समाज

भारत हजार साल पहले अमेरिका जैसा था : संजय जोशी

वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की , क्यों की ? यह जानना बच्चों को आज के समय में समझाना आवश्यक है । उन्हें यह बताना पडेगा कि भारत ही वह देश है, जिसे सोने की चिडिया कहा जाता था, यहां सोने व चांदी के सिक्के चला करते थे और इसी सोने की तलाश में कई लुटेरे आये और सोना लूट कर ले गये। उसके बाद जब नीयत नही बदली तो कई पंथों के लोगों ने भारतीयों को गुलाम बनाया, जिनमें मुगल , फ़्रांसीसी व अं्रग्रेज शामिल थे। इन सभी ने मिलकर भारत को लूटा और सोना चांदी अपने देश ले गये। जिस रहीशी को वह अलाप रहें है वह भारत की ही देन है वरना उनके पास था ही क्या ? आज जो हम अमेरिका जाने की बात करते हैं

, उस जमाने में इसी तरह लोग भारत आने की बात करते थे , इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि भारत की हैसियत क्या थी । लेकिन आज भारत की आजादी को सात दशक बीतने को है किन्तु हम पुनः उस स्थान पर नही आ पाये। इसका मूल कारण यहां का संस्कार है ।  हम किसी का बुरा नही सोचते और हमेशा आतिथ्य हमारे स्वभाव में रहा है, जिसका लाभ इन विदेशियों समय समय पर उठाया । इसलिये अब इससे आगे आने के लिये हमें श्रीमदभागवत गीता का अनुसरण करना होगा। यह बात भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय विनायक जोशी ने एक कार्यक्रम के दौरान कही।

उन्होने कहा कि सहानुभूति हमारे स्वभाव में है और हम हमेशा से इसी कोशिश को अंजाम देने में लगे रहे कि किसी का अहित न हो लेकिन हमने एक मर्यादा की मिसाल विश्व के सामने रखी और सभी ने इस मर्यादा की अस्मत को तार तार किया और हम खडे होकर देखते रह गये । क्या यह हमारे मुनियों का ज्ञान है जो हमारे रक्त में बह रहा है या फिर हमने अपने आप को इस आइने में ढाल लिया है कि किम कर्तव्यविमूढ जैसे बने हुए है । अपने इतिहास को उन नवनायको को दिखाना होगा जिन्हें भारत में दम नही दिखता। भारत कभी गरीब नही रहा है और हमेशा उसने विश्व पर अपनी अमिट छाप छोडी है ।  हमारे अपने ही लोग आज दधीच के नाम को नही जानते , यदि जानते होते तो शायद दाल,आलू,टमाटर व प्याज के कारोबारी अपनी मर्यादा में रहते।

उन्होने कहा कि संस्कार होने चाहिये , हमारे महापुरूषों ने अपना पूरा जीवन मर्यादित रहते हुए जीया और विरासत के नाम पर उनके शिष्य के सिवा कुछ नही था । वह बहुत कुछ अर्जित किये और यही छोडकर चले गये , यही ययार्थ है फिर मतभेद क्यों है ?  यह इसलिये है कि हमने बचपन में रामायण व जवानी में गीता नही पढी ।  इसका मंथन किया होता तो आज भारत में वैमनस्ता नही होती बल्कि आपसी प्यार व भाईचारा होता । इसे वापस लाना होगा और भारत को उसी जगह पर ले आना होगा जिसपर इसे लाने का प्रयास भारत की सरकार कर रही है।

संजय जोशी ने प्राथमिक स्तर के पाठ्यकमों में बदलाव को सही बताते हुए कहा कि हमारे महापुरूषों व भारत के बारे में समग्र अध्ययन बच्चों को प्राथमिक अवस्था में हो जाना चाहिये , इसके साथ साथ उन्हे यदि जूनियर हाई स्कूल स्तर पर उनके मौलिक अधिकारों के साथ साथ लेबर कानून , अपराधिक कानून व सिविल कानून के बारे में भी अवगत कराना चाहिए ताकि वह अज्ञानता के चलते इस कार्य में न फंसे। संजय जोशी ने पाठ्यकमों में हमारे रीति रिवाजो व संस्कारों व संस्कृति को भी शामिल करने की बात कही और कहा कि पिछली सरकारों ने इस तरफ ध्यान नही दिया जिसके कारण हम अपनी गरिमा विश्व पटल पर खोते जा रहें है। लोग आज भारतीय दर्शन के बारे में जानना चाहते है और हम उसे मिटाने में इस कदर खो गये कि उसका छोर ही नही पता चल रहा है ।  इसलिये इसे प्राथमिकता देने हेतु पहल की आवश्यकता है।

संजय जोशी ने जिन बातों पर अपनी विस्तृत बातें कही उसमें भारत का दर्शनवाद प्रमुख था । भारत के जिन तथ्यों को विश्व पटल पर प्रमुखता से रखा जाना था , वह काम नही हुआ जिसे अब यह सरकार कर रही है ।  बुद्ध का जीवन भारत में बीता और उनसे जुडे कई अवशेष भारत में है, उसे प्रचारित किया जाना था लेकिन ताज्जुब की बात यह रही कि किसी भी पिछली सरकार ने इसे महत्व नही दिया, इसी तरह महावीर स्वामी को झुठलाने का प्रयास किया गया, स्वामी विवेकानन्द , दयानंद सरस्वती, महेश योगी , रजनीश व अनेक महापुरूष विश्व के पटल पर चर्चा में रहे लेकिन उनके बारे में भी बातें छिपायी गयी जो गलत था , उसे इस तरह से समाप्त नही किया जाना चाहिये था। उन्होने सरकार के कार्यक्रमों की तारीफ करते हुए कहा कि सरकार धार्मिक व पंथों को विश्व के सामने प्रस्तुत कर एक अच्छा काम कर रही है जिसका हर भारतीय को समर्थन करना चाहिये।

उन्होने लोगों से अपील की कि अपने बच्चों को शिक्षा के साथ साथ रामचरित मानस व युवा काल में श्रीमद्भागवत गीता जरूर पढाये और उसे उसके जीवन में कैसे उतारा जाय इस बारे में सोचे । तभी भारतीय संस्कार जिसका विश्व अनुसरण कर रहा है और चलना चाहता है उसे एक सही रास्ता हम दिखा पायेगें।