खत्म हुई मुश्किल

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ae-dil-hai-mushkilसंदर्भः ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ के प्रसारण का रास्ता हुआ साफ

प्रमोद भार्गव

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णीस के हस्क्षेप के बाद फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ के प्रसारण का रास्ता खुल गया है। यह स्थिति तब बनी है जब फिल्म के निर्माता करण जौहर ने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे को आष्वस्त किया है कि आगे से पाकिस्तानी कलाकारों को हिंदी फिल्मों में स्थान नहीं दिया जाएगा। हालांकि कानून और अदालत की भूमिका को नजर रखते हुए, यह जो फैसला लिया गया है, वह पूरी तरह अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक है। लेकिन राज ठाकरे और उनकी मनसे जिस तरह की तोड़फोड़ व मारपीट की राजनीति अपनाती है, उसमें यही तरीका बेहतर है। पाकिस्तानी कलाकारों के हिंदी फिल्मों में काम करने के संदर्भ में इस तरीके को इस लिहाज से उचित ठहराया जा सकता है, कि पाक भारत के खिलाफ पिछले ढाई दशक से छद्म युद्ध छिड़े हुए है। बावजूद पाक कलाकार और क्रिकेट खिलाड़ियों ने इन आतंकियों की गतिविधियों के विरुद्ध कभी अवाज उठाई हो ऐसा देखने में नहीं आया है। जबकि भारतीय बुद्धिजीवि कला और खेल को पाक की षड्यंत्रकारी हरकतों से परे मानते हुए इन्हें सरंक्षण देने की पैरवी करते रहे हैं।

उरी हमले के बाद पाकिस्तानी कलाकारों को अब आगे से फिल्मी दुनिया में काम करना मुश्किल होगा। क्योंकि पाकिस्तानी कलाकारों वाली फिल्मों का चार राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और गोवा में प्रदर्शन होने पर जनविद्रोह के चलते जो रोक लगा दी गई थी, उसे इस शर्त पर हटाया गया है कि आगे से फिल्मी दुनिया में पाक कलाकारों को काम नहीं दिया जाएगा। पाक कलाकारों वाली फिल्मों के प्रदर्शन पर सिनेमाघर मलिकों के संगठन आॅनर्स एंड एग्जिबिटर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया ने भी रोक लगाने की घोषणा की थी। दूसरी तरफ तेलंगाना में भी विरोध प्रदर्शन की शुरूआत हो गई थी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी फिल्म निर्माता करण जौहर की उस अपील को ठुकरा दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि आगे से वे अपनी फिल्मों में पाक कलाकारों को काम नहीं देंगे। मनसे ने मुंबई में करण जौहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ के खिलाफ सिनेमाघरों के सामने प्रदर्शन भी किया था। मनसे ने कहा है कि वह पाक कलाकारों वाली फिल्मों का सिनेमाघरों में प्रदर्शन नहीं होने देगी। दूसरी तरफ इतने विरोध और राष्ट्रवाद की प्रबल पैरवी करने के बावजूद केंद्र सरकार के विदेश विभाग ने निश्चय किया है कि वह पाक कलाकारों के वीजा खारिज नहीं करेगी। इसी बयान का सम्मान रखने के लिए देवेंद्र फड़णीस को राज ठाकरे से बात करके फिल्म प्रसारण के बाबत समझौता करना पड़ा।

सीओईएआई मुख्य रूप से एक पर्दे वाले सिनेमाघरों व सिनेप्लेक्स के मालिक सदस्य हैं। इस संगठन ने देशभक्ति की भावना और देशहित में ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ फिल्म का प्रदर्शन नहीं करने का फैसला लिया था। इस फिल्म के अलावा शाहरूख खान की फिल्म ‘रईस‘ और गौरी शिंदे की ‘डियर जिंदगी‘ फिल्मों का भी प्रदर्शन नहीं करने का निर्णय लिया था। इस विरोध के चलते गौरी शिंदे ने पाक कलाकार अली जफर को हटाने का निर्णय ले लिया है। पाक कलाकारों को हिंदी फिल्मों में काम देना देशभक्ति और देशहित से जुड़ा अहम् मुद्दा तो है ही, साथ ही ये पाक कलाकार स्थानीय लोगों का रोजगार भी छीन रहे हैं। दूसरे इनके भारतीय फिल्मों में काम करने से भारत व पाक के बीच कोई सद्भाव पिछले 25 साल के भीतर बना हो, ऐसा भी देखने में नहीं आया। बस इतना जरूर है कि ये फिल्में इन कलाकारों की वजह से पाकिस्तान में आसानी से प्रसारित हो जाती है। लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि इसी वजह से भारतीय फिल्म उद्योग जीवित है ?

हालांकि किसी फिल्म पर रोक लगाने का अधिकार या तो भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड को है या फिर न्यायालय को है। इसके इतर कोई फिल्म, राजनीति या समाज से जुड़ा संगठन फिल्म पर रोक नहीं लगा सकता है। बावजूद सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स के मालिक किसी फिल्म को लेकर जब विवाद उत्पन्न होता है, तो वे इसलिए अपने सिनेमाघरों में प्रदर्शन नहीं करते, क्योंकि आंदोलनकारी सिनेमाघरों में तोड़फोड़ करते हैं और सिनेमा मालिकों व कर्मचारियों के साथ भी मारपीट पर उतर आते हैं। राज ठाकरे की पार्टी मनसे अकसर भारतीय सनातन संस्कृति पर चोट करने वाली फिल्मों और पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में साझा संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों का विरोध करती रहती है।

हालांकि यह कहना गलत है कि जो निर्माता पाक कलाकारों को लेकर फिल्में बना रहे हैं, उनकी राष्ट्रभक्ति संदिग्ध है। राज कपूर जैसे बड़े कलाकार भी पाक कलाकारों को लेकर फिल्में बनाते रहे हैं, लेकिन उनकी देशभक्ति पर कभी संदेह नहीं किया गया। इस लिहाज से करण जौहर ने अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल‘ में पाक कलाकार फवाद खान को काम देकर कोई अपराध नहीं किया है। यह स्थिति अन्य उन फिल्म निर्माताओं के साथ है, जिन्होंने अपनी फिल्मों में पाक कलाकारों को काम दिया है, लेकिन पाक द्वारा भारत के खिलाफ लगातार आतंकी गतिविधियों को सुनियोजित ढंग से अंजाम देने के परिणाम के चलते देश की अवाम चाहती है कि पाक से सभी तरह के रिश्ते खत्म किए जाएं ? जनमानस की इस मानसिकता को फिल्म निर्माताओं को भी समझने की जरूरत है। दरअसल सेना के ठिकानों पर जिस तरह से पाक से निर्यात किए गए आतंकियों ने हमले किए हैं, वे आम भारतीयों को झकझोरने वाले हैं।

हालांकि पाक या किसी भी देश के संस्कृतिकर्मियों की आतंकवादियों से न तो तुलना की जा सकती है और न ही उन्हें उस दृष्टि से देखा जा सकता है। वैसे भी भारत ने हमेशा पाक कलाकारों का मान रखा है। पाक गायक कलाकार अदनान सामी को तो भारतीय नागरिकता तक दी है। इसी तरह बांग्लादेश मूल की लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारतीय मुस्लिमों के विरोध के बावजूद भारत शरण व संरक्षण दिए हुए हैं। भारत ने कभी हिटलर के रक्तवादी सिद्धांत ‘खून की शुद्धता‘ को महत्व नहीं दिया। इसीलिए देश की आजादी के बाद से ही हिंदी फिल्मों में पाक कलाकारों को जगह मिलती रही है। हिंदी फिल्मों में काम करते हुए उन्होंने खूब भारत व पाक में षौहरत पाई और दौलत भी कमाई। भारत की इस उदारता का परिचय पाक के सियासतदारों और सेना ने तो दिया ही नहीं, वहां के फिल्म निर्माताओं एवं क्रिकेट खिलाड़ियों ने भी नहीं दिया। इसीलिए पाक फिल्मों में भारतीय कलाकारों को उतनी जगह नहीं मिली, जितनी भारत में मिलती रही है। बावजूद पाक कलाकारों ने भारतीय फिल्म कलाकारों को पाक फिल्मों में काम देने की मांग उठाई हो, ऐसा देखने में नहीं आया। आश्चर्य इस बात पर भी है कि पाक से जो आतंकवाद भारत में फैलाया जा रहा है, उसकी कभी पाक कलाकारों ने न तो निंदा कि और न ही पाक दूतावास के सामने आतंकवाद के खिलाफ प्रदर्शन किया। जबकि उन्हें एक कलाकार होने के नाते आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत थी।

चूंकि जिन फिल्मों के प्रदर्शन को लेकर विवाद चल रहा है, उन फिल्मों में काम करने वाले कलाकार वैध तरीके से वीजा लेकर काम कर रहे हैं। इसलिए फिल्मों में न तो उन्हें काम देना गलत है और न ही उनका काम करना गलत है। इसलिए इन कलाकारों की फिल्मों पर रोक वैधानिक नहीं कहीं जा सकती थी ? वैसे हमारे यहां अभिव्यक्ति की आजादी को संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त है। इस लिहाज से फिल्म निर्माताओं ने देश या राजद्रोह का काम नहीं किया है। उरी के सैनिक ठिकाने पर हमले के बाद ऐसा माहौल जरूर बन गया है कि पाकिस्तान की पैरवी करने वाले हर शख्स को राष्ट्रभक्ति के परिप्रेक्ष्य में संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है। संयोग से पाक कलाकारों को काम देने वाली फिल्में इसी दौर में आई हैं। बावजूद व्यापक जनभावना को नजरअंदाज करते हुए हमारे कई राजनैतिक दल और बुद्धिजीवी सामने आकर यह कहने की हिमाकत कर रहे है कि कला और आतंकवाद में फर्क होता है इस नाते इन फिल्मों का विरोध नहीं होना चाहिए। क्योंकि ऐसे उपायों से अंततः नफरत की बुनियाद और गहरी ही होती है।

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