आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाएं ? – भाग दो

मैंने “आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाएं ?” लेख लिखा। इस लेख को लोगों ने जिस प्रकार गंभीरतापूर्वक लिया उसके लिए सबका धन्यवाद। इस लेख पर लोगो की हर प्रकार की प्रतिक्रियाएँ आए और खासतौर पर शादाफ जाफ़र जी की, उसके बाद मुझे आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाएं ? – भाग दो, लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा। मुझे लगता है की शादाफ जाफ़र जी वीणा मालिक से बहुत ज्यादा आहत हुए हैं, क्योंकि दुनिया मे सभी स्त्री या पुरुष एक जैसे नही होते। सबका दुनिया को देखने का अलग अलग नजरिया होता है। सब अलग अलग अंदाज़ मे दुनिया को जीते हैं। इसका मतलब ये नही है कि हम ऐसे इक्के दुक्के लोगों का उदहारण लेकर पूरी बीरदारी को बदनाम करे।

पहले के समाज मे जहां सिर्फ स्त्री ही प्रतारित होती थी वही आज के समाज मे दोनों ही प्रतारित होने लगे हैं। लेकिन आज भी जहां 96 उदहारण ऐसे मिलेंगे जिसमे महिलाएं प्रतारित होती हैं। वही केवल चार ही ऐसे उदहारण मिलेंगे जिसमे पुरुषों को प्रतारित किया जाता है। तो ये क्या आपके नजर मे ठीक है। और आज भी महिलाएं पुरुषों से कई माइने मे ठीक है। जाफ़र जी मै आपसे पूछती हूँ कि अगर आप वीणा मालिक पे उंगली उठाते हैं तो आपको सलमान खान का भी उदहारण भी देना चाहिए जो अपनी हर फिल्म मे अपनी शर्ट उतार देता है। जिस तरह से आपको औरतों को नग्न देखकर अभद्र लगता है उसी तरीके से मुझे भी किसी पुरुष को सड़क पर या किसी फिल्म मे नग्न देखकर अभद्र लगता है।

और इस बात को भी नही झुटलाया जा सकता की किसी भी समाज मे स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं, दोनों मिलकर ही एक सुखी परिवार की संरचना करते हैं। एक बच्चे का गुजारा बाप के बिना हो सकता है लेकिन माँ के बिना ये संभव ही नहीं, वो उसे नौ महीने अपने अंदर रखकर उसे पैदा करने का दर्द सहती है पुरुष नहीं।

आपने वीणा मालिक जैसी महिलाओं के उदहारण से कहा कि किस प्रकार आज नारी कुछ रूपयों की खातिर अपने मां बाप भाई खानदान का ख्याल नहीं करती। अपने बदन की सरेआम नुमाईश कर पूरे नारी समाज को बदनाम कर देती है। लेकिन क्या कभी आपने उन लोगों के बारे मे सोचा है, जो इस तरह के घटिया शो जनता के आगे परोसते हैं। मैं तो कहती हूँ की ऐसे लोग सबसे घटिया होते हैं, जो ये कहते हैं कि हम वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है, खासकर मीडिया। लेकिन क्या मीडिया ने कभी ऐसी वोटिंग कराकर लोगों से ये जानने की कोशिश करी है की वो क्या देखना चाहती है, मैंने तो कभी ऐसी वोटिंग के बारे मे नहीं सुना।

आजकल मीडिया जबरदस्ती लोगों के आगे कुछ भी परोस कर कहती है की पब्लिक यही देखना चाहती है। उदहारण के तौर पर इंडिया टीवी को ही ले लीजिये, जिस चैनल मे रोज़ भूत, पिशास, प्रेमिका को वश मे करने के तरीके, स्वर्ग की यात्रा और पता नही क्या क्या बकवास दिखाई जाती है। फिर ये कहा जाता है की है आजकल आम लोग यही पसंद करते है, मुझे नहीं लगता की कोई इस तरीके की झूठी और घाटियां चीजों पर भरोसा भी करता होगा। FHM मैगज़ीन ही ले लीजिये जिसमे खुले तौर पर नग्न प्रदर्शन हो रहा है। तो क्यूँ जबरदस्ती लोगों के आगे ऐसी चीज़े परोसी जा रही हैं। इसका जवाब है आपके पास।

यहाँ मैं एक सवाल उन लोगों से भी पूछना चहुंगी कि आज जो लोग अपने प्रोग्राम की सफलता के लिए ये फिरते हैं कि हम केवल वही दिखाते हैं जो पब्लिक देखना चाहती है, तो मै ये सवाल उन लोगों से करती हूँ की आप किस हद तक दिखा सकते हैं ? एक इंसान की जिज्ञासा को किस हद तक मिटा सकते हैं ? अगर कल को पब्लिक कहे कि हमे एक ऐसा रिऐलिटि शो देखना है जिसमे दस व्यक्ति को लाइव ज़िंदा काटा जाये, तो क्या डायरकटर अपने आप को कटवाएगा, क्या लोगों की इस भूख को मीडिया शांत करेगी। और मै दावे के साथ बोल सकती हूँ कि अगर ऐसा शो शुरू किया गया तो इस शो की टी आर पी दुनिया के किसी भी शो से ज्यादा ही होगी। तो क्या मीडिया ये भी दिखाएगी क्या?

हम सब अच्छी तरीके से जानते हैं कि आज का वक्त ऐसा है कि अगर सड़क पर दो कुत्ते भी लड़ने लगे तो उसे देखने के लिए भी दस लोग खड़े हो जाते हैं, तो क्या इसे भी प्रोग्राम बनाकर जनता के आगे परोसा जाये। नहीं परोसा जाएगा न, तो फिर ऐसे शो बनाए ही क्यू जाते हैं जिसमे नारी का अभद्र रूप दिखाया जाता है। ऐसे प्रोग्राम बनाने वालों का एक ही मकसद होता है की कैसे भी करके उस प्रोग्राम की टी आर पी बढ़ाई जाये। जिससे की अधिक से अधिक पैसा कमाया जाए। क्या औरतों को नग्न करके पैसे कमाने का जरिया सही है। इतिहास गवाह है कि जब से फिल्में बननी शुरू हुई हैं तब से औरतों का नग्न प्रदर्शन ही टी आर पी का एक जरिया बन गया है।

ऐसे प्रोग्राम को देखते वक्त तो सब बड़े आनंद लेते हैं, क्या ऐसे शो दिखाने वाले लोग थोड़े से पैसों इन महिलाओं से भी नीचे नहीं गिर रहे। तो सारी बदनामी का ठीकरा अकेली महिला के ऊपर ही क्यूँ आ जाता है। सरकार को नहीं चाहिए कि जो इस तरह के शो को जिसमे थोड़ी भी अश्लीलता झलकती है, तुरंत बंद किए जाये। ऐसे चैनल या मैगजीन जो अपनी टी आर पी के लिए कुछ भी परोसने पर उतारूँ हो जाते हैं या कुछ भी गलत दिखाते हैं, पर तुरंत बैन लगना चाहिए। अब जवाब आपको खुद ढूंदना है, मैंने तो केवल तर्क दिया है।

 

 

8 COMMENTS

  1. आपने बिलकुल ठीक लिखा है, ये बात बहुत आगे तक पहुचनी चाहिए, तभी हमारे समाज में कोई उपाय हो सकेगा.

  2. आप बहुत अच्छा लिखती हैं, आपकी लेखनी में पैनापन है, आशा है की आप आगे भी ऐसे सामाजिक लेखों से हमे परिचित कराती रहेंगी,
    एक बार मैं फिर लेखिका का धन्यवाद करता हूँ.

  3. ||ॐ साईं ॐ|| सबका मालिक एक है इसीलिए प्रकृति के नियम क़ानून सबके लिए एक है |
    अन्ना बेकरार है …जनलोकपाल का इन्तजार है |
    ये तो नहीं मिलना है भैया,,क्योकि बिच में कांग्रेस का भ्रष्टाचार है ||
    दुनिया के किसी भी देश मे भ्रष्टाचार और अपराध से निपटने के लिए कठोर और प्रभावी कानून व्यवस्था का होना तो अति आवश्यक है ही… साथ ही इसके प्रभावी मशीनरी के द्वारा प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जाना भी बेहद आवश्यक है। दुनिया भर मे कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस और अन्य सरकारी मशीनरियाँ काम करती हैं। अब लगभग हर देश मे पुलिस, फायर सर्विस जैसी तमाम सरकारी सहाता के लिए एक यूनिक नंबर होता है जिसके मिलाते ही वह सुविधा आम लोगों को मिलती है। लेकिन यदि कोई रिश्वत मांगता है अथवा भ्रष्टाचार करता है तो ऐसा कोई सीधी व्यवस्था नहीं दिखती है कि एक फोन मिलाते ही भ्रष्टाचार निरोधी दस्ता आए और पीड़ित की सहायता करे और भ्रष्ट के खिलाफ कार्यवाही करे।
    अपने देश के क्या कहे बाड़ ही खेत खा रही है …तो शिकायत किस्से करे…….
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार

  4. अन्नपूर्णा मित्तल जी ने प्रवक्ता डॉटकॉम पर जब महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और अत्याचार पर लेख लिखा होगा तो सोचा होगा कि यहां उनको बहस का एक ऐसा मंच मिलेगा जहां उनके दर्द को केेवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरूष लेखक और पाठक भी समझेंगे और सोच विचार कर उसका कोई ठोस समाधान निकालने का प्रयास करेंगे लेकिन यहां तो एक दो प्रतिक्रियाओं को छोड़कर सब उनके पीछे ऐसे हाथ धोकर पड़ गये जैसे उन्होंने सारे पुरूष समाज की थाने में रपट करा दी हो। वास्तव में ऐसा ही अकसर यूपी के थानों में पीड़ितों के साथ होता है कि जब वे किसी सामर्थवान या वीआईपी की शिकायत लेकर वहां एफआईआर लिखाने जाते हैं तो पुलिस आरोपी से फीलगुड कर उल्टा उसको ही जेल की हवा खिला देती है। यह सवाल बार बार उठता है कि समाज में नारी के साथ पक्षपात और अन्याय कब तक होता रहेगा। हमारा जवाब सदा यही होता है कि जब तक वे इस अत्याचार और शोषण को सहती रहेगी।

    0हालांकि आज के ज़माने में उनके साथ यह सब कुछ केवल इसीलिये ही नहीं होता क्योंकि वे महिला हैं बल्कि इसकी एक वजह यह भी है कि वे कमज़ोर हैं। मिसाल के तौर पर बच्चो, विकलांगों, कमज़ोरों, मज़दूरों और गरीबों के साथ भी कमोबेश वह सब कम या ज़्यादा अकसर होता है जो महिलाओं के साथ होता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम दिखावे और ढोेंग के कारण यह सच स्वीकार ही नहीं करते कि नारी के साथ लिंग के कारण भी पक्षपात होता है जिसके लिये हमारे धर्म, परंपरायें , स्वार्थ, अनैतिकता और पुरूषप्रधान समाज और शोषणवादी सोच ज़िम्मेदार हैं।

    0मिसाल के तौर पर 17 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने एयर इंडिया को यह आदेश दिया है कि वह विमान में उड़ान के दौरान काम करने वाली महिलाओं को सुपरवाइज़र बनाने से वंचित करके संविधान के खिलाफ काम कर रहा है। लिहाज़ा उनको भी पुरूषों की तरह सुपरवाइज़र बनाया जाये। इतना ही नहीं रिटायरमेंट की उम्र भी एयर इंडिया मंे महिला और पुरूष कर्मचारियों की अलग अलग होती है। महिला कर्मचारी नियुक्ति के बाद चार वर्ष के भीतर अगर गर्भवती हो जाती थी तो उसको नौकरी से निकाल दिया जाता था। उसका वज़न मानक से अधिक होने पर विमान से बाहर की सेवा पर भेज दिया जाता था। देश की पहली आईपीएस किरण बेदी को एक महिला होने के कारण सरकार ने कई बार प्रमोशन से वंचित रखा।

    0सेना में कमीशन को लेकर भी बार बार महिलाओं के साथ दोहरे मापदंड अपनाने की शिकायतें मिलती रहती हैं। समान काम के बावजूद उनको समान वेतन नहीं दिया जाना तो आम बात है। उनको यह भी कहा जाता है कि रात की पारी में काम न करें। कानूनी भाषा में महिला के लिये ‘‘रखैल’’ शब्द का इस्तेमाल हाल तक अदालतों में होता रहा है। संविधान का अनुच्छेद 15 हर नागरिक को बिना लैंगिक और जातीय पक्षपात के मुक्त जीवन का अधिकार देता है। लड़की की ऑनर किलिंग एक कड़वी सच्चाई है ही।

    0व्यवहार में देखा जाये तो लड़की की भ्रूणहत्या से लेकर दहेज़ के लिये उसे बहु बनने पर जलाकर मारने की घटनायें आज भी बड़े पैमाने पर हमारे समाज में हो रहीं हैं। उनको खिलाने पिलाने से लेकर पढ़ाने लिखाने तक में पक्षपात होता है। जब हम शादी के लिये लड़के का रिश्ता तलाश करते हैं तो अकसर लड़की को लड़के से उम्र, लंबाई और पढ़ाई में थोड़ा छोटा रखते हैं। वजह वही पुरूष का अहंकार जिसमें उसकी पत्नी उससे बड़ी नहीं बल्कि बराबर भी नहीं चाहिये। यही कारण है कि जहां महिला नौकरी या कारोबार करती है वहां परिवार में अकसर उससे टकराव शुरू हो जाता है वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर गलत बात सहन नहीं करती और पति व सास ससुर उसे भोली गाय समझकर पहले की तरह दबाते और सताते हैं।

    0इसका नतीजा कई बार अलगाव के रूप में सामने आता है तो पुरूषप्रधान समाज कहता है कि जिस घर मंे महिला कमायेगी वहां तो यह अशुभ और मनहूस झगड़ा होगा ही। ऐसे ही लड़की एक बेटी, बहन और पत्नी के रूप में बाप, भाई और पति की अपनी सुरक्षा के लिये मोहताज रहती है। रात तो रात महिला दिन में भी अकेले जाने पर छेड़छाड़ और बलात्कार का अकसर शिकार हो जाती है। खुद करीबी रिश्तेदार यहां तक कि कई बार बाप, भाई और गुरूजन तक उसकी अस्मत का न केवल सौदा कर देते हैं बल्कि खुद भी मंुह काला करने से बाज़ नहीं आते। वेश्यावृत्ति के ध्ंाधे मंे भी अधिकांश मामलों में महिला को पुरूष ही धकेलते हैं। अपवादों से कोई सटीक राय नहीं बनाई जा सकती।

    0जहां तक महिला द्वारा महिला पर जुल्म करने का आरोप है तो वह तो ठीक ऐसे ही है जैसे देश की गुलामी में खुद कई गद्दार भारतीय जयचंद और मीरजाफर भी शामिल थे। महिलाओं के कम या उत्तेजक कपड़ों की वजह से अगर बलात्कार होते तो बुर्केवाली, आदिवसाी और बच्चियों के साथ दुराचार क्यों होते हैं ? यह सवाल अपने आप में बेहद गंभीर है कि एक उच्चशिक्षित महिला के साथ भी अगर उसका पति और सास ससुर खुद उच्चशिक्षित होकर भी लालच और पुरूषप्रधान समाज की सोच के कारण ऐसा वहशी और दरिंदगी वाला दर्दनाक व्यवहार करते हैं तो यह एक बार फिर से सोचना पड़ेगा कि हम कितने सभ्य और संस्कृत हैं?

    0महिला का भावुक और त्यागी होना भी उसके साथ अन्याया का कारण बनता है। वह जज़्बात में बहकर पुरूषों पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेती है जिससे उसके साथ धोखा और ब्लैकमेल होता है। ऐसा लगता है कि हम आज भी जंगलयुग में रह रहे हैं जहां शेर जो करता है वही सही होता है। यह तो मत्स्य न्याय वाली बात है कि छोटी मछली को बड़ी मछली आज भी हमारे समाज में खा रही है। लगातार महिला सशक्तिकरण और अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की इसका एकमात्र समाधान है। इसमें कुछ समय लगेगा लेकिन यकीन कीजिये लंबे समय तक महिलाओं के साथ यह गैर बराबरी चल नहीं पायेगी। नारी जाति की ओर से एक शेर यहां सामयिक लग रहा है-

    0 हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
    वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।

  5. मैंने निम्न टिप्पणी शादाब जफ़र शादाब साहब के “आखिर कब रुकेंगी औरतों पर होती यातनाये,भाग १ “तीखी टिप्पणी के उत्तर में अपना विरोध जताने के लिएलिखा था क्योंकिशादाब साहेब की वह टिप्पणी मुझे नारी जातिके पूरे वजूद को नकारती हुई लग रही थी, ,पर जब लेखिका ने उसी लेख के दूसरे भाग में उसका करारा जबाब दे दिया है तो इस टिप्पणी का उतना महत्त्व नहीं रह गया है फिर भी लेखिका के विचारों को पुष्टि प्रदान करने के लिए उसको यहाँ पुनः उद्धृत कर रहा हूँ.
    “शादाब जफ़र शादाब जी, लेखिका के लेख ‘आखिर कब रूकेगी औरतों पर होती यातनाए’ पर आपकी तीखी टिप्पणी को बहुत लोगों ने सराहा है,पर बुरा न मानिए तो मैं यही कहूँगा की यह पूरी टिप्पणी एक बकवास और हमारे मानसिक और वैचारिक दोगलापन का एक मिसाल मात्र है.आप जब वीना मल्लिक की बात करते हैं तो आप यह क्यों भूल जातेहैं की किसी भी समाज या राष्ट्र में वीना मलिक जैसी लडकियां वहां के नारी समाज का प्रतिनिधत्व नहीं करती ,बल्कि वे अपवाद हैं.फिर भी वीना मल्लिक को भी मैं उस समाज की, जहां की वह उपज हैं,सदियों से दबी और सताई नारी जाति की एक भयंकर प्रतिक्रिया मात्र मानता हूँ. मैं वीना मल्लिक का समर्थन नहीं करता,पर भारत की कितनी आधुनिक नारियां वीना मल्लिक का अनुकरण कर रहीं हैं?सबसे अधिक चर्चा हमारे यहाँ औरतों के पहरावे को लेकर होती है..सच पूछिए तो यह भी हम पुरुषों के पसंद के कारण है.आप लोग साड़ी की बात करते हैं,तो पंजाब में जब सर्वप्रथम साड़ी का प्रचलन हुआ था तो वहां के नारियों को लगता था की यह तो सरासर नंगापन है.,क्योंकि इसको पहन कर तो चमकदार फर्श पर खड़ा भी नहीं हुआ जा सकता. शक्ति की देवी दुर्गा धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती के रूपमें नारी की पूजा हिन्दू अवश्य करते हैं,पर यह सम्मान वहीं तक सीमित है.भ्रूण हत्या भी सबसे ज्यादा हिन्दुओं में हीं प्रचलित हैदहेज़ प्रथा,नारियों को जला कर मारना,लडकी पैदा होने पर न केवल लडकी ,बल्कि उसकी माँ को भी प्रताड़ित करना कहाँ का न्याय है?मैं मानता हूँ की वर्तमान क़ानून का नाजायज लाभ भी उठाया जारहा है,पर उसमे केवल महिलाओं का हीं नहीं उनके परिवार के पुरुष वर्ग काभी कम हाथ नहीं है.लड़के लडकी में कितना भेद भाव हमारे समाज में है,यह देख कर भी आप लोग अनदेखा कर रहे हैं. आपने कभी सोचा है की सुचिता का माप दंड नारी और पुरुष के लिए अलग अलग क्यों है?नारी अगर वेश्या बननेके लिए मजबूर होती है तो क्यों/?मैंने यह भी पढ़ा है की कुछ आधुनिक लडकियाँ अपने शौक पूरा करने के लिए भी वेश्या वृति को अपना रही हैं .हो सकता है की यह सच हो,पर इसके लिए क्या पुरुष समाज कम जिम्मेवार है?आप लोगों ने कभी सोचा है की .उनके जिस्म का खरीददार कौन है?नैतिकता का जब हनन होता है तो हमारी नारी जाति उसका पहला शिकार होती है.नारी जाति को दबाकर रखना और उसके परदे से थोड़ा बाहर आने को बेहयाई कहना जंगली पनके सिवा कुछ नहीं .आपलोगों में से पता नहीं कितने लोगों ने यह पुराना गाना सुना है,
    औरत ने जन्म दिया मर्दों को ,मर्दों ने उसे बाजार दिया.
    सचाई यही है.”

  6. अन्नपूर्णा मित्तल जी, आप का जवाब वास्तव में काबिले तारीफ है आप खुद ही इलैक्टोनिक्स मीडिया में मसालेदार प्रौग्राम, खबरो, नग्न और अश्लील भाषा,टीआरपी की बात कर रही है और खुद ही समाज को एक ऐसा लेख परोस रही है जिस से खुद आप की प्रवक्ता पर टीआरपी बढ जाये। वैसे आपने जवाब दिया आप का धन्यवाद पर मेरा मानना है और मैं ऐसा करता भी हॅू कि लेख लिखने के बाद कभी भी किसी भी प्रतिक्रिया का जवाब नही देता। वजह हमारा काम लिखना है। कुछ लोग हमारे लिखे लेख से फायदा उठाते है और जो फायदा नही उठा पाते उन के लिये वो लेख लोमडी के अंगूरो की तरह खट्टा हो जाता है। किसी कि आलोचना का बुरा या उसे गम्भीरता से नही लेना चाहिये। क्यो कि आलोचक ही सब से बडा मित्र होता है यदि वो हमे कुछ बता रहा है या समझा रहा है इस मैं उस का हित जो होगा वो होगा पर हमारा क्या हित है हमे इस पर गौर करना चाहिये। आप बहुत अच्छा लिखती है आप के जवाब ने मुझे लाजवाब कर दिया।

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