केन्द्र और हिमाचल में चुनावी अभिलाषा का श्रीगणेश 

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अनिल अनूप 

मिशन लोकसभा चुनाव के रंग में रंगती हिमाचल भाजपा ने अपनी जीत के मुताबिक साक्ष्य जुटाने शुरू किए हैं। शिमला में कार्यसमिति की बैठक में प्रत्यक्ष व परोक्ष चुनौतियों के बीच, भाजपा का अपना पक्ष जिन सुनहरी सपनों के आगोश में बैठा है, वहां दो रत्नों की नुमाइश स्पष्ट है। यानी केंद्र में मोदी और हिमाचल में जयराम सरकार के बल पर चुनावी अभिलाषा का श्रीगणेश हो रहा है। जाहिर है एक ताकतवर बल्लेबाज टीम की तरह भाजपा ने शिमला बैठक की पिच पर अपनी उम्मीदों के रन बटोरे, तो सामने कांग्रेस के क्षेत्ररक्षण का सवाल फिर पैदा हुआ। जिक्र राहुल की कांग्रेस से वीरभद्र के हिमाचल तक, विरोधी दल को संकट में देख रहा है। बेशक देश की तरह हिमाचल में भी भाजपा अपने कार्यकर्ताओं की विराटता को देख रही है और पन्ना प्रमुख तक पहुंचते पार्टी के संदेश खासी शिद्दत से जमीन पर अपने आसमान का जिक्र करते हैं। कांग्रेस की कमजोरियों पर सियासी नाद की वजह भाजपा को रास आती है, लेकिन दो घटनाक्रमों का जिक्र पार्टी को अवश्य करना होगा। आवश्यक संख्या बल के बावजूद कांगड़ा जिला परिषद उपाध्यक्ष चुनाव की असफलता और दूसरी ओर मंडी की घंटियों में पंडित सुखराम के आदेश को भी सुनना होगा। विधानसभा चुनाव की करवटों में सुखराम ने भाजपा की स्तुति में अपना जो चरित्र पेश किया था, वह अब शर्तिया क्यों हो गया। मंडी लोकसभा सीट पर सुखराम के परिवार को आश्रय मिलेगा या भाजपा को आश्रय देकर पंडित जी अपना नया गणित करेंगे, एक नई पैरवी का नया पायदान है। भाजपा इससे भलीभांति परिचित है कि जिस हिमाचल विकास कांग्रेस के बूते सुखराम ने धूमल को राजनीतिक पंडताई समझाई थी, अब जयराम के गृह जिला के नक्षत्र में पुनः यह शख्स अपनी आजमाइश यूं ही अर्थहीन नहीं होने देगा। बहरहाल भाजपा की शिमला बैठक से विपक्ष की नैया डुबोने का मंतव्य जोरदार ढंग से पेश हुआ, लेकिन पार्टी को कांगड़ा, मंडी और शिमला में नए नाविक चाहिए। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का एक चेहरा हिमाचल में भी शिकायत करता है। नोटबंदी से जीएसटी तक की करवटों से जो शिकायतें देश में सुनी जा रही हैं, उनका सेंक यहां के कारोबारी अंदाज को भी लगा है। बीबीएन के हालचाल में औद्योगिक दस्तूर अगर बिगड़ा है, तो इस मुद्दे पर भाजपा को अपने ऊंट की करवट दिखानी होगी। हालांकि भाजपा कार्यसमिति की बैठक पेट्रोल-डीजल की दरों से अनभिज्ञ नहीं दिखाई दी और चिंता की लकीरों पर सियासी भविष्य की लकीरें स्पष्ट रहीं, फिर भी हिमाचल में बस किराए की बढ़ोतरी पर कोई निर्देश नहीं सुना गया। निजी बस मालिकों की हड़ताल जिस आश्वासन पर खत्म हुई थी, वहां किराया दरों में वृद्धि लगभग घोषित थी, फिर भी अब यह मसला आम जनता के मूड को भांप रहा है। क्या जयराम सरकार अच्छी आर्थिकी की दिशा में बस किराया बढ़ाएगी या राजनीतिक बेहतरी के लिए ऐसे कदम लेने से रुक जाएगी, कम से कम भाजपा की बैठक ने इस मसले को चिमटी से पकड़ने की कोशिश केवल  पेट्रोल-डीजल के दामों तक ही रखी। भाजपा के सियासी प्रस्ताव जाहिर तौर पर आशावादी हैं और कांग्रेस से कहीं अधिक फौलादी। चुनाव में कूदने से पूर्व का अभ्यास और विपक्ष की शामत लाने का  हिसाब पूरी तरह गढ़ा गया, लेकिन सत्ता के पैमानों का जिक्र कैसे होगा, यह केवल जनता का मूड बताएगा।

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