कोराना की तीसरी लहर और हमारी समस्याएँ

कोरोना की तीसरी लहर शुरू हो चुकी है। इस लहर से कौन प्रभावित होगा और कौन प्रभावित नहीं होगा ? इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। कारण यह कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के द्वारा विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ जो बैठक की गई है और उसमें जिस तरह चिंता व्यक्त की गई है उससे साफ स्पष्ट है कि लोगों को कोरोनावायरस के साथ ही रहना है और अपना काम भी करना है। विभिन्न राज्यों के चिकित्सालय और उनकी चिकित्सा व्यवस्था अपने स्तर से अपना अपना काम करेगी। लेकिन समस्या यह है कि आज लोग इसके संक्रमण के प्रति चिंतित नहीं है और न आवश्यक सावधानियां बरतते हुए दिखलाई पड़ रहे हैं। बिहार राज्य के अलावा अन्य राज्यों में भी मास्क पहनने तथा अपेक्षित सामान्य दूरियां रखने संबंधी हिदायतें दी जा रही हैं और खासकर पटना में तो जो व्यक्ति बिना मास्क पहने हुए दिखता है उस पर ₹50 का फाइन भी निर्धारित कर दिया गया है। यह प्रसन्नता की बात है कि हमारी सरकारें इस दिशा में विशेष रुप से प्रयासरत हैं और यहां के लोगों को भी जागरूक कर रही हैं।

बिहार राज्य के अंतर्गत दसवीं और बारहवीं की बोर्ड की परीक्षा का कार्यक्रम निर्धारित कर दिया गया है और प्रायोगिक परीक्षाएं तो शुरू भी की जा चुकी हैं। लेकिन इस संदर्भ में यह भी विचार करना होगा कि यदि किशोर और युवा बच्चों का एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय अथवा एक महाविद्यालय से दूसरे महाविद्यालय प्रस्थान करना अनिवार्य होगा तो इससे हमारे बच्चे अवश्य प्रभावित होंगे क्योंकि पिछले साल की तुलना में रिकॉर्ड से अधिक संक्रमण फैलने की खबरें मिल रही हैं। यद्यपि आज विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में नियमित रूप से किशोर बच्चों युवाओं और छूटे हुए अन्य लोगों का टीकाकरण शुरू कर दिया गया है लेकिन अभी भी जागरूकता के अभाव में गांव और शहर दोनों ही जगहों पर टीका लेने में लोग तरह तरह के बहाने बना रहे हैं। क्या बहाना किया जाना उचित है ? के उत्तर में लोगों का कहना है कि व्हाट्सएप फेसबुक एवं अन्य संचार माध्यमों से यह खबरें भी फैल रही हैं कि जिन लोगों ने टीका लिया है संक्रमण इन्हीं लोगों के बीच अधिक फैल रहा है। कहना नहीं होगा कि अभी भी लोग जागरूकता के अभाव में बीमार पड़ रहे हैं तथा ऐसे ही लोग बिना मास्क लगाए सड़कों पर बेधड़क घूम रहे हैं। स्थानीय स्तर पर जो जनसेवक हैं अथवा जो जमीन से जुड़े हुए नेता गण हैं वे भी इस दिशा में घूम- घूम कर जागरूकता फैलाने की आवश्यकता नहीं महसूस कर रहे हैं।

सच तो यह है कि यह काम हमारे विद्यालयों का, कॉलेजों का, विभिन्न शिक्षण संस्थानों का, आंगनबाड़ी केंद्रों का और छोटे-छोटे लोकप्रिय बाजार में खुले माॅल और बैंकों का भी होना चाहिए कि वे आगे बढ़कर लोगों को मास्क पहनने के लिए, लगातार हाथ धोते रहने के लिए, सैनिटाइजर करने के लिए तथा टीका लगाने के लिए जागरूक करें।

यह कार्य एक ऐसी रणनीति के तहत किया जाना चाहिए कि लोग कोरोनावायरस से लड़ने के लिए एक स्वस्थ वातावरण तैयार कर सकें और लोगों के बीच यह स्वस्थ संवाद फैला सके कि हमें जागरूक रहकर न केवल खुद को बचाना है बल्कि अपने आसपास के परिवार ,समाज और पूरे देश को बचाना है। मुझे याद आता है कि अक्सर चुनाव आयोग घर घर जाकर पहचान पत्र बनाने के लिए लोगों को जागरूक करता है, विद्यालय के शिक्षकों को और आंगनबाड़ी की सेविकाओं को बीएलओ बनाकर इस कार्य के लिए प्रयुक्त करती है। ऐसे ही कार्य कोरोना से लड़ने के लिए भी जमीनी स्तर से शुरुआत करनी होगी। इसके लिए नियुक्त लोगों को घर घर जाकर दरवाजे पर दस्तक देनी होगी और लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि 100% टीकाकरण ही इसका स्थाई हल है और यदि इसमें हम लापरवाही करते हैं तो ना केवल हम खुद अपने लिए खतरा पैदा करते हैं बल्कि अपने आसपास पूरे समाज और देश के लिए भी एक विषम परिस्थिति पैदा कर रहे हैं। इसके लिए हर एक विद्यालय चाहे वह सरकारी हो अथवा निजी विद्यालय सब को आगे आना चाहिए और इस दिशा में सफलता के साथ घर- घर जाकर सरकार द्वारा बताए गए इस टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करना चाहिए।

हमारे चिकित्सालय एवं छोटे-छोटे ग्रामीण और शहरी चिकित्सा केंद्र जो हर एक मोहल्ले अथवा ब्लॉक स्तर पर खोले गए हैं वहां भी चिकित्सकों और नर्सों के सहयोग से इस कार्य को गति देने की जरूरत है। इस दिशा में लोगों को नियुक्त कर अधिक से अधिक टीकाकरण कराया जाना सरकार का लक्ष्य होना चाहिए क्योंकि केवल घोषणाओं से कुछ होने को नहीं है। प्रायः हमारे अखबार विभिन्न पार्टियों के द्वारा किए गए आरोप-प्रत्यारोपों की खबरों से भरे होते हैं। केवल एक दूसरे पर दोषारोपण करने से इस कार्य को गति नहीं दी जा सकती है।

हमारे बैंक और हमारी प्रतिष्ठित दुकानें इस दिशा में यदि प्रयास करें तो अवश्य लाभ हो सकता है। प्रायः हर एक बैंक इसके लिए आगे बढ़कर अपने- अपने ग्राहकों को जागरूक करें। अपने ग्राहकों को अधिक से अधिक किसी लाभकारी योजनाओं से जोड़ें और उन्हें यह विश्वास दिलाएँ कि कोरोनावायरस को हल्के में ना लें क्योंकि यह एक ऐसा वायरस है जो बहुत तेजी से फैलता है और आवश्यक परहेज नहीं करने से उनके इलाज में परेशानी आ सकती है।

विभिन्न बड़ी- बड़ी दुकानें आगे बढ़कर टीकाकरण को सुचारू रूप से लगाया जाना सुनिश्चित करें तथा ग्राहकों को प्रेरित करें कि यदि सही समय पर टीका करण हो जाता है तो चारों ओर इस बीमारी के संक्रमण को फैलने से रोका सकता है। इसके लिए चिकित्सा केंद्र और हमारे विद्यालय एकजुट होकर कार्य करें तो संभव है शत प्रतिशत टीकाकरण जो सरकार का लक्ष्य है वह शीघ्रता के साथ पूरा हो जाएगा।

इन दिनों विभिन्न धार्मिक स्थल मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे में प्रवेश से रोक लगा दी गई है। यह ठीक है लेकिन अभी भी बाजारों में लोगों की भीड़ देखी जा रही है और वे मान नहीं रहे हैं कि बाहर अधिक नहीं निकलना चाहिए और यदि निकलने की जरूरत है तो आवश्यक दूरी बनाकर तथा मास्क पहनकर ही निकला जाए। यदि मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल बंद कर दिए गए हैं तो वहां नियुक्त व्यक्ति भी लोगों को घूम घूम कर जागरूक कर सकते हैं और अधिक से अधिक टीकाकरण के लिए उन्हें तैयार कर सकते हैं। यह कार्य इसलिए भी आवश्यक है कि फरवरी तक इसके पीक पकड़ने की उम्मीद है। इसलिए हमें समय रहते ही चेत जाना होगा।

प्रायः या देखा जाता है कि जब बीमारी बढ़ जाती है और चिकित्सा व्यवस्था पूरी नहीं हो पाती तो लॉक डाउन लगाया जाता है। यद्यपि हमारी स्थानीय सरकारें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन एवं अन्य चिकित्सकीय उपकरण और दवाएं संग्रह कर ली हैं फिर भी हमें सावधान रहना होगा क्योंकि स्थिति कभी भी विस्फोटक हो सकती है।
हमारा देश गांव का देश है और अधिकांश लोग आजकल शहर छोड़कर गांव की ओर लौट चलें हैं क्योंकि अब शहरों में काम ठीक से मिल नहीं रहा है तथा शहरों में रहने और खाने की भी चिंता बनी हुई रहती है। पिछले दिनों यह समाचार प्राप्त हुआ कि मुंबई, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान तथा पंजाब से बिहार के विभिन्न गांव में लोग लौट रहे हैं। समय रहते उनका लौटना भले ही प्रसन्नता की बात है किंतु उन्हें यहां स्थायी काम नहीं मिलेगा और उनके समक्ष भूखमरी की स्थिति पैदा हो जाएगी। पिछले साल की घटना यह बताती है कि लोग जैसे तैसे अपने गांव लौटे थे और गांव में चोरी की घटनाएं बढ़ गई थी। सच्चाई यह है कि जब लोगों को कोई काम नहीं मिलता है तो उनके समक्ष विषम परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है और वे अनैतिक कामों में लग जाते हैं। पिछले वर्ष की घटना यह भी बताती है कि घरों में चोरी की घटनाएं घटना के साथ-साथ राहजनी की घटनाएं भी बढीं थी, सड़कों पर चलते हुए अनेक लोगों की मोटरसाइकिल तथा साधारण साइकिल छीनने की घटना देखने सुनने को मिली थी साथ ही साथ बैंक से पैसा निकालने के क्रम में छीन- झपट की घटनाएं भी बढ़ी थी। यह ऐसी स्थिति का द्योतक है जिससे साफ पता चलता है कि हमारे समाज में अभी भी बेरोजगारी किस कदर विद्यमान है और इससे निपटने के लिए हमारी सरकार को आगे आना चाहिए। गांव में लोगों के पास अपनी-अपनी अपेक्षित खेती नहीं है यदि खेती है भी तो बीज बोने और सिंचाई के प्रबंध करने के साधन नहीं है। खाद का प्रबंध करना भी उनके लिए असंभव हो जाता है। ऐसी स्थिति में पैदावार प्रभावित होती है और लोगों का मन खेती से हटने लगता है। हमारी सरकार जो भी खेती करने के लिए ऋण उपलब्ध कराते हैं वह भी इतने कम होते हैं कि उनसे उनकी खेती पूरी नहीं हो पाती है और उस पर अलग से कर्ज का बोझ भी लद जाता है। सरकार जो भी ऋण देती हैं उस पर इतनी सारी शर्तें लागू होती हैं कि किसानों को खेती करने से अधिक कर्ज अदा करने की चिंता ज्यादा हो जाती है उनका ध्यान खेती की ओर से विमुख होने लगता है और ऐसी स्थिति में पैदावार प्रभावित होती है। पैसे के अभाव में पति-पत्नी या पिता- पुत्र या भाई- भाई में लड़ाई -झगड़े की नौबत आ जाती है। ऐसी स्थिति में लोग एक दूसरे की हत्याएं तक कर डालते हैं अथवा आत्महत्या करने की भी घटनाएं देखने सुनने को मिल जाती हैं। हमारी सरकारों को इस दिशा में कुछ सोचना होगा कि जो भी नागरिक दूर शहरों से अपने घर की ओर लौटते हैं उनको विशेष सहायता राशि देकर उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत करने का प्रयास करें ताकि वे अपने परिवार के साथ-साथ खेती का काम भी निश्चिंत होकर कर सकें।

सरकार अभी तक गरीबों के लिए पांच तरह की सहायता की सुविधा दे रखी है। पहला, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना है जिसके तहत बीपीएल के अंतर्गत साठ वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को सहायता राशि दी जाती है। दूसरा, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना है जिसके तहत बीपीएल के अंतर्गत 40 से 79 वर्ष के आयु वर्ग को आर्थिक सहायता दी जाती है। तीसरा, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय नि:शक्तता पेंशन योजना है जिसके तहत बीपीएल के अंतर्गत आयु सीमा 18 वर्ष से 79 वर्ष के आयु वर्ग को सहायता राशि दी जाती है। चौथा , लक्ष्मी बाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना है जिसके तहत आवेदिका की आय अधिकतम 60000 वार्षिक तथा उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए। पांचवा, बिहार निःशक्तता पेंशन योजना जिसके तहत आय और आयु सीमा की छूट है। इन सारी योजनाओं में वही व्यक्ति शामिल हो सकता है जो अपने क्षेत्र का स्थाई निवासी होगा जिसके पास आवासीय प्रमाण पत्र ,जाति प्रमाण पत्र ,आय प्रमाण पत्र, निर्वाचक पहचान पत्र, आधार कार्ड ,पैन कार्ड, बैंक पासबुक, अपना मोबाइल नंबर, राशन कार्ड आदि उपलब्ध होगा। मजे की बात यह है कि ऐसे निर्धन और असहाय परिवार होते हैं जिनका आवासीय ,जाति और आय प्रमाण पत्र सही समय पर बना हुआ मिल नहीं पाता। फलतः इन योजनाओं से लाभान्वित नहीं हो पाते हैं। स्थानीय स्तर पर ऐसी कोशिश भी नहीं संभव हो पाती है कि इन अशिक्षित या लाचार लोगों का आवश्यक कागजात निर्धारित समय के भीतर बनाया जा सके और उसे आवश्यक कार्रवाई हेतु संबंधित कार्यालय में जमा कराया जा सके।

प्रायः यह भी देखने में आता है कि अनेक बार असमर्थ महिलाएं सहारे के अभाव में विभिन्न कार्यालय टूटते दौड़ते थक जाते हैं और उनकी मृत्यु तक हो जाती है किंतु इन योजनाओं की जटिलता ऐसी होती है कि जानकारी अथवा सहायता के अभाव में लाभ मिलना तो दूर , दौड़ते -दौड़ते बहुत- सारे पैसे खत्म हो जाते हैं और उन्हें निराशा हाथ लगती है। जब कि होना यह चाहिए कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु निर्धारित नियमों को लचीला बनाया जाए ताकि लोग सरकारी लाभ से लाभान्वित हो सकें। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि कोरोना महामारी के इस विषम समय में विभिन्न लाभकारी योजनाओं को सरल बनाया जाना चाहिए तथा दिया जाने वाला आर्थिक लाभ जल्द से जल्द उनके खाते में पहुंच सके।

आज जबकि कोरोना संक्रमण के इस विषम समय में पूरी दुनिया तबाह है और इसके निदान का कोई भी उपाय नहीं दिख रहा है ऐसे समय में अधिक से अधिक टीकाकरण कराया जाना चाहिए साथ ही समाज में जो वंचित वर्ग हैं उनके प्रति भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए तथा ऐसे नियम लागू होने चाहिए जिनसे गरीब और लाचार लाभान्वितों को जल्द से जल्द लाभ मिल सके और वे आराम और निश्चितता की जिंदगी जी सकें ।

–पंडित विनय कुमार

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