
मई 2019 में जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए-2 की सरकार सत्ता में आई. तभी से सत्ता पक्ष और विपक्ष के रिश्तो में लोकतंत्र में अपेक्षित राजनीतिक विरोध से बहुत आगे जाकर व्यक्तिगत विरोध या साफ शब्दों में कहें तो नफरत में बदल चुका है.
वैसे इसकी शुरुआत इससे भी एक-दो वर्ष पहले हो चुकी थी. जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिन रात “चौकीदार चोर है” के नारे लगाते थे. सिर्फ राहुल राहुल गांधी ही नहीं अपितु कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी नरेंद्र मोदी मोदी को “नीच” तथा “मौत का सौदागर” तक कह चुके हैं. भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में इतनी व्यक्तिगत कटुता पहले कभी नहीं देखी गई.
वर्तमान में “नागरिकता संशोधन विधेयक” के पास होने के बाद विपक्ष का दोहरा चरित्र देश के सामने आ चुका है. देश की जनता ने जिन विचारधारा और दलों को चुनाव में नकार दिया था. उन्हें “नागरिकता संशोधन विधेयक” के नाम पर दंगों में अपना भविष्य नजर आने लगा. क्या विपक्ष सिर्फ अराजकता फैलाने के लिए होता है? जबकि सभी को पता है कि “नागरिकता संशोधन विधेयक” नागरिकता देने का बिल है, नागरिकता छीनने का नहीं. यह विधेयक सिर्फ पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे इस्लामिक देशों में रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई धर्मावलंबियों को भारत में नागरिकता देने के लिए बना है.
विपक्ष में बैठे नेता इस बिल को “संविधान की आत्मा के खिलाफ” तथा “धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध” बता रहे हैं. लेकिन उनको इतनी बुद्धि तो होनी चाहिए कि अगर पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के मुसलमान भी भारत में लेने थे तो यह देश का बंटवारा किया ही क्यों गया था. कांग्रेस पार्टी के नेताओं द्वारा दंगों में शांति की अपील न करके लोगों को “सड़कों पर उतरने” के लिए प्रेरित करना उनकी राजनीतिक झल्लाहट को ही दर्शाता है .
देश के मुसलमानों को “एनआरसी” से डराया गया. बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस पर अभी कैबिनेट में कोई विचार नहीं किया गया है. “एनआरसी” में केवल नागरिकता की पहचान की जाएगी. क्या किसी देश की सरकार को यह हक नहीं होना चाहिए कि वह अपने नागरिकों का कोई सही डाटा तैयार कर सकें तथा यह जान सके कि कितने लोग घुसपैठियों के तौर पर देश को घुन की तरह खोखला कर रहे हैं? इससे स्पष्ट होता है कि विपक्ष घुसपैठियों के साथ खड़ा है.
इससे पहले भी “धारा 370” हटाए जाने का विरोध, “तीन तलाक” बिल का विरोध करके कांग्रेस पार्टी सिर्फ मुसलमानों के हितैषी बनने का ढोंग कर रही है. “नागरिकता संशोधन विधेयक” व “एनआरसी” के विरोध के बाद अब “नेशनल पापुलेशन रजिस्टर” को अपडेट करने वाले बिल पर भी लोगों को कांग्रेस ने भड़काना शुरू कर दिया है. जबकि यह हर 10 साल में की जाने वाली जनगणना संबंधी प्रक्रिया है.
एक विचारधारा जो मार्क्सवादी, कम्युनिस्ट, नक्सलवादी या शहरी नक्सलवाद आदि कई नामों से सुशोभित है. यह राजनीतिक विचारधारा के रूप में विस्तार से खत्म हो चुकी है. भारत में भी देश के सुदूर कोनों में इसके कुछ अवशेष पाए जाते हैं. लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इस विचारधारा का आखरी टापू अभी भी अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है. देश में कोई भी विरोध यहीं से शुरू होता है. चंद मुट्ठीभर विधार्थी सड़कों पर बैनर, तख्तियां लेकर उतरते हैं. अगले दिन हैदराबाद विश्वविद्यालय तथा पश्चिम बंगाल में जादवपुर विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विरोध होता है. उसके बाद कांग्रेस पार्टी जाग जाती है तथा आगे की अराजकता की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लेती है.
कांग्रेस पार्टी की विदेश इकाई द्वारा विदेशों में भारतीय दूतावासों के सामने “नागरिकता संशोधन विधेयक” के विरोध के नाम पर प्रदर्शन करना तथा राहुल गांधी द्वारा देश में बलात्कार की बढ़ रही घटनाओं को “रेप इन इंडिया” की संज्ञा देना किसी गंभीर राजनीतिक दर्शन को इंगित नहीं करते. इससे विपक्ष, देश और अपनी पार्टी की ही छवि धूमिल कर रहा होता है.
विपक्ष द्वारा सरकार के हर फैसले या कार्य में षड्यंत्र की संभावना देखना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है. पुलवामा की घटना के बाद भारतीय सेनाओं द्वारा पाकिस्तान में “सर्जिकल-स्ट्राइक” पर सवाल खड़े करके पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली बन जाना समझदारी नहीं कही जा सकती. कई दलों ने तो दबी जुबान में पुलवामा में सुरक्षाबलों पर आतंकी हमले में सरकार के हाथ होने की शंका भी प्रकट कर दी थी. इससे ज्यादा शर्मनाक बात विपक्ष के लिए क्या हो सकती है.
जब भी कोई कानून संसद के दोनों सदनों में पास हो जाता है. तो उसे राज्यों में लागू करना राज्य सरकारों की संवैधानिक जिम्मेदारी होती है. लेकिन मात्र देश में भ्रम फैलाने के लिए राज्यों में गैर-भाजपा सरकारों द्वारा “नागरिकता संशोधन विधेयक” अपने संबंधित राज्य में लागू नहीं करने की घोषणा करना अनुशासनहीनता है. इससे पहले भी पश्चिम बंगाल सरकार तथा आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो “सीबीआई” को अपने राज्य में प्रवेश तथा जांच पर प्रतिबंध लगा देना अराजकता नहीं तो और क्या कहा जाएगा? बाद में यही दल “संविधान बचाओ रैली” करते नजर आएंगे. इससे इन दलों के दोहरे चरित्र ही सामने आते हैं तथा जनता इन दलों को गंभीरता से लेना छोड़ देती है.
लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति या दल को सत्ता की गद्दी पर बिठाने का कार्य देश की जनता करती हैं. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं तो उन्हें देश की जनता ने चुना है. अगले 5 सालों तक उन्हें कार्य करने दिया जाना चाहिए. अगर कोई मुद्दा आता है तो विपक्ष को विरोध करने का भी अधिकार है. लेकिन मात्र “विरोध के लिए विरोध” के नाम से अराजकता फैलाना सही परंपरा नहीं है.