राजनीति

ये कैसा गांधीवाद है स्वामी अग्निवेशजी

कहलाते हैं शांति के दूत और वकालत करते हैं तोप से उड़ाने की

-दानसिंह देवांगन

स्वामी अग्निवेश जी प्रखर गांधीवादी, अमन व शांति के दूत और न जाने क्या-क्या तमगा लिए देशभर में घूमते हैं, पर पिछले दिनों आईबीएन-7 में प्रसारित मुद्दा कार्यक्रम में उनका असली गांधीवाद (गुप्त एजेंडा) सामने निकलकर आ ही गया। उस कार्यक्रम में उन्होंने खुलेआम कहा कि आजादी की 63वीं वर्षगांठ पर लालकिला में प्रधानमंत्री को भाषण देने केबजाए देश के सबसे भ्रष्ट 63 नेता, अफसर, व्यापारी को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा देना चाहिए। जिस दिन ये होगा देश में नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा। इससे पहले रायपुर में नक्सलवाद पर आयोजित एक सेमीनार में भी उन्होंने पत्रकारों से सीधी चुनौती देते हुए कहा था कि आप नक्सलवाद का समर्थन करिए, अन्यथा आज एक पत्रकार मारा गया है कल आप भी मारे जाएंगे। इस मुद्दे पर जमकर बवाल भी मचा था।

इन दोनों ही कार्यक्रम में उन्होंने गांधीवाद का जमकर ढिंढोरा पीटा। कहा कि मैं गांधीवादी तरीके से नक्सलवाद का हल निकालना चाहता हूं। न पुलिस की हिंसा सही है और न ही नक्सलवाद की। देश में किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं होनी चाहिए। इस लिहाज से दुनिया के सबसे अहिंसक व्यक्ति से आज मैं श्रद्धा और विनम्रता से पूछना चाहता हूं कि माना कि भ्रष्ट नेता, अफसर और व्यापारियों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन ये कौन सा गांधीवाद है जो ये सिखाता है कि लोकतंत्र और कानून की खुलेआम धाियां उड़ाते हुए आप लोगों को तोप से उड़ाने की सलाह दें। भ्रष्ट नेता और अफसरों को सजा मिले, ये हम भी चाहते हैं लेकिन तोप से बांधकर नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से। आजादी के आंदोलन में गांधी जी समेत लाखों देशवासियों पर अंग्रेजों ने न जाने कितने ही जुल्म ढहाए, बावजूद इसके उन्होंने कभी भी अंग्रेजों को तोप से बांधकर उड़ाने की वकालत नहीं की। फिर आप कौन से गांधीवाद की बात करते हैं स्वामी अग्निवेश जी? तोप और बंदूक से देश में क्रांति लाने का समर्थन तो सिर्फ नक्सलवादी करते हैं। तो क्या आप भी नक्सलवादी हैं, ये मान लें। या अब भी आप गांधीवाद के नाम पर देशवासियों को गुमराह करते रहेंगे।

मुझे लगता है कि स्वामी जी कन्फयूड हैं। वे नक्सलवाद को तो मानते हैं, लेकिन गांधीवाद का चोला पहनकर देशभर में अपने आप को पाक-साफ रखना भी चाहते हैं। पर जनता अब सब समझ चुकी है स्वामी जी। पहले आप यह तय करें किआपकी विचारधारा कौन सी है? फिर आप देश की जनता के सामने आएं तो बेहतर होगा। यहां मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि हमें आपके गांधीवादी होने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन गांधीवादी होने का ढोंग रचकर फासीवादी तरीके से समस्या का हल निकालने की वकालत करने पर हमें ऐतराज है।

वे इन कार्यक्रमों में एक बात और कहते हैं कि आजाद को पुलिस ने गलत तरीके से मारा है। उनका आरोप है कि आजाद को फर्जी एनकाउंटर से मारा गया। इसलिए भारत सरकार उसकी जांच करे। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि पिछले तीन दशकों में नक्सलियों ने हजारों पुलिसवालों को मुठभेड़ में मारा। न सिर्फ मारा, बल्कि उनके शवों को बेदर्दी से काट भी डाला। पुलिस को मारा वहां तक ठीक है, लेकिन उनके शवों ने उनका क्या बिगाड़ा था जो मानवीयता की सारी हदें पार कर उन निर्जीव पड़े शवों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। ऐसे देशद्रोहियों को मुठभेड़ में मारा हो या फर्जी मुठभेड़ में, स्वामी जी को उनसे इतनी हमदर्दी क्यों। यानि वे हमारे जवानों की शवों के साथ नंगा नाच करे और हमें उन्हें मारने का हक भी नहीं है। पुलिस के जवान नक्सली के नाम पर किसी बेकसूर को मारते तो हम मान सकते थे कि इसकी जांच होनी चाहिए, लेकिन जब नक्सली समेत आप स्वयं यह मान रहे हैं कि आजाद हार्डकोर नक्सली ही था, फिर उसे मारने में कैसा अफसोस अग्निवेश जी?

आखिर में आपसे सीधा और सरल सवाल है कि आप कौन हैं? पहले आप स्वयं तय करिए। यदि गांधीवादी हैं तो कृपा करके लोगों को तोप से मारने की वकालत कर गांधीजी पर तमाचा मर मारिए और यदि नक्सल समर्थक हैं तो फिर उसी तरीके से सरकार से लड़िए। उसके लिए गांधीवाद का चोला ओड़ने की क्या जरूरत है?