जेठ की दुपहरी

0
344

देख दुपहरी जेठ की,हर कोई मांगत छाय।
माह मास में देखत इसे,मन ही मन मुस्काय।।

देख दुपहरी जेठ की,कोरोंना भी परेशान।
कुछ दिनों में टूट जाएगा,इसका भी अभिमान।।

देख दोपहरी जेठ की,आलू भी हुआ बेहाल।
पानी बिन उबल रहा,देखो गरमी की ये चाल।।

देख दोपहरी जेठ की,तरुवर भी अकुलाय।
पथिक छाया में बैठकर केवल वह मुस्काय ।।

देख दुपहरी जेठ की, टप टप बहे पसीना।
खाने को न कुछ दिल करत,मुश्किल है अब जीना।।

देख दोपहरी जेठ की,रहते इससे कोसो दूर ।
कैसे इसको दूर भगाए,सब है इससे मजबूर।।

आर के रस्तोगी

Previous articleभारत को शक्तिशाली बनाकर उभारना होगा
Next articleक्या कोरोना महामारी में भी होगा गरीबों के साथ भेदभाव
आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here