कविता

आज का आदमी

आज का आदमी,आदमी कहाँ रह गया है 
वह तो आज की,चकाचोंध में बह गया है
अगर आज, आदमी,आदमी होता 
तो वह आज की चकाचोंध में न बहता 

आज के आदमी में,आदमियत निकल चुकी है 
वह तो आज स्वार्थ के हाथो बिक चुकी है 
अगर आज आदमी में स्वार्थ न होता  
तो वह आज आदमियत से बंधा होता 

आज आदमी,आदमी से कहाँ मिलता है 
वह तो आज अपने मतलब से मिलता है 
अगर आज आदमी मतलबी न होता 
तो हर आदमी, हर आदमी से मिलता 

अगर आज आदमी,आदमी ही होता 
उसमे इर्ष्या,घर्णा,स्वार्थ भरा न होता 
कितना अच्छा होता जो आदमी आदमी ही होता 
तो सारा संसार कितना सुखमय होता 

आर के रस्तोगी