ब्यूरो चीफ , एन ई टीवी ,देल्ही
    ०९७११२०४२०९……………………

  18. जाके पांव ना फटे बीबाई …वो क्या जाने पीड़ पराई……वास्तव में आज की राजनीति और साहित्य में भी या यूं कहें कि साहित्य की राजनीति में भी ‘बिनब्याही माएं’ ही सबसे बड़ी समस्या है. एक मैथिली में कहावत का आशय है ‘मां से ज्यादे स्नेह दिखाए वो डायन’…..वास्तव में संजय जी द्वारा मार्मिक ढंग से वर्णित किसी ‘प्रीती’ का दर्द महसूस करने के लिए ‘मां’ दिखना काफी नहीं है बल्कि प्रसव पीड़ा से गुजर कर मां बन जाना महत्वपूर्ण है. तभी आप किसी के जवान बेटी को विधवा बन जाना य किसी मां की गोद सूनी हो जाना महसूस कर सकेंगे. अन्यथा केवल अपने ‘करियर’ के लिए किसी कमीने का भी मां बन् जाना फिल्मों में ही अच्छा लगता है. आप लिखते रहिये संजय जी. और हां ‘स्ट्रेचर’ किसी का कितना भी बड़ा हो उसका परवाह करने की ज़रूरत नहीं. ह्रदय से महसूस आलेख के लिए साधुवाद.

  19. प्रीटी की कहानी दिल दहलाने वाली है नक्सली हिंसा ने कई घरों को उजाड़ा है नक्सलवाद के नाम पर चल रहा आतंकवाद को समाप्त करने सर्कार को नए रणनीती पर काम करना होगा हथियारों की लड़ाई लाशें गिनती है इंसानों की वकत नहीं होती नरभक्षि कहना गलत नहीं है नक्सली रक्तपिपासु है लाल सलाम नहीं बल्कि रक्त सलाम है एन खतरनाक लोगो के बिच अरुंधती की हाजिरी सबके यकीं को तोडती है आज़ादी के दौर में कलम ने ही रास्ता दिखाया है इस दौर में भी कलम ही रास्ता दिखाएगी संजय का बयां काफी है.

  20. माओवाद, नाक्साल्वाद – दोनों आतंकवाद है. हमारे सफ़ेद पोशो ने ही इन्हें पाला पोसा है. अगर ये ख़त्म हो जाये तो नेताओं की कुर्सी ज्यादा टिक नहीं पायेगी. पंजाब खालिस्तान समस्या ख़त्म हो सकती है तो नाक्साल्वाद माओवाद क्यों नहीं ख़त्म हो सकते है. जरुरत है द्रढ राजनैतिक इक्षाशक्ति की.

  21. भरे मंच से एक फिर गांधी के आदर्शों से खिलबाड किया गया है लेकिनइ स बार किसी बाहर से नहीं देश की मामूली चीजों को देवता बनाने वालीप्रसिद्दी के लोभ में फसी लेखिका ने .अरूधती राय ने एक फिर बापू के अंहिसा के रास्तों को झूठा साबित करने की कोशिश की है मैं आपसे पूछता हूं जिस व्यक्ति की परिभाषा करने के लिए पूरी एकशताब्दी कम पड जाये उसे भरे बाजार खींचना कहां तक उचित है और इतनी बडी आलोचना के बाद भी प्रशासन मूक है …मैं आपसे पूछता हूं
    क्या उस लंगोट वाले बाबा का त्याग इस बदनाम लेखिका के आगे छोटा पड़ गया है

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