भगवा आतंक का नया शिगूफा

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-विजय कुमार

भारत में स्वाधीनता के बाद भी अंग्रेजी कानून और मानसिकता जारी है। इसीलिए इस्लामी, ईसाई और वामपंथी आतंकवाद के सामने ‘भगवा आतंक’ का शिगूफा कांग्रेसी नेता छेड़ रहे हैं। इसकी आड़ में वे उन हिन्दू संगठनों को लपेटने के चक्कर में हैं, जिनकी देशभक्ति तथा सेवा भावना पर विरोधी भी संदेह नहीं करते। किसी समय इस झूठ मंडली की नेता सुभद्रा जोशी हुआ करती थीं; पर अब लगता है इसका भार चिदम्बरम और दिग्विजय सिंह ने उठा लिया है।

ये लोग हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबेल्स के चेले हैं। उसके दो सिद्धांत थे। एक – किसी भी झूठ को सौ बार बोलने से वह सच हो जाता है। दो – यदि झूठ ही बोलना है, तो सौ गुना बड़ा बोलो। इससे सबको लगेगा कि बात भले ही पूरी सच न हो; पर कुछ है जरूर। इसी सिद्धांत पर चलकर ये लोग अजमेर, हैदराबाद, मालेगांव या गोवा आदि के बम विस्फोटों के तार हिन्दू संस्थाओं से जोड़ रहे हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया भर में फैले इस्लामी आतंकवाद के सामने इसे खड़ाकर भारत में मुसलमान वोटों की फसल काटी जा सकती है। सच्चर, रंगनाथ मिश्र और सगीर अहमद रिपोर्टों की कवायद के बाद यह उनका अगला कदम है।

सच तो यह है कि आतंकवाद का हिन्दुओं के संस्कार और व्यवहार से कोई तालमेल नहीं है। वैदिक, रामायण या महाभारत काल में ऐसे लोगों को असुर या राक्षस कहते थे। वे निरपराध लोगों को मारते और गुलाम बनाते थे। इसे ही साहित्य की भाषा में कह दिया गया कि वे लोगों को खा लेते थे; पर वर्तमान आतंकवादी उनसे भी बढ़कर हैं। ये विधर्मियों को ही नहीं, स्वधर्मियों और स्वयं को भी मार देते हैं।

हिन्दू चिंतन में ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना और भोजन से पूर्व गाय, कुत्तो और कौए के लिए भी अंश निकालने का प्रावधान है। ‘अतिथि देवो भव’ का सूत्र तो शासन ने भी अपना लिया है। अपनी रोटी खाना प्रकृति, दूसरे की रोटी खाना विकृति और अपनी रोटी दूसरे को खिला देना संस्कृति है। यह संस्कृति हर हिन्दू के स्वभाव में है। ऐसे लोग आतंकवादी नहीं हो सकते; पर मुसलमान वोटों के लिए एक-दो दुर्घटनाओं के बाद कुछ सिरफिरों को पकड़कर उसे ‘भगवा आतंक’ कहा जा रहा है।

कांग्रेस वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या विश्व हिन्दू परिषद और लश्कर, सिमी या हजारों नामों से काम करने वाले इन आतंकी गिरोहों को न जानते हों, यह भी असंभव है; पर आखों पर जब काला चश्मा लगा हो, तो फिर सब काला दिखेगा ही।

संघ को समझने के लिए बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं होती। देश भर में हर दिन सुबह-शाम संघ की लगभग 50,000 शाखाएं सार्वजनिक स्थानों पर लगती हैं। इनमें से किसी में भी जाकर संघ को समझ सकते हैं। शाखा में प्रारम्भ के 40 मिनट शारीरिक कार्यक्रम होते हैं। बुजुर्ग लोग आसन करते हैं, तो नवयुवक और बालक खेल व व्यायाम। इसके बाद वे कोई देशभक्तिपूर्ण गीत बोलते हैं। किसी महामानव के जीवन का कोई प्रसंग स्मरण करते हैं और फिर भगवा ध्वज के सामने पंक्तियों में खड़े होकर भारत माता की वंदना के साथ एक घंटे की शाखा सम्पन्न हो जाती है।

मई-जून मास में देश भर में संघ के एक सप्ताह से 30 दिन तक के प्रशिक्षण वर्ग होते हैं। प्रत्येक में 100 से लेकर 1,000 तक शिक्षार्थी भाग लेते हैं। इनके समापन कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में जनता तथा पत्रकार आते हैं। प्रतिदिन समाज के प्रबुध्द एवं प्रभावी लोगों को भी बुलाया जाता है। आज तक किसी शिक्षार्थी, शिक्षक या नागरिक ने नहीं कहा कि उसे इन शिविरों में हिंसक गतिविधि दिखाई दी है।

संघ के स्वयंसेवक देश में हजारों संगठन तथा संस्थाएं चलाते हैं। इनके प्रशिक्षण वर्ग भी वर्ष भर चलते रहते हैं। इनमें भी लाखों लोग भाग ले चुके हैं। विश्व हिन्दू परिषद वाले सत्संग और सेवा कार्यों का प्रशिक्षण देते हैं। बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी वाले नियुद्ध ि‍(जूडो, कराटे) तथा एयर गन से निशानेबाजी भी सिखाते हैं। इससे मन में साहस का संचार होकर आत्मविश्वास बढ़ता है। इन शिविरों के समापन कार्यक्रम भी सार्वजनिक होते हैं। संघ और संघ प्रेरित संगठनों का व्यापक साहित्य प्राय: हर बड़े नगर के कार्यालय पर उपलब्ध है। अब तक हजारों पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं तथा करोड़ों पुस्तकें बिकी होंगी। किसी पाठक ने यह नहीं कहा कि उसे इस पुस्तक में से हिंसा की गंध आती है।

सच तो यह है कि जिस व्यक्ति, संस्था या संगठन का व्यापक उद्देश्य हो, जिसे हर जाति, वर्ग, नगर और ग्राम के लाखों लोगों को अपने साथ जोड़ना हो, वह हिंसक हो ही नहीं सकता। हिंसावादी होने के लिए गुप्तता अनिवार्य है और संघ का सारा काम खुला, सार्वजनिक और संविधान की मर्यादा में होता है। संघ पर 1947 के बाद तीन बार प्रतिबंध लग चुका है। उस समय कार्यालय पुलिस के कब्जे में थे। तब भी उन्हें वहां से कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं मिली।

दूसरी ओर आतंकी गिरोह गुप्त रूप से काम करते हैं। वे इस्लामी हों या ईसाई, नक्सली हों या माओवादी कम्यूनिस्ट; सब भूमिगत रहकर काम करते हैं। उनके पर्चे किसी बम विस्फोट या नरसंहार के बाद ही मिलते हैं। उनके प्रशिक्षण शिविर पुलिस, प्रशासन या जनता की नजरों से दूर घने जंगलों में होते हैं। ये गिरोह जनता, व्यापारी तथा सरकारी अधिकारियों से जबरन धन वसूली करते हैं। न देने वाले की हत्या इनके बायें हाथ का खेल है। ऐसे सब गिरोहों को बड़ी मात्रा में विदेशों से भी धन तथा हथियार मिलते हैं।

हिन्दू संगठनों की प्रेरणा हिन्दू धर्मग्रन्थ ही होते हैं; और किसी धर्मग्रन्थ में निरपराध लोगों की हत्या करने को नहीं कहा गया हैं। हां, अत्याचारी का वध जरूर होना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता का तो यही संदेश है; लेकिन दूसरी ओर इस्लाम, ईसाई या कम्युनिस्टों के मजहबी ग्रन्थों में अपने विरोधी को किसी भी तरह से मारना उचित कहा गया है। विश्‍व भर में फैली मजहबी हिंसा का कारण यही किताबें हैं। अधिकांश लोग इन्हें गलती से धर्मग्रन्थ कह देते हैं, जबकि ये मजहबी किताबें हैं।

संघ और वि.हि.परिषद का जन्म हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए हुआ है; और हिंसा से विघटन पैदा होता है, संगठन नहीं। संघ मुस्लिम और ईसाई तुष्टीकरण का विरोधी है। वह उस मनोवृति का भी विरोधी है, जिसने देश को बांटा और अब अगले बंटवारे के षडयन्त्र रच रहे हैं। इसके बाद भी संघ का हिंसा में विश्वास नहीं है। वह मुसलमान तथा ईसाइयों में से भी अच्छे लोगों को खोज रहा है। संघ किसी को अछूत नहीं मानता। उसे सबके बीच काम करना है और सबको जोड़ना है। ऐसे में वह किसी वर्ग, मजहब या पंथ के सब लोगों के प्रति विद्वेष रखकर नहीं चल सकता।

इसलिए भगवा आतंक का शिगूफा केवल और केवल एक षड्यंत्र है। यह खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने का प्रयास मात्र है। दिग्विजय सिंह हों या उनकी महारानी, वे आज तक किसी इस्लामी आतंकवादी को फांसी नहीं चढ़ा सके हैं। अब भगवा आतंक का नाम लेकर वे इस तराजू को बराबर करना चाहते हैं। उनका यह षड्यंत्र हर बार की तरह इस बार भी विफल होगा।

25 COMMENTS

  1. Sadhuvad to Shree Vijay Kumar for this article.
    Actually the current home minister Chidambaram also knows that Hindu sangathans are patriotic. But to keep his chair he seems to be under too much pressure from managers of Congress to compete for the minority votes. Now that Arjun Singh has retired this responsibility of condemning Hindu organizations has fallen on his shoulders.
    This whole fight is about 20% votes and all he is doing by issuing such statements is trying to take credit for increasing share of congress in these 20% votes. Comptition is fierce – Lalu Prasad, Paswan, Mayavati, JDU, Mulayam Singh and congress. As you can see there are atleast 6 competitors.
    Chidambaram is also very smart. He knows Hindus are sleeping and will not be offended by such statements. This Umreeka educated selfish fellow does not care a bit for the interests of the country.

    The need is for Hindu community to wake up. I would like to see all patriotic people including all MPs and MLAs across the country to start wearing Saffron ribbon or angvastra to display their acceptance of bhagwa. When the Mananiya griha Mantri Ji sees this he will stop such non sense.

  2. अंकिता पोकरियाल की टिप्पणी सही है .न केवल bombey बल्कि अहेमदबाद ;कानपूर ;सूरत और इंदौर में जहाँ -जहाँ aituc की लाल झंडा श्रमिक union थी ;वहां -वहां गाँधी जी ने मजदूरों को लाल झंडे से दूर रखने की तरकीब यह निकालीकी गुलजारीलाल नंदा के नेतृत्व में intuc नामक समानांतर श्रमिक संघ की स्थापना कर पूंजीपतियों के समर्थन वाली union का आगाज किया .दूसरी और देश के संगठित किसानो से घबराकर भूतपूर्व राजे रजवाड़े भी पह्य्ले तो कांग्रेस की शरण में गए किन्तु जब इंदिरा गाँधी ने भूमि सीलिंग कानून बनाने और उनके प्रीवी पर्स छीने तो देश के अधिकांस रजवाड़े और जमींदार स्वतंत्र पार्टी के माध्यम से जनसंघ में चले गए अतेव किसान आन्दोलन से भी लाल झंडा हट गया उर नीले पीले हरे रंगों में यह आन्दोलन बिखर गया .गाँधी जी के विश्वस्त अनुयाई आचार्य बिनोबा भावे ने भी किसान आन्दोलन की धारको भोंथरा बनाया ..आज के कांग्रेसी अपने इतिहास को जाने बिना बिगडेल सांडों के सामने लाल -पीला -हरा आतंकवादी जुमला फेंककर अपनी और कांग्रेस की किरकिरी ही करवा रहे हैं .

  3. हरी किशनजी, हमारे देश का तो एक ही ध्वज है , और वो है तिरंगा.
    विश्व-विजयी तिरंगा प्यारा
    झंडा ऊंचा रहे हमारा.
    बाकी तो सभी राजनीतिक विचारधाराओं के ध्वज हैं जो लोगों को अलग अलग हुज़ूमों में बाँटने का काम करते हैं. कुछ ऐसे ख्वाब दिखाते हैं जो आज …तक ना तो पूरे हुए हैं और ना ही कभी होंगे क्यूंकि
    ये ऐसे ख्वाब हैं जो सच्चे मन से नहीं देखे गए हैं.
    ये ऐसे ख्वाब हैं जो भेदभाव के साथ देखे गए हैं.
    ये ऐसे ख्वाब हैं जो कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा देखे गए हैं.
    ये ऐसे ख्वाब हैं जो केवल अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए देखे गए हैं.
    ये ऐसे ख्वाब हैं जो सैकड़ों बेगुबाह लोगों की नींद छीनकर , उनका सुख-चैन छीनकर देखे गए हैं.

    हमें ऐसा ख्वाब देखना है जिसमे सिर्फ मानवता की जीत नजर आए.
    सभी मानवों की जीत नजर आए.
    जो दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा सकते उनकी भूख दूर होती नजर आए.
    जिनके तन पर पूरे कपडे तक नहीं है उनके तन कपड़ों से ढंके हुए नजर आए.
    हमें केवल अशोक चक्र के सजा हुआ तिरंगा झंडा चाहिये.

    इसके अलावा सभी झंडे केवल एक छलावा है , और छलावों से दिल नहीं जीते जाते केवल बहकाए जाते हैं. हो सकता है आप को मेरी बात बुरी लगे लेकिन आज तमाम राजनीतिक दल अप्रांसगिक हो चुके हैं.
    अनुज कुमार

    • राष्ट्र ध्वज के साथ साथ सेना में हर रेजिमेंट के अलग अलग ध्वज होतें हैं और उनको भी पूरा महत्त्व दिया जाता है , आपके विचार से तो ऐसा लगता है कि वे भी हटा देने चाहिएं ,

  4. संघ को जितना मैंने देखा है वह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के निर्माण में संलग्र है। मेरे कॉलोनी में संघ के स्वयं सेवकों का बड़ा सम्मान है। इस क्षेत्र के सभी रहवासी चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, पार्टी को मानने वाले हो संघ के स्वयं सेवकों को बड़ा मान देते हैं और उन पर अगाध विश्वास करते हैं।
    अब बात करें दिग्विजय की तो ये महाशय महाधूर्त राजनीतिज्ञ हैं। लोगों में भ्रम फैलाने के अलावा इन्हें और कुछ नहीं आता। मप्र को सालों पीछे धकेलने में इनका अभूतपूर्व योगदान है। गायेबगाये ये संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों को लांक्षित करते रहते हैं। क्योंकि यह एक फैशन हो गया है थोथी प्रसिद्धी पाना चाहते हो तो संघ को बुरा-भला कह दो। चार लोगों की नजरों में चढ़ जाएंगे, कट्टर मुस्लिम और कम्यूनिष्ट विचारधारा के भक्तों का स्नेह मिल जाएगा। महाराज चिदंबरम की हिन्दी पर तो सबको ही दया आती है। वे इतने गूढ़ शब्द भगवा का क्या अर्थ समझेंगे। उन्होंने तो कहा भी है कि कहीं से उन्होंने पहले भी यह शब्द सुना था सो बोल दिया। मैं कोई पहला आदमी नहीं हूं भगवा आतंकवाद कहने वाला।

  5. आज चिदंबरम जी को भगवा आतंकवाद लग रहा है कांग्रेस ने क्या कम आतंकवाद फैलाया है ये भगवा आतंकवाद कांग्रेस की बोयी हुई फसल है जो कांग्रेस आज बाल ठाकरे की कारगुजारियों पर सख्त एतराज जता रही है, उसी के वसंतराव नाइक ने1960 और 70 के दशक में वामदलों के वर्चस्व वाली मुंबई की ट्रेड यूनियनों और वाम दलों को कमजोर करने के लिए शिवसेना को जमकर प्रोत्साहन दिया था. जब शिवसेना की महत्वाकांक्षाएं मुंबई और थाणे से बाहर का रुख करने लगीं तो कांग्रेस को उसमें अपना सबसे बड़ा दुश्मन दिखाई देने लगा.
    बाद में इसी कांग्रेस ने शिवसेना के मुकाबले राज ठाकरे की मनसे खड़ी करवा दी. कुछ दिनों पहले तक वह भी उत्तर भारतीयों को भगाने के नाम पर उत्पात मचा रही थी मगर शिव सेना के वोट काटने की गरज से वह कांग्रेस को प्यारी रही.
    मराठी मानुस की भलाई के नाम पर बनी शिवसेना भी भाजपाई की कब तक रहती है ये देखना है? मगर अभी टी हिंदुत्व की लड़ाई मैं सब एक हैं?
    क्यों ये सब वोट के लिए?
    किसी लोकतंत्र और समाज के लिए दो सबसे जरूरी शक्तियों में से एक है जयकार की शक्ति और दूसरी है धिक्कार की.
    पहली हमें अच्छाई को प्रोत्साहित करने के लिए इस्तेमाल करनी होती है और दूसरी बुराई को हतोत्साहित करने के लिए.
    अफसोस! दोनों के ही लगातार दुरुपयोग या उपयोग न करने ने हमें लोकतंत्र की संजीवनी, इन दोनों शक्तियों से हीन कर दिया है.

  6. प्रिय अनुज भाई, ”
    “सायंस कहता है। Cause पहले, Effect बादमें। Effect भी बुरा है” पर थोडा आगे पढें।
    कुछ विचार के लिए प्रेम भरा आग्रह, कर सकता हूं?
    किसी भी प्रक्रियाके कमसे कम दो पहलु होते हैं। हर रोग की जड डाक्टर ढूंढता है। उस जडसे उसे समाप्त करने के लिए प्रयत्न होता है। इसे कोइ Cause and Effect कहता है, कोई इसे Action और Reaction की दृष्टिसे भी देख सकता है।
    (१) सायंस कहता है। Cause पहले, Effect बादमें। Effect भी बुरा है, पर Cause को खतम करोगे, तो Effect आप ही आप अस्तित्व में नहीं आएगा।
    जैसे घोडेका बग्गीको खिंचना Cause है, बग्गी का पीछे चलना, Effect है। घोडेको धक्का तो नहीं मार रही है।
    (२) कोई थप्पड मारता है। उसके उत्तरमें दूसरा सामन्य व्यक्ति (कोई गांधी नहीं है) थप्पड मारने पर विवश होता है, और थप्पड मार देता है। जब यह मामला जज के सामने जाएगा, तो वह किसको अधिक दोषी मानेगा? उत्तर स्पष्ट है। न्याय की देवी अंधी होती है। उसे कोई हिंदू मुसलमान नहीं, पर क्ष और य के नामसे निर्णय करना पडता है।
    बस इतनी ही बात है। शुभेच्च्छाएं।

  7. भगवा का नाम भी न लो चिदंबरमजी!
    हम सुनते पढ़ते आये हैं की जिसने कहीं भगवा की बात कह दी तो भगवा के कथित ठेकेदार लोग भड़क गए।
    जब लोग कह रहे थे कि नौकरशाही का भगवाकरण हो रहा है, भगवा के कथित ठेकेदारों को तब भी कोई एतराज नहीं था। पर अब जब से भगवा आतंकवाद की चर्चा होने लगी है, तब से भगवा के कथित ठेकेदार लोग बड़े नाराज है। क्योंकि उन्हें लगने लगा कि आतंकवादी गतिविधियों में उसके प्रचारकों का नाम आने से महात्मा गांधी की हत्या के बाद पहली बार उसकी साख पर इतना बड़ा संकट आया है। इसीलिए पकड़े गए लोगों से भगवा के कथित ठेकेदारों ने अपने संबंध नकार दिए। भाजपा ने उनसे दूरी बनाने और उनकी किसी भी तरह से पैरवी न करने की हिदायत दे दी। जाहिर है कि संघ परेशान था तो भाजपा भी परेशान थी। आखिर तो मामला वही है न, कि दो जिस्म मगर एक जान है हम। लेकिन अब भगवा के ये कथित ठेकेदार लोग नाराज होकर कह रहे है कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। कांग्रेसी प्रवक्ता ने भी कहा कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। वह काला ही होता है। पर काला भी तो रंग ही होता है और अक्सर तो यही देखा गया है कि वह भेदभाव का शिकार रहता है। हालांकि यह बहुत पहले से कहा जा रहा है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। यह बात भगवा के कथित ठेकेदार लोग भी कहते थे। पर साथ ही वे यह भी कहते थे कि फिर हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होता है। चलो, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और दयानंद पांडे, प्रमोद मुथालिक के बाद अब यह नहीं कहा जा सकेगा। पर यह सच है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। इसके बावजूद अल-कायदा टाइप के आतंकवाद को इस्लामिक आतंकवाद कहा गया। एक जमाने में खालिस्तानियों के आतंकवाद को सिख आतंकवाद भी कहा गया था। फिलिस्तीन में तो खैर यहूदीवादी आतंकवाद चलता ही है। पर भगवा के कथित ठेकेदारों का साफ कहना है कि हिंदू तो आतंकवादी हो ही नहीं सकता। मुसलमान आतंकवादी हो सकता है, सिख भी आतंकवादी हो सकता है। पर भगवा के कथित ठेकेदार लोग बस यही एक बात ज्यादा जोर देकर कहते हैं कि हिंदू आतंकवादी हो नहीं सकता। पता नहीं ये प्रज्ञा ठाकुर और दयानंद पांडे टाइप कहां से आ गए। जो भी हो, भगवा के कथित ठेकेदारों की यह सख्त चेतावनी है कि आतंकवाद के सिलसिले में तो भगवा का नाम भी मत लेना।
    अब राजनीति तो भगवा हो सकती है,तो उन्हें कोई एतराज नहीं। बल्कि खुशी-खुशी स्वीकार है।
    शिक्षा, नौकरशाही सब भगवा हो सकते है, तो उन्हें कोई एतराज नहीं। बल्कि खुशी-खुशी स्वीकार है।
    पर आतंकवाद भगवा नहीं हो सकता। क्योंकि आतंकवाद का कोई रंग नहीं हो सकता।
    आतंकवाद लाल तो हो सकता है और माओवादियों के आतंकवाद को वे लाल आतंकवाद ही कहते है, पर वह भगवा नहीं हो सकता।
    आतंकवाद जेहादी तो हो सकता है, चाहे जेहाद का आतंकवाद से कोई लेना-देना न हो, पर आतंकवाद भगवा नहीं हो सकता।
    वाह भगवा के कथित ठेकेदारों समझ लो आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद हो सकता है और कुछ नहीं!

  8. पंडित पंडित सब करे
    दण्डित करे न कोय
    जो अनुज दण्डित करे
    तो हल्ला काहे होए
    अभिषेक जी काहे चुप हो गए हो अनुज का उत्तर दो
    -विनय दीवान

  9. भारत के राष्ट्रिय ध्वज में भगवा सफ़ेद और हरे तीन रंगों का चयन किया गया,क्या ये ध्वज साम्प्रदायिक है ? क्या भगवा रंग तिरंगे का सबसे उपर का रंग नहीं है ?क्या इस रंग को राष्ट्रीय ध्वज में साम्प्रदायिक मानसिकता के कारण शामिल किया गया? माननीय दिग्विजय जी राजनीतिक व्यक्ति और चिताम्बरम जी बुद्धिजीवी व्यक्ति माने जाते हैं,इस प्रकार की हस्तियों द्वारा जब भगवा की बात आतंकवाद से जोड़ कर की जाती है तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जावेगा ,हिन्दू समाज इस देश का बहुसंख्यक समाज, इसप्रकार के उलजलूल बयान से आह़त होता है, भगवा संस्कृति इस देश की आत्मा है,भगवा को आतंकवाद से नहीं जोड़ा जा सकता ,आतंकवाद सिर्फ आतंकवाद होता है इसका कोई रंग या आकार नहीं होता …विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

  10. हिन्दू संघठनो को इस सफ़ेद झूट का मुह तोड़ जवाब देना चाहिए… हिन्दुओं मैं भगवा रंग का धार्मिक महत्त्व है, इसे आतंकवाद से जोड़ना…कांग्रेस की गन्दी और औछी राजनीती है. चिदम्बरम जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति ही अगर देश को गृह युद्ध की आग मैं धकेल देंगे तो…और से तो कोई उम्मीद ही नहीं…

    अगर इस देश पर हमला हुआ तो सबसे पहले ये ही राजनेता अपने विदेशों मैं स्थित अड्डों पर उड़ जायेंगे…विश्वाश नहीं है तो सेना से बोलिए एक मोक रिहर्सल करने को पता चल जायेगा…

    और किस रंग से इसे जोड़ेंगे….हरे, सफ़ेद या लाल से फूट डालो का काम तो अंग्रेजों ने किया था, आपने भी उनसे सिर्फ यही सीखा.

    जबकि सच अभी तक सामने नहीं आया है…

    राष्ट्र धर्म रक्षार्थ सभी को इसका तीव्र विरोध करना चाहिए.

  11. चुटकुला:
    एक शिशु , अपने सारे मित्रोंको बडे गौरवके साथ बता रहा था, कि जानते हो? कि महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, रामदास स्वामी, हनुमानजी, भगवान श्रीराम, अर्जुन और श्रीकृष्ण और सारे भगवान भगवा वाले ही थे; लगता है, वें सारे संघकी शाखामें जाते होंगे। किसी ने पूछा कि यह तुम्हे कैसे पता चला? तो बोला देखते नहीं, कि सारोंके चित्रोंमें भगवा झंडा लहरा रहा है? अब आप बताएं। वे भगवा वाले क्यों न कहे जाएं ?

  12. पूरा आलेख भ्रामक और गैर जरूरी वाक्य विन्यास का अरण्य रोदन है .
    कुछ भी सही नहीं है .एक उदहारण -पैरा १०-हिन्दू संगठनो की प्रेरणा =====
    ===========लेकिन दूसरी ओर इस्लाम =;ईसाई =कम्युनिस्टों के मज़हबी ग्रुन्थों में अपने विरोधी को किसी भी तरह से मारना उचित ========
    धन्य हो प्रभु आप और धन्य हैं वे महान विद्वान् जो आपकी इतनी विद्वत्ता पर कुरवान
    होने को तैयार हैं इस्लाम में क्या है वो तो उसके मानने वाले जाने ;ईसाइयत या बाइबिल में क्या लिखा वो उनके पोप जाने किन्तु कम्युनिस्ट के मज़हबी ग्रुन्थ कौन से हैं वो सिर्फ विजयकुमार जी ही बता सकते हैं .जहां तक हम सुनते पढ़ते आये हैं की जिस तरह पैसे वाला पूंजीपति ;.बहुत सारी धरती का मालिक जमींदार धरम का धंधा करने वाला पाखंडी हर देश हर जात और हर सम्माज में होता है उसी तरह हर देश में हर जात में हर शहर में हर गाँव में मेहनत की रोटी खानेवाला और अपने हक़ के लिए आवाज उठाने वाला किसी भी धरम का हो सकता है .वह बिना किसी धरम के भी न्याय और सत्य के रास्ते पर चलकर अपनी आजीविका चला सकता है
    ऐसे महनतकशों को किसी धरम की किताब कार्ल मार्क्स या ज्योति वसू ने नहीं लिखी ;.
    भारत में तीन सबसे बड़ी ट्रेडयुनियने हैं =एक भारतीय मज़दूर संघ जो की संघ परिवार का ही हिस्सा है =दो -इन्टुक-यह कांग्रेस का अभिन्न हिस्सा है =तीन -सीटू-यह सी पी एम् का हिस्सा है .तीनो संघों के सदस्य अपने -अपने दलों के बुनियादी विचारों के प्रति समर्पित रहते हुए भी देश के बारे में एकजुट हैं .
    बढ़ती हुई महंगाई .बेरोजगारी .निजीकरण और मज़दूरों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ तीनो संघ एक साथ ७ सितम्बर को राष्ट्रव्यापी हड़ताल करने जारहे हैं ;उसमें rss मार्क्सवादी तथा कांग्रेसी एकजुट kaarywahi karenge ..maananeey dattopant thengdi जी तो rss के ही the लेकिन unhone saari jindgee एक कम्युनिस्ट की तरह जी और वे मजदूरों के लिए शहीद हुए .उन्होंने अंत समय में
    अपने आलेखों में जो लिखा वही कम्युनिस्म है .वही कम्युनिस्टों की धार्मिक रचना है ..

    • आदरणीय तिवारी जी— बिनती: इस विषयपर कुछ अधिक गहराईसे आप समयानुसार लेख लिखकर कुछ विशेष प्रकाश डाल पाएं, तो सारे पाठक लाभान्वित होंगे। यह बिनती ही, है। कोई दबाव ना समझें।

  13. bhagwa aatnkwad par itna gussa kiyo?jab bhagwa vastra shari sadhwi malegaawn me jida logoke na marne par afsos karti hain aur thakthit shankrachrya aur unke bhgawa dhari bhai musalmano ka vadh karne ke liye shadyantr karte hain aur jab ve court me sunwai keliye jate hain tab phool barsane wale kiya koi aur hain.
    ek aur bhagwa ranhi party shinsena khule aam bayan deti hain ki hinduo ko aatnkvadi trening leni chahiya to ab bura kiyo lag rahi hain.aur jaha tak islamik aur isai aatnkwad ko bat kare to abhi desh me teen basi hatyao me koi musalman ya isai shamil nahi hua ( mahatma gandhi,indira gandhi aur rajiv gandhi) in teeno gandhio ki hatya kisne ki yah batane ki jarurat hain.
    yah bat theek hain ki kisi aatankwad kakoi dharm nahi hoto lekim jab aao islamik aur isai aatankwad li bat kah hi rahe hain to fir yah bhagwa aatanlwad nahi balki hindu aatankwad hi hain.
    bhai sahab maf kijiye aaj tak RSS ne sirf nafrat failane ka kam kiya hain aur aaj bhi yahi kar rahi hain.aajadi ke aandolan me is dangthan ka chuha tak shahid nahi hua.,aur ab deshbhakt banne ki bat karte hain.unki deshbhakti karnatak me reddi bandhuo ke sath sikhai deti hain ya desh me algaw vad failane me.

  14. चिदंबरम और दिग्विजय की तो वाट लग जाएगी आनेवाले चुनावों मैं…इस मुद्दे का जितना जबरदस्त विरोध होगा…कांग्रेस की उतनी ज्यादा वाट लगेगी.

  15. “भगवा आतंक का नया शिगूफा” -by – विजय कुमार

    – देश के काँग्रेसी ग्रह मंत्री चितमब़ाम भगवा शब्द प्रयोग करते हें, कांग्रेस के वरिष्ट प्रवक्ता उन द्वारा भगवा शब्द के प्रयोग को गलत कहते हैं.

    – यह क्या षड़यंत्र है ?

    – इसका उत्तर कौन देगा देगा ? साधू समाज अभी सोया पड़ा है.
    जब साधू समाज सुनेगा; जागेगा; कांग्रेस वालों की नींद हराम हो जायेगी.
    साधू संत जी जागो – आपके भगवा वस्त्रों के पीछे कांग्रेसी पड़े है. उठो भगवन, Arise, awake and sleep not.
    ——————————

    अब संघ (RSS)
    संघ अच्छे लोगों की खोज में रहता है;
    किसी को अछूत नहीं मानता;
    उसे सबको जोड़ना है क्योंकि संघटन के लोग हैं.
    ऐसे में वह किसी वर्ग, मजहब या पंथ के लोगों के प्रति विद्वेष रखकर नहीं चल सकता।
    ——————————-
    चीतमबरम जी, अपने कार्यालय को निर्देश करे कि भगवा आतंक में लगे व्यति के नामों की घोषणा करे और जेल भिजवा दे
    – यह आपका काम है. अपना काम क्यों नहीं करते?
    केवल शोर मचा रहे हो.
    क्या मामला है?
    भगवा आतंक का शोर मचाना केवल एक षड्यंत्र है।

  16. congress har parkar key aatnkwad ki maa hey, sabhi aatnk ko congress ney hi janm diya , apney ko sata mey rekhney key liyey congresi sahid bhagat singh ko bhai us samay esha hi manti thi.

  17. क्रिया और प्रतिक्रिया दोनों एक तराज़ुसे नहीं तोली जा सकती। इस्लामिक आतंकवाद की हिंदू द्वारा तथाकथित(मैं यह नाम नहीं दे रहा) “भगवा आतंकवाद” प्रतिक्रिया है।
    आपको कोई थप्पड मारता है, उसकी प्रतिक्रिया के नाते आप उसे थप्पड मारनेपर विवश होते हैं।
    ऐसे में, न्यायालयमें भी न्यायाधिश आपकी प्रतिक्रियात्मक थप्पड को और उसकी मूल थप्पडको समान नहीं समझेगा। हां, यदि न्यायाधिश दिग्विजय सिंहजी या चिदम्बरम्‌ हो तो, कहा नहीं जा सकता।
    पर, फिर भी, जिन्हे सोचना, समझना है, उन्हे पूछता हूं।
    (१)यदि क्रिया ही ना होती, (अर्थात बिना क्रिया), तो, प्रतिक्रिया कैसे होती?
    (२) can a reaction exist without an original action?
    (३) क्या चिदम्बरम्‌ और दिग्‌विजय सिंह बताने की कृपा करेंगे, कि कौनसा आतंकवाद जडमूलमें है?
    (४) और प्रतिक्रिया पहले होती है, या क्रिया?
    पर U P A के कठ पुतली शासन में
    — घोडे़ को धक्का मार रही है, बग्गी—
    ॥प्रश्न॥
    कौन-सी तर्क की किताब में पढ़े हो?
    कि, प्रतिक्रिया को
    क्रिया का कारण बताते हो?
    इस्लामिक आतंक का कारण?,
    भगवा आतंक?
    बच्चों, ज़रा सोच कर बताओ,
    कि, घोडा़ बग्गीको खिंचता है?
    या घोडे़को धक्का मारती है, बग्गी?
    क्या?
    घोडे़को धक्का मारती है, बग्गी?

    • अग्रज ज्ञानी बंधुओं को अनुज का प्रणाम
      कोई भी संस्कृति या धर्म आतंकवाद का पोषक नहीं है. आतंकवाद वास्तव में निंदनीय है. आतंक के साए में जीने वाले भगवा और इस्लामिक दोनों हैं. आतंक में मरने वाले भगवा और इस्लामिक दोनों हैं. आतंक में उजड़ने वाले भगवा और इस्लामिक दोनों हैं. श्रीमान जी जिहादी नक्सली आतंकवादी भी उतने ही भर्त्सना के योग्य हैं जितना भगवा आतंकवादी. यहाँ फर्क ये हो सकता है कोई बड़ा है कोई छोटा मगर सांप, सांप ही होता है उसका काम डसना होता है.
      “आप इस्लामिक आतंकवाद की हिंदू द्वारा तथाकथित(मैं यह नाम नहीं दे रहा) “भगवा आतंकवाद” प्रतिक्रिया है।” आपका एसा कहना मेरी समझ में नहीं आया. जानते हो इस देश के राष्ट्रपिता पर हमला करने वाला इस्लामिक आतंकवाद से प्रेरित नहीं था. वो कौन था? आतंकवाद का न महिमा मंडन होना चाहिए न पोषण उनका सिर्फ तिरस्कार और उन्मूलन होना चाहिए.
      समस्त अग्रज बंधुओं से निर्देशन की अभिलाषा में
      आपका अनुज

  18. आपने सही मार्ग दर्शन किया है. इन – डेप्थ वर्णन है …….. इस काग्रेसी सरकार का………..

    व्यंग्य मैंने भी लिखा है ……
    कृपा मार्ग दर्शन दीजिए ……….

    गृहमंत्री जी एक लाइन खींच रहे है .. भगवा आंतकवाद की.

  19. सत्य कहा,हिन्दुत्व को नष्ट करने कई कोशिश कोयी आज से नही है बहुत पहले से है,अंग्रेजों ने भी यही किया था,वो हर दिन नये और फ़र्जी सिध्दांत गडते थे जैसे हमरी सरकार गडती है,लेकीन इन्हे पता नही है कल को जब पाकिस्थान भी इन लोगों के वक्त्व्यों को आधार बना कर भारत निन्दा करने लग जायेगा और कोयी अमेरिकि या चिनी एन का साथ देगा तब ये सरकार जनता को क्या मुँह दिखायेगी,ये ना सोचना की हिन्दु को वोट डालना नही आता है,क्या कोन्ग्रेस को हिन्दु वोट नही चाहिये?????????????

    • आप जसी लोग प्रत्येक बात को वोट की नजर से देखते हैं आपने एक परिचर्चा मैं स्वयं लिखा है ” …………शंकराचाये ने “सर्वग्य” उपाधी लेकर आरुढ किया था,४० लाख लोगो का संहार करना पडे तो भी की ज्यादा हानी नही है.”
      यहाँ लेखक लिखते हैं “हिन्दू चिंतन में ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भावना और भोजन से पूर्व गाय, कुत्तो और कौए के लिए भी अंश निकालने का प्रावधान है। ‘अतिथि देवो भव’ का सूत्र तो शासन ने भी अपना लिया है। अपनी रोटी खाना प्रकृति, दूसरे की रोटी खाना विकृति और अपनी रोटी दूसरे को खिला देना संस्कृति है। यह संस्कृति हर हिन्दू के स्वभाव में है। ऐसे लोग आतंकवादी नहीं हो सकते; पर मुसलमान वोटों के लिए एक-दो दुर्घटनाओं के बाद कुछ सिरफिरों को पकड़कर उसे ‘भगवा आतंक’ कहा जा रहा है।”
      दोनों विरोधाभासी बातें हैं आप लोग समयानुकूल अपनी बात को तोड़ते मरोड़ते रहते हो
      मान्यवर इसके अलावा हमारे देश मैं एक विधि है सब कुछ उसके आईने मैं हो रहा है वो विधि सर्वमान्य है और जो उसके विरुद्ध कार्य करता है वो व्यक्ति दोषी है, आतंकी है, देशद्रोही है. किसी के कहने न कहने से क्या होता है?
      हमारे देश की एक न्यायिक व्यवस्था है जिस की कसौटी पर सच और झूट तोला जा सकता है
      आपने इस्लामिक कट्टरता के लिए कुछ सुझाव दिए हैं
      “……..अगर वो पत्थर मारे तो वापस पत्थर और गोलि मारे तो वापस गोलि,बिना एसके हजारो सालो तक ये सम्स्या सिर दर्द हि रहेगि,इस्लामिक कट्टर्ता है जिम्मेदार एसकि जो कि कभी खत्म नही होगि,कुछ उपाय तुरन्त किये जा सकते है:
      १.सारे धर्म स्थल वहा के सरकार अपने कब्जे मे ले ले.
      २.लाउड स्पिकर को बन्द कर दे.
      ३.जितने भी अलगावादि नेता है उन्हे तुरन्त जैल मे डाल कर राज्य के बाहर रख दे.
      ४.जो भी सडको पर दंगा फ़ेलाता दिखे तुरन्त गोलि मार दे,सारे मीडिया पर पाबंदि लगा दे वहा.
      ५.३७० को तुरन्त प्रभाव से खत्म कर दे,चाहे एसके लिये कुछ भी संसोधन करना पडे.
      ६.सेना को अपने परिवार वालो के साथ वहा बसने की छुट दि जाये तथा उन्के लिये जमीन का भी एन्तजाम करे सरकार.
      ७.जो पाकिस्तान जाना चाहे उसे जल्दि से जल्दि खदेड दे,जो भारत मे रहना चाहे उसको सुरक्षा प्रदान करे.”
      उपरोक्त मैं कट्टरता का तात्पर्य अगर आप सही अर्थों मैं लेते तो आप दोगली बातें न करते कट्टरता भी जरूरी है सिद्धांतों का अनुपालन बिना कट्टरता के नहीं हो सकता. हिन्दू धर्म असहिष्णु नहीं हैं मगर इस प्रकार के वक्तव्य ज़रूर हैं. अगर कुत्ता इंसान को काट लेता है तो क्या इंसान को भी कुत्ते को काट लेना चाहिए? एक व्यक्ति या तो मानव हो सकता है या राक्षस दोनों प्रकृति कभी एक समय मैं एक व्यक्ति मैं नहीं हो सकती हैं अगर हैं तो वो व्यक्ति वो सिद्धांत दोगला है. वैसे तो भारतीय संविधान ने प्रत्येक को वक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है मगर ऐसे दोगले विचारों से हेमें और आपको सावधान रहना होगा.
      इसके अलावा बाल ठाकरे, राज ठाकरे, प्रज्ञा ठाकुर, अरुण गवली ,jaise लोग क्या आपको dikhaye नहीं deta . आप इस बात को sabhi hinduon पर kyon daal rahe हो sabhi हिन्दू असहिष्णु नहीं हैं ye bahgwa aatankwaadi wahi हैं जो असहिष्णु हैं.

  20. Vijay Ji Namaskar,
    apne bahut Accha likha hai, es Digvajay singh ne to MP ko barbad kardiye ab pure desh ko Khokhla kar raha hai

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