नये राजनीतिक समीकरण बनाने में जुटे राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्री

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modi_vagela_BJP_congress1गुजरात का राजनीतिक समीकरण बदलने तथा विगत लम्बे समय से गुजरात की राजनीति पर हावी प्रदेश के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए गुजरात के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने एक मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे के गठन के बाद गांधीनगर का सियासी तापमान बढने और प्रदेश में एक नये राजनीतिक जोड-तोड की रूप रेखा बनने लगी है। हालांकि विगत लम्बे समय से दोनों पूर्व मुख्यमंत्री दो विपरीत ध्रुवों पर सक्रिय हैं लेकिन मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई को सत्ता से हटाने के लिए इन दोनों ने अपनी राजनीतिक मर्यादाओं को तिलांजल देकर एक मंच पर आने का फैसला कियाहै । इस योजना के तहत अब सुरेश भाई मेहता और शंकर सिंह वाघेला एक मंच पर हैं। हालांकि प्रदेश में इस प्रकार का मंच-मोर्चा पहले भी बना है और मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए न जाने कितने प्रयोग किये गये लेकिन मोदी कमजोर होने के बदले मजबूत ही हुआ है। वर्तमान मोर्चा क्या गुल खिलाएगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इस मोर्चे के गठन से कई मिथक टूटने वाले हैं। कम से कम गुजरात की राजनीति में एक नये युग की शुरूआत तो माना ही जाना चाहिए।

पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला जनाधार वाले नेता माने जाते हैं। गुजरत की राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी को गुजरात में आधार दिलाने में अशोक भट्ट और शंकर सिंह वाघेला की बडी भूमिका है। इसके साथ ही वाघेला की छवी साफ-सुथरे नेता की है। यही नहीं जिस प्रकार का मानस गुजरात का है वाघेला उसी मनोवृति के नेता माने जाते हैं। अपने मुख्यमंत्री काल में उन्होंने भी गुजरात के व्यापारियों को परेशान करने वालों पर नकेल कसी थी। इसलिए गुजरात का एक बडा वर्ग वाघेला के नेतृत्व को अच्छा मानाता है। हालांकि कांग्रेस में जाने के कारण वाघेला की छवि को थोडा धक्का जरूर लगा लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्र में वाघेला अन्य किसी गुजराती नेता की तुलना में ज्यादा प्रभाव रखते हैं। वाघेला से ही मिलती जुलती छवि सुरेश मेहता की भी है। मेहता का जनाधार उतना मजबूत तो नहीं है लेकिन प्रशासन तथा व्यापार जगत में उनके पकड की तूति बोलती है। इधर वाघेला को यह ऐहसास होने लगा है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने प्रदेश के मुूख्यमंत्री नरेन्द्र भाई से मिलकर उनके खिलाफ षडयंत्र किया और वे पिछले लोकसभा चुनाव में हार गये। अब वे कांग्रेस से भी दूरी बनने की योजना में लगे हैं। उधर कांग्रेस की एक लॉबी वाघेला को देखना नहीं चाहती है। कांग्रेस के इस लॉबी का कहना है कि वाघेला के प्रभाव से प्रदेश में मूल कांग्रेस का लोप हो जाएगा और पार्टी के अंदर साम्प्रदायिक छवि वाले नेताओं का बोलवाला बढ जाएगा। इसलिए वाघेला को किसी कीमत पर प्रदेश का कमान नहीं सौंपा जाना चाहिए। कांग्रस के इस सोच वाले नेताओं से वाघेला खासे नाराज बताये जा रहे हैं और लंबे मंथन के बाद उन्होंने प्रदेय में ऐसा राजनीतिक समीकरण बनने का सोचा जो कांग्रेस और भाजपा के बीच का हो। ऐसे ही कुछ सिध्दांतो की परिकल्पना पर सुरेश भाई मेहना ने भी वाघेला को अपना समर्थन दिया है। अब वाघेला की नजर भारतीय जनता पार्टी से टूट कर बनी महागुजरात भारतीय जनता पार्टी पर टिकी है। यही नहीं आज भी वाघेला गुजरात प्रदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ नेताओं के साथ संपर्क में हैं। इसके अलावे प्रदेश भाजपा के कद्दाबर नेता और प्रदेश के बडे वोटबैंक पर अपना अधिकार रखने वाले केसू भाई पटेल को भी वाघेला प्रत्यक्ष या परोक्ष अपने साथ लाने की योजना में हैं। संघ के अन्य जनसंगठनों का भी मोदी के साथ बनाव नहीं है। ऐसे में इन तमाम शक्तियों को एकजुट कर वाघेला प्रदेश में एक नई राजनीतिक शक्ति के गठन की महायोजना पर काम कर रहे हैं।

इस प्रकार नये राजनीतिक गठबंधन के उदय से कांग्रेस खासे खुश है। उसे इस परिस्थिति में अपनी खोई ताकत पाने का रास्ता मिलने की उम्मीद है। कांग्रेसी प्रेक्षकों का मानना है और कांग्रेस इस मोर्चा के गठन से गुजरात में फिर से अपनी खेई ताकत प्राप्त कर सकता है। कांग्रेस जिन प्रांतों में कमजोर है वहां उसने इसी प्रकार की क्षद्म और तातकालिक राजनीतिक ताकतों को हवा देकर खोई शक्ति प्राप्त की है। वर्तमान में गुजरात की राजनीतक परिस्थिति कांग्रेस के अनुकूल नहीं है। ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस ऐसे किसी राजनीतिक ताकत को मजबूत करना चाहती है जो प्रभाव में तो भाजपा से मजबूत हो लेकिन उसका सांगठनिक ढांचा अनगढ हो जिसे किसी समय कमजोर किया जा सकता है। वाघेला के मोर्चे में कांग्रेस प्रत्यक्ष तो नहीं लेकिन परेक्ष रूप से जरूर हस्तक्षेप करेगा।

जानकार बातातें हैं कि मोर्चे के गठन के बाद प्रदेश में जनसंघर्ष की नई पृष्ठभूमि तैयार होने लगी हैऔर दोनो नेताओं के नेतृत्व में प्रदेश में एक बडे लडाई की योजना भी साकर होती दिख रही है। इस मोर्चे के रोडमैप के अनुसार पहले और दुसरे चरण का काम पूरा हो चुका है। छः दिसंबर की रैली से यह साबित हो गया है कि वाघेला का जनाधार आज भी कायम है। रैली की अप्रयाशित सफलता से भारतीय जनता पार्टी के अंतःपुर में अफरातफरी मच गयी है। यही कारण है कि विगत दिनों भारतीय जनता पार्टी के दो बडे नेताओं का गुजरात प्रवास हुआ। यही नहीं भाजपा संगठन को और अधिक मजबूत करने के लिए प्रदेश भाजपा कई कार्यक्रमों को अंजाम दे रही हैलेकिन पार्टी और प्रदेश में कई प्रकार के अन्तरद्वंद्व ने मोदी सरकार के जनाधार में सेन लगा दिया है। इधर अप्रत्याशित रूप से आसाराम बापू के आश्रम से निकलने वाले साधकों की शोभा-यात्रा पर पुलिस के द्वरा बल प्रयोग हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचा है। ऐसी परिस्थिति में आसाराम बापू प्रशासन से खफा हैं। अपनी बात सरकार के मुखिया तक पहुंचाने के लिए श्री बापू ने विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल को अपना दूत बनाया लेकिन बात नहीं बनीतो बापू ने अपनी लडाई खुद लडने का फैसला कर लिया है। बात यहां तक बढ गयी है कि बापू विगत दिनों एक समाचार पत्र के प्रतिनिधि को यहां तक कह दिया कि अगर सरकार का आश्रम के प्रति यही दृष्टिकोण रहा तो वे खुल कर मोदी विरोधी मोर्चे को अपना समर्थन देंगे। ऐसे में प्रेक्षकों का मामना है कि पूज्य बापू पूर्व मुख्यमंत्री द्वय द्वारा बनाए गये मोर्चे को अपना समर्थन दे सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो पार्टी के अंदर मोदी विरोधी स्वर मुखर होगा और मोदी के पास ऐसी पस्थिति से निवटने के लिए फिलहाल कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है। आज भी गुजरात भाजपा में मोदी विरोधियों की कमी नहीं है। एक अनुमान के तहत 20 प्रतिशत विधायक ऐसे हैं जो मोदी को मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते। फिर पुराने नेता अशोक भट्ट तथा काशीराम राणा के अलावे केशुभाई पटेल की लॉबी आज भी मोदी को हटाने के लिए समय समय पर कतर-ब्योंत लगाता रहता है। सचमुच इन तमाम शक्तियों को वाघेला अपने नेतृत्व में समेट लिये तो फिर प्रदेश में राजनीतिक परिवर्तन को रोक पाना सहज नहीं होगा।

– गौतम चौधरी

1 COMMENT

  1. व्यक्ति सब अच्छे मगर, सङा-गला है तन्त्र.
    गहरे गाङो भूमि में खाद बने यह तन्त्र.
    खाद बने तो मन्त्र, सिद्ध हों काम सभी के.
    व्यष्टि-समष्टि-परमेष्टि, हरसे मन सब के.
    कह साधक इस सङे आम का क्या सुधरेगा.
    जब तक रखना चाहो, नाक में दम करेगा.

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