लेख

ये प्रजातांत्रिक लोकतंत्र है जातिवादी का भोगतंत्र नहीं

—विनय कुमार विनायक
ये प्रजातांत्रिक लोकतंत्र है जातिवादी का भोगतंत्र नहीं
ये गुलाम देश की दौर का सल्तनत व बादशाहत नहीं
लोकतंत्र में जाहिल जनप्रतिनिधि विधायक सांसद को
‘माननीय’ व ‘साहब’ कहने से जन भावना आहत होती!

ये गुलाम जनता द्वारा ‘जहाँपनाह’ ‘मेरे आका’ कहने जैसा
हद तो तब हो जाती जब कोई भूतकाल का वित्तभोगी नेता
बापू,चाचा,बाबू,बाबासाहब अंधभक्तों द्वारा बना दिया जाता
एक वक्त आता जब उनके विरुद्ध घृणित माहौल बन जाता
ऐसे में किसी को उतना ही आदर दो जितना का हकदार हो
वे कल के नेता थे तुम आज के हो उनसे बढ़कर काम करो!

वैसे ‘बाबासाहब’ तो अपने आप में एक दोगला शब्द लगता
बाबा हिन्दी शब्द औ’ साहब उर्दू शब्द के बेमेल योग से बना
अगर किसी जाति विशेष के वोटबैंक को साधने की मंशा हो
तो सिर्फ उनकी उपाधि या पदनाम कहने से काम चल सकता
ज्यादा उपसर्ग प्रत्यय प्रशस्ति गान से उनका महत्व घट जाता!

वैसे राजनीति में जाति आधारित प्रेम दिखाना होती धूर्तता
तुष्टिकरण करनेवाले से भला होता संतुष्टिकरण करने वाला
बार-बार ‘बाबासाहब’ चिल्लानेवाला बड़ा शातिर मक्कार होता
दलितों की दुखती रग छूकर राजनीति करे वो छलकार होता!

पत्रकारिता की भाषा में नाम के साथ
श्री,जी,साहब,सर आदि एकसाथ लगाना पीत पत्रकारिता
व्याकरण की दृष्टि से एक व्यक्ति के नाम के साथ
एक आदरसूचक शब्द आगे या पीछे लगाना ही है बेहतर
जय भीम जय मीम जय फिलिस्तीन की राजनीति बदतर
भैया दीदी भाई भतीजावाद की राजनीति से परहेज कर!

बापू चाचा बाबासाहब बाबू बोलनेवाले भाड़े के ठेकेदार सुनो
किसी नेता के नाम संग कोई एक सम्मानित शब्द लगाओ
जरूरत से ज्यादा जातिवादी मजहबी लगाव दिखाना छोड़ दो
अन्यथा स्वजाति नेता के प्रति जितना ही सम्मान चाहोगे
दूसरी जाति के लोग उनके लिए उतना ही अपमान दिखाएंगे!

क्या श्रीराम से बड़ा जातिवादी परशुराम भगवान हो सकता?
क्या श्रीकृष्ण से महान स्वार्थी कंश शिशुपाल व कौरव होगा?
क्या बुद्ध के साथ जय भीम मीम फिलिस्तीन बोलना अच्छा?
गुरुनानक गोविंद के देश में बाबर औरंगजेब की जय मत बोलो
सांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ जाति मजहब का जहर मत घोलो!

आजकल अक्सर टीवी डिबेट में देखा जाता
फिरकापरस्त लोगों को धर्म मजहब का स्कॉलर कहा जाता
ऐसे लोगों को बार-बार साहब या सर कहना
पत्रकारिता के साथ गैर जरूरी समझौता करना प्रतीत होता!

बेहतर हो सरकारी कार्य या अन्य विषय की चर्चा खातिर
डिबेट में ऐसे नक्कारा देशविरोधी लोगों को न बुलायें
इससे देश धर्म मानवता का भला नहीं बुरा ही होता
देशद्रोही ताकतों को विचार बांटने का मंच मिल जाता!
—विनय कुमार विनायक