ये लड़ाई है दीए और तूफान की…

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श्रीराम तिवारी

विगत सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की एक अदालत ने जिन तीन लोगों को नक्सलवादियों का समर्थक होने के संदेह मात्र के लिए आजीवन कारावास जैसी सजा सुनाई उसकी अनुगूंज बहुत दूर तक बहुत लम्बे समय तक सुनाई देती रहेगी. डॉ विनायक सेन, नारायण सान्याल और पीयूष गुहा कितने बड़े खूंखार हैं? उनसे मानवता और देश को कितना खतरा है? इस फैसले के बाद देश की जनता ने जाना और माना की माननीय न्याय मंदिर के शिखर पर विराजित स्वर्ण कलश की चमक इस फैसले से कितनी फीकी हुई है या होने वाली है इस एतिहासिक न्यायिक फैसले पर जारी विमर्श के केंद्र में वस्तुत; व्यक्ति नहीं विचारधारा ही है.

खास तौर से देश का मध्यम वर्ग और आम तौर पर सभी सुशिक्षित और राष्ट्र निष्ठ भारतीय इस कथन को सगर्व पेश करते हैं की ‘हमारा प्रजातंत्र चीन की साम्यवादी तानाशाही से बेहतर है, रूसी अमेरिकी और ब्रिटेन के लोकतंत्र में भी अभिव्यक्ति की इतनी आजादी नहीं जितनी की हमारी महान भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में है’

दुनिया के अधिकांश देशों और विभिन्न व्यवस्थाओं में दंड नीति की अपनी अपनी खासियतें हैं. किन्तु भारत में उदात्त न्याय दर्शन और मीमांसाएँ हैं -अपराधी भले ही छूट जाये, किन्तु निर्दोष को सजा नहीं मिलना चाहिए.

बेशक यह सही भी है किन्तु यहाँ बहुत पुरानी पोराणिक आख्यायिका है की “एक हांड़ी दो पेट बनाये, सुगर नार श्रवण की ‘मात्रु -पित्र परम भक्त श्रवण कुमार की पत्नी ने ऐसी हांड़ी वना रखी थी -जिसके दो भाग अंदर ही अंदर थे उसमें वो एक ही समय में एक हिस्से में खीर पकाती थी और दूसरे हिस्से में पतला दलिया, खीर वो अपने पति -श्रवणकुमार को खिलाती और दलिया अपने सास -ससुर को, अंधे सास-ससुर यही समझते की जो हम खा रहे हैं वही बेटा श्रवण खा रहा है. भारतीय लोकतंत्र रुपी हांड़ी में भी दो पेट हैं. एक सबल और प्रभुत्वशाली वर्ग के लिए दूसरा निर्धन अकिंचन असहाय वर्ग के लिए. सारी दुनिया समझती है की हमारे लोकतंत्र की हांड़ी में जो कुछ भी पक रहा है वो वही है जो वह देख सुन या महसूस कर रहा है. जबकि इण्डिया शाइनिंग का नारा देते वक्त २००८ में यह और भी स्पष्ट हो गया था की उन्नत वैज्ञानिक तरक्की का लाभ देश की अधिसंख्य जनता तक नहीं पहुँच पाया है और अटलजी को –एनडीए को अपने विश्वश्त अलायन्स पार्टनर चन्द्रबाबू नायडू जैसों के साथ पराजय का मुख देखना पड़ा था. तब पता चला की इंडिया और भारत में खाई चोडी होती जा रही है. यह विराट दूरी सिर्फ आर्थिक या जीवन की गुजर-बसर तक ही नहीं अपितु सामजिक, आर्थिक. सांस्कृतिक और न्यायिक क्षेत्रों तक पसरी हुई है.

देश में आर्थिक सुधारों और लाइसेंस राज के आविर्भाव उपरान्त विगत २० सालों में इतनी तरक्की हुई की पहले ५ पूंजीपति अर्थात मिलियेनर्स थे अब ५४ मिलिय्र्नार्स हो गए हैं. तरक्की हुई की नहीं ?पहले १९९० में गरीबी की रेखा से नीचे १९ करोड़ निर्धन जन थे अब ३३ करोड़ हो चुके हैं -तरक्की तो हुई की नहीं?

यही बात शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन स्तर के सन्दर्भ में मूल्यांकित की जाये तो स्थिति और भी भयावह नजर आएगी. भारतीय प्रजातांत्रिक-न्याय व्यस्था पर प्रश्न चिन्ह सिर्फ विनायक सेन के सन्दर्भ में या रामजन्म भूमि बाबरी – मस्जिद के सन्दर्भ में नहीं उठा बल्कि वह आजादी के फ़ौरन बाद से लगातार उठता रहा है. वह तब भी उठा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अलाहाबाद उच्च न्यायलय में अपनी चुनावी हार को फौरन सर्वोच्च न्यायलय के मार्फ़त जीत में बदल दिया. सवाल तब भी उठा जब शाहबानो प्रकरण में कानून बदला गया. सवाल तब भी उठा जब लाल देंगा जैसे देशद्रोही से न केवल बात की गई बल्कि उसे मुख्यमंत्री तक बनवा दिया. सवाल अब भी कायम है की हजारों डाकुओं को आत्म समर्पण के बहाने उनके अनगिनत पापों को इस देश के कानून ने और व्यवस्था ने माफ़ किया. एक बार नहीं अनेक बार, अनेक प्रकरणों और संदर्भो में ऐसा पाया गया की शक्तिशाली वर्ग -पप्पू यादवों. तस्लीम उद्दीनों, बुखारियों, ठाकरे और गुजरात के नरसंहार कर्ताओं की कानून मदद करता पाया गया.

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण जी ने जिन एक दर्जन माननीयों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत सर्वोच्च न्यायलय को दिए हैं उनके लिए अलग दंड विधान है याने कोई कुछ नहीं बोलेगा. यदि बोलेगा तो जुबान काट दी जायेगी. शूली पर लटका दिया जायेगा. इन शक्तिशाली प्रभुत्व वर्ग के खिलाफ बोलना याने विनायक सेन होना है, विनायक सेन एक आध तो है नहीं की उसे जेल भेज दोगे तो ये अंधेर नगरी चोपट राज चलता रहेगा. विनायक सेन पीयूष गुहा और नारायण सान्याल तो भारतीय आत्मा का चीत्कार हैं, आदरणीयों, मान नीयो. इतना जुल्म न करो की आसमान रो पड़े और जनता गाने लगे की ये लड़ाई है दिए की और तूफ़ान की.

12 COMMENTS

  1. आप सभी मित्रों को नूतन वर्ष की शुभकामनाएं ….सभी साथियों के विद्वत्तापूर्ण विचारों का सम्मान करते हुए .विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हूँ की विषय के साथ सापेक्ष दृष्टी से न्याय करें .
    अधिकांस साथियों ने अपने अपने वैचारिक पूर्वाग्रहों के बरक्स्स प्रतिप्र्श्नात्म्क उदगार व्यक्त किये है ,जिनके उत्तर वे स्वयम जानते हैं .हालाँकि प्रश्न ही गलत हैं और यही कारण है की उनके उत्तर या तो होते नहीं या गलत होते हैं जो मानव समाज का हित करने के बजाय सिर्फ वोद्धिक जुगाली के काम आते हैं .कुछ साथियों ने आलेख पढ़ा ही नहीं और शीर्षक देखकर ही टिप्पणी जड़ दी यदि पढ़ा होता तो मेरी वैचारिक प्रतिवद्धता की घोषणा करने में उत्साही लाल साबित नहीं हुए होते
    मैं आप लोगों से उम्मीद नहीं करता की आप ढोंगी बाबाओं की सी डी देखें ,जिनकी पैरवी करने चले हो उनके काले कारनामों को जानो .उनकी तुलना एक ऐसे श्रेष्ठतम सच्चे क्रांतीकारी से मत करो जिस पर वो आरोप है जिसकी कल्पना भी उस व्यक्ति ने नहीं की ,रही बात नक्सलवादियों की मदद की तो मेने अपने आलेख में भी यही कहा था की जब आचार्य विनोबा भावे और श्री सुब्बाराव के सुझाव पर सरकार ने चम्बल के डाकुओं को आत्म समर्पित करवाया और शांति स्थापित की तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता की विनायक सेन ,पीयूष गुहा या सान्याल जी के सुझाव पर नक्सली हिंसा का अंत किया जाये ?इसके लिए यह जरुरी है की नक्सलवादी और माओवादी किसी ऐसे विश्वस्त मद्ध्यस्त की gaarantee तो अवश्य मांगेंगे जो उनको और सरकार को भी मंजूर हो ,अब यदि केंद्र और राज्य सरकार chahen तो bajay विनायक सेन की fajihat करने के is disha में शांति की tarf aage badh skte the . bhavishy में ऐसा ही hoga आप log anaavshyk kukarhav से bachen .

  2. आदरणीय तिवारी जी आप कबसे वामपंथी हो गये वामपंथियों का इतिहास ही राष्‍टद्रोह से भरा है इनकी जानकारी पाप्‍त करने के बाद ही वामपंथ अपनाइयेगा क्‍योंकि आपका ब्राहमणत्‍व भी कलंकित होजायेगा रही बात नक्सिलियों की मदद करने वाले डा0 विनायक सेन के सम्‍बन्‍ध में तो म्ै आपको कॉग्रेस की भाषा में बताना चाहूॅगा कि न्‍यायालय को अपना काम करने दीजिए और भई चिपलूनकर जी तथा इंजीनियर दिनेश गौर जी की बातो पर आपको ध्‍यान देना चाहिए विचार किसी के भी हो सदैव अच्‍छे विचार अपनाने के प्रयत्‍न करने चाहिएा

  3. एक ओर यह कहना कि सुशिक्षित और राष्ट्र निष्ठ भारतीय इस कथन को सगर्व पेश करते हैं कि ‘हमारा प्रजातंत्र चीन की साम्यवादी तानाशाही से बेहतर है, रूसी अमेरिकी और ब्रिटेन के लोकतंत्र में भी अभिव्यक्ति की इतनी आजादी नहीं जितनी कि हमारी महान भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में है, तथा दूसरी ओर विनायक सेन पीयूष गुहा और नारायण सान्याल तो भारतीय आत्मा का चीत्कार हैं.. आपके दोहरे चरित्र को उजागर करता है! वैसे भारतीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था द्वारा मिली आजादी का जितना दुरूपयोग करने में देश के शत्रु सफल हुए हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार जैसे शब्द सामान्य जनता ने इन्ही से सुने व इनका उपयोग आतंकियों व अन्य अलगाव वादियों, अपराधियों को कानून के चंगुल से बचाने के लिए ही उपयोग होता रहा है! ये आम आदमी का खून बहायें, पुलिस या सैनिक जनता की रक्षा करने आये तो उनपर भी हमला कर देना और जब पलट कर इनपर वार हो तो हाय मानवाधिकार! धिक्कार है ऐसे मावाधिकार पर! क्या ऐसे नक्सली भारतीय आत्मा का चीत्कार हैं? इनके लिए बुद्धिभोगिओं का चीत्कार करना, भारत के लोकतन्त्र की सबसे बड़ी विडंबना है? बंगाल में 2 माह पूर्व जो कुछ हुआ, नक्सली धर्मी NDTV ने नहीं दिखाया तोभी जनता जानती है! भेड़ की खाल में छुपे इन भेडिओं का मुखौटा उतर चुका है! इन बुद्धिभोगिओं को भी जनता पहचान रही है !

  4. दिए तले हमेशा अँधेरा ही होता है हमारे कम्युनिस्ट भाई साहब शायद ये बात नहीं जानते है ,कृपा कर सुरेश जी के सवालों के जवाब दीजियेगा ………………………….क्या विनायक नाम के आदमी ने कांची परम्चार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती से ज्यादा अच्छा काम किया है क्या??
    या अपना जीवन देश के लिए देने वाले साध्वी प्रज्ञा ,श्री देवेन्द्र गुप्ता या कर्नल पुरोहित,स्वामी अम्र्तानंद जी,स्वामी asimanand जी से भी ज्यादा काम किया है क्या??
    इन सब के खिलाफ राजस्थान हो या सीबीई या मुंबई क्रम ब्रांच झंडू खाने के भी सबूत नहीं है लेकिन ये सब अब “खूंखार अतान्गाव्दी” है लेकिन न्यायलय द्वारा अपराधी सिद्ध व्यक्ति महँ है ????
    किसे मुर्ख बना रहे हो??
    कम्यूनिस्टो व् गद्धारो का नापाक gatajod अब सार्वजनिक हो गया है अब किसी नौटंकी से काम नहीं चलेगा अपने प्रत्येक काम का हिसाब जनता को इन लोगो को देना ही पड़ेगा ओउर ये भी बताना पड़ेगा वे कौन लोग थे जिन्हौने माननीय उच्चतम न्यायलय को भ्रमित कर “सलवा जुडूम” पर बैन लगवाया जिसके बाद ही नक्सलियों ने खुनी खेल शुरू किया था

  5. आदरणीय तिवारी जी।
    आपका दिया मान भी ले, तो परोक्ष या अपरोक्ष रीतिसे, क्या, वह हिंसा का समर्थक, या प्रेरक नहीं था? इस बिंदुपर आप प्रकाश डालें, तो बात समझ में आ सकती है। गीतकी पंक्तियां अच्छी है, पर, सिद्ध कर दें, कि डॉ. सेनने हिंसाको बढावा देने में सहायता, अपरोक्ष और परोक्ष दोनो रीति से नहीं की थी। ।
    न्यायालय नें अपना निर्णय दे दिया। आप आगे उच्च न्यायालय में जाने स्वतंत्र है।यदि आपका दिया निर्दोष होगा, तो छूट जाएगा। अनुचित हेतु के लिए, डॉ. सेन ने यदि सहायता नहीं की थी, तो डरने की कोई बात नहीं है। दिये पर ही पंच तंत्रका सुभाषित हैं। आप जानकार है, शायद पंचतंत्र में पढा ही होगा। यदि घडे में अंधेरा(हिंसा) ही भरा है,तो घडे परका दीपक उसे उजाला कैसे देगा?
    फिर भी आपका रूपक (दिया और तुफान रोचक है।} पर साहित्यिक स्तर की तर्कना, न्याय के निकष पर भी सिद्ध होनी चाहिए।
    सुभाषित===>
    अन्धकार प्रतिच्छन्ने घटे दीप इवाहितः
    किं करोति एव पाण्डित्यम्, अस्थाने विनियोजितम्‌ ?॥
    ॥पंच तन्त्र॥
    अंधेरे भरे, घडे पर, दीपक,
    अंधेरा कैसे दूर करें?||
    क्या करेगी, पण्डिताई भी ?
    (अस्थाने) अनुचित स्थान लगी हुई? ॥

  6. अभिषेक जी,
    इन्हें समझाने का कोई फ़ायदा नहीं है…
    मैंने शेष जी के एक लेख पर एक सीधा सा सवाल पूछा था अभी तक किसी वामपंथी ने उसका कोई जवाब नहीं दिया है… बिनायक सेन क्या हैं, क्या नहीं हैं, क्या होना चाहिये थे, क्या हो गये… दो मिनट के लिये इसे अलग करें… और बतायें…

    जब शंकराचार्य और साध्वी को पुलिस ने गिरफ़्तार किया (अभी तक कोर्ट ने सज़ा नहीं दी है) तब यही वामपंथी कूद-कूद कर चिल्ला रहे थे… “कानून अपना काम करेगा…”, और अब एक लोअर कोर्ट के फ़ैसले पर इतना हंगामा मचा रहे हैं मानो वह अन्तिम फ़ैसला हो… इन्हें हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट में जाने का भी सब्र नहीं है…

    दोहरे मापदण्डों के सिर्फ़ दो उदाहरण यहाँ दे रहा हूँ – ग्राहम स्टेंस को जलाया गया था, गोधरा में भी ५६ हिन्दुओं को जलाया गया… दोनों घटनाओं पर मचे हल्ले, मीडिया कवरेज और दोगलेपन को देख लीजिये… समझ में आ जायेगा कि “शर्मनिरपेक्षता” क्या होती है।

    वामपंथी सबसे अधिक मानवाधिकार-मानवाधिकार भजते हैं (ये बात और है कि इनके कैडर बंगाल और केरल में उत्पात मचाये रहते हैं)… लेकिन जब भी कश्मीर से भगाये गये हिन्दुओं के मानवाधिकार की बात होती है तो तुरन्त इनके मुँह में दही जम जाता है…

    बिनायक सेन के पक्ष में जो माहौल खड़ा किया जा रहा है, वह न्यायालय की अवमानना है या नहीं यह तो विशेषज्ञ तय करेंगे, लेकिन जिस प्रकार की उछलकूद और बेचैनी दिखाई जा रही है वह शंकराचार्य के मामले में सिरे से गायब थी, जबकि हिन्दुओं को जानबूझकर नीचा दिखाने के लिये ही उन्हें ऐन दीपावली की रात गिरफ़्तार किया गया, जबकि नज़रबन्द भी किया जा सकता था…

  7. अभिषेक जी विनाश काले विपरीत बुद्धि की कहावत इन वामपंथियों पर चरितार्थ होती है…क्योंकि विनाश काल इनका चल रहा है हमारा नहीं…अत: आप चिंतित न हों और इसी प्रकार देश सेवा में लगे रहें…
    कौशिक जी से मै यही कहना चाहूँगा की मै यह लेख पूरी तरह से पढ़ चूका हूँ…कहना चाहता हूँ की इस प्रकार के लेख केवल पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं…यह क्या बात हुई की फैसला हमारे पक्ष में आये तो न्यायपालिका महान और नहीं तो उसे भी गालिया सुना दो…यदि आपको इस फैसले से इतनी तकलीफ है तो बता दूं उन की यह अंतिम फैसला नहीं है अभी सर्वोच्च न्यायालय भी अपनी राय दे सकता है…किन्तु याद रखें की यदि विनायक सेन दोषी हैं तो उन्हें सजा आज नहीं तो कल अवश्य मिलेगी…जहाँ तक अभी तक के पक्ष सामने आएं हैं विनायक सेन दोषी ही पाए जाते हैं…याद रखें मै चाहे दिखावे के लिए कितने भी गरीबों के अधिकार की लड़ाई लड़ता रहूँ किन्तु यदि देश के दुश्मनों की सहायता मै करता रहूँ तो मै किसी भी हालत में सजा से बच जाने का अधिकारी नहीं हूँ…डॉ. सेन जैसे लोग पहले इन गरीबों के भगवान् बनते हैं बाद में इन्हें ही अपनी कुचालों में मोहरा बना देते हैं…याद होगा वीरप्पन ने भी यही किया था…
    तिवारी जी से भी मै यही कहना चाहता हूँ…तिवारी जी से मैंने एक लेख पर टिपण्णी में एक बात कही थी जिसका प्रतिउत्तर में आपने मुझे कुछ नहीं कहा था…मैंने उनसे कहा था कि व्यक्तिगत रूप से मै आपका सम्मान करता हूँ किन्तु विचारों में भिन्नता के कारण आपसे मतभेद रखता हूँ…मैंने आपका ब्लॉग भी पढ़ा था और उसमे मैंने कुछ ऐसे बिंदु देखे जिससे मुझे यह आभास हुआ कि आप सच में अच्छे इंसान हैं किन्तु शायद किसी कारंवाश वामपंथ को अपना चुके हैं…आपकी ज़रुरत देश को है अत: अपनी पूर्ण शक्ति देश को समर्पित करें न कि इन माओवादियों या नाक्साल्वादियों को बचाने में…

  8. श्री श्रीराम जी तिवारी, नमस्कार. आपके इस आलेख के लिए साधुवाद और आभार. आज देश और देशवासिओं को आप जैसे साफ-सुथरे कलमकारों की जरुरत है, गुलामकारों की नहीं. आपके इस आलेख विषय को पढकर एक पुराना फ़िल्मी गीत याद आ गया – ” यह कहानी है दिए की और तूफ़ान की “. आप इसी तरह से बेबाक होकर लिखते रहेंगे, आपसे यही अपेक्षा है. धन्यवाद.
    – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, कोटा – ३२४ ००६ (राज.) : ०९८८७२-३२७८६

  9. पुरे देश में जमीं को कम्यूनिस्टो को नहीं मिल रही है ओउर विनाश काल मेरा चाह रहे है ,कौशिक जी मेने आपको कब कहा मई “जेटामलानी जी” से ज्यादा समझ दार hanu??आपके बिलकुल सही कहा मेरा लेवल उनसे तुलना करने लायक नहीं है न जेतामालानि जी से न गद्दार विनायक सेन से ,दोनों अपने अपने क्षेत्र के बहुत बड़े सिध्हस्त है इअसमे कोई शक नहीं है ,मेने सिर्फ इतना कहा है की अभी तक न्यायपालिक ने विनायक को गद्दार घोषित किया है ,उस पर न्यायलय पर आक्षेप लगाना व् बेमतलब जजों के भ्रष्ट होने की बात बिच में घसीटना ,कुछ एसा ही जैसे कसाब बोले की भारत के जज भरष्ट है इसलिए मुझे सजा देने का कम पाकिस्तान वाले करेगे,या फिर अफजल को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा देने पर भी कोई वामपंथी कहे की ये भारत के भ्रष्ट जज के कारन एसा हुवा है ,किसी को फैसले से एतराज है उच्चन्यायालय में जाओ,उच्चतम न्यायलय में जाओ,यहाँ छाती पीटने से क्या होगा??
    वैसे भी मेरा लेवल कितना भी हो,उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है जितना गद्दारो को समर्थन करने वाले जेतामलाई या आप लोगो के लेवल से पड़ता है गद्दारो को इस देश में कभी जमीं नहीं मिली थी न मिलेगी कम्युनिस्ट गद्दारों को जाना ही होगा ओउर जज ने उसकी भूमिका बांध दी है सब जनता के सामने ये निर्लज्ज कम्युनिस्ट नंगे हो गए है सीधा सीधा जज का अपमान कर रहे है ओउर माफ़ करना आप क्या आपके जेटामलानी क्या आपके विनायक क्या खुद मार्क्स भी भारतीय न्यायव्यवस्था से ऊपर नहीं है ……………………………

  10. कौशिक जी को धन्यवाद .की पूरा आलेख पढ़ा .निंदा स्तुति से परे यदि क्षणिक ही हुआ जाए तो अभिषेक को भी धन्यवाद की अपना पक्ष रखा ,जिसका की उन्हें moulik अधिकार है ,लेकिन उनसे निवेदन है की बाईस पसेरी धान एक तराजू से तौलने की जहमत न उठायें .
    नक्सलवादियों या माओवादियों का हम कभी समर्थन नहीं करते ,बल्कि हम unke vaicharik prval virodhi hain .डॉ विनायक सेन का मामला अभिव्यक्ति ओर मानव अधिकार से जुड़ा है ,अभिषेक की अतिउत्साह में ,अति आवेश में aakramk टिप्पणी का तब कोई मतलब नहीं रह जाता जब पता चलता है की सिद्धार्थ शंकर राय ने एक गुप्त पत्र१२ जून१९७४ के आसपास तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को लिखा tha की आर एस एस और आनंदमार्ग से देश को खतरा है .फ़ौरन आपातकाल लगाओ ,ये पत्र ३६ साल बाद कल ही एक्सपोज हुआ है .सिद्दार्थ शंकर का आर एस एसतो कुछ नहीं बिगाड़ सका किन्तु सिद्धार्थ शंकर राय और कांग्रेस से बंगाल केरल त्रिपुरा की तीन सरकारें छीनकर माकपा ने उनको जो जबाब दिया उससे तो अभिषेक जी को खुश होना चाहिए था लेकिन वे तो स्थाई रूप से संकीर्णता का चस्मा लगा बैठे हैं ‘.विनाशकाले विपरीत बुद्धि ‘ इश्वर सद्वुद्धि प्रदान करें

  11. ऐसा लगता है की पुरोहित जी ने पूरी तरह से तिवारी जी का लेख पढ़ा ही नहीं है, यदि पढ़ा है तो समझा नहीं है. यहाँ अदालत की अवमानना की कोई बात है नहीं. आप से अधिक समझदार तो श्री जेठमलानी जी हैं, माफ़ करना वैसे आप का लेवल उनसे तुलना करने के लायक नहीं है.

  12. देश की न्यायपालिका का अपमान के घाव बहुत दूर तक जायेंगे,अपने पक्ष में फैसला ए तो सही वरना विलाप ????ये देश द्रोही कम्युनिस्ट की बहुत पुराणी सोच है जो लोग ४८ में भारत के खिलाफ सश्र्त्र लडाई कर रहे थे ,जिनके कारन पूरा बंगाल,छातिस्गर आदि खुनी दरिया व् बारूद पर बैठा है उन लोगो को सजा देकर एक बार अक्ल ठिकाने लगा दी है लेकिन मुझे नहीं लगत कुछ होगा क्योकि अपनी “बहुत उची” रसूख के चलते ये गद्दर छुट भी जायेगा ,इस देश में ये ही होना है ……………….

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