मोदी-शाह की जोड़ी ने साकार किया डा. श्यामप्रसाद मुखर्जी का अखंड सपना

0
46

अशोक बजाज 

आज़ादी के साथ कश्मीर समस्या हमें विरासत में मिली थी जो भारत के लिए नासूर बन गई थी. आज़ादी के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी सरकार ने तुष्टीकरण की नीति के चलते जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 लगा कर उसे विशेष दर्जा प्रदान कर दिया था. धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद है, जिसके चलते जम्मू-कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार मिल गया था. भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 का अनुच्छेद 370 तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से तैयार किया गया था. धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक राज्य में संसद को रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का तो अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी होती है. इसी विशेष दर्जे के चलते जम्मू-कश्मीर राज्य में संविधान की धारा 356 लागू नहीं हो पाती थी. राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार ही नहीं था. यहाँ तक कि 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं हो पाया. भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे, जबकि भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है. भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लगाते समय ये दलील दी गई थी कि यह एक अस्थाई व्यवस्था है लेकिन वास्तव में वह स्थाई रूप ले चुकी थी. पं नेहरू एवं कालांतर में बनी सरकारों की ढुलमूल एवं तुष्टीकरण की नीतियों के चलते धारा 370 का प्रावधान भी स्थाई हो गया है और कश्मीर की समस्या भी स्थाई हो गई है. तथाकथित बुद्धिजीवियों ने कश्मीर की आज़ादी या जनमतसंग्रह जैसे मुद्दे उठाकर इस समस्या को सुलझाने के बजाय उलझाने का ही काम किया है.  देश की एकता और अखंडता की बात करने वाले कथित बुद्धिजीवी कभी संविधान के अनुच्छेद 370 को कायम रखने की बात करते थे तो कभी जनमत संग्रह की वकालत करते रहे. 

जब नेहरू सरकार ने जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 लगाई तो डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इसका पुरजोर विरोध करते हुये मंत्रीमंडल से स्तीफ़ा दे दिया था. डा. मुखर्जी भारत की अखंडता के प्रबल हिमायती थे तथा अखंड भारत के स्वप्न दृष्टा थे. उन्होने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 लगाए जाने की कार्यवाही को भारत की अखंडता के विरुद्ध मानते हुये अपनी असहमति प्रकट करते हुये कहा था कि “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान− नहीं चलेंगे’, लेकिन तुष्टीकरण की नीति के कारण नेहरू जी ने उनकी एक न सुनी. अंततः उन्होने डा. मुखर्जी ने विरोध स्वरुप अपने पद से स्तीफ़ा दे दिया. संसद में भी डॉ. मुखर्जी ने धारा 370 को समाप्त करने की जोरदार वकालत की. उन्होंने अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा. अपने संकल्प को पूरा करने के लिये उन्होने 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने की चेष्टा की, सीमा में ही उन्हें गिरफ्तार कर नजरबन्द कर लिया गया. 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ऐसे राष्ट्र भक्त थे जिंहोने देश की एकता और अखंडता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया. उन्हें आज़ाद भारत का प्रथम शहीद कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी. 

देश में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तो देशवासियों के मन में नई आशा की किरण जागी. केंद्र में आज एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार है. श्री मोदी ने जब गृह मंत्री के रूप में अमित शाह को चुना तो लोगों को यह विश्वास हो गया था कि जम्मू-कश्मीर की समस्या मोदी सरकार की प्राथमिकता में है. लोगों का विश्वास तब और दृढ़ हो गया जब श्री शाह ने गृह मंत्री के रूप में अपना दौरा कश्मीर से शुरू किया. इस दौरे में जो परिवर्तन देखने को मिला वो सबके सामने है. गृह मंत्री के दौरे के दौरान कश्मीर में पूरी तरह शांति थी, ना श्रीनगर के बाज़ार बंद हुये और ना ही गोला बारूद चला जैसा कि पहले देखने सुनने को मिलता था. पत्थरबाजी करने वाले भी अपने अपने घरों में दुबक गए थे. श्री शाह ने प्रदेश में कानून व्यवस्था की समीक्षा की तथा अमरनाथ यात्रा निर्विध्न सम्पन्न करने की योजना बनाई. 

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत के सिद्धांत पर चलते हुए इस समस्या को हल करने का प्रयास किया था लेकिन बहुमत के अभाव में उनकी इच्छा अधूरी रह गई थी. अब मोदी और शाह की जोड़ी ने डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सपने को साकार कर दिया है. कुल मिलाकर देश बदल रहा है तो कश्मीर को बदलना ही था. भारत में आज एक दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार है जो देश की एकता और अखंडता तथा देश की सीमा की सुरक्षा के लिए संकल्पित है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here