सज्जाद किचलू और उमर अब्दुल्ला की छटपटाहट के बीच छिपा है किश्तवाड का सच

              डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

sajjad kitchloo and umar abdullah  जम्मू कश्मीर के  किश्तवाड में नौ जुलाई को मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं के घर व दुकान जला दिये गये थे । एक हिन्दु युवक अरविन्द भगत की हत्या कर दी गई थी । एक मुसलमान युवक भी दुकानें जलाने वाली भीड़ का शिकार हो गया । शायद आग लगाने की जल्दी में भीड़ उससे उसका मज़हब नहीं पूछ पाई या फिर उसका मज़हब पहचान नहीं सकी । इस आगज़नी के पीछे या फिर उसको न रोकने के पीछे राज्य के गृह राज्य मंत्री सज्जाद अहमद किचलू का हाथ है , यह स्वर जब उग्र से उग्रतर होता गया तो राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को उससे त्यागपत्र लेना ही पड़ा । वैसे केवल रिकार्ड के लिये किचलू उमर के सबसे नज़दीक़ी भी माने जाते हैं । पिछले महीने रामबन के संगलदान क्षेत्र में जब प्रदर्शनकारियों ने सीमा सुरक्षा बल के जवानों पर पथराव किया था , जिसके कारण गोली चलाने की नौबत आई तो जनाब उमर ने किचलू को ही आगे करके यह अभियान चलाया था कि पहली गोली सीमा सुरक्षा बल ने चलाई थी । यह अलग बात है कि वहाँ के मुसलमानों ने ही इस सरकारी झूठ को मानने से इंकार कर दिया और एक स्वर से मांग की कि जानबूझकर कर गोली चला कर प्रो० मंज़ूर अहमद शान को मारने वाले स्थानीय पुलिस के थानेदार अहमद वानी को गिरफ़्तार किया जाये । तब खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोचते हुये सरकार ने वानी को गिरफ़्तार किया । उन्हीं खिसियानी बिल्लियों की तरह खंभा नोचते हुये किचलू किश्तवाड चले आये और जनाब उमर अब्दुल्ला श्रीनगर । लेकिन कुछ दिन बाद ही किश्तवाड में कश्मीरियत का नंगा नाच हुआ और हिन्दुओं की करोड़ों की सम्पदा आग के हवाले कर दी गई । इस बार नाटक करने की बारी उमर अब्दुल्ला की थी । वे ऊँचे स्वरों में चिल्लाने लगे । अपराधियों को बख़्शा नहीं जायेगा । हाई कोर्ट के जज से जाँच करवायेंगे । दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे , लेकिन किचलू निर्दोष हैं । किश्तवाड के लोग उनके झाँसे में आने वाले नहीं थे । उन्होंने एक स्वर से कह दिया , बहुत शोर मचाने और बच्चों की किताब से पढ़ी हुई कहानियाँ सुनाने की ज़रुरत नहीं है । अपने इस लम्बडदार सज्जाद अहमद किचलू को गिरफ़्तार करो । इसी की छत्रछाया में यह सारा कांड हुआ है । इसके लिये किसी जाँच की ज़रुरत नहीं है क्योंकि इस करतूत को बच्चा बच्चा जानता है और घरों व दुकानों से अभी तक उठ रहा धुँआ इसकी गवाही देता है । यहाँ तक कि उमर के साथ सत्ता सुख भोग रही कांग्रेस को भी किचलू पर एक्शन लेने की मांग करनी पड़ी ।

पहले तो उमर अब्दुल्ला वलद फ़ारूक़ अब्दुल्ला वलद शेख अब्दुल्ला बहुत ग़ुस्से में आये । यह ख़ानदानी स्टाइल है । किचलू का कोई दोष नहीं है । किचलू ने तो आग लगाने वालों को रोकने की कोशिश की , आदि आदि । लेकिन किश्तवाड तो क्या पूरा जम्मू संभाग ही ग़ुस्से से उबल रहा था । यह ख़ानदान जेहलम घाटी में तो ख़ून की होली खेल चुका है अब अपने राजनैतिक स्वार्थों के लिये चिनाव घाटी को भी आग में झोंकना चाह रहा है । लोगों का यह नज़ारा देख कर उमर समझ गये कि इस बार पुराने चुटकुलों और पुराने अभिनय से काम नहीं चलने वाला । किश्तवाड के अग्निकांड का धुआं श्रीनगर पहुंचा कि नहीं यह तो अल्लाह जाने लेकिन वह धुंआ दिल्ली संसद तक जरुर पहुंच गया था और वहां उस धुंए से संसद के अन्दर सांस लेना मुश्किल हो रहा था । उमर ने चुपचाप किचलू को इस्तीफ़ा देने के लिये कहा और इस्तीफा राज्यपाल के हवाले कर दिया ।

लेकिन अब लगता है ग़ुस्से में किचलू ने भी अपनी केंचुल उतार दी है और अन्दर की बातें बाहर निकालने लगे हैं । सबसे पहले तो उन्होंने केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदम्बरम की धुलाई की । किश्तवाड में आग लगाने वाले मुसलमानों की भीड़ भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक नारे ही नहीं लगा रही थी , बल्कि पाकिस्तान के झंडे भी फहरा रही थी । पाकिस्तान के समर्थन में पोस्टर चिपका रही थी । ज़ाहिर है इसके लिये कई दिन से तैयारी की गई होगी । लेकिन इधर दिल्ली में चिन्दबरम् साहिब ने चीख़ चीख़ कर अपना गला बिठा लिया था कि आग लगाने वाली भीड़ केवल मज़हबी नारे ही लगा रही थी । त्याग पत्र स्वीकार हो जाने के बाद किचलू साहिब ने स्पष्ट किया कि मज़हबी नहीं बल्कि भीड़ पाकिस्तान समर्थक नारे लगा रही थी । पर ख़ैर चिदम्बरम पर तो इसका क्या असर पड़ता । उनके लिये शायद पाकिस्तान के हक़ में नारे लगाना , पाकिस्तान की सहायता करना भी मुसलमानों का मज़हबी काम ही है , इसलिये इन मज़हबी मामलों में पंथ निरपेक्ष सरकार दख़लन्दाज़ी नहीं करेगी । परन्तु किचलू ने पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने और उसके झंडे लहराने वाली बात को इतना तूल दिये जाने पर ही हैरानी प्रकट की । उनका कहना है कि , यह तो यहाँ आम होता ही है । इस पर इतना बुरा मनाने की क्या बात है ?

बात किचलू साहिब भी ठीक करते हैं । जून महीने में कश्मीर विश्वविद्यालय में उच्चतम न्यायालय के उस समय के मुख्य न्यायाधीश जनाब अलतमश कबीर साहिब विधि विभाग के दीक्षान्त समारोह में गये थे । मंच पर उनके अलावा राज्यपाल ए एन वोहरा भी थे । राष्ट्रगान शुरु हुआ तो विश्वविद्यालय के छात्र , अध्यापक सभी मज़े से बैठे रहे । कुछ छात्र खड़े भी होने लगे तो उन्हें डाँट कर दूसरों ने बिठा दिया । कबीर साहिब को शायद बुरा लगा हो । वोहरा साहिब की हालत तो ज़रुर पतली हुई होगी । लेकिन कुलपति साहिब ने सभी को हौसला दिया । ऐसा कुछ नहीं है , यहाँ यह सब कुछ चलता ही है । बस उसी हौसले के बल पर कबीर और वोहरा दोनों ही उन छात्रों के संग हसते खेलते रहे । अब किचलू साहिब भी चिदम्बरम को शायद यही समझा रहे हैं कि भीड़ के पाकिस्तान समर्थक नारों के लिये आपको झूठ बोल कर मज़हबी नारे कहने की ज़रुरत नहीं है । यहाँ सब चलता है और वोहरा साहिब की हाज़िरी में भी चलता है । चिदम्बरम को कितना हौसला मिला , यह तो वही बेहतर बता सकते हैं ।

उसके बाद किचलू ने दूसरा धमाका किया । सरकारी अधिकारी अभी तक यही कह कर छुटकारा पाने की कोशिश कर रहे थे कि भीड़ अचानक उत्तेजित हो गई क्योंकि एक हिन्दु नौजवान अपना मोटर साईकिल भीड़ में ले आया था । इससे तक़रार बढ़ी और मामला आगज़नी तक पहुँच गया । अब यदि यह सारा कांड क्षणिक उत्तेजना में हुआ था तो ज़िलाधीश और पुलिस अधीक्षक भी बेचारे क्या करते ? लेकिन किचलू ने अब सब कुछ उगल दिया है । उनका कहना है कि शरारत करने वाले षड्यंत्रकारी पिछले दो महीने से इस कांड की तैयारी कर रहे थे । किचलू के इस खुलासे के बाद सरकार की पोज़ीशन ख़राब हो रही है । यदि भारत विरोधी तत्व पिछले दो महीने से किश्तवाड में हिन्दुओं के मकान दुकान जलाने की योजना बना रहे थे और सरकार को इसकी जानकारी थी तो क्या सरकार जानबूझकर सो रही थी ताकि षड्यंत्रकारी अपना काम मज़े से पूरा कर लें और बाद में सरकार भी मज़े में जांच करवा कर सारे कांड पर मिट्टी डाल देगी । लेकिन इस प्रश्न का उत्तर दोनों मित्रों उमर और किचलू को ही तो देना है । क्योंकि एक मुख्यमंत्री है और दूसरा गृह मंत्री था ।

तीसरी वात जो सज्जाद अहमद किचलू वलद बशीर अहमद किचलू ( सज्जाद से पहले बशीर मंत्री थे) ने कही वह इस पूरे कांड का सूत्र है । किचलू ने कहा मुझे एक बात समझ नहीं आई की नमाज़ अदा करने के लिये आने वाले लोगों का यह जत्था मुख्य सड़क को छोड़ कर कुलीद गाँव से होकर क्यों आया ? ध्यान रहे कुलीद गाँव हिन्दुओं का गाँव है और वहीं से आगज़नी शुरु हुई । किचलू साहिब , इस पूरे कांड की यही गाँठ तो आपने खोलनी है । क्योंकि यह गाँठ खुल गई तो सारा षड्यंत्र भी खुल जायेगा और षड्यंत्रकारियों की भी शिनाख्त हो जायेगी । इसीलिये सभी मांग कर रहे हैं कि आपको गिरफ़्तार करके इस गाँठ को खेला जाये । यह ऐसी वैसी गाँठ भी नहीं है । आपराधिक गाँठ है । इसे खोलने के लिये आपराधिक मामला ही दर्ज करना पड़ेगा । इसका यह अर्थ नहीं कि आप को जाँच से पहले ही अपराधी ठहरा दिया जाये । ऐसा तो क़तई हो ही नहीं सकता । लेकिन जाँच तो ज़रुरी है न ! कहीं इसी जाँच से बचने के लिये ही उमर अब्दुल्ला न्यायिक जाँच का छुनछुना बजा कर लोगों का ध्यान असली मुद्दे से हटाना तो नहीं चाहते ? क्योंकि यदि उनकी नीयत साफ़ होती तो वे जाँच से पहले ही किचलू की निर्दोषता की कहानियाँ सुनाना न शुरु कर देते । उमर का ग़ुस्सा इस बात को लेकर भी है कि किश्तवाड की घटनाओं को लेकर हंगामा संसद में क्यों हुआ ? मीडिया ने इस बात को क्यों उछाला ? उमर साहिब जानते हैं कि मीडिया ने तो अपनी पंथनिरपेक्षता को बचाने की ख़ातिर किश्तवाड में हो रहे अग्निकांड पर पहले दिन चूँ तक नहीं की । वह तो जब पूरे किश्तवाड शहर में दूसरे दिन भी धुँआँ निकलना बंद नहीं हुआ तब जाकर अपनी ही विश्वसनीयता की रक्षा के लिये मीडिया को किश्तवाड की ओर कूच करना पड़ा । क्या उमर चाहते हैं जिस प्रकार पूरी जेहलम घाटी से पांच लाख हिन्दुओं को निकाल बाहर किया और किसी ने चूँ तक नहीं की , उसी प्रकार अब चिनाव घाटी कश्मीरियत का शिकार होती रहे और सभी लोग चुप बैठे रहें ? कहीं इसीलिये तो किश्तवाड की घेराबन्दी में सरकार नहीं लगी हुई थी ? इंटरनेट से लेकर समाचार पत्रों तक सभी को बाहर का रास्ता दिखा दिया और ज़िले में किसी के भी जाने पर पाबन्दी आयद कर दी गई थी । राज्य सभा के सदस्य अरुण जेटली को तो जम्मू के हवाईपत्तन पर ही रोक लिया गया । मारे भी और रोने भी न दे शहसवार ।

तुम क़त्ल भी करते हो तो चर्चा नहीं होता ।

                 हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम ।।

आज तक ऐसा ही होता रहा था , लेकिन इस बार जब क़त्ल का चर्चा संसद तक में हो गया तो छोटे अब्दुल्ला आपा खोने लगे । १५ अगस्त के दिन मूसलाधार वारिश में भी बरसने लगे । किश्तवाड को लेकर जो हल्ला हो रहा है , उसी ने सिद्ध कर दिया है कश्मीर के लोगों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार हो रहा है । सवाल चना जबाव गन्दम । लोग किश्तवाड में अपराधियों को पकड़ने की मांग कर रहे हैं और जल रहे मकानों दुकानों का हिसाब मांग रहे हैं और उमर इसे कश्मीर के साथ भेदभाव बता रहे हैं । ग़ुस्से में पूरे कांड की जानकारी देते हुये लाल मुँह करके बता रहे थे — एक हिन्दु और दो मुसलमान मरे हैं । किश्तवाड में एक बार दहशत फैल गई थी कि जिस प्रकार लाशों की गिनती भी राज्य के मुख्यमंत्री बार बार मज़हबी हिसाब से कर रहे हैं , कहीं षड्यंत्रकारी एक और हिन्दु को मार कर बराबरी का तत्काल न्याय ही न कर दें । अलबत्ता उमर अब्दुल्ला ने भिन्न भिन्न भाव भंगिमाओं में दुनिया भर की कहानियाँ सुना दीं लेकिन एक बार भी अग्निकांड में हुये नुक़सान का आकलन करने के लिये किसी कमेटी का गठन नहीं किया ताकि पीड़ितों के नुक़सान का मुआवज़ा दिया जा सके । सज्जाद किचलू और उमर अब्दुल्ला की इसी हडबडाहट के बीच में छिपा हुआ है कहीं किश्तवाड के कांड का सच , लेकिन उसका पर्दाफ़ाश कौन करेगा जब चिदम्बरम ख़ुद ही कह रहें हैं कि भीड़ तो केवल मज़हबी नारे लगा रही थी ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,203 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress