—–विनय कुमार विनायक
कभी किसी ने सच कहा होगा
जन-जन,कण-कण में
परम पिता परमेश्वर बसते हैं!
पर आज कहना बेकार है
आज तो आतंकवाद का
परमेश्वर ही पहला शिकार है!
अपने ही पर्यायों से परास्त
न जाने कैसे होते गए ईश्वर
कि परमेश्वर का जीना दुश्वार है!
मंदिर में श्रीराम का शर
भगवान शंकर का त्रिशूल
श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र
माता दुर्गा का हिंसक शेर
बजरंगबली की गदा देखकर
न जाने क्यों खुदा लाचार हैं!
मस्जिद में श्रीराम का
गिरजाघर में घनश्याम का
अस्तित्व क्षार-क्षार है!
मंदिर मस्जिद और चर्च में
एक दूसरे की चर्चा करना तो
फिलहाल कोई नहीं तैयार है!
अपने-अपने हिस्से में बंटे हुए
हिस्सेदारों जैसी जिनकी स्थिति
वे दूसरे दर में निरीह बेघरबार हैं!
मंदिर में रुप दिखाकर
मस्जिद में मुंह छुपाकर
चर्च में कील ठुकाकर
कैसे रहते होंगे परमेश्वर?
ये तो परमेश्वर ही जाने
ये परमेश्वर के पर्याय की
आपसी रजामंदी से तकरार है!
—विनय कुमार विनायक