इस्लाम का चिंतन

– हृदयनारायण दीक्षित

भारत प्राचीन राष्ट्र है। सभी राष्ट्र उसके निवासियों के सह अस्तित्व से ही शक्‍ति पाते हैं। राष्ट्र से भिन्‍न सारी अस्मिताएं राष्ट्र को कमजोर करती है। भारत में जाति अलग अस्मिता है। मजहबी अस्मिता की समस्या से ही भारत का विभाजन हुआ था। गांधीजी हिन्‍दू-मुस्लिम की साझा आस्था बना रहे थे। आस्थाएं तर्कशील और वैज्ञानिक नहीं होतीं। यों हिन्‍दू समाज की आस्थाएं विभाजित हैं। यहां जातियां हैं, आस्तिक हैं, दार्शनिक हैं, ढेर सारी आस्थाएं हैं। प्रत्येक हिन्‍दू ने अपना निज धर्म बनाया है, अपनी अलग आस्थाएं भी गढ़ी हैं लेकिन इस्लाम की आस्था संगठित है। सभ्य समाज में प्रत्येक व्‍यक्‍ति को अपनी आस्था और विवेक के अनुसार जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए। विज्ञान और दर्शन आस्थाएं ढहाते हैं लेकिन दुनिया के अनेक दार्शनिक और वैज्ञानिक भी आस्थावादी है। आस्थावादी अपनी मान्‍यताओं को ठीक और दूसरे की मा?यता को गलत बताते हैं। आस्था के टकराव राष्ट्र की शक्‍ति घटाते हैं। गांधीजी ने इसीलिए हिन्‍दू मुस्लिम एकता के लिए आजीवन काम किया। वे चाहते थे कि सब अपनी आस्था के अनुसार जीयें, देश को सर्वोपरि मानें। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उन्‍होंने अंततः हार मानी और समस्या जस की तस है। लेकिन इस लक्ष्य को असंभव मानकर खारिज नहीं किया जा सकता।

‘दि एम्बीशन’ (महात्वाकांक्षा) भारतीय प्रशासनिक सेवा, प्रांतीय सिविल सेवा के परीक्षार्थियों के लिए उ0प्र0 की राजधानी से प्रकाशित अनूठी मासिक पत्रिका है। पत्रिका सामयिक घटनाओं को जस का तस प्रस्तुत करती है। सत्य की अपनी शक्‍ति होती है, तथ्य की अपनी तासीर होती है। सत्य तथ्य के असर से बचना नामुमकिन होता है। लेकिन बात इतनी ही नहीं है। इस पत्रिका के प्रकाशक प्रधान संपादक अंशुमान द्विवेदी व संपादक आरिफ फजल खान उत्कृष्ट श्रेणी के इतिहासवेत्ता हैं। हड़प्पा सभ्यता पर अंशुमान की लिखी पुस्तक हजारों शोधार्थियों के बीच लोकप्रिय हुई है। आरिफ भारत सरकार की आकाशवाणी सेवा में रहे हैं। योग्य भाषा विज्ञानी हैं। बावजूद इसके दोनों संपादक आस्थावादी हैं। अंशुमान शिवभक्‍त हैं, तीर्थाटन करते हैं, नियमित पूजा करते हैं। आरिफ सच्चे मुसलमान हैं, नियत व्रत पर नमाज पढ़ते हैं। दोनों एक साथ एक कमरे में ही रहते हैं। नमाज और आयतों से अंशुमान को दिक्‍कत नहीं होती। मंत्रों की ध्वनि और पूजा की घंटी से आरिफ को तकलीफ नहीं होती। पत्रिका के इस भवन में कई बड़े कमरे हैं तो भी दोनों की इबादत एक ही कमरे में चलती है। दोनों साथ-साथ खाना खाते हैं। आस्थाओं में बुनियादी अंतर है लेकिन जीवन के छंद, रस, प्रीति, प्यार की वीणा एक है। सुर एक जैसे हैं। ऐसा अक्‍सर नहीं होता। लेकिन ऐसा इन्‍हीं दिनों लखनऊ में हो रहा है। अंशुमान के पढ़ाए कई आई.ए.एस. मुसलमान हैं, वे उन्‍हें प्रणाम करते हैं, आरिफ के पढ़ाए तमाम हिन्‍दू हैं, वे उन्‍हें नमस्कार (आदाब) करते हैं। यह एक खूबसूरत जोड़ी है। गांधी ऐसा ही समाज चाहते थे लेकिन कट्टरपंथी अंध आस्थावादी ऐसा समाज नहीं चाहते। डॉ. जाकिर नायक इस्लामी आग्रहों के नये प्रव?ता हैं। ‘म?तबा नूर’ अमीनाबाद लखनऊ, से प्रकाशित उनकी प्यारी किताब आधुनिक विज्ञान कुरान के अनुकूल या प्रतिकूल काफी दिलचस्प हैं। डॉ. नायक के अनुसार कुरान पूर्णतः ईशववाणी है। (पृ.-9) वे लिखते हैं, कुरान की यह आयतें मानव जाति के लिए एक चैलेंज है। इसके बाद सूरा 2 से 23 व 24 क्रमांक की आयतों का अरबी में उल्लेख है। फिर उनका अनुवाद है हमने जो कुछ अपने बंदे पर उतारा है उसमें अगर तुम्हें शक हो और तुम सच्चे हो तो तुम उस जैसी एक सूरह तो बना लाओ। तुम्हें अख्तियार है कि अल्लाह ताला के सिवा और अपने मददगारों को भी बुला लो। पर अगर तुमने न किया और तुम हरगिज़ नहीं कर सकते तो उसे सच्चा मानकर उस आग से बचो जिसका ईधन इंसान हैं और पत्थर, जो काफिरों के लिये तैयार की गई है। यहां इंकार करने वाले-काफिरों के लिए आग और पत्थर हैं। डॉ. जाकिर काफिर, आग और पत्थर की ?याख्या नहीं करते। सृष्टि के रहस्य अनंत हैं। वैज्ञानिक सृष्टि रहस्यों की परतें उघाड़ रहे हैं। डॉ. जाकिर ने अध्याय-3 में अंतरिक्ष विज्ञान शीर्षक से ब्रह्मांड की रचना को कुरान की रोशनी में देखा है। उन्‍होंने ‘बिगबैंग’ का आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांत भी उध्दृत किया है। उन्‍होंने यहां पवित्र कुरान से सूरा 30 की 21वीं आयत अरबी में उद्धृत की है। इसी आयत का उनका अनुवाद गौरतलब है ?या काफिर लोगों ने यह नहीं देखा कि आसमान व जमीन मुंह बंद मिले-जुले थे। फिर हमने उन्‍हें खोलकर जुदा किया। (वही पृ?-12) कुरान के मुताबिक धरती-आकाश को अलग करने का काम ईश्वर ने किया है। ईश्वर को मानने वाली सारी आस्थाएं यही एक काम नहीं दुनिया की सारी घटनाओं को ईश्वर की ही कृपा मानती हैं। खोजी वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के लिए ईश्वर एक समस्या है। डॉ. जाकिर ने कुरान (41.11) की आयत का अरबी उद्धरण भी दिया है और उसे बिगबैंक सिद्धांत के अनुरूप बताया है। लिखा है, वैज्ञानिकों का कहना है कि आकाश गंगाओं के वजूद में आने से पूर्व यह ब्रह्मांड का मूल तत्व गैस में था। इसे स्पष्ट करने के लिए धुवे शब्‍द का प्रयोग किया जाय तो मुनासिब होगा। फिर मूल आयत का अनुवाद है, फिर आसमान की तरफ मुतवज्जह हुआ और वह धुवां सा था उससे और जमीन से फरमाया कि तुम दोनों खुशी से आओ या जबर्दस्ती। दोनों ने अरज किया हम बखुशी हाजिर हैं। (वही पृ?-13) कुरान ईश्वरीय आस्था है।

कुरान के अनुसार धरती आकाश मिलेजुले थे, उन्‍हें ईश्वर ने जुदा किया। दुनिया के प्राचीनतम ज्ञान रिकार्ड ऋग्वेद में भी यही स्थापना है लेकिन बुनियादी अंतर है – धरती आकाश पहले एक थे। उन्‍हें वायु ने अलग किया। दोनों का संवर्धन भी किया। (ऋ0 1.85.1)ऋग्वेद की इस स्थापना में ईश्वर नहीं है। वायु-मरुण ही धरती आकाश के मध्य आते हैं। वायु प्रत्यक्ष भौतिक तत्व है। ऋग्वेद में यहां इस बात को न मानने वालों को काफिर वगैरह नहीं कहा गया। वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले लोग अपने तथ्य को माने जाने का आग्रह नहीं करते। वे विपरीत दृष्टिकोण का स्वागत भी करते हैं। अब सृष्टि विज्ञान को लीजिए। डॉ. जाकिर ने पवित्र कुरान की कई आयतों को वैज्ञानिक सिद्ध करने की हसरत में अच्छी खासी कसरत की है। उन्‍हें आस्था और विज्ञान को आमने-सामने नहीं खड़ा करना चाहिए। इस कसरत में ‘ईश्वर’ बार-बार बाधा बनता है। वैज्ञानिकों ने फिलहाल ईश्वर को सिद्ध नहीं किया है। ऋग्वेद में सृष्टि रचना संबंधी कई सूक्‍त हैं लेकिन पहले मंडल के सू?त 129 व दसवे मंडल के सू?त 72, 121, 129, 190 काफी दिलचस्प हैं। इन सूक्‍तों में ईश्वर कोई काम नहीं करता। ऋग्वेद में प्रकृति की शक्‍तियों की कार्यवाही का विवेचन है। कुरान की रोशनी में डॉ. जाकिर के आकाशीय धुवें वाले ईश्वरीय विवेचन के संबंध में ऋग्वेद (10.72.2) में कहते हैं देवों के पहले – देवानां पूर्वे युगे, असत् से सत् उत्पन्‍न हुआ। यहां सृष्टि के विकास का क्रम है। आदिमकाल में मनुष्य ने देवता नहीं पहचाने (नहीं गढ़े) थे। आगे कहते हैं, आदि प्रवाह (सूक्ष्म ऊर्जा) से उपरिगामी सूक्ष्म ऊर्जा कण बने। आदि सत्ता – अदिति से सृजन प्रारंभ हुआ, दक्ष (सर्जन शक्‍ति) उत्पन्‍न हुए। सूर्य उत्पन्‍न हुए। सर्जन चलता रहा। दिव्‍य शक्‍तियों के नर्तन से तेज गतिशील ऊर्जा कण प्रकट ह?ए। (वही, 4-6) इन देवशक्‍तियों के लिए ऋग्वेद में सुसंर?धा (आपस में संयुक्‍त) शब्‍द प्रयुक्‍त हुआ है। इन्‍हीं के नृत्य से आकाश में धुंध बनी। कुरान की स्थापना वाला धुवां ऐसा ही है। मार्क्‍सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने ग्रिथ का अनुवाद दिया है – धूलि का घना बादल ऊपर उठा। वालिस के अनुसार देवों के नृत्य से अणुओं पर हुए पदाघात से धरती बनी। ऋग्वेद का?यात्मक है। ऋग्वेद में प्रकृति सृष्टि के विकास में ईश्वर कोई करिश्मा नहीं करता। यूरोप के तत्ववेत्ता और वैज्ञानिक कोई 17वीं सदी तक प्रकृति के विकासवादी सिद्धांत से अपरिचित रहे हैं। भारत में वैदिक काल में ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो चुका था। ऋग्वेद तमाम जिज्ञासाओं से भरापूरा है। भारत छोड़ समूचे यूरोप और एशिया की भी बुनियादी समस्या आस्था है। भारत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्क-प्रतितर्क आधारित दर्शन का विकास पहले हुआ। आस्था बाद में आई। बाकी जगह आस्था पहले आई, विज्ञान बाद में आया। आस्था और विज्ञान का तालमेल बिठाना आसान नहीं होता। आस्था को लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण वालों को ‘चैलेंज’ देना सामान्‍य शिष्टाचार के विरु? होता है लेकिन डॉ. जाकिर ने लिखा है ‘कुरान की आयतें मानव जाति के लिए चैलेंज’ हैं। कुरान दुनिया की बहुत बड़े जनसमुदाय की आस्था है। आस्था पर बहस नहीं होती, होनी भी नहीं चाहिए। बहस से आस्थावानों की भावनाओं को चोट पहुंचती है। कुरान के सूरा (अध्याय) अलबकरा 2 का उद्धरण जाकिर भाई ने दिया है। मौलाना मुहम्मद फारूख खां ने इस सूरा की 68 व 7वीं आयत का अनुवाद किया है जिन लोगों ने इंकार किया, उनके लिए बराबर है चाहे तुमने उन्‍हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो। वे ईमान नहीं लाएंगे। अल्लाह ने उनके दिलों पर और उनके कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आंखों पर परदा पड़ा है और उनके लिए बड़ी यातना है। ऐसे में डॉ. जाकिर के चैलेंज के जवाब में बहस की गुंजाइश कहां हैं? कुरान बाईबिल और सारे आस्था ग्रंथ सबके लिए आदरणीय होने चाहिए। उनको बहस में न लाइए। भारत को विवेकशील, तार्किक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही विकसित कीजिए। चैलेंज का उत्तर विनयशीलता ही हो सकता है।

16 COMMENTS

  1. chalye koi to hai jo hakikat ko svikar karata hai . mai to samjha ki ham log bahut samajhadar or bahut jayada chalakh ho gaye hai . chaliye hum to keval samajhadar hai ham to dekh kar hi mahasusa or samajha jate hai ki ye gandagi hai . magar aphaso to ias bat ka hai ki upar diye gaye sabado(bahut)
    ye hamesa sughakar pahachante hai . lekin kaphi der ho gai hoti hai.
    uas samay tak gandagi inke chehare par lag hoti…………………..
    (DHANYABAD)
    BARAMRAJ SAHI

  2. A SAMPLE LIST OF WEBSITES PROMOTING ISLAMIC REFORM आपही देख लीजिए।
    http://www.19.org==www.quranic.org==www.quranix.com===www.openquran.org==www.freeminds.org==www.quranbrowser.com====www.brainbowpress.com===www.quranconnection.com===
    ==www.deenresearchcenter.com===www.islamicreform.org==www.quranmiracles.org===www.openburhan.com===www.studyquran.org====www.meco.org.uk===www.yuksel.org
    ==www.mpjp.org==www.original-islam.org===www.thequranicteachings.com===www.just-international.org===https://islamlib.com/en/

  3. https://www.reformislam.org ==== इस वेब साईट में क्या लिखा है। एक “बानगी” मैने भावानुवादित की है। आप वेब साईट देख लें।
    ॥सुधार की ज़रूरत॥==इस्लाम आज के (फॉर्म) में, जनतंत्र और मत स्वातंत्र्य के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता। २१ वीं शती के मुस्लिमों के सामने दो पर्याय हैं। (१) हम उन्ही, ७ वी शती की, बर्बर नीतियोंका अवलंबन करें जो हसन अल-बन्ना, अब्दुल्लाह आज़म, यासिर आराफ़ात, रुदोल्लाह खोमैनि, ओसामा बिन लादेन,मुस्लिमब्रदरहूड,अलक़ाएदा,हिज़्बल्लाह, ,हमास,हिज़्ब-उल-तहरीर, इत्यादि, ने अपनायी थी, और कायम की थी।और जिसके कारण दुनिया दार-अल-इस्लाम(इस्लामिक विश्व) और दार-अल-हर्ब (अन इस्लामिक विश्व) के बिच विश्व युद्ध की ओर बढ रही है।
    (२) या, फिर हम इस्लाममें (रेफ़ोर्म) सुधार करें, जिससे हमारी समृद्ध संस्कृतिक विरासत सुरक्षित रहे, और इस्लाम मज़हबके(cleanse of reviled relics) दुश्मनी फैलानेवाले अवशेषों को सुधारकर साफ़ सुथरा बनाएं।=== हम, मुस्लीम इस नाते, जो अन्य धर्मावलबियोंके साथ, नास्तिकोंके साथ,अनीश्वर वादियोंके साथ, भाईचारेसे रहना चाहते हैं, वे दूसरा पर्याय चुनते हैं।=== हम अबसे आगे इस्लामिक अतिवादियोंको हमारे मज़हबको हथियार बनाने नहीं देंगे।हमें, अगली इस्लामिक पीढियों को इसलामिक अतिवादियोंके (ब्रेन वाशींगसे) मति भ्रमसे, अवश्य बचाना है।यदि हम इस्लामिक अतिवादके फैलावको नहीं रोक पाते, तो हमारे बच्चे कल हत्त्यारे शैतान (zombies) बन जाएंगे।

  4. दुनियामें क्या हो रहा है? देखिए।
    ॥इस्लामके सुधारक चिंतकों की कान्फेरन्स ऑक्सफर्ड युनीवर्सीटी में॥ जून ११ से १३ संपन्न होना थी। उसकी घोषणा देखिए।==https://islamicreform.org/== देखिए। भारतमें यह भी, किया जा सकता है, क्यों नहीं?
    ANNOUNCEMENT: International Conference:==Critical Thinkers for Islamic Reform==The Way Forward===Oxford University in June 11-13 2010===
    The conference will be held at Oxford University in June 11-13. The participants are individuals who agree on the imperative of a drastic reformation in the Muslim world. Though each of us are independent thinkers, we are all in agreement regarding the urgency of reforming our theology, attitude, action and our organizational strategies to further align ourselves to the Quran interpreted in light of reason.==For participation, questions or presence, contact us at: contact@deenresearchcenter.com

  5. Aadarniy madhusudhan ji,
    ye vyangy nahe balke agayanta he, ki mujhe aapke bare me zyada nahe malum, ho sakta he ki aapki kuch tippaniyo se mene apke bare me ek vishesh raay bana li ho, lekin mera aashay vyaktigat tippani ka nahee hota hai, fir bi tippaniyo ke kram me aisa hota jata hai, mahoday yadi aankdon par itna vishwas kiya jana zaruri he to sachchar commeti ki report par hum log qun duragrah ki istithi me aa jate hain. Jbki wo aankde to bhartiye hen aur jo aankde aap ne diye wo maatr website par hen jo america dwara prayojit he. Jiska maqsad hi hota hai bhartiye upmahadeep me ashanti bnaye rakhna. Kitne dukh ka vishay he ki hamare samaj ka ek buddhijivi varg un ankdo me apna samay vyarth kar raha he jbki satyta hamare smaj me saaf saaf dekhi ja sakti hai, mahoday aapka demand me hona nishchit roop se sukun pahunchane wala vishay he parntu aap is baat ko bhi samjhe ki vaad-vivad me hamesha aapke pakshdhar nahi hote hen. Mera fir kehti hun mera taatpary qatai bhi aap par kataksh karne ka nahee hai apitu apne vicharo ki abhivyakti ka he.
    Demand ke sandhrb me ek baat aur he jo aap khud par na lena. Vartman me demand me aane ka ek saraltam upaay he ki samaj ke ek vishesh varg ke bare me anargal tippniya karen aur demand me rahe. Jesa ki VHP, RSS, BAJRANGDAL AUR SHRIRAM SENA ke prmod muthalik karte hen. Padhen(tahlka patrika ka uttrakhand ank may ka) tb aap samjhenge ki kitna vikrit rup he inka. Lekin aap ki tulna yadi mene inse karne ka paap kiya to me khud apni nazro me apmanit ho jaungi. Lekin mahoday kahin na kahin aap inse pirbhavit ho jate hen aur nishpaksh nahee ho pata. Mera aapse karbadhh nivedan hai ki yadi kuch galat kaha ho to shamma karen aur vichar karen.
    Haan har mod khubsurat hi hota hai bas nigahen chahiye

  6. Rajesh kapur ji, bhartiya ka matlb sirf apka katith hindu darshan nahe he. Jo hindu dharm par na hokar islam ya anay dharm par kutharghath karne k lye he. Aapke hindu darshan aur vastivik hindu dharm me bahut antar he. Sampurn vishv ko apna parivar manne wali sanskirti he hamari jiski chavi dhumil ho rahi h. Nirantar apki byanbaziyon se. Jo ek khas dharm ko dhyaan me rakhkar ki jati hen aur ki ja rahi hen. Aap pehle ye socho ki koi tathyparak baat hoti he kya aapki. Aap ka vichar to bs last 1000 sal par atka hota he usi ka tustikaran aap logo se nahe ho pa raha he. Us mamsikta ke rogi ban gaye hen aap. Vartman ki to apko koi fikar nahee. Bs wahin atke rahenge

  7. (ङ) यहां कुछ इस्लाम पंथी, चिंतित हैं।पर वास्तविक रीतिसे कुछ कर नहीं पाते। एक (मेरे अकांउंटंट) मित्र थे, उन्होंने यहां की रविवारीय (यहां रविवारको मिलते हैं, शुक्रवारको भी) इस्लामिक मिलन में सवाल पूछा, तो उनका बहिष्कार किया गया। उनका मिलनो में जाना ही बंद करवा दिया। किंतु, कुछ और बहादुर रिफॉर्मीस्ट भी लगे हुए हैं, वेब साइटें बनी हैं। उनकी भी सफलता चाहता हूं, जो रोशनके फूल खिले हैं, खिलते रहें।
    (च) कुछ अलग रीतिसे कहता हूं।
    ॥वादे वादे जायते (शास्त्र) सत्य बोधाः॥ यदि सत्य का बोध होने में सहायता नहीं हो सकती, तो वह चर्चा क्या कामकी?
    (छ)अंतमें== ॥वोह अफ़साना जिसे अंज़ाम तक लाना न हो मुमकिन॥
    ॥ उसे एक ख़ूब सूरत मोड देकर छोडना अच्छा॥==
    इस बिंदुपर, मेरी ओरसे, और टिप्पणी की संभावना कमही (अपवाद हो सकते हैं) है।
    ॥एक— ख़ूब सूरत— मोड देकर— छोडना— अच्छा॥

  8. दीपा शर्मा जी, आपने टिप्पणी पढी,धन्यवाद।
    (क) आंकडे सच्चायी को जानने की एक विधा है।इसका Sample भी छोटा नहीं है। शालाओ में परीक्षाके परिणाम गुणांक (Marks) भी आंकडे ही हुआ करते हैं।(यह भी गढे जा सकते हैं।) पर, ऐसा दर्पण आपको कुछ तो सहायता करता ही है। दर्पण को, फोडकर आप सच्चायी का अनुमान भला कैसे लगा सकती है?
    (ख) समय तो मुझे भी नहीं है। तकनिकी Consultant हूं, कुछ डिमांड में भी हूं। भारतके बाहर निश्चित हूं, पर (कुछ संस्कारोंके) कारण भारत हृदयमें बसा हुआ है, यह इश्वरकी कृपा मानता हूं। इस लिए कुछ समय निकाल लेता हूं। और; भारत की भलाई चाहने के लिए, भारतमें रहने की कोई अनुल्लंघनीय पूर्वावश्यकता थोडी ही है? किसी चिंतकने, ऐसा कहा हुआ, मुझे स्मरण नहीं। इसकी कुछ पीडा भी मुझे होती है, छुपाउंगा नहीं।
    (ग) धर्म/मज़हब/रिलीजन, अनुयायियोंका==**(१) आध्यात्मिक उत्थान (भलाई), और (२) संसार के अन्य पंथोंके साथ, मेल जोलसे कैसे रहा जाय** === इन दो पहलुओं पर परखा जाता है, जीवित रहता है। (२) दूसरा पहलु संसारमें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। पहला वैयक्तिक है।
    (घ) दूसरे पहलु के कारण, सनातन(बौद्ध, सिख, जैन) धर्मी जहां भी गये, वहां उनका बहुतांश स्वागत ही, हुआ है।”मज़हब” और “रिलीजन” वाले सोचे, कि वे इस दूसरे पहलु पर कितने सफल हुए हैं? मैं तो इनकी भी ,भलाई चाहता हूं। आप संदेश वाहक को ही दोषी समझती हैं, तो आप जाने।पर संत तुकाराम मराठी में, तो कहते हैं, कि निंदकका घर पडोसमें हो” – “निंदकाचे घर असावे शेजारी”

  9. Rajesh kapøør ji, aap persnol ho rahen hen. Aap system ko jante hen. Varun gandhi ji ne kya kaha tha wo bhi pata hi hoga apko aur rahi baat shankrachary ji ki. To aapko malum he ki unhone kya kiya tha. Wo döno jail gaye the hindu hone ki vajah se nahee apitu apne apradhon ki vajah se gaye thay. Me sirf hans rahee thi mazak nahee uda rahi thi. Me sbse mafi mangti hun agar jin ko bi esa laga ho to maaf karen. Mera aashay kisi ka dil dukhana ya bhavnao ko thais lagana nahi he

  10. बहुत अछे, दीपा शर्मा जी, शाबाश ! यूं ही लगे रहो जबतक सारा हिंन्दुस्तान पाकिस्तान न बन जाये, दारुल हर्ब से दरुल इस्लाम न हो जाये. प्रो. मधुसुदन जी जैसों की हंसी भारत में नहीं तो और कहां उडाई जायेगी ? भारत में रह्कर आज भी भारत और भारतीयता की बात करने का इनका साहस अभी तक बचा हुआ है ? कमाल की बात है. कितना मारा, कितना पीटा, कितना घसीटा पर अभी तक बाज नहीं आये, हिन्दु और हिन्दुत्व की रक्षा की बात करते हैं, भारतीय संस्क्रिती की श्रेश्ठ्ता का दम भरते हैं ? इनको कश्मीर में मारा, केरल में मारा, बंगाल में मारा, उत्तर-पूर्व में मारा और अब सारे देश में मार-मार कर भुर्कुस निकाल रहे हैं. अब तो बन्द करो अपनी भारत-भक्ती की बातें. नही माने तो केरल की तरह हाथ काटने वाले सेकुलर-शान्ती के दूतों की हमारे पास क्या कमी है. सरकार और मीडिया अपना ही तो है, किसी से डरने की कोई बात है नहीं. कभी कहीं जेल भी जाना पडा आप्को पता ही है कि जवाईयों जैसि सेवा होगी. और इन भारत-भक्ती का दम भरने वालों की वहां भी खूब दुर्दशा कीजायेगी. शंकराचार्य जी की और वरुण गांधी की जो बुरी हालत की थी वह याद है न. तो बस दीपा जी लगे रहो.

  11. Hahaha! Madhusudhan ji aap aankde nikal hi late hen. Aap bdhai ke patr hen. Kitni mehnat hoti hogi. Wese ye yadi india ka poll hota to aankde ulte hote na…..
    Fir pakistan ki okaat kya he. Wahan se zyada muslim to hum rakhte hen aur ye wo log hen jo apna desh chorkar nahee gaye. Hm samman karte hen inka lekin unka nahee jo inko gunahgar bnane me tule he firqaparst bankar.

  12. ॥बिना शुल्क बाराहा (BARAHA) नामक फॉंट॥
    डॉ. राजेश कपूर जी, और अन्य टिप्पणीकार, जिन्हे एक सरल नागरी फॉंट चाहिए, उनके लिए, बाराहा (BARAHA) नामक फॉंट का पता निम्न है। इसे आप डाउन लोड कर सकते हैं। नागरी लिपित हिंदी की टिप्पणियां पढने में सरल होती है, सरसराती दृष्टिसे वे पढी जाती है। मैं इसीका प्रयोग कर रहा हूं।यह एक ही क्लिक से गुजराती,नागरी,कन्नड,बंगला, गुरुमुखी…. इत्यादि लिपियों में प्रयुक्त हो सकता है। पता:
    http://www.baraha.com/

  13. According to poll results on http://www.afa.net (American Family Association) as of January 4, 2007[14]
    Islam and America Poll Results
    ————————————————
    Do you consider Islam to be a peaceful religion? Yes 13,000( 7% ) No 174,499 (93%)
    —————————————————-
    Do you consider Islam to be a tolerant religion? Yes 7,304( 4% ) No 179,827 (96%)
    —————————————————-
    Would America be a better country if it were a Muslim country? Yes 1,110 (0.6%) No 185,911 (99.4%)
    —————————————————-
    Should America place equal emphasis on the Koran and the Bible? Yes 4,485 (2%) No 182,125 (98%)
    —————————————————–
    Would it be good for America to have more Muslims in elected offices? Yes 4,485 (2%) No 181,542 (98%)
    ————————————————-
    Would you vote for a Muslim for president? Yes 3,992 (2%) No 182,337 (98%)
    ओबामा को मुस्लिम नहीं माना जाता है।
    ——————————————————
    As a general rule, are women treated better in America than in a Muslim country? Yes 171,171 (92%) No 15,286 (8%)
    ——————————————————–
    Is America too dependent on Muslim countries for oil? Yes 179,623 (96%) No 6,807 (4%)
    —————————————————–
    Do Muslim countries do more than America to help the poor? Yes 4,622 (2%) No 180,603 (98%)
    ========================================================
    हृदय नारायणजी– अपवादोंसे तो नियम ही सिद्ध होता है।(Exceptions prove the rule)”संपादक आरिफ फजल खान, तनवीर जी,फ़िरदौस खान (ऐसे कुछ उदाहरण और भी हैं)इत्यादि तो अपवाद है।और बहुत सारे आंकडे प्रस्तुत कर सकता हूं। इस्लाममें सुधार कोई इस्लामी भी करनेकी कोशीश करे तो फ़तवा निकाला जाएगा। पाकीस्तान में कोई तिवारी, गुप्ता, शर्मा है? जो खुली तरहसे पूजा पाठ कर सकता हो? १०-१५ देश मुस्लिम बहुल है। पर हरेक में Democracy की हालत या तो पतली है, या नहीं के बराबर।
    शक्तिशाली सहिष्णु हिंदु ही इस्लामके हितमें योगदान है।शक्तिसे दोस्तीका हाथ बढाइए,अन्यथा और एक कश्मिर और एक पाकीस्तान।

  14. bahut gambheer aalekh .badhai .islam ke siddhant aur upnishadon ke sutron men sirf bhasha aur classic mithkon ka hi her fer hai .saty ke prti nistha manavta ke prati bhaichaare ka aagrh .samanta bandhutw sabhi kuchh na keval hidu ya muslim apitu issaiet tatha anay deegr dharmon men prem karuna ki hi pukar hai .sara jhagda tab uthta hai jab dharam ko vyiaktik jeevan se uthakar sadak par laya jata hai ya rajysatta ki praapti ka saadhan banaya jata hai .dharm mazhab pooja aastha ko rajneet ke akhade men ghaseetne par samaj men nakaratmak dwndatmakta
    ka aavirbhav hota hai jo nirbal janta ke mukti sangram men baadhak banta hai .ath dharmnirpekshta ke siddhanto par hamen adig rahna hoga tabhi desh ko ekjut aur shaktishali banaya ja sakta hai.

  15. Behatreen, khaskar last para. Wese pura laikh acha h. Aapko mene pehle newspaper wagera me padha hai tb me aur aaj me apme kafi antar h. Aaj apne samanvay ki bhavna se lekh likha aur aashchrayjank roop se gandhi ji bhi aapke lekh me shamil hai. Ab shayad is desh ke din fir jaye ki hamesha muslim aur quran ke katu aalochak rahe hen aap. Lekin aaj thoda positive ness dikhai hai. Dr sahab ye barkarar rakhe aur isi bhavna ko aur mazboot kare jisse bharat me dharmik vivad ki gunjaish kam rahe. Kahin ye karan to nahi ki ye laikh ek vishesh varg jo ki internet par hai use dhyan me rakhkar likha ho. Qki yaha katu aalochak hen. Hahaha. Fir b sarahinay pryas hai

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