इक़बाल हिंदुस्तानी
आया है नया साल नई बात कीजिये,
फिर जिं़दगी की नई शुरूआत कीजिये।
ग़म की सियाह रातों से बाहर तो आइये,
खु़शियों के उजालों की नई बात कीजिये।
ये आग लूट रेप की वहशी सी हरकतें,
इंसां हो दरिंदों को ना फिर मात दीजिये।
दुनिया भी संवर जायेगी खुद को संवारिये,
पहले खुद ही से क्यों ना मुलाक़ात कीजिये।
कोई जलाये नोट तो भूखा मरे कोई,
हम सबके एक जैसे ही हालात कीजिये।
लेलें किसी की जान ही भड़कें जो इस तरह,
क़ाबू में पहले ऐसे ही जज़्बात कीजिये।
कोई भी इज़्म देश से होता नहीं बड़ा,
लोगों के आज ऐसे ही जज़्बात कीजिये।
रहबर बने हुए हैं क्यों रहज़न ये आजकल,
तुमको ये हक़ मिला है सवालात कीजिये।।
नोट-रहज़न-लुटेरा, रहबर- नेता, वहशी-जानवर, इज़्म-विचारधारा,
ख़यालात-विचार, सवालात-प्रश्न, हालात-परिस्थितियां।।