जां देने लेने से शहादत नहीं मिलती….

इक़बाल हिंदुस्तानी

फ़िर्क़ो का जाल सिर्फ़ ज़माने में रह गया,

इंसान अब असल में फ़साने में रह गया।

 

बेचे उसूल लोगों ने दौलत कमा भी ली,

मैं अपने उसूलों को निभाने में रह गया।

 

झूठों ने मेरे क़त्ल का फ़र्मान दे दिया,

होंठो पे मैं सच को सजाने में रह गया।

 

अगुवा मैं इंक़लाब का मशहूर क्या हुआ,

क़ीमत मैं अपने खूं से चुकाने में रह गया।

 

जां देने लेने से शहादत नहीं मिलती,

दंगाइयों को मैं ये बताने में रह गया।

 

ज़हनों की आतिशों से मेरा गांव जल गया,

बारूद मैं दिलों से हटाने में रह गया।

 

एक दोस्त मेरे घर को जलाकर भी जा चुका,

मैं दुश्मनों के घर को बचाने में रह गया।।

 

 

 

नोट-फ़िर्क़ा-वर्ग, फ़साना-उपन्यास, उसूल-सिध्दांत, फ़र्मान-आदेश,

अगुवा-नेता, इंक़लाब-क्रांति, आतिश-आग, जे़हन-दिमाग़।।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

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