विविधा

ये सरकारी नहीं असरकारी योगी है

डॉ. मनोज जैन

कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है बाबा रामदेव योग की क्रियायें शास्त्रोक्त नहीं हैं वह अपने मनमाने तरीके से यौगिक क्रियायें सिखाते हैं। अब दिग्विजय सिंह योगविज्ञान के वेत्ता भी हो गयें हैं। ऐसा नहीं है कि दिग्विजय सिंह सब अपने मन से और उटपंटाग तरीके से बोल देते हैं वास्तव में वह मातारानी के दरवार के शेर है जो माताजी महाराज की मर्जी से ही दहाडतें हैं। उनको रखा ही इसलिये गया है कि यदि सामने वाला डर जाये तो ठीक है यदि न डरे तो भी ठीक है क्यों दौनों ही हालात में मैयारानी की ही जय जयकार होनी है। दिग्विजय कोई विदूषक नहीं है परन्तु बेरोजगार अवश्य हैं और उनकी इसी मजबूरी को ढाल बना कर 10 जनपथ से वार किये जाते हैं। अब तो इस दिग्विजयी ढाल पर इतनी मार पड चुकी है कि इस ढाल की चाल ही विगढ चुकी है। दरअसल कांग्रेस पार्टी ने पहले अपने तरीके से बाबा को पटाने की सोची थी कांग्रेस की सोच थी कि जैसे अब तक के तमाम बाबा और योगी कांग्रेस ने पटा लिये थे रामदेव को भी पार्टी पटा ही लेगी। क्योंकि रामदेव के तामझाम और सुविधाओं को देखने से तो यही आभास होता है कि यह भी सुबिधाभोगी बाबा है। परन्तु बात दरअसल ऐसी है नहीं। बाबा की सेवा में तमाम तरह की गाडियां होती है पर बाबा हमेंशा अपनी काली र्स्कापियो में ही बैठतें हैं। कितना ही लम्बा प्रवास क्यों न किया हो सुबह तीन बजे बाबा जग ही जाते है। दिन चाहे कितना ही व्यस्त क्यों न रहने वाला हो पर सुबह का योग और प्राणायाम तो होगा ही होगा। पतंजलि योगपीठ की सारी सुविधायें निर्धारित भुगतान पर सभी को उपलब्ध हैं। बाबा के शरीर पर सूती भगवा वस्त्र और पैरों में खडाउं, खाने में सादा भोजन सन्यासीं की यही आवश्यकताएं हैं। संगठन में परिवार का कोई हस्तक्षेप नहीं है। हॉ सारी व्यवस्थाएं आधुनिक प्रंबधको द्वारा कारपोरेट तरीके से संचालित होती है जिस प्रकार अम्बानी, टाटा, आदि के व्यापार चलते रहते है बाबा के कारोबार भी चल रहे हैं जिन का नियमानुसार आडिट होकर करों का भुगतान किया जाता है। दिग्विजय सिंह की परेशानी यह है कि यह बाबा अपने आश्रमों के लिये जमीन खरीदता क्यों है शासन से क्यों नहीं मांगता, बडें व्यापारी भी शासन से भयभीत रहते हैं क्यों कि उनको शासन के नाराज होने पर व्यक्तिगत नुकसान की संभावना रहती है। परन्तु बाबा तो सन्यासीं है वह तो पहले ही से निर्भय है इसलिये शासन से भयभीत नहीं होता है।

अब दिग्विजय सिंह ने नया बाण छोडा है कि बाबा के योग सिखाने का तरीका शास्त्रोक्त नहीं है। जहॉ तक मैनें बाबा को जाना है बाबा हर चीज के मामले में प्रयोगधर्मी है। और यही कारण है कि अब तक स्थापित योग के घरानों में यह चर्चा बहुत आम है कि बाबा का योग सिखाने का तरीका परम्परागत नहीं है। पर बाबा प्रयोगधर्मी है और उनका कहना है कि मैनें इस प्रकार से करके देखा तो मुझे यह लाभ समझ में आया है। आप को समझना है तो आप भी करके देखों। काफी सारे लोग करके देख रहे है और उनको लाभ मिल रहा है हजारों रुपये डाक्टरों के यहॉ बरबाद करने के बाद निराश लोग स्वस्थ्य होकर बाबा को चन्दा देते है तो इसमें आश्चर्य क्या है। पहले बाबा डाक्टरों के निशाने पर थे जहॉ बाबा के शिविर होते थे वहीं पर डाक्टर चुनौती की मुद्रा में खडें होकर बाबा को ललकारने लगतें थें बाबा की योग प्रणाली की वैज्ञानिकता पर सवाल खडें करने लगते थे। अब बाबा तो बाबा है उनके पास कोई वैज्ञानिक अध्ययन तो था नहीं सो वो सही जबाव देते बस एक ही तरीका था कि हमने करके देखा है तुम भी करके देख लो। पर बाबा के पास एक चीज हमेशा से थी वह था उनका दृढ आत्मविश्वास, जिसकी दम पर बाबा ने समूचे वैज्ञानिक जगत को चुनौती दे रखी थी। सन 2003 से बाबा ने अपने योग शिविरों में व्यवस्था पर चुपके चुपके चोट करना शुरु कर दी थी। मार्च 2004 में ग्वालियर के योग शिविर में मैने कहा था कि बाबा जी तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं तो बाबा ने कहा था कि मैं कभी भी राजनीति में नहीं आउंगा पर मैनें अपने मित्रों को कहा था कि बाबा राजनीति में आयेगें और पूरे दमखम के साथ आयेगें। और कभी डाक्टरों के निशाने पर आलोचनाओं के घेरें में रहे स्वामी रामदेव अब राजनीति में कदम रखने के पूर्व ही राजनेताओं के निशाने पर आ गये हैं। स्वामी रामदेव की एक विशेषता है कि प्रयोगधर्मी होने के कारण वह हर चुनौती को साहस के रुप में स्वीकार करते हैं और उन्हीं की भाषा में समुचित जवाब भी देतें हैं। यही कारण हैं कि स्वामी रामदेव ने पंतजलि योगपीठ में अत्याधुनिक रिसर्च लैब की स्थापना की है जहॉ अर्न्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ शरली टेलिस के मार्गदर्शन में योग एंव स्वामी रामदेव की योग पद्वाति पर विविध शोध कार्य सम्पन्न हो रहे हैं जिनके द्वारा वैज्ञानिकों के प्रश्नों का उत्तर उन्हीं की भाषा में दिया जा रहा है। और अब स्वयं स्वामी रामदेव द्वारा व्यवस्था परिर्वतन के मुददे पर राजनेताओं को उन्हीं की भाषा में धरना प्रदर्शन के माध्यम से समझाया जा रहा है। रही बात मातारानी के दरबार की तो मातारानी 10 जनपथ से पूर्व त्रिमूर्ती भवन में विराजती थी जहॉ धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का बेरोकटोक आना जाना था पर जब धीरेन्द्र ब्रह्मचारी सरकारी योगी हो गये तो उनका प्रभाव दिल्ली में तो बहुत बढा पर जनता में उनकी भूमिका संदेहास्पद योगी की हो गई। जबकि आज भी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की किताबों को सन्दर्भ पुस्तकों के रुप में निर्विवाद ख्याति प्राप्त है। उनके यौगिक सूक्ष्म व्यायामों को हर योग करने वाला करता ही है। एक अन्य संत जी जो बाद में केन्द्रीय मंत्री भी हो गये थे मातारानी की चाकरी में आ गये थे। प्रारम्भ में कांग्रेस ने भी सोचा था कि रामदेव को सरकारी योगी बना कर उनके सारे तेवर ठण्डे कर दिये जाएंगे। पर यह योगी तो सरकारी नहीं असरकारी योगी है जो आखिर अनशन पर अड़ ही गया है।