क्या पंद्रहवीं लोकसभा में कांग्रेसनीत गठबंधन यूपीए को अधिक सीटें मिलना, जनता का स्थाई सरकार के पक्ष में फैसला है? कहने को तो हमारे मीडिया गुरू और सरकार व प्रमुख विपक्षी दल के भौंपू ऐसा ही कह रहे हैं। लेकिन यह कहना इस आम चुनाव का सबसे बड़ा झूठ है। तमाशा यह है कि ऐसा फतवा वह मीडिया जारी कर रहा है, जो लोकतंत्र की मुख्य धुरी चुनाव को ‘द ग्रेट इंडियन वोट मेला’, ‘लोकतंत्र का उत्सव’, ‘लोकतंत्र का महाकुंभ’ आदि विशेषणों से नवाजकर लोकतंत्र की हत्या पर उतारू था। अब यही मीडिया गुरू कह रहे हैं कि देश की जनता अति महान है और वह क्षेत्रीय दलों की ब्लैकमेलिंग से तंग आ गई थी इसलिए उसने स्थाई सरकार के लिए जनादेश दिया।
इस सफेद झूठ पर दो ही सवाल काफी हैं। अगर स्थाई सरकार जनता की इच्छा थी तो यह इच्छा कांग्रेस के लिए ही क्यों थी? इस स्थाई सरकार के फंडे का लाभ भाजपा को क्यों नहीं मिला? जबकि चुनाव से पूर्व कांग्रेस के कई महत्वपूर्ण सहयोगी उसे छोड़ गए थे, जबकि भाजपा ने कई नए सहयोगियों का जुगाड़ कर लिया था? तो क्या स्थाई सरकार का ठेका कांग्रेस के ही पास है (नरसिंहाराव स्टाइल की स्थाई सरकार), अगर है तो कांग्रेस अकेले अपने दम पर 272 सीटें क्यों नहीं जुटा पाई? क्यों स्थाई सरकार देने वालों को द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस और राकांपा जैसे क्षेत्रीय दलों पर निर्भर होना पड़ रहा है?
चुनाव परिणाम पर मीडिया के अधिकांश लोगों की प्रतिक्रिया थी कि जनता ने ब्लैकमेलर्स को दूर रखने के लिए फैसला सुनाया है। समझ में नहीं आता कि अगर समाजवादी पार्टी परमाणु करार पर मनमोहन सरकार को बचाने बिनबुलाए आगे आए तो वह आज ब्लैकमेलर है। लालू प्रसाद यादव 2004 में यूपीए नाम का जमावड़ा बनवाने के लिए आगे आएं तो वे भी आज ब्लैकमेलर हैं। वामपंथी दल अगर भाजपा को सत्ताा में आने से रोकने के लिए बाहर से समर्थन दें तो वह भी आज ब्लैकमेलर हैं। लेकिन जिस नायाब विधि से नरसिंहाराव राव सरकार बचाई गई थी, उसी विधि से मनमोहन सरकार बचाई जाए तो वह राष्ट्रहित में स्थाई सरकार है। कमाल की बात यह है कि कांग्रेस देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए संयुक्त मोर्चा सरकार गिरा दे तो यह ब्लैकमेलिंग नहीं है? द्रमुक के मंत्रियों को सरकार से हटाने की मांग को लेकर कांग्रेस गुजराल सरकार गिरा दे ( भले ही बाद में द्रमुक से समझौता करके ही सरकार बनाए) तो यह ब्लैकमेलिंग नहीं है? लेकिन कांग्रेस का एक महासचिव खुल्लमखुल्ला मायावती को धमकाए कि हमारे पास सीबीआई है, तो वह ब्लैकमेलिंग नहीं है। चुनाव परिणाम आने से पहले गांधी कुमार, नीतीश कुमार की लल्लो चप्पो करें, कभी खुद को वामदलों का बंधुआ मजदूर मानने से इंकार करने वाला, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया आदमी वाम दलों की चिरौरी करे तो तो यह ब्लैकमेलिंग नहीं है। पैसे लेकर खबरों का भी स्पेस बेच देने वाले हमारे मीडिया गुरू भी धन्य हैं।
ज्बकि सत्यता यह है कि कांग्रेस का अब तक का इतिहास दगाबाजी और ब्लैकमेलिंग से भरा हुआ है। चाहे मोरारजी भाई की सरकार गिराने के लिए चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनवाने का और फिर उन्हें कुछ घंटों में ही गिराने का मसला रहा हो या चंद्रशेखर की सरकार को गिराने का, कांग्रेस हमेशा ब्लैकमेलिंग की ही राजनीति करती आई है। सबसे बड़ी ब्लैकमेलिंग तो 2004 में ही कांग्रेस ने की जब भाजपा को रोकने के नाम पर उसने क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। और तो और कांग्रेस ने उन लालू मुलायम के साथ भी दगा किया जो उसके बुरे वक्त के साथी थे। यह सबक करुणानिधि, पवार और ममता को याद रखना चाहिए। जो बर्ताव कांग्रेस लालू मुलायम के साथ कर रही है वैसा वह कल ममता, पवार या करुणानिधि के साथ नहीं करेगी, इसकी क्या गारंटी है? सोनिया जी आज करुणानिधि से मुस्कराकर मिल रही हैं लेकिन दस दिन पहले ही क्या सोनिया जी के दूत जयललिता के संपर्क में नहीं थे?
पंद्रहवीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव का जनादेश स्थाई सरकार और राष्ट्रीय दलों के पक्ष में नहीं है। कारण साफ है कि लालू, मुलायम, नायडू, बादल, पासवान, मायावती, बुध्ददेव और अच्युतानंदन के पिछड़ने के बावजूद जनता ने क्षेत्रीय दलों को बड़ी संख्या में चुनकर भेजा है और किसी एक राष्ट्रीय दल के पक्ष में फैसला नहीं सुनाया है। अगर कांग्रेस समर्थक और विरोधी दोनों क्षेत्रीय दलों की सीटें जोड़ी जाएं तो क्षेत्रीय दलों को 220 सीटें मिली हैं जो कांग्रेस की 205 सीटों से 15 ज्यादा और भाजपा की 116 सीटों से 104 ज्यादा हैं। क्या अभी भी जनता का संदेश ब्लैकमेलर्स के खिलाफ है? क्या अब मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर ममता, करूणानिधि और पवार रार नहीं मचाएंगे? क्या ममता अब वाममोर्चा सरकार को बर्खास्त करने के लिए दबाव नहीं बनाएंगी? फिर यह स्थाई सरकार कितने दिन चलेगी, समय तय करेगा मीडिया या कांग्रेस के भौंपू नहीं ।
अरे भाई साहब, जब मीडिया चर्च और कांग्रेस के हाथों बिका हुआ है तब आप इससे क्या उम्मीद करते हैं? ये ऐसे ही रहेंगे… पत्रकारिता अब सबसे गिरा हुआ “धंधा” बनता जा रहा है, जिसमें मीडीया समूहों के मालिक दल्ले की भूमिका निभा रहे हैं…