जनता के दिल की आड़ में, देश के चौकीदार को चोर करार……. 

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अनिल अनूप 

एक बार फिर प्रतिक्रिया देनी पड़ रही है, विश्लेषण करना मजबूरी है, क्योंकि इस बार खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए घोर आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है। ये हमारे संस्कार हैं कि हमने ‘गाली’ शब्द का प्रयोग नहीं किया, अलबत्ता वे शब्द गाली ही हैं। राजस्थान में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने ‘जनता के दिल’ की आड़ में देश के ‘चौकीदार’ को ‘चोर’ करार दिया है। यह देश की जनता अच्छी तरह जानती है कि देश का ‘चौकीदार’ कौन है? बीती 12 सितंबर को मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने प्रधानमंत्री को ‘अनपढ़, गंवार’ कहा था। अब तो 2014 में महाराष्ट्र चुनाव का वह दौर भी याद आ गया, जब निरुपम ने ही कहा था-‘जनता ने एक बंदर के हाथ में देश सौंप दिया है।’ तब तक मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे। जाहिर है कि ‘बंदर’ शब्द का इस्तेमाल किसके लिए किया गया था। निरुपम के खिलाफ कांग्रेस ने कोई कार्रवाई नहीं की, लेकिन क्या राहुल गांधी भी गालियों की सियासत के जरिए ही 2019 जीतना चाह रहे हैं? राहुल ने तो अब देश के प्रधानमंत्री को ‘चोर’ कहा है, लेकिन कांग्रेस की यह पुरानी परंपरा रही है कि यदि प्रधानमंत्री या कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर कोई ‘गांधीनाम’ नहीं है, तो पार्टी अपमान और अपशब्दों का एक सिलसिला शुरू कर देती है। चूंकि आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने थे, तो कांग्रेस उन्हें सहन नहीं कर सकी। तब सत्तारूढ़ जनता पार्टी के अंतर्विरोधों का लाभ उठाकर उसे दोफाड़ कराया गया। फिर समर्थन देकर चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया। वह ऐसे एकमात्र प्रधानमंत्री साबित हुए, जो एक बार भी संसद का सामना नहीं कर सका। सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष जरूर बने, क्योंकि परिस्थितियां ऐसी थीं, लेकिन सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने के लिए कांग्रेस नेताओं की एक टोली ने केसरी के साथ क्या दुर्व्यवहार किया था, वह देश अच्छी तरह जानता है। कोई पुराने इतिहास की दास्तां नहीं है। पीवी नरसिंह राव देश के प्रधानमंत्री पूरे पांच साल तक रहे। उनकी सरकार भी कांग्रेस नेतृत्व की थी, लेकिन उनके निधन के बाद उनका पार्थिव शरीर कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड के प्रांगण में नहीं रखने दिया गया। तब सोनिया गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष थीं। तो फिर अब कांग्रेस एक ‘चाय वाले’ को प्रधानमंत्री पद पर कैसे बर्दाश्त कर सकती है? दरअसल प्रधानमंत्री को ‘चोर’ कहना कितना पीड़ास्पद और ‘मिर्चीवाला’ महसूस हो सकता है, शायद कांग्रेस ने तब महसूस किया होगा, जब यूपीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के लिए ‘चोर’ शब्द का  इस्तेमाल किया गया था। व्यथित होकर डा. सिंह को संसद में बयान देना पड़ा था। राहुल गांधी को वे पल जरूर याद होंगे। हमें राहुल गांधी के द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को ‘चोर’ कहना आश्चर्यजनक यूं नहीं लगा, क्योंकि कांग्रेस में गाली देने की एक संस्कृति है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए कुछ गालियों का जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं। सवाल यह है कि जिस राहुल गांधी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान भाजपा की नफरत को प्यार से जीतने की बात कही थी और प्रधानमंत्री की सीट तक जाकर उनके गले मिले थे, क्या वह महज दिखावा था? क्या वह सौहार्दका एक नाटक था? क्या लोकतंत्र चुनावी प्रतिद्वंद्विता है या कोई दंगल..? वित्त मंत्री अरुण जेतली ने भी राहुल गांधी के लिए ‘मसखरा शहजादा’ शब्दों का इस्तेमाल किया है। यह भी घोर आपत्तिजनक है, लेकिन ‘चोर’ की तुलना में कम पीड़ादायक है। सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र में शब्दों की मर्यादा अनिवार्य नहीं है? क्या गालियां देकर वोट बैंक का ध्रुवीकरण होता है और गाली देने वाले पक्ष को ज्यादा वोट हासिल होते हैं? जिन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को ‘नपुंसक’, ‘आरएसएस का गुंडा’, ‘हत्यारा’, ‘यमराज’, ‘सांप-बिच्छू’ तक कहा है, क्या जनता उन्हें वोट देगी? अभी तक का अनुभव तो यही बताता है कि जनता की प्रतिक्रिया बेहद तल्ख रही है और उसने गालियों के विपरीत जनादेश दिए हैं। फिर राहुल गांधी क्या सोच रहे हैं? कांग्रेस मोदी सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और चुनावी वादों के खिलाफ खूब अभियान चलाए। यह उसका लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की गरिमा पर तो कालिख मत मलो। ऐसा करना देश का ही नहीं, लोकतंत्र का भी अपमान है और देश यह बर्दाश्त नहीं करेगा।

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