मै फिर भी कविता लिखती हूँ

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lekhakमै फिर भी कविता लिखती हूँ

मैने नहीं लिखे इश्क के अफ़साने,

मैने नहीं बुने प्यार के ताने-बाने,

मै फिर भी कविता लिखती हूँ।

मैने नहीं किया किसी का इंतज़ार,

मैन नहीं काटी कोई आँखों मे रात,

मै फिर भी कविता लिखती हूँ।

मेरे अतीत मे कुछ ऐसा है ही नहीं,

मुडकर जो देखूँ लिखूं बार बार,

मै फिर भी कविता लिखती हूँ।

मेरी सोच, तर्क, विवेक बुद्धि,

सबका है वैज्ञानिक आधार,

मै फिर भी कविता लिखती हूँ।

मेरी कविता मे प्रकृति है,

मेरी कविता मे संसकृति है,

मै वो ही लिखती पढ़ती हूँ।

मेरी कविता मे ईश्वर है,

मंदिर मे नहीं वह मन मे है ,

प्रभु दर्शन प्रकृति मे करती हूँ।

मै फिर भी कविता लिखती हूँ।

 

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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