‘ढाई गज वस्त्र और अंजुली भर भिक्षा’ से अमर हो गए स्वामी करपात्री

6
369

-रमेश पाण्डेय-

karpatrijiधर्म के क्षेत्र में प्रतापगढ़ को जिसने पहचान दी। जिस शख्सियत ने धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो का नारा दिया। उस महान संत स्वामी करपात्री जी के जन्मदिवस पर हम श्रद्धा के साथ उनका नमन करते हैं। स्वामी जी अपने समय के अद्वितीय सन्यासी थे। वे केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि हिन्दू राष्ट्रवाद के पक्षधर भी थे। वे महान विद्वान थे, उनका बचपन का नाम हरि नारायन था, वे उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के संग्रामगढ़ थाना क्षेत्र के भटनी ग्राम मे 1907 ईसवी श्रावण मास, शुक्ल पक्ष द्वितीया एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। पिता रामधानी ओझा माता शिवरानी के आंगन मे इस बालक ने जन्म लेकर उस कुल का नाम इतिहास में अमर कर दिया। बाल्यकाल में स्वामी जी का नाम हरिनारायण रखा गया। नौ वर्ष की आयु में उनके पिता जी ने कुमारी सौभाग्यवती के साथ हरिनारायण का विवाह कर दिया। सोलह वर्ष की आयु मे हरिनारायण ने सन्यास ले लिया। वे परम आध्यात्मिक ब्रह्मानंद सरस्वती से सन्यास दीक्षा लेकर दांडी स्वामी हो गए। इनका नाम हरिनारायण से हरिहर चौतन्य हो गया। एक वर्ष उन्होंने प्रयाग आश्रम मे रहकर व्याकरण, दर्शन शास्त्र, न्याय शास्त्र और संस्कृति वांगमय का अध्ययन किया। एक वर्ष के पश्चात उन्होंने हिमालय की तरफ प्रस्थान किया, कहते हैं कि स्वामी जी ने गंगा जी की परिक्रमा किया। उसी यात्रा मे उन्होंने सभी ग्रन्थों का अध्ययन किया। वे इतने मेधावी थे कि कोई भी श्लोक एक बार देखने के पश्चात उन्हें याद हो जाता। उन्होंने केवल हिन्दू धर्म के ग्रन्थों का ही अध्ययन ही नहीं किया, बल्कि विश्व के बिभिन्न मतों के साहित्यों का भी तुलनात्मक अध्ययन किया। वे भिक्षा ग्रहण अपने हाथों से ही करते किसी वर्तन का उपयोग नहीं करते थे और एक बार ही भिक्षा ग्रहण करते, इसी कारण उन्हें स्वामी करपात्री जी कहने लगे। वे केवल आध्यात्मिक ही नहीं वे स्वतन्त्रता सेनानी भी थे, देश आजाद करने की दृष्टि से संन्यासियों का निर्माण किया। भारतीय संस्कृति के प्रति सचेत रहते हुए उन्होंने रामराज्य परिषद नाम की राजनैतिक पार्टी का भी गठन किया जिसे 1952 के चुनाव मे 3 लोक सभा में सफलता मिली। 1967 में जब गोरक्षा का आंदोलन शुरू हुआ तो उन्होंने उसकी अगुवाई की। बड़ी संख्या में संत गिरफ्तार किये गए। करपात्री जी को जेल मे काफी दिन रहना पड़ा, जेल में ही उन्होंने कॉलमार्क्स और रामराज्य नामक ग्रंथ लिखा जो विश्व प्रसिद्ध हुआ। यह पुस्तक विश्व की सभी राजनैतिक विचारों का विश्लेषण है। उन्हें हिन्दू धर्मसम्राट की उपाधि से नवाजा गया। स्वामी करपात्री जी पूरे देश में पैदल भ्रमण करते रहते थे। उन्होंने 1940 मे काशी वास के दौरान अखिल भारतीय धर्मसंघ की स्थापना की। वे स्व के प्रेमी थे स्वदेशी, स्वधर्म, स्वराष्ट्र उनका प्राण था। एक बार प्रवास के दौरान वे मध्य प्रदेश के किसी गाव मे थे। अधिकांश संस्कृति ही बोलते थे। भजन व पूजा के पश्चात वे नारा गुंजायमान कराते। वह भी संस्कृति में होता। एक दिन एक लड़की ने उनसे कहा की स्वामी जी अगर यह उद्घोष हिन्दी में होता तो हम सभी समझ पाते। स्वामी जी को ध्यान में आया और वहीं तुरंत उन्होंने इसका हिन्दी अनुवाद ‘धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो’ का उद्घोष किया और इसी दिन से यह पवित्र उद्घोष पूरे विश्व का हिन्दू धर्म का उद्घोष बन गया। वे अपने ऊपर कितना कम खर्च हो, इस पर बहुत ध्यान रखते थे। केवल ढाई गज कपड़े मे ही काम चलाते। एक लंगोटी, अपनी अंजुली भर भिक्षा, वह भी दिन में मात्र एक बार। 7 फारवरी 1982 को काशी में केदारघाट पर उनके प्राण महाप्राण में विलीन हो गए। उनकी इक्छानुसार केदारघाट में उन्हें गंगा जी में समाधि दी गयी और वे हमेशा के लिए अमर हो हिन्दू समाज के प्रेरणा-पुंज हो गए। स्वामी करपात्री आज भी उन लाखों, करोड़ों अुनयायियों के लिए प्रेरणास्पद हैं।

6 COMMENTS

  1. Thank you shri Pandey jee for writing an ecxellent article on Hindu Dharm Smrat swami Karpatrijee.
    Today his words are resonating in each and every Hindu Mandir all over the world.
    Dharm ki jaya ho; adharm ka naash ho,
    Praniyo me sadbhavana ho; vishwa ka kalyan ho.
    Such slogan can come only from a Hindu saint
    Than you.

    • आदरणीय श्री शर्मा जी, आपने मेंरा आलेख पढ़ा और सकारात्मक प्रतिक्रिया देकर मेरा हौसला बढ़ाया। इसके लिए आपको कोटिश: धन्यवाद

  2. पाण्डेय जी साधुवाद के पत्र हैं कि उन्होंने स्वामी करपात्री जी के बारें में जानकारी प्रदान के। मुझे 1952 – 1957 के चुनाव अच्छी तरह से याद है जब स्वामी जी राम राज्य परिषद के बैनर के नीचे सांसद का चुनाव जीते थे। उस समय स्वामी प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी ने लगातार जवाहर लाल नेहरू के विरुद्ध फूलपुर (इलाहाबाद) से तीन चुनाव लड़े थे। उस समय चुनाव में न तो किसी ने सेक्युलर वाद का प्रश्न उठाया थे, न ही रामराज्य परिषद के नाम पर ऊँगली उठाई, किसी स्वामी अथवा ब्रह्मचारी के चुनाव लड़ने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं माँगा, न ही किसी ने किसी के मान सन्मान को ठेस पहुंचाई, न ही किसी ने गरिमा का उल्लंघन किया, न ही किसी पर कोई लांछन लगाये। इस बार 2014 के चुनाव में ये सभी दृश्य देखने को मिले। क्या इसे भी हम अपनी प्रगति का सूचक मानें?

    • आदरणीय श्री गोयल जी, बिल्कुल सही प्रसंग आपने याद दिलाया। बहुत-बहुत धन्यवाद

    • आदरणीय श्री सिंह साहब, आपने मेरा आलेख पढ़कर और सकारात्मक प्रतिक्रिया देकर मेरा हौसला बढ़ाया। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। अपेक्षा है कि आप भविष्य में भी मार्गदर्शन करते रहेंगे

Leave a Reply to ramesh pandey Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here