कविता

क्या ”फैल” भी ”विद्वान” हो जाएगा?

डॉ. मधुसूदन

(१)

बचपन में सोचा,

हुन्नर चुनुं, कोई, आसान।

पैसा ही पैसा हो, शोहरत भी हो।

शहादत भी न करनी पडे।

चित्र-तारिकाएं, भी चाहती रहे ।

तो—-मुझे ”चित्रकार” पसंद आया,

—-

वह भी ”मॉडर्न” हो,

तो, एम. एफ़. एच. सेन को, आदर्श मान,

चित्र बनाया।

बडों को दिखाया।

देर तक देख, पूछा ; किसका चित्र है?

(लगा, सफल हो गया।)

—चार पैर ? पूंछ ?

बोले जानवर लगता है !

मैंने कहा ; हां ! घोडा है।

—-

-”यह तो, गधा दिखाई देता है।”

तो ! मैंने—चित्र के नीचे, -’घोडा’ लिख दिया।

गधे को, घोडा- कह, दिया,

सोचा, काम चल जाएगा,

(२)

वैसे, घोडे को गधा, और, गधे को घोडा,

कह देने से, घोडा गधा,

और गधा घोडा, न बन पाएगा।

पर आदमी ज़रूर उलझ जाएगा।’

आज कल यही तो होता है।

आदमी को उलझाया जाता है।

(३)

कर को ’कर’ कहा जाता है,

कि करोंसे काम ”करा” जाता है।

चरण को ”चरण” भी कहते हैं।

कि चरणोंसे ”विचरण” किया करते हैं।

वैसे ही भाई!

मन को भी ”मन” इसी लिए कहते हैं

कि मनसे ”मनन” किया जाता है।

श्रवणों से वचन ”श्रवण” होता हैं।

–अब-

तेरे, मनसे थोडा ”मनन” करने कहूं,

तो नाराज़ मत हो।

चुनाव में खडा हूं,- नहीं,– मत मांगू !

कहो!

कि घोडे को, ”गधा”,

और गधे को ”घोडा” कहने से,

गधे-घोडे का भेद क्या, मिट जाएगा ?

पास को फैल, और फैल को पास कहने से,

क्या ”फैल” भी ”विद्वान” हो जाएगा?

और ”पास” भी ”बुद्धु” कहलाएगा?

कुछ नहीं होगा !

खां-मो-खां आदमी उलझ जाएगा।

शब्द तो वेदों से निकल आए हैं।

अपना अर्थ ढोते चले आए हैं।

भेद गर मिटाना है, तो मनसे मिटा।

तो?

मनुज संस्कारित हो जाएगा।

सारा ”समाजवाद” ”साम्यवाद” अरे !

समस्त वाद और वेदांत समझ जाएगा।

और -विवाद ही मिट जाएगा।

(४)

भाषा बिगाड कर तो, — शब्द-संकर हो जाएगा।

भाषा को उलझाकर,–क्या काम सुलझ जाएगा?

आदमी को उलझाकर,—क्या क्रांति आ जाएगी?

तू भी उलझ जाएगा,

हम भी उलझ जाएंगे।

सदियों सदियों की तपस्या पूरखों की

खाक में मिल जाएगी।