मृत्युंजय दीक्षित
जब पूरा देश कार्तिक पूर्णिमा का पर्व मना रहा था उस समय नई दिल्ली में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के घर में पुराने समाजवादी नेताओं का कुनबा प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा के खिलाफ एक नया महामोर्चा बनाने की तैयारी में जुटा था। विगत लोकसभा चुनावों में यह सभी दल मोदी की सुनामी की भेंट चढ़ चुके हैं। इन सभी दलों ने लोकसभा चुनावों के पहले भी ऐसी ही कसरत की थी तथा कम से कम ऐसा प्रयास अवश्य किया था कि हमारी लोकसभा चुनावों के बाद इतनी संख्या आ जाये कि देश की जनता को गुमराह किया जा सके व केंद्र में बनने वाली सरकार से दबाव की राजनीति करके अपने स्वार्थां को परवान चढ़ाया जा सके। लेकिन देश की जनता अब गठबंधन की राजनीति से ऊब चुकी थी कि तथा वह विकास चाहती है इसलिए उसने साहस वच बुद्धिमानी का परिचय देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को इतनी सीटें दे डाली हैं कि उस से अब देशमें एक बार फिर परिवर्तन की बयार है तथा देश की जनता में भी उत्साह का वातावरण पैदा हो गया है।
लेकिन देश की राजनीति को अपनी बपौती मानने वाले इन तथाकथित वंशवाद व मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करनी वाली पार्टियां व नेता एक बार फिर देश को गुमराह करने के लिए एकजुट हो रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के घर पर जितने भी नेता बैठक में शामिल हुए वे सभी के सभी अपने- अपने क्षेत्रों में नकारे जा चुकें हैं। सपा मुखिया के घर पर जिन नेताओं का जमावड़ा हुआ उनमें जद(यू) नेता नितीश कुमार, शरद यादव, राजद सुप्रीमो लालू यादव, आईएनएलडी ,जनता दल सेक्युलर के नेता व पूर्व प्रधाानमंत्री एच डी देवेगौड़ा आदि प्रमुख थे। इन दलों के नेताओं का विश्वास था कि यदि हम सभी एकजुट हो जायें या फिर एक दल बनाकर मोदी के खिलाफ मोर्चा ले तो उन्हें बिहार के उपचुनावों की तर्ज पर रोका जा सकता है।
बिहार में लालू यादव शरद यादव ने पहल करके भाजपा विरोधी महागठबंधन बनाया और उसमें आंशिक सफलता भी प्राप्त की जबकि सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने भाजपा कार्यकर्ताओं की सुस्ती व चुनावी भ्रष्टाचार के चलते जीत हासिल करने में सफलता प्राप्त की है। जिसके कारण इन दलों को कुछ आॅक्सीजन मिल गयी है तथा उछलकूद मचाने में लग गये हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा जिस प्रकार से मोदी लहर में एक बार फिर कामयाब हुई है तथा राजनैतिक विश्लेषकों का मत है कि आगामी झारखण्ड व जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों में भाजपा को मोदी लहर का लाभ मिल सकता है । उससे कारण यह सभी दल पूरी तरह से घबरा गये हैं। इन दलों को लगने लगा हैं कि कहीं अब मोदी की बयार के चलते उप्र और बिहार भी उसकी चपेट में न आ जायें। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने उप्र और बिहार को लेकर अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है तथा उस पर काम भी शुरू कर दिया है।सपा मुखिया मुलायम सिंह की योजना वामपंथियों तथा बंगाल की दीदी ममता बनर्जी व ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को भी अपने समूह में शामिल करने की योजना है।
इस महामोर्चा के सामने एकीकरण की दिशा में काफी दिक्कते हैं। वामपंथी अब केवल और केवल त्रिपुरा और केरल में ही सिमटकर रह गये हैं। बंगाल में भाजपा का जनाधार व लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ रही है। वामपंथी नेताओं में ही आपस में मतभेद उजागर होने लग गये हैं। वैसे भी जहां वामपंथी रहेंगे वहां पर ममता बनर्जी का रहना काफी टेढ़ी खीर है। वैसे भी बंगाल में अब ममता बनर्जी के लिए राह बहुत असाना नहीं रह गयी है।शारदा चिटफंड घोटाला और वर्धमान विस्फोट के बाद वहां पर जिस प्रकार से आतंकी गतिविधियों का खुलासा हो रहा है उससे उनको भविष्य में परेशानी होने वाली है। विकास कार्यों के चलते ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का भी इस मोर्चे में शामिल होना असम्भव है। पटनायक का झुकाव कुछ सीमा तक राजग की ओर देखा जा रहा है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने उप्र में बसपानेत्री मायावती को भी सपा के साथ गठबंधन करने का अहम सुझाव दिया था लेकिन वह पहले ही भंग हो चुका है लेकिन लालू यादव को अभी भी भरोसाहै। फिलहाल मायावती बहुत दबाव में हैं। उनके सामने अपनी पार्टी को फिर से खड़ा करने का काम है। अब उनकी शक्ति राज्यसभा में भी कम होने जा रही है। इस राजनीति के दौर में सर्वाधिक दिलचस्प पहलू यह है कि हरियाणा में भाजपा का पूर्ण बहुमत होने के बावजूद वहां पर बसपा का एक विधायक भाजपा का समर्थन कर रहा है।
जब इन सभी दलों के नेताओं की बैठक समाप्त हो गयी तो कांग्रेस की ओर से एक बहुत ही महत्वपूर्ण व मजेदार बात कही गयी। कांग्रेसी नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने खुला आरोप लगाया कि यह सभी नेता सीबीआई जांच क घेरे में हैं । बात सही भी है क्योंकि अब चारा घोटाले में दोषी लालू यादव अपनी संसद सदस्यता भी गंवा चुके हैं तथा अभी मामला हाईकोर्ट में लम्बित है उनकी जमानत कभी खारिज हो सकती है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव उनके कुनबे पर भी आय से अधिक संपत्ति का केस लम्बित चल रहा है जोकि आगे चलकर कभी खुल सकता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इन सभी दलों के लगभग सभी बड़े नेताओं ने दिल्ली में सरकारी बंगलों पर कब्जा कर रखा है जो अब उनके हाथ से जा रहे हैं। इन दलों को अपनी पराजय स्वीकार नहीं हैं। सभी दल क्षेत्रवाद, वंशवाद व पुरानी परम्पराओं की राजनीति करते हैं। जातिवाद तो इनकी रग- रग में बसा है। इन नेताओं के पास देश के विकास के लिए नया पैमाना नहीं है। इनका जो भी विकास होता है वह मुस्लिम वोटबैंक और जातिगत वोटबैंक के आधार पर होता है। उप्र में समाजवादी पार्टी की सरकार जिस प्रकार से चल रही है वह सब कोई जानता है। बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हरकतों से पूरा बिहार शर्मसार हो रहा है। अभी वहां भी एक दामाद प्रकरण हो चुका है। बिहार की जनता भी एक बड़ा अवसर खोज रही है कि कब उसे लालू- नितीश के गठजोड़ से मुक्ति मिले।
इन सभी दलों ने तय किया है कि वह आगामी संसद सत्र में सरकार के विरूद्ध दबाव बनायेंगें विशेषकर कालेधन को लेकर। देश की जनता अब यह अच्छी तरह से जानती है कि देश की जनता की जो कमाई देश से बाहर गयी है वह इन सभी दलों के कारण ही गयी है। यही दल केंद्र व राज्यों में भाजपा रोको के नाम पर बार- बार कांग्रेस को मौका दे रहे थे। दोहरी राजनीति करके देश की जनता को गुमराह कर रहे थे। इन दलों के पास युवाओं के लिए कोई नया विचार नहीं हैं अब समाजवाद और मंडल की राजनीति से देश की जनता ऊब चुकी है। अगले पांच वर्षों में यह सभी नेता और बुजुर्ग हो जायेंगे तथा कुछ बीमार हो जायेंगे। अतः देश की समझदार जनता को ऐसे नेताओं की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखनी चाहिये तथा मौका मिलते ही ऐसे सभी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों का सूपड़ा साफ कर देना चाहिये। यह सभी दल विकास विरोधी है। वंशवाद की आड़ में देश को लूटने का प्रयास करते हैं