चीन, अमरीका एवं भारत के युद्ध की संभावना और थूसीडाइड्स जाल

– डॉ. विश्वास चौहान

अपनी तमाम चालाकियों और चतुराई के बाद भी जानबूझ कर कोरोना फैलाने का चीन का षड्यंत्र छुप नहीं सका। परिणामस्वरूप कोरोना से पीड़ित अखिल विश्व में चीन के विरुद्ध आक्रोश, असंतोष और अभूतपूर्व विरोध के स्वर प्रस्फुटित हो रहे हैं। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया में अमरीका और चीन तथा भारत और चीन के सम्भावित युद्ध की भविष्यवाणियां की जा रही हैं या कयास लगाए जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय विधि का प्रोफेसर होने के नाते जब मैंने चीन अमरीका के सामरिक संबंधों और सन्धियों के संदर्भ में उपलब्ध साहित्य की खोज प्रारम्भ की तो एक पुस्तक Destined For War : Can America and China escape Thucydides’s Trap पढ़ने में आई। यह पुस्तक 2017 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ग्राहम एलिसन ने लिखी है।

प्रोफेसर ग्राहम एलिसन का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय जगत में एक स्थापित शक्ति (ruling power) किसी उभरती हुई शक्ति (rising power) को अपने समकक्ष खड़ा होने से रोकना चाहेगी। अगर उभरती शक्ति ने स्थापित शक्ति को चुनौती देने का प्रयास किया तो उसकी परिणीति युद्ध होती है, जो उन दोनों शक्तियों के मध्य सम्बन्ध को पुनर्स्थापित करती है। प्रो. ग्राहम एलिसन ने पुस्तक में पिछले 500 वर्ष में उत्पन्न हुई ऐसी 16 परिस्थितियों का गहन अध्ययन कर निष्कर्ष प्रस्तुत किया है, जिसमें जब भी एक उभरते हुए राष्ट्र की शक्ति में तेजी से वृद्धि हुई तो उसे एक स्थापित राष्ट्र ने अपनी शक्ति की तरफ चुनौती के रूप में लिया। इन 16 में से 12 स्थितियों का परिणाम, दोनों देशों में युद्ध के रूप में ही सामने आया। उक्त स्थिति को प्रोफेसर एलिसन ने Thucydides Trap कहा। यह थ्यूसीडाइड्स ट्रैप एक शब्द है जिसे अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक ग्राहम टी एलीसन ने युद्ध की एक स्पष्ट प्रवृत्ति का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल किया है, इसका वही तात्पर्य है जैसा कि मैंने उपर्युक्त पैरा में लिखा है कि जब एक उभरती हुई शक्ति अंतरराष्ट्रीय रूप में स्थापित एक महान शक्ति को विस्थापित करने की धमकी देती है।

प्रो. एलिसन ने याद दिलाया कि जब अमेरिका बीसवीं शताब्दी की एक स्थापित शक्ति बन गया था तब उसने क्यूबा को स्पेन से मुक्त कराया, ब्रिटेन और जर्मनी को युद्ध की धमकी देकर वेनेजुएला एवं कनाडा में अपनी शर्तों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, कोलंबिया को विभाजित करके पनामा का निर्माण किया (जिसने तुरंत पनामा नहर के निर्माण के लिए अमेरिका का ‘निवेदन’ मान लिया) और ब्रिटेन द्वारा समर्थित मेक्सिको की सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास किया। आधी सदी के बाद अमेरिकी सैन्य बलों ने अमेरिकियों के अनुकूल आर्थिक या क्षेत्रीय विवादों को निपटाने के लिए 30 से अधिक अलग-अलग अवसरों पर पश्चिमी जगत में हस्तक्षेप किया या विरोध करने वाले नेताओं को सत्ता से बाहर कर दिया।

 इस पुस्तक में प्रो. एलिसन लिखते हैं कि 1980 में चीन की अर्थव्यवस्था नीदरलैंड से भी छोटी थी। लेकिन वर्ष 2014 में चीन की जीडीपी में हुई वृद्धि, तब वह डच अर्थव्यवस्था के बराबर थी। प्रो. एलिसन ने निष्कर्ष निकाला कि चीन जो एक उभरती हुई शक्ति है, वह एक स्थापित शक्ति अमेरिका को दक्षिण महासागर में चुनौती दे रहा है। अतः इन दोनों राष्ट्रों के मध्य युद्ध की संभावना बढ़ जाती है। वहीं तिब्बत और गलवान में स्थापित शक्ति चीन को उभरती शक्ति भारत चुनौती दे रहा है ।

प्रो. एलिसन की थ्योरी को जब भारत के संदर्भ में देखते हैं तब ध्यान आता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उनके द्वारा उठाए गए कदमों से पड़ोसी देश चीन में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। सीमा पर बन रही सड़क, पुल तथा अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर; सेना को दिए जा रहे आधुनिक अधिकार; आत्मनिर्भर भारत पर जोर; पड़ोसी देश के बेल्ट और रोड प्रोग्राम को ज्वाइन करने से मना कर देना; सूर्य ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व में अपने आप को एक शक्ति के रूप में स्थापित करना; अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, ऑस्ट्रेलिया, विएतनाम, अफ़्रीकी देशों इत्यादि से प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित करना; भारतीय महासागर में नौसेना का अधिपत्य जमाना; यह सभी नीतियां पड़ोसी देश चीन के लिए चिंता का विषय है।

चीन जानता है कि अमेरिका और यूरोप ने उस देश को समय रहते चुनौती नहीं दी थी जिसके कारण लाल देश उनकी नाक के नीचे से एक महाशक्ति के रूप में स्थापित हो गया। लेकिन वह पड़ोसी देश यह ‘गलती’ भारत के सन्दर्भ में नहीं दोहराना चाहता। उक्त कारण से चीन पर्याप्त समय से सीमा पर भिड़ंत, व्यापार को लेकर तनाव और आतंकी देश पाकिस्तान को अनैतिक समर्थन की नीति अपनाए हुआ है। भारतीय नेतृत्व को Thucydides Trap के बारे में पता है और इसलिए वह राष्ट्र हित में कदम उठा रहा है। इसलिए आज हर देशभक्त भारतवासी का पुनीत कर्तव्य है कि वह प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों और विज़न का समर्थन बनाये रखे। विदेशी माल और दलाल दोनों का पुरजोर आर्थिक बहिष्कार करें। भारतीय स्वदेशी कुटीर, लघु सूक्ष्म कृषि आधारित परियोजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाए। हमारे देश का जो ‘ब्रेन’ विदेशों में ‘ड्रेन’ हुआ है उसे वापिस देश में लाकर सेवा और तकनीकी में भारत की प्रतिष्ठा को स्थापित करें। वह दिन दूर नहीं जब भारत में हिंदुत्व और विदेश में भारत का गौरव तथा प्रभुता स्थापित हो जाएगी। यही एक विश्वास देश-विदेश में बैठे विरोधियों और दुश्मनों को हताश कर देता है।

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