जिसकी भी ग़ैरत बाकी है

2
287

जिसकी भी ग़ैरत बाकी है, जिसके भी सीने में दिल है

सब उठो, चलो, आगे आओ, अब देर हुई तो मुश्क़िल है!

 

जिसने राह दिखाई, उस पर आँच नहीं अब आने दो

जो तुम पर मरता है, यारों,उसको मत मर जाने दो…

 

ख़ुद से, मुल्क से, अन्ना से, गर करते होगे प्यार कहीं

तो याद रखो, इस बार नहीं, तो फिर कोई आसार नहीं….!

 

तोड़ दो इन जंज़ीरों को, घबराओ मत दीवारों से

इतिहास क़लम से नहीं, उसे तो लिखते हैं अंगारों से!

 

चोरों से क्या ख़तरा, ख़तरा तो है पहरेदारों से

दुश्मन क्या कर लेगा, असली ख़तरा है गद्दारों से!

 

नीचे खींच उन्हें लाओ, जो बैठे चाँद सितारों पर

आँधी बन कर उड़ो, गिरो बिजली बन कर गद्दारों पर!

 

ये वक़्त अगर चूके तो फिर, इस वक़्त अगर जन हारेगा …

सौ साल गुलामी होगी फिर, इतिहास हमें धिक्कारेगा!

-हिमांशु सिंह

2 COMMENTS

  1. हमारे मित्र संजय विपुल ने हिमांशु जी की रचना हमें ‘प्रवक्‍ता’ पर प्रका‍शन के लिए भेजी थी। हमने इसे प्रकाशित कर दिया। फिर उन्‍होंने उनकी दूसरी रचना हमें भेजी। हमारे सहयोगी से गलती हुई और उसने प्रवक्‍ता के एक सम्‍मानित लेखक संजय कुमार के नाम से इसे प्रकाशित कर दिया।
    हमें इसके लिए खेद है।
    लेकिन अब इसे दुरुस्‍त कर दिया गया है।

Leave a Reply to संजीव कुमार सिन्‍हा, संपादक, प्रवक्‍ता डॉट कॉम Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here