डरने की जरूरत नहीं कोविड की तरह सावधानी ही है मंकी पाक्स का बचाव

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लिमटी खरे

पर्यावरण के साथ खिलवाड़, नए नए शोध रूपी प्रयोग आदि के चलते मनुष्य अपने जीवन से ही खेलता नजर आ रहा है। कोरोना कोविड 19 नामक गंभीर बीमारी ने 2020 के आरंभ से पूरा 2020 उसके बाद 2021 और आधा 2022 अर्थात ढाई सालों तक लोगों को हलाकान कर रखा था। इसी बीच रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने लोगों की सांसें थामी रखीं थीं, और अब मंकी मंकी पाक्स की आहट सुनी जा रही है।

अनेक देशों में एक सैकड़ा से ज्यादा मामलों की पुष्टि होने के बाद अब इसे गंभीरता के साथ लिया जाने लगा है। कुछ दिन पहले तक इसके मामले काफी कम होने पर इसे बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था। अब जबकि अमेरिका, इग्लैण्ड, आस्ट्रेलिया, जर्मनी सहित लगभग एक दर्जन देशों में मंकी पास्क के मरीज मिलने की पुष्टि हुई है तब इसे गंभीरता से लिया जाने लगा है।

उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन का अंदेशा है कि आने वाले दिनों में इसके ज्यादा मामले भी सामने आ सकते हैं। देखा जाए तो यह नई बीमारी नहीं है। अक्रीका के देशों में यह बीमारी बहुत सामान्य है पर यह पहला मौका है जब इस बीमारी के मरीज आफ्रीका के बाहर भी मिलना आरंभ हुए हैं। वैज्ञानिक अभी भी इस बात पर हैरान हैं कि यह बीमारी अन्य देशों का रूख कैसे कर गई! अभी राहत की बात यही मानी जा सकती है कि इस बीमारी से किसी की मौत की खबर नहीं आई है।

जानकारों का कहना है कि मंकी पाक्स के लक्षण पांचवे दिन से 21वें दिन के बीच कभी भी आ सकते हैं। इसके शुरूआती लक्षणों सामान्य फ्लू जैसे माने जा सकते हैं। इसमें बुखार, मांसपेशियों में दर्द, सिर में दर्द, कमर में दर्द, कंपकपाहट, सूजी हुई लिम्फ नोट्स, थकान आदि शामिल हैं। इसके बाद चेहरे पर दाने उभरने लगते हैं और धीरे धीरे ये शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगते हैं। कुछ दिनों तक ये दाने अलग अलग तरह के बदलाव वाले दौर से गुजरते हैं फिर चेचक के दानों की ही तरह पपड़ी बनकर गिर जाते हैं।

इंटरनेट पर अगर इसकी जानकारी आप खंगालेंगे तो पाएंगे कि इस वायरस का फैलाव इससे संक्रमित मरीज के घाव से यह वायरस नेत्र, नाक या मुंह के जरिए ही दूसरे के शरीर में प्रवेश करता है। इसके अतिरिक्त यह बंदर, गिलहरी, चूहे जैसे जानवरों को काटने, उनके खून, उनके शरीर के तरल पदार्थों अर्थात बाडी फ्लूड्स को छूने से फैल सकती है। पूरी तरह ठीक से पका मांस या संक्रमित जानवर के मांस के खाने से भी यह बीमारी फैल सकती है, पर भारत में इसकी संभावनाएं नगण्य ही मानी जा सकती है।

इंग्लैण्ड का स्वास्थ्य विभाग इस तरह की संभावनाओं पर भी विचार कर रहा है कि यह बीमारी कहीं यौन संपर्कों के कारण तो नहीं फैल रही है! लगभग एक दर्जन देशों में इस बीमारी के फैलने के बाद सरकार के द्वारा विदेश से आने वाले यात्रियों की निगरानी में तेजी लाई गई है। देश भर में एयरपोर्टस की मानिटरिंग भी आरंभ हो गई है।

लंदन स्कूल ऑफ हाईजीन एण्ड ट्रापिकल मेडिसिन विभाग के अनुसार कोविड के दौरान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आवागमन बंद था, और अब एकाएक आरंभ होने के बाद इस बीमारी के मामले सामने आते दिख रहे हैं। यह बीमारी चेचक से मिलती जुलती भी बताई जा रही है। इस बीमारी के फैलने की एक संभावना यह भी बताई जा रही है कि छोटी माता अर्थात स्मॉल मंकी पाक्स का पूरी तरह उन्नमूलन होने के बाद इसके टीके लगना बंद हो चुके हैं।

अनेक तरह के शंकाओं कुशंकाओं के बीच जो स्थिति बन रही है उसमें अफरातफरी न मच जाए इसलिए जो जानकारी समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को स्त्रोतों के जरिए मिली है उसके अनुसार इस बीमारी के आम लोगों के बीच फैलने की संभावनाएं कम ही है और इसके मामले अभी कम हैं। इस सबके बाद भी सावधानियां बरतना बहुत जरूरी ही माना जा सकता है।

इस बीमारी के इतिहास को अगर आप खंगालते हैं तो आप पाएंगे कि पहली बार 1958 में यह बीमारी वायरल इंफेक्शन के रूप में बंदर में पाई गई थी। मनुष्यों की अगर बात की जाए तो यह बीमारी मनुष्यों मे सबसे पहले 1970 में पाई गई थी। नाईजीरिया में 2017 में मंकी मंकी पाक्स तेजी से फैला था और उस दौरान इसके संक्रमण की जद में 75 फीसदी पुरूष ही आए थे।

इसलिए सावधानी में ही सुरक्षा है के मूल मंत्र को आधार मानकर चलने की जरूरत है। आप अगर जंगल के आसपास से गुजर रहे हों तो जंगली जानवरों को स्पर्श करने से बचें, गिलहरी और बंदरों से दूरी बनाकर रखें। आप स्वास्थ्य हैं तो उससे बड़ा धन और कुछ नहीं है। इसलिए सरकार के द्वारा जारी गाईड लाईन को पढ़कर, सुनकर उस पर अमल करने का प्रयास अवश्य करें।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

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