ये कैसा गांधीवाद है स्वामी अग्निवेशजी

कहलाते हैं शांति के दूत और वकालत करते हैं तोप से उड़ाने की

-दानसिंह देवांगन

स्वामी अग्निवेश जी प्रखर गांधीवादी, अमन व शांति के दूत और न जाने क्या-क्या तमगा लिए देशभर में घूमते हैं, पर पिछले दिनों आईबीएन-7 में प्रसारित मुद्दा कार्यक्रम में उनका असली गांधीवाद (गुप्त एजेंडा) सामने निकलकर आ ही गया। उस कार्यक्रम में उन्होंने खुलेआम कहा कि आजादी की 63वीं वर्षगांठ पर लालकिला में प्रधानमंत्री को भाषण देने केबजाए देश के सबसे भ्रष्ट 63 नेता, अफसर, व्यापारी को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा देना चाहिए। जिस दिन ये होगा देश में नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा। इससे पहले रायपुर में नक्सलवाद पर आयोजित एक सेमीनार में भी उन्होंने पत्रकारों से सीधी चुनौती देते हुए कहा था कि आप नक्सलवाद का समर्थन करिए, अन्यथा आज एक पत्रकार मारा गया है कल आप भी मारे जाएंगे। इस मुद्दे पर जमकर बवाल भी मचा था।

इन दोनों ही कार्यक्रम में उन्होंने गांधीवाद का जमकर ढिंढोरा पीटा। कहा कि मैं गांधीवादी तरीके से नक्सलवाद का हल निकालना चाहता हूं। न पुलिस की हिंसा सही है और न ही नक्सलवाद की। देश में किसी भी प्रकार की हिंसा नहीं होनी चाहिए। इस लिहाज से दुनिया के सबसे अहिंसक व्यक्ति से आज मैं श्रद्धा और विनम्रता से पूछना चाहता हूं कि माना कि भ्रष्ट नेता, अफसर और व्यापारियों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन ये कौन सा गांधीवाद है जो ये सिखाता है कि लोकतंत्र और कानून की खुलेआम धाियां उड़ाते हुए आप लोगों को तोप से उड़ाने की सलाह दें। भ्रष्ट नेता और अफसरों को सजा मिले, ये हम भी चाहते हैं लेकिन तोप से बांधकर नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से। आजादी के आंदोलन में गांधी जी समेत लाखों देशवासियों पर अंग्रेजों ने न जाने कितने ही जुल्म ढहाए, बावजूद इसके उन्होंने कभी भी अंग्रेजों को तोप से बांधकर उड़ाने की वकालत नहीं की। फिर आप कौन से गांधीवाद की बात करते हैं स्वामी अग्निवेश जी? तोप और बंदूक से देश में क्रांति लाने का समर्थन तो सिर्फ नक्सलवादी करते हैं। तो क्या आप भी नक्सलवादी हैं, ये मान लें। या अब भी आप गांधीवाद के नाम पर देशवासियों को गुमराह करते रहेंगे।

मुझे लगता है कि स्वामी जी कन्फयूड हैं। वे नक्सलवाद को तो मानते हैं, लेकिन गांधीवाद का चोला पहनकर देशभर में अपने आप को पाक-साफ रखना भी चाहते हैं। पर जनता अब सब समझ चुकी है स्वामी जी। पहले आप यह तय करें किआपकी विचारधारा कौन सी है? फिर आप देश की जनता के सामने आएं तो बेहतर होगा। यहां मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि हमें आपके गांधीवादी होने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन गांधीवादी होने का ढोंग रचकर फासीवादी तरीके से समस्या का हल निकालने की वकालत करने पर हमें ऐतराज है।

वे इन कार्यक्रमों में एक बात और कहते हैं कि आजाद को पुलिस ने गलत तरीके से मारा है। उनका आरोप है कि आजाद को फर्जी एनकाउंटर से मारा गया। इसलिए भारत सरकार उसकी जांच करे। मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि पिछले तीन दशकों में नक्सलियों ने हजारों पुलिसवालों को मुठभेड़ में मारा। न सिर्फ मारा, बल्कि उनके शवों को बेदर्दी से काट भी डाला। पुलिस को मारा वहां तक ठीक है, लेकिन उनके शवों ने उनका क्या बिगाड़ा था जो मानवीयता की सारी हदें पार कर उन निर्जीव पड़े शवों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। ऐसे देशद्रोहियों को मुठभेड़ में मारा हो या फर्जी मुठभेड़ में, स्वामी जी को उनसे इतनी हमदर्दी क्यों। यानि वे हमारे जवानों की शवों के साथ नंगा नाच करे और हमें उन्हें मारने का हक भी नहीं है। पुलिस के जवान नक्सली के नाम पर किसी बेकसूर को मारते तो हम मान सकते थे कि इसकी जांच होनी चाहिए, लेकिन जब नक्सली समेत आप स्वयं यह मान रहे हैं कि आजाद हार्डकोर नक्सली ही था, फिर उसे मारने में कैसा अफसोस अग्निवेश जी?

आखिर में आपसे सीधा और सरल सवाल है कि आप कौन हैं? पहले आप स्वयं तय करिए। यदि गांधीवादी हैं तो कृपा करके लोगों को तोप से मारने की वकालत कर गांधीजी पर तमाचा मर मारिए और यदि नक्सल समर्थक हैं तो फिर उसी तरीके से सरकार से लड़िए। उसके लिए गांधीवाद का चोला ओड़ने की क्या जरूरत है?

26 COMMENTS

  1. दान सिंह जी का यह लेख स्वामी अग्निवेश जी की असलियत उजागर करने वाला है. वे अनेकों बार अपने दोगले चरित्र का परिचय दे चुके हैं. पर नक्सलियों के बारे में ज़रा गहराई से विचार करने की ज़रूरत है. काश्मिरी आतंकवादी और नक्सली आन्दोलन एक तराजू पर रख कर तोलना उचित नहीं होगा. ज़रा निम्न बिन्दुओं पर ध्यान दें—-
    – काशमीरी आतंकवादी तो विश्व भर में फैले जिहादी आतंकवाद का एक अभिन्न हिस्सा हैं.
    – आर्थिक रूप से वे भारत के किसी भी प्रदेश से अधिक समृद्ध हैं. अतः उनके आतंकवाद को आर्थिक कारणों से जोड़ना शरारत पूर्ण प्रयास है जो साम्यवादी व उनके समर्थकों द्वारा चल रहे हैं.निस्संदेह अमेरिका भी इस षड्यंत्र में शामिल हैं.
    * इसके विपरीत नैक्स्लाईटर आदोलन का मूल कारण उनकी वह दुर्दशा है जो सरकार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा की जा रही है. उनकी ज़मीनें, मकान, आजीविका छीनी जा रही है. दो जून की रोटी से उन्हें विकास के नाम पर वंचित किया जा रहा है. कोई उनकी करूँ पुकार सुनने वाला नहीं है. ज़रा सोचे की ऐसे में आप होते तो आप क्या करते ? निस्संदेह वही करते जो जो नैक्स्लाईटर कर रहे हैं.
    * सवाल यह पैदा होता है कि रोटी-कपडे को मोहताज, भूखे-नंगे निर्धनों के पास करोड़ों रुपये मूल्य के हथियार कहाँ से आ गए ? तो इसका जवाब है कि इन हालात का फ़ायदा विदेशी ताकतों ने उठाया है. भारत में गृह युद्ध की स्थितियां निर्माण करने के लिए इन शत्रु ताकतों ने इन वंचितों के हाथ में हथियार थमा दिए और अपने एजेंट इनके बीच बिठा दिए हैं.
    * एक विचित्र स्थिती और निर्मित हुई है. नैक्स्लाईटरों के बीच गुसपैठ करके उन्हें देश के विरुद्ध इस्तेमाल करने का काम अकेला चीन और उसके वामपंथी समर्थक नहीं कर रहे, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के ईसाई एगेंट भी अंग्रेज़ी शासन काल की तरह सक्रीय हैं. यानी इस आन्दोलन को बढाने और अपने पक्ष में भुनाने में परस्पर विरोधी समझी जाने वाली कमुनिस्ट और पूंजीवादी ताकतें एक साथ मिल कर काम कर रही हैं.
    ** इस आन्दोलन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आन्दोलनकारियों को हर हाल में मरने और उजड़ने के लिए अभिशप्त बना दिया गया है. यदि वे अपने विस्थापन पर चुप रहते हैं त भी वे समाप्त ह जाएंगे और अपने अस्तित्व के रक्षा के लिए हथिया उठाते हैं तो भी उन्हें समाप्त होना है. सरकार उन्हें आसानी से देश का दुश्मन कह कर मार डालेगी, मार रही है. इस प्रकार विदेशी ताकतों के लिए भूमी खाली करवाने के उद्देश्य की पूर्ती हर हाल में होनी सुनिश्चित की जा रही है.
    **देश की इन विकट परिस्थितियों के लिए वास्तविक अपराधी कौन है ? किसने विदेशियों व्यापारियों के हित में निर्धनों की भूमी के सौदे किये ? सरकार ने ! किसकी नालायकी के कारण विदेशी हथियार इस देश की सीमाओं के भीतर इतनी बड़ी मात्रा में आ सके ? इसी सरकार के कारण न ? किसने इन निर्धनों को उजाड़ने के बाद भूखे मरने के लिए निर्ममता पूर्वक प्रकृती के भरोसे छोड़ दिया ? इस निर्माण और विदेशी ताकतों की एजेंट सरकार ने ! तो आज के इन हालात का असली अपराधी यही सरकार है जो देश की संपदा विदेशियों के हाथो लुटवाने के इलावा हज़ारों देशवासियों को उजाड़ने व उनकी ह्त्या की भी जिम्मेवार है.
    *** समाधान यही है कि —
    – विदेशी-स्वदेशीनिगमों, कंपनियों को दिए भूमि के सभी सौदे रद्द करके वह भूमी उसके वास्तविक स्वामियों को सौंपने की घोषणा की जाये. एक दिन में नक्सली आन्दोलन समाप्त होजायेगा.
    – नक्सलियों में घुसे विदेशी एजेंटों की पहचान करके उनपर कानूनी कायवाही हो. उनके स्वदेशी एजेंटों से भी कठोरता से निपटा जाये. निसंदेह अधिकाँश वे ही होंगे जो चीन को सन ६२ में अपना मुक्ती दाता बतलाते रहे. बाकी वे होंगे जिन्हें नियोगी कमीशन ( मध्य प्रदेश ) ने आसानी से सी.आई.ए का एजेंट बनने वाला बतलाया था.
    # पर ये सब काम तो सरकार के करने के हैं. सरकार तो साम्राज्यवादी ताकतों की है और केवल, केवल उन्हीं के हित में काम करती आ रही है. और उनके लिए देश की सारी सम्पदा लुटा रही है, भारतीयों की हत्याएं कर रही है. तो फिर समाधान कैसे होगा ? कौन छीनेगा इन आताताईयों के हाथ से सत्ता के सूत्र ? इसके बिना समाधान संभव नज़र नहीं आता.

  2. आदरणीय दान सिंग जी
    मै तो इस बात से हैरान हु की कुछ लोग दबे स्वर में देश विरोधी गतिविधियों में जी जान से लगे रहते है ऐसे कपट रूपी ध्रीतरासट यदि आपसे आलिंगन करना चाहे तो आपको लोहे का पुतला आगे बढ़ाना चाहिए मेरे कहने का मतलब है की स्वामी अग्निवेश जी तो कम से कम अपनी भावनाओ को पब्लिक में ला रहे है हमारे रास्त्र के लगभग सभी राज्य के नेता नक्सलियों से बात करना चाहता है ऐसे में यदि स्वामी जी प्रयास रत है तो आपको बुरा क्यों लग रहा है यदि आप स्वामी जी के विरोधी है तो आपको डॉ रमण सिंग जी का भी विरोध करना चाहिए जो इन दीनो स्वामी जी के तारीफ के पुल बाधने का एक भी मोका नहीं छोड़ रहे है !अभी हाल ही में बस्तर में नक्सलियों द्वारा कुछ सिपाहियों को बंधी बनया गया जिन्हें छुडाने में स्वामी जी की प्रमुख भूमिका रही ऐसा आपके छ-गढ़ के सी -एम् साहब भी कह रहे आपने स्वामी जी की इन भूमिका का सायद अवलोकन नहीं किया है
    कृपया आप मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुवे लोगो को बताये उन जाबाज सिपाहियों को जब बंदी बनाया गया तो उनको रिहा कराने में आपने क्या भूमिका निभाया …..जहा तक मै जानता हु आपने अपने समाचार पत्रिका में सरकार की आलोचना के एक भी छन नहीं खोया होगा किसी व्यक्ति विशेष की टिपण्णी करने के पहले अपनी भूमिका को आत्मसात अवस्य कर लिया करे और क्यों आत्मसात करने की बात कह रहा हु ये जानने की इक्छा है तो कृपया मेरे प्रसन का उत्तर लोगो को जरुर दे
    धन्यवाद्

    • manoj ji aapne achchha sawal uthaya hai. apne hamari bhumika puchhee hai to suniye- vo 4 jawan ham mediakarmiyo ki wajah se hi naxaliyo se chhut payen hai. jaha tak swamiji ki alochna ka sawal hai, mai unke kaamkaaj ki aalochna nahi kar raha hu. mai to sirf unke kahe gaye sabdo ko pirokar aapke samane rakha raha hu. ye aalochna hai to ye aap unki aalochna kar rahe hai mai nahi. aur yadi taarif hai to bhi aap kar rahe hain mai nahi. so mujhe lagata hai aapko ek baar bhir se aarticle padne ki jarurat hai. fir mujhe likhiyega.

  3. Swami Agnivesh is from Arya Samaj. His Holiness is an activist and gets associated with issues that arise from time to time. He has no political or social organization or other regular business.
    Swami Ramdev, also from Arya Samaj, has brought revolution in spread of Yoga and Ayurved.
    I think Swami Agnivesh also has the right to get associated with different issues and leaders (like Mamta Banerjee) requiring him. Swami Agnivesh has great abilities which are not being used by Arya Samaj.
    Swami Agnivesh has been working on ad hoc basis jumping from issue to issue for decades.

  4. नक्सलियों ने तो सबको जाहिर कर दिया है की कौन उनके खैरख़्वाह हैं। इस अब आतंकवाद, भ्रष्टाचार इत्यादि का कारण यही है की हमारी बनाई हुई कानून और राज्य व्यवस्था उचित परिणाम देने में सक्षम नहीं है , फेल हो गयी है.

  5. विनाशकाले विपरीत बुद्धि स्वामी जी को याद रखना चाहिए – ‘संतन को का सीकरी सों काम ‘ उनका इस तरह का आचरण की गुड खाएं ;गुलगुलों से परहेज ;अफसोसजनक ही है .अरुंधती रॉय .महाश्व्ता देवी .;मेघा पाटकर और कतिपय एन जीओ का इस पूंजीवादी साम्राजवादी -नव उदारवादी दौर में ;शोषक वर्ग के साथ खड़े होना कोई अनहोनी नहीं है .नक्सलवाद हो या ममता का पाखंडपूर्ण नाटकीय चरित्र .ये सभी chhadmbuddhijeevi desh को sankat में daalne का काम karte rahte hain .

  6. अग्निवेश जैसे बहुरूपिये और कौन-कौन से ‘वेश’ धर सकते हैं इसकी महज़ कल्पना ही की जा सकती है. रायपुर के सेमीनार और आईबीएन के कार्यक्रम में अगर अग्निवेश ने ऐसा कहा है तो उन पर मुकदमा भी चलाना चाहिए…बढ़िया आलेख..तथ्यपरक चिंतन.

  7. कैसे कश्मीरी आतंकवादियो को और नक्सलवादियो को अलग अलग दायरे में देखा जा रहा है ये समझ से परे है , क्योंकि वो भी देश के दुश्मन है और ये भी . फर्क सिर्फ इतना है की वे बोलकर दुश्मनी निभा रहे और ये गद्दार देश के अन्दर रहके देश से दुश्मनी कर रहे है . स्वामी जी का तो क्या कहना उनके लिए १८० जवानों का शहीद होना आम बात है पर एक नक्सली आज़ाद की मौत उन्हें सोने नहीं देता ये उन्होंने ही रायपुर में सबके सामने कहा था तो अब आप लोग ही विचार कीजिये की स्वामी जी के साथ क्या सलूक किया जाना चाहिए .

  8. Agniwesh ek purana naksli hai, jo Andhar pradesh main kam karta tha. Apne kuch sathion key sath phir yah sadhuwesh & arya samaji ho gaya. Na jane arya samaj wale isey kyon sir par dho rahe hain ?

  9. स्वामी जी के नक्सली आंदोलन के प्रति उनकी संवेदना का मैं खुले दिल से स्वागत करता हूँ और साथ ही नक्सवादी आंदोलन के पक्ष में अपना मत प्रकट करता हूँ. स्वामी जी के कपडे का रंग कौन सा होना चाहिये ये उनका व्यक्तिगत फ़ैसला है और ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि किसी गांधी वादी ने देश में चल रहे किसी हिंसक आंदोलन का समर्थन पहली बार दिया हो..राज्य की आपराधिक निष्क्रियता, उसके आपराधिक चरित्र और जन विरोधी नीतियों का प्रतिकार है नक्सली आंदोलन जिसे नेतृत्व देने वाले किसी राजनेता के वंशज नही वरन अपनी जान की परवाह किये बगैर किसी उसूल के लिये प्रतिबद्ध शिक्षित नौजवान हैं, भगत सिंह को भी तत्कालीन मध्यवर्गीय उवाच में उग्रवादी कहा गया था.
    यदि भारत सरकार अपने प्रतिक्रियावादी चरित्र के अनुरुप कार्य करती रही तब वह दिन दूर नहीं जब उसकी शिकस्त इन्ही नौजवानों के हाथों होगी क्योंकि इतिहास गवाह है विचार को दुनिया की कोई भी सरकार ताकत के बल पर परास्त नही कर पायी. मैं उम्मीद करता हूँ कि कामरेड आज़ाद की कायराना हत्या का बदला शीघ्र ही लिया जाना चाहिये.

    • shamsjee
      bhagat singh ne kabhi angrejo ke lashon ko amnviya rup se kata ya tukde tukde nahi kiye. aap desh ke mahan shahid bhagat singh ki tulna naxaliyo se karke desh ke gaddaro ki list me samil ho gaye hai. aap naxaliyo ka suport ka sakte hai. but uski tulna bhagat singh na karen.

      • आदरणीय श्री दानसिंह जी,

        आप यहाँ इस लेख के लेखक के रूप में उपस्थिति हैं।

        मेरा विनम्र मत है कि आप किसी से सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन किसी को गद्दार घोषित करें, मुझे तो नहीं लगता कि किसी भी लेखक को यह शौभा देता है।

        इस टिप्पणी के बिना भी काम चल सकता था। वैसे विचार व्यक्त करने के लिये आप भी उतने ही स्वतन्त्र हैं, जितने की अन्य लोग।

        हम उस देश में रहते हैं, जहाँ भगत सिंह जैसे सर्व कालिक भारत रत्न को भी कुछ लोग गुण्डा और आतंकवादी करार देने से नहीं चूकते हैं।

        ऐसे लोगों का इलाज उन्हें गाली देकर नहीं किया जा सकता।

        हमें स्वीकारना होगा कि कहीं न कहीं हमारी व्यवस्था में बडी खामी है।

        जब तक व्यवस्था में सुधार एवं व्यवस्था का सही से क्रियान्वयन नहीं होगा, तब तक बहुत मुश्किल है, इंसाफ की बात करना, कहना या इंसाफ का समर्थन करना, लेकिन फिर भी लोग अपनी बात कह ही देते हैं, बेशक लोग उन्हें आतंकवादी, देशद्रोही या गद्दार कुछ भी कहें।

        यह अत्यन्त दु:खद और विचारणीय स्थिति है।

        • मीणा जी,
          दान सिंह के यह बयान अपने आप में एक पर्दाफ़ाश है, उनकी सोच की सीमायें है और एक खास चश्में से देखने की उनकी मजबूरी उन्हे ये तमाम प्रमाणपत्र/प्रशस्ति पत्र बाँटने को बाध्य करती हैं, उनका यह बयान इंगित करता है कि वह स्वंम एक पार्टी हैं, लूट खसोट कर रही कंपनियां सिर्फ़ संसाघन ही नहीं लूटती वो कुछ खरीदती भी हैं और कुछ छद्दम माल नेता/लेखक/कार्यकर्ता आदि आदि बिकते भी हैं, मुझे इनके प्रमाण पत्र की न कोई आवश्यकता है न मैं उसे कोई महत्व देता. इस छद्दम तथाकथित देश भक्तों को यह बताने की जरुरत है कि खाप पंचायत के मुखियों ने कोई ६००-७०० हत्यायें की हैं, लेकिन उनके खिलाफ़ राष्ट्र द्रोह का विचार प्रबल न होगा, नक्सली (उनके लडने के तरीके पर बहस हो सकती है और मेरी असहमति भी) देश द्रोही इस लिये है कि वह अन्याय के खिलाफ़ लड रहे हैं और अन्याय की सेना के विरुद्ध युद्धरत है..इसलिये वह देश द्रोही हैं..ये वैचारिक दोगला पन नही तो क्या है? बारहाल यह निजी चयन और सोच का मामला है लोग पडौस में भूखा कोई मर जाये तब भी चैन से सो जाते है..और कुछ लोग हजारों मील दूर से मदद करने की हर संभव कोशिश भी करते हैं..!!
          नक्सली मेरे लिये भारत सरकार के किसी भी भ्रष्ट नेता अथवा टुकडखोर, रिश्वतखोर भ्रष्ट नौकरशाह से लाख गुना अच्छा है जो कम से कम किन्ही मूल्यों के लिये अर्पित तो है..स्वामी जी, ममता बनर्जी, अरुंधति राय और न जाने कितने हैं..दान सिंह जी का बस चले तो सबको तालिबानी फ़ैसले के मुताबिक चौराहो पर फ़ाँसी लगवा दे..
          खैर जरुरत है इस समस्या पर गहराई से विचार मंथन की, सच्चाई से यह मानने की कि हमारी व्यवस्था के हर दोष को स्वीकार करने की और इस ढांचे को बचाने की नहीं वरम एक धक्का और देकर इससे मुक्ति पाने की ताकि कोई नई सुबह आये, कोई नया सूरज दिखे कोई नया आसमान दिखे जिसमें किसी का शोषण न हों, कोई किसी की कमाई को लूटे नहीं, जहाँ सब को न्याय मिले, सबको अपने हिस्से की रोटी खाने का सुख हो. कोई जाति विद्वेष न हो..बराबरी हो साम्य हो राम राज्य हो…अगर इस ख्वाब के बदले कोई मुझे गद्दार कहे..मुझे स्वीकार है. ये सब काम नक्सली कर रहे हैं..यही स्वप्न है उनका..सो मेरा खुला समर्थन है..स्वामी जी से आज का परिचय नही है १९८७ में मेरठ के सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ़ दिल्ली से मेरठ तक पैदल मार्च किया था देश के प्रसिद्ध हस्तियों ने..मार्च को आयोजित कराने मे मैं शामिल था..उसमें स्वामी जी भी थे..सो, वो जहाँ हैं..मैं भी हूँ. तुम भी साथ दो..इतिहास उन्हे कैसे याद करता है तुम्हे पता है जो आज़ादी के विरुद्ध लडते हैं..!!
          सादर

          • are aap naaraj ho gaye. isi ko kahte hai adh-jal-gaghari-chhalkat jaye. are bhai comments karne se pahle lekh to aankh-kaan kholkar pad liya kariye. maine kahi bhi naxalwad ya swami ke khilaf nahi kaha hai. maine to unke do jagah diye bayano ka aklan karte huye unke nature ko batane ka prayash kiya hai. ab unka bayan unke chole se mel nahi khate to isme mai kya kar sakta hu. ye aap swami ji se hi jakar puchhe.
            ek baat aur jo bhi naxalwad ke khilaf likhata hai vah bika hua nahi ho sakata. jaise aap naxal ke hatho nahi bike honge. hum lekhak hai aur har galat baat par bebbaki se likhate hai. chahe sarkar ho ya gaddar. isliye agli baar comments de to kripya bikane-bikane ki baate nahi karen to acchha hoga.

          • बिलकुल सही कहा आपने
            दान सिघ जी पत्रकारिता में अपने पव जमा रहे सरकार विरोधी लोगो की बुराई करेंगे तभी तो बड़े पत्रकर बनेगे

      • मेरे महान पत्रकार भैया देश में नाक्सालियो से ज्यादा बड़े दुश्मन भ्रस्त राजनेता है जो लोगो को काट काट कर तो नहीं मारते पर जिंदगी भर तड़पा तड़पा कर मारते है उनका इन्कोउन्टर कौन करेगा
        रही बात स्वामी जी का तो वे रस्त्रद्रोही नहीं है और आपको ये साबित करने का कोई हुक नहीं है
        नाक्साली गलत है उनका माध्यम गलत है लेकिन गरीब आदिवासियों के लिए लड़ रहे है
        आपके पास गरीब आदिवासियों के शोषण को रोकने और रास्ता है तो सरकार से पहल करवाइए नाक्सालियो के नाम पर वैचारिक थू थू करके समस्याओ को दबाइए मत

    • Shayamji aapne bilkul thik kaha h. Ye esi teepni karne wale wo log h jo apne bhagat singh samet sabhi garam dal ke netao ko naksli ya des drohi khate h. Aajadi akele gandhiji ke aandolan se nahi meli blki jyada yogdan garam dal ke netao tha.

  10. निश्चित रूप से भष्ट्र अधिकारीयों को सजा मिलनी चाहिए परन्तु ६३ सालों के लोकतान्त्रिक इतिहास में किस को इस तरीके से सजा मिली है मै आप से पूछना चाहता हूँ! इस देश में सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है नक्सलवाद, आतंकवाद, मावोवाद, भाषावाद, जातिवाद जो भी बुराइयाँ हैं इनका जो समर्थन करते हैं वे सभी तत्व जो देश को तोरने की बात करते हैं उन्हें सजा मिलनी चाहिए! चाहे वे नक्सलवादी हों या अलगाववादी या आतंकवादी या इस देश के भष्ट्र नेता, प्रशासनिक अधिकारी

  11. स्वामि जी का मेरे मन में बहुत सम्मान था। नक्सली मामले में उनकी मध्यस्तता की खबरों से उनके प्रति बहुत उम्मीद जगी थी और लगा था कि कुछ सकारात्मक होगा। अफसोस स्वामि जी…आप भी????

    समाज सेवा भी आज एक दूकानदारी है और गाँधीवाद भी एक हथियार। जिस महात्मा गाँधी नें चौरीचौरा कांड की लपट में अपना सफलतम आन्दोलन बंद कर दिया था उनके आदर्शों की लाश उठाने वाले क्या खाक “आदर्श” रखेंगे? यहाँ तो हजारों सिपाहियों की मौत “मान्यवरों’ के आन्दोलन का हिस्सा है। यकीन नहीं होता कि आप के हाँथ भी कातिलों की क्रूर सफलताओं पर ताली बजाने वालों में सम्मिलित हैं। इतना ही कह सकता हूँ कि इस देश की महाश्वेताओं और अरुन्धतियों के “एलीट” क्लास में आपका स्वागत है।

    • राजीव जी समय रहते अग्निवेश को समझने के लिए धन्यवाद्. अपने लेख से मैंने अगर देश में एक आदमी की आँखे खोल दी तो मुझे लगता है मेरा लेख लिखना सार्थक हो गया. अब बुद्धिजीवी सड़क पर तो नहीं लड़ सकते पर इसे देशद्रोहियों को बेनकाब तो कर सकतें है. यही १५ अगस्त को सहीदों को हमारी सच्ची श्रधान्जली होगी.

      • आपकी एक जबान नहीं है लगता है एक जगह लिखते है हम किसी की बुरे नहीं कर रहे है दूसरी जगह लिख रहे हो लोगो की आँख खोल रहे अग्निवेश की बुरे करके
        देश पीछे धकेलने वाले इससे बड़े बड़े मुद्दे है कभी उन पर भी आँख खोलिए
        बेबाकी से आप तो पत्रकार है सब जानते होंगे

  12. स्वामीजी , आपसे विनिती है की आप भगवा वस्त्र अब छोड़ दें ,इस पवित्र पोशाख का अपमान न करें संत की भाषा क्या होना चाहिये यह तो आप जानतें ही होंगे .

  13. हमेश ही स्वामी अग्निवेश जी ज्वलंत आन्दोलन से ही क्यों जुड जाते है. क्यों नहीं अपना एक वैचारिक आधार रखते.

  14. गांधीवाद या अहिंसा के नाम पर अपने आपको प्रतिष्ठित मानने वालों और मानव अधिकारों के नाम पर बेहूदा बातें करने वालों के चेहरे से नकाब उतरने चाहिए. जैसा लेखक ने लिखा है, वह अग्निवेश जी के नाम के आगे लगे स्वामी को ही निरर्थक बना देता है. अन्याय के खिलाफ देश को एकजुट होना होगा, चाहे नक्सलवाद हो, धार्मिक उन्माद हो, मनुवाद हो, भ्रष्टाचार हो या खाऊवाद हो! ऐसे हर वाद की आड़ में जहरीले सपोले पल रहे हैं. जो देश और मानवता के दुश्मन है. जिन्हें संविधान और विधान के अनुसार कटघरे में खड़ा करने की जरूरत है. शानदार लेखन के लिए बधाई!

  15. स्वामी अग्निवेश जी के विवादास्पद वक्तव्य मैंने नहीं सुने, इसलिए सरतिया नहीं कह सकता | पर आपने जो लिखा है उस हिसाब से एक बात तो कही जा सकती है की अग्निवेश जी भी उन मानवाधिकार संगठनों की तरह ही हैं जो सैनिकों, निर्दोषों के मारे जाने पे चुप्पी साध लेते हैं पर आतंकवादियों, नक्सलियों को खरोंच (भी) आने पे हल्ला मचाते हैं |

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