ओडिशा और महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में भाजपा की जीत के निहितार्थ

मृत्युंजय दीक्षित

पांच राज्यों में चल रहे चुनावों के बीच ओडिशा और महाराष्ट्र के निकाय चुनावों के जो परिणाम सामने आये हैं। वह भाजपा के राहत देने वाले हैं तथा कांग्रेस के लिए बैचेनी पैदा करने वाले हैं। इन चुनाव परिणामों के बाद भाजपा अब यह कहने की स्थिति मेंहो गयी है कि नोटबंदी के खिलाफ विपक्ष जो सुनियोजित साजिश करके उसका विरोध कर रहा था और पूरी योजना को नाकाम बता रहा था उसकी हवा निकल गयी है। ओडिशा में त्रिस्तरीय निकाय और पंचायत चुनाव संपन्न हुये हैं। जहां पर बीजू जनता दल पहले नंबर पर तो है। लेकिन आगे चलकर अब उसे भाजपा सीधे चुनौती देने के लिए तैयार हो गयी है। ओडिशा के अतिगरीब व पिछड़े इलाकोें में जहां कभी भाजपा का नामोनिशान नहीं दिखलायी पड़ता था अब वहां पर भाजपा है जबकि कांग्रेस तीसरे नंबर पर भी दयनीय हालत में पहुंच गयी है। ओडिशा भाजपा का एक ऐसा राज्य था जहां पर संगठनात्मक हालात भी दयनीय थे पार्टी कार्यालय भी बड़ी कठिनाई से खुल पाते थे । अब यहां पर भाजपा की छवि गरीबांे के बीच में चमकी है तथा पीएम मोदी गरीबों के नये मसीहा बनकर उभरे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब नोटबंदी का लाभ पूरे देशभर में भाजपा को मिल रहा है तथा विरोधी दलों की ओर से जो झूठा प्रचार किया जा रहा है उसके कारण उसकी हालत पूरे देश में पतली होती जा रही है। नोटबंदी के बाद पीएम मोदी ने अपनी सरकार को गरीबों पिछड़ों की सरकार बताया था जिसका असर ओडिशा के पंचायत चुनावों में देखने को मिल रहा है। ओडिशा के पंचायत चुनावों के जो परिणाम आये है। उससे कांग्रेस की जमीन हिल गयी है और इतना ही नहीं वहां पर सत्तारूढ़ बीजद सरकार के लिए भी भाजपा का बढ़ता ग्राफ भी अब खतरे की घंटी बन गया है।

ओडिशा  में पांच चरणों में हो रहे जिला पंचायत चुनावों मेंतीन चरणों के नतीजे आ गये हैं। जिसमें 539 सीटों मेंसे 286 सीटांें पर बीजद को सफलता मिली है जबकि भाजपा ने 197 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया हैे। पिछली बार भाजपा ने यहां पर केवल 15 सीटें ही जीती थीं। 182 सीटें की बढ़त भाजपा की जीत को ऐतिहासिक बना रही हैं । वहीं बीजद को 130  सीटों का नुकसान उसके लिए खतरे की घंटी बज गयी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन चुनावों में कालाहांडी, बलांगीर, कोरापुट जैसे अतिगरीब व पिछड़े इलाकांे में भारी जनसमर्थन मिला है।  अभी तक भाजपा को ब्राहमणों व बनियों की पार्टी कहा जाता था लेकिन अबवह बात नहीं हीं अपितु पीएम मोदी के विकास मंत्र के बल पर भाजपा गरीबों के बीच अपनी छवि को चमकने में काफी सफल रही है। उप्र में सपा के साथ सत्ता के नजदीक पहुचने का सपना देख रही कांग्रेस के लिए यह एक बुरी खबर तो है ही।

नगर निगम चुनावों में सबसे बड़ी राहत व सफलता का संदेश महाराष्ट्र से आया है। यहां पर शिवसेना की नाटकबाजी  व राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण गठबंधन टूट गया था और भाजपा व शिवसेना ने पूरे राज्य में अलग- अलग चुनाव लड़ा। पूरे देश की निगाहें इन परिणामों पर लगी थी लेकिन यहां पर भाजपा व पीएम मोदी की लहर का जादू चल गया और भाजपा ने पहली बार दस बड़े शहरों में से 8 शहरांे उल्हासनगर,पुणे, नासिक, नागपुर, पिंपरी चिंचवाड़ ,अमरावती,अकोला और सोलापुर में कमल खिल गया है और वह भी पूर्ण बहुमत के साथ। महाराष्ट्र के नगर निगम चुनाव परिणामांे के बाद वहां के मुख्यमंत्री देवंेद्र फडणवीस  के लिए खतरे की घंटी माने जा रहे थे साथ ही भाजपा सरकार के लिए भी लेकिन अब यह सभी खतरे फिलहाल टलते दिखलायी पड़ रहे है। हालांकि बीएमसी में दो के चक्कर में मामला खटायी में पड़ गया है। वहां पर शिवसेना को 84 तथा भाजपा को 82 सीटें मिली हैं।

महाराष्ट्र  मेंभाजपा की जीत से कई बड़े व अच्छे संकेत गये हैं। मई 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम भाजपा के लिए ऐतिहासिक गौरव का क्षण लेकर आया था । उन चुनावों के पहले और उसके बाद अभी तक भाजपा को देश के अधिकांश राज्यों में  अपने सहयोगी दलोें के दबाव में झुकना पड़ता था लेकिन अब स्थिति उसके विपरीत हो गयी है। अब भाजपा अपने सहयोगी दलों के बीच झुकने की स्थिति में नहीं हैं अपितु झुकाने की स्थिति में आ गयी है यानि कि बड़ा भाई बनने की स्थिति में। साथ ही यह भी साफ दिखलायी पड़ रहा है कि अब भाजपा पूरे देशभर में अकेले चुनाव लड़ने और जीतने की स्थिति  में आ रही है। लोकसभा चुनावों के बाद चुनाव दर चुनाव भाजपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ गया है।  सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह है कि अब भाजपा अखिल भारतीय स्तर की पार्टी बनने की स्थिति में आ गयी है। हर राज्य व जिलें में भाजपा कार्यकर्ताआंे का विस्तार हो गया है।

वहीं कांग्रेस मुकाबले से बाहर होती जा रही है। भाजपा का जनाधार बढ़ता जा रहा है। भाजपा के बड़े नेताओं का मानना है कि भाजपा अब कर्नाटक व हिमांचल प्रदेश जैसे राज्यों में भीपहली बार काफी मजबूत होकर निकलेगी और आगे बढ़ेगी। महाराष्ट्र में भाजपा की जो लहर चली उसके कारण एनसीपनी नेता शरद पवार और पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे के गढ़ में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा है। राज ठाकरे की एमएनएस का भी सफाया हो गया है। मराठा आरक्षण का मुददा हावी नहीं हो पाया है। हां भाजपा के दिवंगत नेता गोपीनाथ मंुडे के गण में भाजपा का पिछड़ना कुछ हद तक चिंता का विषय बन गया है। जिसकी जिम्मेदारी लेते हुए उनकी बेटी व राज्य सरकार में मंत्री पंकजा मुंडे ने अपने इस्तीफे की पेशकश भी कर दी है। लेकिन वह अभी तक स्वीकार नही किया गया है। महाराष्ट्र की जनता ने इस बार यदि सबसे अधिक निराशा किसी को दी है तो वह है राज ठाकरे उनकी राजनीति को बहुत ही गहरा आघात लगा है। राजन ठाकरे की अति मराठावाद की राजनीति की हवा निकल गयी है। वहीं एक और कांग्रेसी सूरमा नारायण राणे की राजनति भी अब अस्ताचल की ओर हो गयी है । मुंबई में कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरूपम को तत्काल इस्तीफा देना पड़ गया है। अब महाराष्ट्र की राजनति में कांग्रेस संभवतः शिवसेना के सहारे अपनी राजनैतिक जमीन को सुधारने का प्रयास करेगी लेकिन अभी उसके लिए सभी को आगे की रणनीतियों का इंतजार करना पड़ेगा।

सबसे बड़ी बात यह है कि अब कांग्रेस अपने युवराज के नेतृत्व में फिलहाल कोई चुनाव जीतने के लायक नहीं रह गयी है। यही कारण है कि अब उसके अंदर बैचेनी बढ़ने लग गयी है। अगर राहुल के नेतृत्व में अब कुछ और राज्यों में कांग्रेस की हार होती है तो कांग्रेस को कुछ सोचना ही पडे़गा।

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