पण्डित-पंडताई के बीच झगड़ा

लेखक आत्माराम यादव पीव

            (पहला दृश्य)

(आकाश मार्ग से नारद जी हाथों में वीणा लिये भारत के एक गाँव की ओर प्रस्थान कर रहे है और जॅपते जा रहे है- श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि …. श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि . वे गाँव की सीमा में प्रवेश करते है तभी उन्हें एक भक्त मिलता है)
भक्त- नारदजी प्रणाम।
नारद जी- आयुष्मान भव।
भक्त – महाराज हम तो दुख से मरे जा रहे है, आयुष्मान कैसे रहेंगे
नारद जी- कहो बच्चा किस दुख से मरे जा रहे हो ।
भक्त- महाराज क्या बतायें, आप तो सब तीनों काल का जानते है, आपसे कोई बात नहीं छिपी है फिर भी आप हमसे कारण पूंछ रहे है?
नारद जी- नहीं… नहीं…. बच्चा ,हमें आप लोगों के मरे जाने के दुख के बारे में कुछ पता नहीं है, तुम बताओं तो सही, हम दुख दूर करने का कोई उपाय अवश्य बता देंगे।
भक्त- महाराज .. आपसे तो कोई बात नहीं छिपी है लेकिन आप पूछते है तो बताये देते है ।
नारद जी -नारायण …. नारायण .. हाँ हाँ बताओं बच्चा। आखिर पूरे गाँव को कौन सी बीमारी ने घेर लिया है जो मुझे नही दिख रही है।
भक्त- महाराज वह बात…. मेरा मतलब बीमारी ऐसी है.. अब रहने तो .. आपको ठीक नहीं लगेगा।
नारद जी – नारायण … नारायण .. नहीं … नहीं बच्चा हमें भी तो पता चलना चाहिए ऐसी कौन सी बीमारी है जिससे सभी मरने जैसा दुख उठा रहे है।
भक्त- महाराज कहने को तो पूरा गाँव दुखी है, या समझ लो मरा हुआ है पर आपके मिलने से उम्मीद बंधी है की जल्द सभी सुखी होने जा रहे है, पर महाराज आपके सामने दुखड़ा रोने में संकोच होता है।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. बच्चा संकोच न करों, खुलकर बताओं।
भक्त- महाराज अब आप इतना जोर देकर पूछ ही रहे है तो बताये देते है, बात यह है कि पूरा गाँव एक घर के कारण दुख से मर रहा है।
नारद जी – नारायण …. नारायण .. आश्चर्य से – पूरा गाँव .. कौन से घर के कारण दुख से मर रहा है बच्चा।
भक्त- महाराज हमारे गाँव के जो पण्डित और पण्डिताईन के घर के कारण परेशान है ।
नारद जी- (आश्चर्य से )नारायण …. नारायण ..यह बात गले नही उतरी बच्चा … आखिर पण्डित पण्डिताईन के घर मे क्या अजूबा है जिससे पूरा ही गाँव मरने के कगार पर है।
भक्त- महाराज आप जो जानते ही समाज में हर घर में कभी न कभी छोटी बड़ी बात पर पति पत्नी में कलह होती है , आपस में कहासुनी झगड़ा होता है।
नारद जी – यह तो संसार का नियम है बच्चा पर इससे पंडित पंडिताइन का गाँव के दुख से क्या लेना देना ।
भक्त –कैसे लेना देना नही महाराज। ये दोनों ही पूरे गाँव को महादुख दे रहे है। ये पण्डित-पण्डिताईन है न … अब रहने दीजिये महाराज आपको ठीक नहीं लगेगा।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. नहीं… नहीं तुम सब बातें बताओं हमें बुरा नहीं लगेगा बच्चा।
भक्त- देखो महाराज, ये दोनों आपस में आज तक नहीं झगड़े है। जबसे पण्डिताईन ब्याह कर आयी है दोनों घुलमिलकर रहते है। जबकि गाॅव में हर परिवार में कोई न कोई बात को लेकर कलह होती है, पर ये दोनों के बीच कभी लड़ाई नहीं हुई और न ही कलह हुई है। यही दुख का कारण है महाराज ।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. यह तो अच्छी बात है बेटा, दोनों पति पत्नी खुशी से है ओर झगड़ा नहीं किए है । इसमें गाँव के लोगो के दुख से मरने की बात कहा आ गई।
भक्त- क्या महाराज आप भी, पूरे गाँव को आपसे बड़ी उम्मीद थी पर आप तो पण्डित पण्डिताईन का पक्ष लेने लगे। जबकि पूरे गाँव के लोगों की मंशा उन्हे झगड़ते देखने की है ।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. मैं समझा नहीं बच्चा। आखिर गाँव के लोग मुझसे किस बात की उम्मीद रखते है।
भक्त- महाराज एक तो हम आपको बताना नहीं चाहते थे, परन्तु आपने जोर दिया तो बताया,फिर भी आप नहीं सुनना चाहते तो रहने दो, अगर पूरा गाँव दुख से मर जाए तो मरने दो पर दुख का कारण आपके बता दिया आपने निवारण नहीं किया तो कोई दुख से मरे तो आप ही जबावदेह होंगे।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. ये तुम क्या कह रहे हो बच्चा, मैं क्यों जबावदार रहूँगा।
भक्त- महाराज पूरा गाँव ही नही दुनिया जानती है कि आप अकेले पूरे ब्रम्हाण्ड में ऐसे है जो हर असंभव को संभव कर दे। और गाँववालों के दुखी रहने का कारण वे पण्डित पण्डिताईन है, जो प्रेम से रहते है इससे पूरे गाँव के लोगों को जलन होती है, इस जलन को दूर करिए।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. बेटा तुम्हारी यह बात सहीं है कि मैं ब्रम्हाण्ड में असंभव को संभव कर सकता हॅू। इसमें जलन की क्या बात है, सभी को इससे खुश होना चाहिये और पंडित के परिवार से सुखी रहने की सीख लेना चाहिये। नारायण …. नारायण ..
भक्त- महाराज गाँव के लोगों की खुशी इस बात में है, कि जैसे सभी आपस मैं लड़ते झगड़ते है वैसे ही पण्डित पण्डिताईन के बीच झगड़ा ओर अनबन हो । ओर आप यह अनबन करा सकते है। अगर आप दोनों का आपस में झगड़ा करा दे तो गाँववालों को बड़ा सुख प्राप्त होगा।
नारद जी- नारायण …. नारायण ..यह कैसी जिद है बच्चा। हाँ यह सच है कि मैं इन्हें आपस में लड़ाकर अलग कर सकता हॅू परन्तु इससे इनके दुखी होने पर गाँववालों को सुख प्राप्त होगा, यह बात विचित्र लगी बच्चा।
भक्त- महाराज अगर आप गाँववालों को सुखी देखना चाहते हो तो यह तो आपको करना ही होगा, वरना आप चले जाये, आपपर से हमारा विश्वास उठ जायेगा।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. ठीक है बच्चा अगर गांववालों को सुख मिलता है तो उनके सुख के लिये मैं पण्डित पण्डिताईन में झगड़ा कराने को तैयार हॅू और यह काम आज ही कराता हॅू।
भक्त- वाह वाह महाराज , मजा आ गया महाराज इससे पूरे गाँववालों की मुराद सालों बात पूरी होगी, इसका सुख उठाने के लिए पूरा गाँव कब से उधार बैठा है ।
(दूसरा दृष्य बदलता है)
(पर्दा उठता है )
(पण्डित जी के घर पंडिताइन अकेली है ओर पंडित जी कही गए हुये है । नारदजी पण्डिताईन से मिलने पहुचते है)
नारद जी- नारायण …. नारायण।
पण्डिताईन- नारदजी के चरणों में पण्डिताईन का प्रणाम।
नारद जी – नारायण …. नारायण .. हमें तुम्हारा प्रणाम स्वीकार नहीं पण्डिताईन, पर क्या करे तुम भगवान की भक्त हो ओर बहुत ही भोली हो इसलीये मन नही माना ओर तुमसे मिल लिए वरना पंडित से तो मिलते ही नही?
पण्डिताईन-क्या नाराज हो नारद जी, जो रूखा व्यवहार करके प्रणाम स्वीकार नहीं कर रहे हो।
नारद जी- नारायण …. नारायण तुमसे कोई नाराजी नहीं है पण्डिताईन, पर बात तुम्हारी नही पण्डित जी की है,इसलिये मन दुखी है।
पण्डिताईन- नारद जी पण्डित जी को क्या हो गया।वे तो अच्छे भॅले हलुवा पूडी खाकर गये थे, और अब तक आ जाते परन्तु नहीं आये। जब तक वे आयेंगे तब तक आप भी आओं आसन गृहण करों और भोजन-प्रसादी पाओ। ।
नारदजी- नारायण …. नारायण पण्डिताईन मैं और तुम्हारे घर भोजन प्रसादी.. नारायण …. नारायण .. यह तो हो ही नहीं सकता है पण्डिताईन।
पण्डिताईन- नारद जी यह क्यों नहीं हो सकता है, आप एक पण्डित के घर भोजन करने से इंकार क्यों कर रहे हो।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. यह तो सच है पण्डिताईन कि तुम ब्राम्हण हो और पिछले सात जन्मों से ब्राम्हण हो,परन्तु पण्डित जी है न .. नारायण …. नारायण उनकी बात रहने तो पण्डिताईन मैं चलता हूँ ।
पण्डिताईन- कहा चलते हो और पण्डित जी को क्या हुआ जो कह रहे हो उनकी बात रहने दो, बताओ न नारद जी।
नारद जी- नारायण …. नारायण ..ऐसा है पण्डिताईन तुम तो पण्डिताईन हो इसमें कोई शक नहीं पर तुम्हारे पति पण्डित जी, ….. जो है। नारायण …. नारायण .. अब तुम रहने दो । इससे तुम्हें दुख पहुंचेगा।
पण्डिताईन- क्या कह रहे नारद जी। आप पूरी बात बताओं जो पण्डित जी के बारे में जानते हो,भले मुझे दुख पहुंचे या हमारा सम्बन्ध न रहे, पर मुझे सच जानना जरूरी है।
नारद जी- नारायण …. नारायण .. अब तुम नहीं मानती तो सुनो पण्डिताईन ,, वह तुम्हारा पति है, जो पण्डित है, वह पिछले जन्म में पण्डित नहीं था। नारायण …. नारायण ..
पण्डिताईन- (रुआसी होकर ) पंडित नहीं थे तो क्या थे नारद जी।
नारद जी – नारायण …. नारायण .. पिछले जन्म ही नहीं उसके पहले के सभी जन्मों में वह ब्राम्हण नहीं रहा है जबकि तुम तो सातों जन्मों में ब्राम्हण रही हो। तुम्हारे घर भोजन-प्रसादी कर लॅू मुझे खुशी होती पर वह पण्डित के कारण तुम्हारे यहाँ पानी पीना भी अधर्म होगा। नारायण …. नारायण ..
पण्डिताईन- (रोते रोते )नारद जी महाराज मेरे तो कर्म ही फूट गये। पर नारद जी यदि आपको पता है कि मेरे पति पिछले जन्म में क्या थे?
नारद जी- नारायण …. नारायण हाँ क्यो नही ? पण्डिताईन मैं जानता हॅू पर यह रहस्य तुम किसी पर उजागर न करो तो तुम्हें बता सकता हॅू। नारायण …. नारायण दृ
पण्डिताईन- हाँ नारद जी , मैं सौगन्ध खाती हॅू कि यह रहस्य मैं किसी को नहीं बताऊॅगी, आप बताईये मेरे पति पिछले जन्म में क्या थे?
नारद जी- नारायण …. नारायण दृ ठीक है पण्डिताईन तुम जोर देकर पूछ रही हो तो बताये देता हॅू कि तुम्हारे पति पिछले जन्म में बैल थे जो दिन भर बैलगाड़ी में जुते रहते थे। और इसके पहले के जन्मों में भी वे बैल ही रहे है। नारायण …. नारायण ..
पण्डिताईन- नारदजी आपको कोई सबूत देना होगा जिससे मैं विश्वास कर सकूँ कि मेरा पति पिछले जन्म में बैल था। और ऐसा सबूत दीजिये ताकि मैं उनकी परीक्षा ले सकॅू।
नारदजी – नारायण …. नारायण .. देखों पण्डिताईन तुम पूछ रहीं हो इसलिये बता रहा हॅू । तुम्हें तुम्हारे पति के बैल होने का सबूत चाहिये तो सुनो- जब तुम्हारा पति आकर सो जाये और गहरी नींद में हो तो उसकी पीठ चाटकर देखना, अगर वह नमक की तरह खारी लगेगी । तुम्हें खारी लगे तो समझ लेना मेरा कहा सत्य है । नारायण …. नारायण
पण्डिताईन- ठीक है नारदजी मैं आज परीक्षा लिये लेती है।
नारद जी, अच्छा देवी मैं अब चलता हॅू। ईश्वर तुम पर कृपा करें।
(पर्दा गिरता है)
दृष्य तीसरा- पर्दा उठता है
मंदिर के बाहर का दृष्य । पण्डित जी मंदिर से घर को निकले कि नारद जी उनसे मिलने वही पहुच जाते है –
नारद जी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण
पण्डित जी- अहो भाग्य जो आपके दर्शन हुये देवर्शि । आपके चरणों में प्रणाम
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . .। सुखी रहो ब्राम्हणदेव।
पण्डितजी- देवर्शि.. ब्राम्हण का आतिथ्य स्वीकार कीजिये और घर चलकर भोजन कीजिये।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . । भूख तो जमके लगी है पर ब्राम्हणदेव मैं आपके घर भोजन नहीं कर सकता हॅू।
पण्डितजी- क्या बात करते हो देवर्शि। मुझे ब्राम्हणदेव भी कहते हो और मेरे घर भोजन करने से इंकार करते हो। चलिये पण्डिताईन के हाथों से बना लजीज भोजन का आनन्द लीजिये।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . । मुझे भूखा ही रहने दे ब्राम्हणदेव , मैं तुम्हारे घर भोजन नहीं कर सकता हॅू।
पण्डितजी- आखिर क्या कारण है, मुझे बताओं न देवर्शि। ऐसा कौन सा अपराध मुझसे हुआ है जिससे आप मेरा आतिथ्य स्वीकार नहीं कर सकते हो।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .। ब्राम्हणदेव बात कुछ ऐसी है जो कह नहीं सकता और तुम सुन नहीं सकते। इसलिये मुझे क्षमा कीजिये । मैं आपके घर भोजन नहीं कर सकता।
पण्डित जी- नहीं देवर्शि। टालिये नहीं। मुझे वह बात बताईये जिससे आप मेरे घर भोजन नहीं कर सकते। यह ब्राम्हण तो अतिथि की सेवा का अवसर गॅवाने के कारण नर्क चला जायेगा।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण। मैं टाल नहीं रहा हॅू ब्राम्हणदेव । बात तुम्हारी पण्डिताईन को लेकर है जो चुभने वाली है और तुम यकीं नहीं करोगे। इसलिये तुम भोजन की बात को समाप्त करो और मुझे भूखा ही जाने दो।
पण्डितजी- नहीं देवर्शि । मेरी कई पुस्तों ने देवताओं की सेवा करके उन्हें अतिथि बनाया है और यह अवसर देवयोग से मुझे भी मिला है। इसलिये मैं इसे गंवाना नहीं चाहता हॅू और आपको कारण बताना होगा जिसके लिये आप मेरे यहा भोजन करने से इंकार कर रहे हो।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण। तुम जानना चाहते हो पर मैं बताना नहीं चाहता हॅू ब्राम्हणदेव। बात कुछ कड़वी है और मैं इसलिये नहीं बताना चाहता हॅू ताकि इसके जानने के बाद तुम्हारा वैवाहिक जीवन संकट में आ जायेगा जिसका पाप मुझे लगेगा। इसलिये तुम रहने ही दो और अपने घर जाओ।
पण्डितजी- नहीं देवर्शि । आपको तो अब मुझे पूरी बात बताना पड़ेगी । चाहे मेरे जीवन में जो भी हो जाये, मैं हर संकट का सामना करने को तत्पर हॅू।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .। ठीक है ब्राम्हणदेव। तुम मजबूर कर रहे हो तो बताये देता हॅू। बात ऐसी है कि तुम तो पिछले सात जन्मों से ब्राम्हण हो। परन्तु तुम्हारी पत्नी पण्डिताईन का पिछला जन्म मैं जान चुका हॅू इसलिये तुम्हारे घर भोजन से इंकार कर रहा हॅू।
पण्डित जी- बताईये न देवर्शि मेरी पत्नी का पिछला जन्म क्या था।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . । ब्राम्हणदेव तुम तो पिछले सात जन्मों से पण्डित हो,पर तुम्हारी पण्डिताईन पिछले जन्म में कुतिया थी और ऐसे ही उसके पहले के जन्म निकृष्ट योनियों के रहे है।
पण्डित जी-(आश्चर्य से घबराया हुआ ) क्या कहा देवर्शि। मेरी पत्नी पिछले जन्म में कुतिया थी। मैं आपकी बात पर कैसे विश्वास करूँ । मुझे कुछ तो प्रमाण दीजिये जिससे मैं भी जान सकॅू कि वह कुतिया थी।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . । ठीक है ब्राम्हणदेव तुम प्रमाण मांगते हो तो सुन लो। वह कुतिया थी और उसे चाटने की आदत थी जो इस जन्म में भी नहीं छूटी है। मेरी बात कि सत्यता जानने के लिए आज गहरी नींद मे सोने का नाटक करना और खुद देख लेना, तुम्हारी पत्नी किस तरह तुम्हारी पीठ चाटती है।
नारद जी – नारायण नारायण जपते चले जाते है।
(पर्दा गिरता है )

इतना सुनकर पण्डित जी बैचेनी से अपने घर की ओर चले गये और अपनी पत्नी को कोसने लगे कि मेरी पत्नी कुतिया है। मेरा जन्म तो बेकार गया। वहीं दूसरी ओर पण्डिताईन घर पर कुढ रहीं थी कि मेरे पिता ने किस बैल से विवाह कर दिया जिसके कारण मेरा परलोक भी जाता रहा । इसी उधेड़बुन में पण्डित कब घर पहुॅचता है उसे समय का भान ही नहीं रहता है।
दृष्य -तीसरा पण्डित का बेडरूम
(पर्दा उठता है )
पण्डितजी घर में प्रवेश करते है और मन में जले भुने होते हुये मीठे शब्दों में पण्डिताईन को आवाज लगाते है कि हे प्रिया क्या कर रही हो। पण्डिताईन जबसे नारदजी गये थे तभी से कुढ़ी हुई बैठी थी लेकिन जब तक परीक्षा नही ले लेती वह पण्डितजी को अपनी नाराजी का आभास नहीं होने देना चाहती है इसलिये वह जबाव देती है । हे प्राणेष्वर मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रही हॅू।
पण्डितजी-(गुस्से से भरे है, पर गुस्से का दबाते हुये) अच्छा प्रिय। मेरी प्रतीक्षा क्यों कर रही हो, कभी भगवान को भी याद कर लिया करो, भक्त कि प्रतीक्षा से वे प्रसन्न हो जाए।
पण्डिताईन- (कुढ़ते हुये मन में बुदबुदाती है कि आ गया बैल, मुझ पण्डिताईन का स्वर्ग बिगाड़ने वाला…. गुस्सा छिपाकर) स्वामी। आप ही मेरे पति हो, आप ही परमात्मा हो। आप ही मेरे सर्वग्य हो तब मुझे भगवान की प्रतीक्षा की उलाहना क्यों देते हो।
पण्डित जी- ऐसा नहीं प्रियतमा। तुम तो जानती हो कि जबसे तुम आयी हो मैं एक पल भी तुम्हारे बिना नहीं जी सका। मैं तुमसे कितना प्रेम करता हॅू यह बात तो पूरा गाँव जानता है। (और मन ही मन बुदबुदाता है कि हे भगवान कहा कि कुतिया मिल गयी)
पण्डिताईन- स्वामी। आप थक गये होंगे, चलो भोजन गृहण कर लो फिर हम प्रेमालाप कर आराम करेंगे।
पण्डितजी- सहीं कहती हो,प्रिय। मैं बहुत थक गया हॅू और मुझे भूख भी नहीं लग रही है इसलिये मैं सोचता हॅू कि थोड़ा विश्राम कर लॅू। तुम्हें भूख लगी हो तो तुम भोजन करलो। (बुदबुदाता है कि चलो इसी बहाने सोकर देख लेता हॅू कि देवर्शि नारद जी कहीं झूठ तो नहीं बोल रहे है, भगवान करें यह मेरी पीठ नहीं चाटे तो अच्छा है, वर्ना मेरा जीवन तो बर्बाद ही समझो )
पण्डिताईन- हाँ हाँ स्वामी। विश्राम कर लीजिये। ( मन ही मन बुदबुदाना. बैल कहीं के जल्दी सो, ताकि मैं नारदजी के बताये अनुसार परीक्षा ले सकूँ ।
पण्डित जी एक बिस्तर पर लेट जाते है और नींद आने का अभिनय करते हुये जोर-जोर से खर्राटे भरने लगते है। पण्डिताईन यह विश्वास कर लेना चाहती है कि पण्डित जी सहीं में सो गये तभी परीक्षा लूँगी । उधर पण्डित जी जानते है कि वह सोये नहीं सोने का अभिनय कर अपनी पत्नी को विश्वास दिलाना चाहते है कि वह गहरी नींद में है ताकि पण्डित जी परीक्षा ले सके कि सच में यह मेरी पीठ तो नहीं चाटती है, यदि ऐसा होगा तो हे भगवान इस कुतिया को घर से भगाना होगा।
कमरे में पण्डितजी के खर्राटे गूंज रहे है। पण्डिताईन को विश्वास हो गया कि उनके पति सो गये है। वह धीरे धीरे उनकी कमीज और बनियाईन को ऊपर सरकाते हुये पीठ उघाड़ती है। पण्डित जी खामोशी से यह सब नींद का अभिनय कर अनुभव ले रहे है। जैसे ही पण्डिताईन ने पण्डित जी की पीठ को अपनी जीभ से चाटना शुरू किया पण्डित जी उठ आते है ।
पण्डित जी- तू कुतिया है यह मैंने जान लिया तभी तो मेरी पीठ रोज चाटती है ओर देख पीठ चाट चाट कर मुझे दुबला बना दिया ।
पण्डिताईन-मैं कुतिया नहीं तू बैंल। जैसे ही मैंने पीठ चाटी पीठ कितनी खारी थी कि जीभ टन्ना गयी। जरूर तुम बैल थे। मेरी तो किस्मत फूट गयी।
दोनों में जमकर कहासुनी और झगड़ा षुरू हो जाता है। पण्डितजी उसे कुतिया कुतिया कहकर लताड़ते है और पण्डिताईन पण्डित को बैल बैल कहकर चिल्लाती-चीखती है। इससे पूरा गाँव दोनों का झगड़ा देखने एकत्र हो जाता है। जब दोनों झगड़ा करते है तब वहा देवर्शि नारद जी आ जाते है।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .
पण्डितजी- देवर्शि मेरी तो किस्मत ही फूट गयी, मेरी पत्नी तो पिछले जन्म की कुतिया निकली।
पण्डिताईन- नारद जी आप ही न्याय कीजिये। मेरे परिजनों ने इस बैंल के साथ मेरा विवाह कर दिया । मेरी किस्मत खराब है। अब मैं अपना बाकी जीवन कैसे कहा बिताऊॅगी।
दोनों नारदजी से एक दूसरे को कुतिया -बैल कहकर लांछित कर रहे है और पूरा मोहल्ला इस झगड़े को देख खुशी से झूम रहा है।
नारदजी ने बीचबचाव करते हुये कहा- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण सुनो,सुनो। मेरी बात सुनो, न पण्डित बैल है और न ही पण्डिताईन कुतिया है।
पण्डिताईन- नहीं महाराज मैंने पीठ चाटी तो मेरी जीभ में इतना नमक का स्वाद आया कि जीभ अब तक खारी है, यह बैल है तभी तो पीठ खारी हैं।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण तुम दोनों मेरी बात को ध्यान से सुनो। न पण्डिताईन कुतिया है और न ही पण्डित बैल है।
पण्डितजी-(बीच में ही) नहीं नहीं देवर्शि । मैंने खुद इसे अपनी पीठ चाटते रंगे हाथों पकड़ा है, यह कुतिया है तभी तो पीठ चाट रही थी।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण । झगड़ा छोड़ो मेरी बात सुनों।
पण्डित जी- नहीं सुननी, देवर्शि आप ही तो कहे थे कि यह रोज पीठ चाटती है, मैंने परीक्षा ली तो यह मेरी पीठ चाटते पकड़ी गयी।
पण्डिताईन-नारदजी आपने ही तो बताया था कि पण्डित जी की पीठ चाटने पर खारी होगी, मैंने चाटा तो पीठ खारी निकली। आपकी बात सच निकली, यह पण्डित तो पूरा बैल है।
नारद जी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण। तुम दोनों मेरी बात सुनो। न पण्डित बैल है और न पण्डिताईन कुतिया है। तुम दोनों ने मेरे कहने से परीक्षा ली थी और तुम आपस में झगड़ने लगे। तुम्हारा गाँव चाहता था कि तुम कभी लड़े नहीं आपस में प्रेम से रहते हो, इसलिये तुम्हारे बीच झगड़ा कराने के लिये मुझे यह सब करना पडा । नारायण . . . .नारायण . . .नारायण।
पण्डित जी- ये क्या कह रहे हो देवर्शि। गाँववालों के कहने से आपने हमारे बीच झगड़ा कराया ।
पण्डिताईन- ठीक है नारद जी। आपने हम पति-पत्नी के बीच झगड़ा कराया यह बात तो समझ आती है परन्तु यह समझ नहीं आया कि पण्डित जी की पीठ आपके बताये अनुसार नमकीन, बिलकुल नमक जैसी खारी क्यों है।
नारदजी- नारायण . . . .नारायण . . .नारायण। ऐसा है पण्डिताईन। तुम दोनों पिछले जन्म में क्या थे, यह बात मायने नहीं रखती। रही बात पण्डित जी की पीठ के खारी होने की । तो बात यह है पण्डिताईन पुरुष हमेशा मेहनत करता है और इस कारण पसीना उसकी पीठ पर जम जाता है इसलिये वह पसीना नमक जैसा खारापन का स्वाद देता है। नारायण . . . .नारायण . . .नारायण।
पण्डित- चलो प्रिया। बहुत जमके भूख लगी। अब नारद जी ने झगड़ा करवा कर प्रेम का स्वाद बदल दिया था। अच्छा सब बातें छोड़ो और भोजन परोसो।
पण्डिताईन- सच कहते हो प्राणप्रिय। मैं ही नारदजी के बहकावे में आकर तुमपर शक करने लगी थी। अब जीवन में ऐसा नहीं होगा और न ही आप मुझपर कभी शक करना ओर न मैं तुमपर शक करूंगी ।
(पण्डित पण्डिताईन गले में हाथ डाले अपने घर में प्रवेष कर जाते है। घर के बाहर एकत्र मोहल्ले के लोग झगड़े का आनन्द उठाते हुये घर लौटते है। और नारदजी अपनी वीणा थामे नारायण . . . .नारायण . . .नारायण जपते हुये देवलोक को प्रस्थान करते है।)
(पर्दा गिरता है।) नाटक समाप्त

1 COMMENT

  1. @आत्माराम यादव जी संसार में नारद जी के अवतार बहुत है और एक तरफ़ा सुनी हुई बातों का शायद यही हश्र होता है।पंडित जी पंडिताईन जी के झगड़े लेखन से ये सुंदर रूप में दर्शाया है

Leave a Reply to larukman Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here