फिर गरमायी दादरी की राजनीति

dadri-incidentमृत्युंजय दीक्षित
विगत वर्ष बहुचर्चित दादरी के बिसाहडा गांव में घटी घटना एक बार फिर नये सिरे से जीवित हो उठी है। ज्ञातव्य है कि विगत वर्ष इस गांव में गाय का मांस पकाने की अफवाह को लेकर इखलाक नामक एक मुस्लिम युवक की उन्मादी भीड़ ने पीट पीटकर निर्मम हत्याकर दी थी जिसके बाद पूरे देशभर में बवाल मच गया था। उस घटना के बाद देशभर के राजनेताओं का मुस्लिम तुष्टीकरण देखने लायक था। किसी भी दल का कोई भी नेता ऐसा नहीं बचा था जिसने बिसाहड़ा गांव का दौरा नहीं किया हो। मीडिया में भाजपा व संघविरोधी अभियान चलाया गया। भाजपा विरोधी दलों ने एक स्वर में भाजपा ही नहीं पीएम मोदी की नीतियों और रीतियो ंपर तीखे हमले बोलने प्रारम्भ कर दिये थे। सभी दल व नेता पीएम मोदी को मौन मोदी तक कहने लग गये थे। एक साजिश के तहत उक्त घटना का बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा विरोधी महागठबंधन ने बखूबी प्रचार किया जिसके कारण भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ गया था। लगभग 15 दिनों से भी अधिक समय तक यह महाअभियान चलता रहा था। मुस्लिम युवक की निर्मम हत्या पर नेताओं के आंसू रूक नहीं रहे थे। वहीं प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस घटना का अपना वोटबैंक मजबूत करने के लिए बखूबी इस्तेमाल किया। इखलाक के परिवार को पूरी सुरक्षा प्रदान करते हुए 45 लाख रूपये का मुआवजा व मकान सहित अन्य तमाम सुविधाएं देने का ऐलान तक कर डाला। दादरी कांड पर भाजपा व संघ का खूब अपमान किया गया। विदेशों तक में इस कांड की चर्चा हो गयी। संसद ठप कर दी गयी। यही वह प्रकरण था जिसके बाद देशभर में सहिष्णुता और असहिष्णुता का मुददा गर्मा गया । देशभर में नामचीन हस्तियों के बीच खूब गर्मागर्म बहसें हुयी । इन बहसों में देश सीधा दो हिस्से में विभाजित दिखाई दिया।
अब यही मुददा नये रूप में जीवित हो उठा है। जिसकी आशंका थी वह सच हो रहा है । उक्त घटना का जिस प्रकार से तुष्टीकरण के लिए राजनैतिक व प्रशासनिक दोहन किया गया अब उसका खुलासा हो रहा है। गाय के मांस को बकरी का मांस बताने वाले लोग अब बैकफुट पर आ रहे हैं। बिसाहड़ा कांड को लेकर तीन अक्टूबर 2015 तैयार की गयी मथुरा की फारेंसिक लैब की रिपोर्ट अब प्रकाश में आ गयी है। लैब से तैयार रिपोर्ट अदालत में जमाकर दी गयी है ओर बचाव पक्ष के वकीलों ने नियमानुसार जो रिपोर्ट प्राप्त की है उससे पता चल रहा है कि उसमें गाय के मांस की पुष्टि हो रही है। 29 सितंबर 2015 को उक्त लोमहर्षक दुखद घटना के बाद दादरी स्थित पशु चिकित्सालय के उप मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी की ओर से मथुरा की फोरेंसिक लैब में भेजा गया था । यह रिपोर्ट छह – आठ हफ्ते पहले मिल गयी थी जो अब अदालत में जमा हुई है। कहा जा रहा है कि पहले इस रिपोर्ट में मटन की जानकारी दी गयी थी लेकिन अब गाय के मांस की अंतिम पुष्टि हो गयी है। जाहिर है कि यह रिपोर्ट मीडिया में लीक होने के बाद सियासत का पारा गर्म होना लाजिमी था।
भारतीय जनता पार्टी व समस्त संगठनों ने एक स्वर में मांग की है कि गाय का मांस मिलने की पुष्टि होने के बाद अब इखलाक के परिवार को दी गई मुआवजा राशि वापस ली जाये व अन्य सुविधाएं भी वापस ली जाये। उधर बिसाहड़ा गांव के लोग अब आंदोलित हो रहे हैं तथा सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं और कह रहे हैं कि यदि इखलाक के परिवार के खिलाफ कार्यवाही नहीं की गयी तो इस क्षेत्र में एक बार फिर बड़ी महापंचायत और फिर आंदोलन होगा। हालांकि बिसाहड़ा व आसपास के गावों में अभी वातावरण में शांति दिखलायी पड़ रही है लेकिन फिर भी स्थानीय खुफिया एजेंसियों को सतर्क कर दिया गया है। राजनैतिक बयानबाजियां तो हो रही हैं लेकिन इस बार मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले लोग बैकफुट पर आ गये हैं। भाजपा संासद योगी आदित्यनाथ ने इस मामले को पूरे जोरशोर से उठाया है।
उधर यह भी खबरे आ रही हैं कि बिसाहड़ा गांव के लोगों ने इखलाख , दानिश ,जान मुहम्मद , सहित सात लोगों के खिलाफ तहरीर भी कर दी गयी है। जिसमें मांगकी जारही है कि इन लोगों के खिलाफ गौहत्या के अंतर्गत मामला चलाया जाये। गांव में मीडिया के प्रवेश पर पांबदी लगा दी गयी है। गांव के लोगों की गतिविधियों पर बारीक नजर रखी जा रही है। गांव के लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की जा रही है। यही कारण है कि दादरी के साठा चैरासी के गांव सपनावत में ग्रामीणों का सरकार के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा और सपा मुखिया मुलायम सिंह तथा मुख्यमंत्री अखिलेश के पुतले फंूके गये जिसके कारण वातावरण में तनाव आ गया था। वैसे अब प्रशासन की ओर से जिस प्रकार से मामले को डील किया जा रहा है उससे पता चल रहा है कि उस समय इस घटना को किस प्रकार से मोड़ दिया गया । यह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने का ही शौक था कि प्रदेश सरकार ने मामले की जांच सीबीआई से नहीं होने दी। इस घटना का भाजपा व संघ के खिलाफ अभियान चलाने के लिए तानाबाना बुना गया था। यह बात अलग है कि स्वतंत्र भारत में स्वतंत्र न्यायपलिका व संविधान है तथा कानून किसी को इस प्रकार से हथियार उठाने व अपना फैसला सुनाने की इजाजत नहीं देता लेकिन यह घटना अपने आप में एक नजीर बनती जा रही है। अब यह प्रकरण इस प्रकार से गर्म होगा कि आने वाले दिनों में तथा चुनावो में यह मामला समाजवादियों के लिए वाटरलू भी साबित हो सकता है।
इस नयी रिपोर्ट का प्रारम्भिक स्तर पर यह असर पड़ा है कि फिलहाल समाजवादी पार्टी व अजित सिंह की रालोद के बीच होने वाले गठबंधन पर फिलहाल रूक गया है क्योंकि इससे रालोद नेताओं की राय बन रही है कि अब इस समय सपा साथ जाने के कारण बिसाहड़ा कांड की रिपोर्ट का असर सपा के साथ उनके दल पर भी पड़ सकता है। समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल जारी है। चाहे वह साहित्य हो या फिर पर्यटन। विगत दिनों राजधानी लखनऊ में मुस्लिम वोटबंैक की चाहत में नवाबी दारके
शासकों का किसी न किसी रूप में गुणगान किया गया। पर्यटन विभाग की ओर से बेगम हजरत महल के जीवन पर आधारित एक फिल्म का प्रदर्शन किया गया वहीं दूसरी ओर बेगम हजरत महल के नाम पर उप्र में महिला विश्वविद्यालय खोलने का ऐलान किया गया। अभी प्रदेश में एक फिल्म को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है जिसकी मीडिया में भी खूब चर्चा हो रही है। जितेंद्र तवारी व पी. सिंह के निर्देशन में बनी फिल्म शोरगुल विवादों के घेरे में आ गयी है तथा दंगों पर आधारित यह फिल्म अब अदालत में है।
बताया जा रहा है कि इस फिल्म में कई्र ऐसे किरदार हैं जिनकी मुजफ्फरनगर के दंगों में भूमिका रही है। उक्त फिल्म में जिस मुख्यमंत्री को दिखाया जा रहा है उसका नाम मिथिलेश यादव रखा गया है जबकि गृहमंत्री का नाम आलम खान रखा गया है। इस फिल्म को लेकर विवाद होना ही था। इस फिल्म को लेकर जिन लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है उनका कहना है कि फिल्म के माध्यम से हिंदू संगठनों का अपमान किया जा रहा है। साथ ही साथ विधायक संगीत सोम के समर्थकों का मानना है कि फिल्म में संगीत सोम की छवि को बेहद गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। साथ ही यह फिल्म यदि प्रदर्शित की गयी तो उक्त क्षेत्र ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश का वातावरण एक बार फिर बिगड़ सकता है।
अब चूकिं प्रदेश में चुनावों को लेकर अधिक समय नहीं रह गया है और सभी दलों ने अपनी चुनावी तैयारियों को अंतिम रूप देना प्रारंम्भ कर दिया है उस समय प्रदेश सरकार व प्रशासन को बहुत सावधानी बरतनी होगी विशेषकर सत्तारूढ़ दल को । अगर समाजवादी इसी प्रकार से एकतरफा तुष्टीकरण का दौर चलता रहा तो उसका बना बनाया खेल बिगड़ सकता है।

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