एक ही है गांधीजी और आरएसएस का ‘हिन्दुत्व’

पुस्तक चर्चा – ‘हिन्दुत्व और गांधी’

– लोकेन्द्र सिंह

कुछ लोग मेरे इस कथन से असहमत हो सकते हैं कि “गांधीजी का जीवन हिंदुत्व में रचा–बसा था”। असहमतियों का सम्मान है लेकिन यह सत्य है कि महात्मा गांधी के जीवन को हिंदुत्व से अलग करके नहीं देखा जा सकता। आज जो कम्युनिस्ट यह भ्रम पैदा करने की साजिश रचते हैं कि गांधीजी का हिन्दुत्व अलग था और हिन्दू संगठनों का हिन्दुत्व अलग है, एक दौर तक यही कम्युनिस्ट गांधीजी को सांप्रदायिक हिन्दूवादी नेता के रूप में लक्षित करते थे। कम्युनिस्टों के साथ ही उस समय की अन्य हिन्दू विरोधी ताकतें भी गांधीजी को ‘हिन्दुओं के नेता’ के तौर पर देखती थीं। हिन्दुत्व के प्रतिनिधि/प्रचारक होने के कारण महात्मा गांधी की आलोचना करने में कट्टरपंथी मुस्लिम और कम्युनिस्ट अग्रणी थे। विडम्बना देखिए कि आज यही ताकतें गांधीवाद का चोला ओढ़कर हिन्दू धर्म और राष्ट्रीय विचार पर हमला करने के लिए पूज्य महात्मा का उपयोग एक हथियार की तरह कर रही हैं। ऐसे समय में वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी इतिहास के सागर में गोता लगाकर अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व और गांधी’ में ऐसे तथ्य सामने रखते हैं, जिनसे यह ‘शरारती विमर्श’ खोखला दिखने लगता है। यह सर्वमान्य है कि हिन्दुओं का सबसे बड़ा संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ है। इसलिए हिन्दू धर्म पर हमलावर रहनेवाली ताकतें ‘आरएसएस’ को भी अपने निशाने पर रखती हैं। ‘हिन्दुत्व’ पर समाज को भ्रमित करने की साजिशों में यह स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है कि ‘संघ का हिन्दुत्व’ वह हिन्दुत्व नहीं है जो ‘गांधीजी का हिन्दुत्व’ है। दोनों अलग-अलग हैं। जबकि ऐसा है नहीं। हिन्दुत्व एक ही है, चाहे वह आरएसएस का हो या फिर महात्मा गांधी का। यदि अलग-अलग होता, तब ये ताकतें पूर्व में महात्मा गांधी पर हमलावर नहीं होतीं। उस दौर में हिन्दुत्व के सबसे बड़े प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें गांधीजी दिखाई दिए तो उन्होंने गांधी पर हमला किया और अब जब आरएसएस इस भूमिका में है, तो ये सांप्रदायिक एवं फासीवादी ताकतें आरएसएस पर हमलावर हैं।

       वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक मनोज जोशी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व और गांधी’ में हिन्दू धर्म को लेकर गांधी के विचारों की पड़ताल करने के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से हिन्दुत्व पर रखे गए दृष्टिकोण को भी सामने रखा है। गांधी के हिन्दुत्व और आरएसएस के हिन्दुत्व में उन्होंने एक साम्य देखा है, जिसे उन्होंने अपने पाठकों के सामने तर्कों एवं तथ्यों सहित रखा है। उनके लेखन की विशेषता है कि उन्होंने यह खींचतान करके यह साम्य नहीं दिखाया है। लेखक ने कई जगह हिन्दुत्व पर गांधीजी के विचारों एवं संघ के सरसंघचालकों के विचारों को यथार्थ रूप में रख दिया है ताकि पाठक निष्पक्ष होकर किसी निष्कर्ष पर पहुँच सके। किसी निष्कर्ष पर न भी पहुँचे किंतु कोरी गप्पबाजी की दुनिया से बाहर निकलकर सभी विचारों को पढ़े तो सही। इस पुस्तक के विविध अध्यायों से होकर जब हम गुजरते हैं, तब यह तो ध्यान आ ही जाता है कि कैसे हिन्दू विरोधी ताकतों ने एक पारिस्थितिकी तंत्र (इको-सिस्टम) विकसित करके हिन्दुत्व की नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की। किंतु उनकी भूल रही कि जब भी हिन्दू धर्म पर संकट आया, उसको समृद्ध करने के लिए कोई न कोई आगे आता रहा है। हिन्दू धर्म के संदर्भ में यह बात स्वयं महात्मा गांधी ने 7 जनवरी, 1926 को ‘नवजीवन’ में लिखी है। इसका उल्लेख मनोज जोशी की पुस्तक में आया है। महात्मा गांधी लिखते हैं- “जब-जब इस धर्म पर संकट आया, तब-तब हिन्दू धर्मावलंबियों ने तपस्या की है”।

          हिन्दुत्व का कोई और रूप नहीं है। हिन्दू धर्म एक ही है। गांधीजी भी यह मानते थे कि जिस तरह बाकी के लोग भारतीय परंपरा में विश्वास करते हुए हिन्दू हैं, ठीक उसी प्रकार वे भी हिन्दू हैं। सामान्य हिन्दू की क्या पहचान है? वह गाय को माँ मानता है। गोरक्षा का आग्रही है। वह भारतीय दर्शन का प्रतिपादन करनेवाले ग्रंथों में विश्वास करता है। वह ईश्वर के अवतारों में श्रद्धा रखता है। सामान्य हिन्दू की जो मान्यताएं हैं, ठीक उन्हीं मान्यताओं में गांधीजी को विश्वास है। मनोज जोशी सप्रमाण इस बात को बताते हुए उल्लेख करते हैं कि गांधीजी ने 6 अक्टूबर 1921 को ‘यंग इंडिया’ में लिखा है- “मैं अपने को सनातनी हिन्दू इसलिए कहता हूँ क्योंकि मैं वेदों, उपनिषदों, पुराणों और हिन्दू धर्मग्रंथों के नाम से प्रचलित सारे साहित्य में विश्वास रखता हूँ और इसीलिए अवतारों और पुनर्जन्म में भी विश्वास रखता हूँ। मैं गो-रक्षा में उसके लोक-प्रचलित रूपों से कहीं अधिक व्यापक रूप में विश्वास रखता हूँ। हर हिन्दू ईश्वर और उसकी अद्वितीयता में विश्वास रखता है। पुर्नजन्म और मोक्ष को मानता है। मैं मूर्ति पूजा में अविश्वास नहीं करता”। हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर गांधीजी ने यहाँ पहली और आखिरी बार अपना मत व्यक्त नहीं किया, अपितु अनेक अवसरों पर खुलकर उन्होंने हिन्दुत्व को परिभाषित किया है। लेखक श्री जोशी की पुस्तक ‘हिन्दुत्व और गांधी’ के 32 आलेखों में इसको देखा जा सकता है।

       आरएसएस और अन्य हिन्दुओं की भाँति महात्मा गांधी भी आडम्बर एवं पाखण्ड के विरोधी थे। हिन्दुओं के जीवन में समय के साथ आई बुराइयों का निदान करने के हामी थे। कन्वर्जन के घोर विरोधी थे। गांधीजी धर्मांतरण को राष्ट्रांतरण मानते थे। उन्होंने यहां तक कहा कि उनका वश चले तो वे कन्वर्जन का धंधा ही बंद करा दें। लेखक यही भी सिद्ध करता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों में गांधी दर्शन की झलक दिखाई देती है। जहाँ सत्ता प्राप्त करते ही गांधी के चेलों ने उनके विचारों को तिलांजलि दे दी, वहीं संघ के कार्यकर्ता गांधी के सपनों को जमीन पर उतारने का काम कर रहे हैं। सामाजिक समरसता का लक्ष्य हो या ग्राम स्वराज्य की बात, स्वदेशी का मंत्र हो या आत्मनिर्भरता के प्रयास, स्वच्छता का आग्रह हो या फिर स्वभाषा का गौरव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने इन कामों को अपने हाथों में ले रखा है। इस संबंध में लेखक ने पुस्तक में कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत किए हैं। इसके साथ ही आरएसएस और महात्मा गांधी के बीच निकटता को समझाने के लिए उन प्रसंगों का भी जिक्र किया है, जिन पर अकसर पर्दा डालकर रखा जाता है। जब गांधीजी संघ के एक शिविर में आए, संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से मिले और द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘गुरुजी’ के साथ भी उनका संवाद हुआ है। महात्मा गांधी दिल्ली में संघ की शाखा पर भी गए और स्वयंसेवकों के साथ चर्चा भी की। गांधीजी संघ के आदर्श, अनुशासन एवं समरसता के लिए किए जानेवाले कार्यों से बहुत प्रभावित हुए थे। संघ भी महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा रखता है और उनके अनेक विचारों का अनुसरण करता है। संघ के कार्यकर्ता प्रात: स्मरण में प्रतिदिन महात्मा गांधी के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं। लेखक मनोज जोशी ने 128 पृष्ठों की इस पुस्तक में ‘हिन्दुत्व और गांधी’ से जुड़े विविध पहलुओं को एक सार्थक हस्तक्षेप किया है।

हिन्दुत्व और गांधी को लेकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से लिखी गई इस पुस्तक की विशेषता उसकी सरलता में है। लेखक श्री जोशी ने भाषा के साथ ही तथ्यों के प्रवाह को भी बनाए रखा है। भाषा में कहीं भी आडम्बर नहीं दिखता। एक साधारण पाठक तक भी विषय को ठीक प्रकार से पहुँचाने में पुस्तक सफल है। संक्षिप्त आलेखों में उन्होंने ज्वलंत विषयों को जिस कुशलता से बांधा है, उसके लिए ‘गागर में सागर भरना’ लोकोक्ति एकदम उचित है। सरस और संक्षिप्त होने के कारण आलेख उबाऊ और बोझिल नहीं हैं। यहाँ कहना होगा कि विषय को संक्षेप में रखने के बाद भी कहीं भी तथ्यात्मक विश्लेषण में कमी दिखाई नहीं देती है। पुस्तक का मूल्य 125 रुपये है। अर्चना प्रकाशन, भोपाल ने इसको प्रकाशित किया है। मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी का सहयोग भी पुस्तक को प्राप्त हुआ है।

पुस्तक : हिंदुत्व और गाँधी

लेखक : मनोज जोशी

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल

मूल्य – 125/- रुपये

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here