राष्ट्रीय पुननिर्माण में संघ की भूमिका

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज अपरिचित नाम नहीं है। भारत में ही नहीं,विश्वभर में संघ के स्वयंसेवक फैले हुए हैं। भारत में लद्दाख से लेकर अंडमान निकोबार तक नियमित शाखायें हैं तथा वर्ष भर विभिन्न तरह केकार्यक्रम चलते रहते हैं। पूरे देश में आज 35, स्थानों (नगर व ग्रामों) में 5, शाखायें हैं तथा 95 साप्ताहिक मिलन व 85 मासिक मिलन चलते हैं। स्वयंसेवकों द्वारा समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान के लिए, उनमें आत्मविश्वास व राष्ट्रीय भाव निर्माण करने हेतु ड़े लाख से अधिक सेवा कार्य चल रहे हैं। संघ के अनेक स्वयंसेवक समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समाज के विभिन्न बंधुओं से सहयोग से अनेक संगठन चला रहे हैं। राष्ट्र व समाज पर आने वाली हर विपदा में स्वयंसेवकों द्वारा सेवा के कीर्तिमान ख+डे किये गये हैं। संघ से बाहर के लोगों यहां तक कि विरोध करने वालों ने भी समयसमय पर इन सेवा कार्यों की भूरिभूरि प्रशंसा की है। नित्य राष्ट्र साधना (प्रतिदिन की शाखा) व समयसमय पर किये गये कार्यों व व्यक्त विचारों के कारण ही दुनिया की नजर में संघ राष्ट्रशक्ति बनकर उभरा है। ऐसे संगठन के बारे में तथ्यपूर्ण सही जानकारी होना आवश्यक है। रा. स्व. संघ का जन्म सं. 1982 विक्रमी (सन 1925) की विजयादशमी को हुआ। संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार थे।
डॉ. हेडगेवार के बारे में कहा जा सकता है कि वे जन्मजात देशभक्त थे। छोटी आयु में ही रानी विक्टोरिया के जन्मदिन पर स्कूल से मिलने वाला मिठाई का दोना उन्होंने कूडे में फेंक दिया था। भाई द्वारा पूछने पर उत्तर दिया॔॔हम पर जबर्दस्ती राज्य करने वाली रानी का जन्मदिन हम क्यों मनायें?’’ ऐसी अनेक घटनाओं से उनका जीवन भरा पड़ा है। इस वृत्ति के कारण जैसेजैसे वे बड़े हुए राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ते गये। वंदे मातरम कहने पर स्कूल से निकाल दिये गये। बाद में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में इसलिए प+ने गये कि उन दिनों कलकत्ता क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था।

वहां रहकर अनेक प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ काम किया। लौटकर उस समय के प्रमुख नेताओं के साथ आजादी के आंदोलन से जुड़े रहे। 192 के नागपुर अधिवेशन की संपूर्ण व्यवस्थायें संभालते हुए पूर्ण स्वराज्य की मांग का आग्रह डॉ. साहब ने कांग्रेस नेताओं से किया। उनकी बात तब अस्वीकार कर दी गयी। बाद में 1929 के लाहौर अधिवेशन में जब कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ. हेडगेवार ने उस समय चलने वाली सभी संघ शाखाओं से धन्यवाद का पत्र लिखवाया, क्योंकि उनके मन में आजादी की कल्पना पूर्ण स्वराज्य के रूप में ही थी।
आजादी के आंदोलन में डॉ. हेडगेवार स्वयं दो बार जेल गये। उनके साथ और भी अनेकों स्वयंसेवक जेल गये। फिर भी आज तक यह झूठा प्रश्न उपस्थित किया जाता है कि आजादी के आंदोलन में संघ कहां था? डॉ. हेडगेवार को देश की परतंत्रता अत्यंत पी+डा देती थी। इसीलिए उस समय स्वयंसेवकों द्वारा ली जाने वाली प्रतिज्ञा में यह शब्द बोले जाते थे॔ देश को आजाद कराने के लिए मै संघ का स्वयंसेवक बना हूं’’ डॉ. साहब को दूसरी सबसे ब+डी पी+डा यह थी कि इस देश क सबसे प्रचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य प्रायरू आत्म विस्मृति में डूबा हुआ है, उसको “मैं अकेला क्या कर सकता हूं’’ की भावना ने ग्रसित कर लिया है। इस देश का बहुसंख्यक समाज यदि इस दशा में रहा तो कैसे यह देश खडा होगा? इतिहास गवाह है कि जबजब यह बिखरा रहा तबतब देश पराजित हुआ है। इसी सोच में से जन्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीया स्वाभिमान, निरूस्वार्थ भावना व एकजुटता का भाव निर्माण करना बना। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित ही है कि डॉ. हेडगेवार का यह विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं ख+डा हुआ। अतरू इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरूद्घ हो जायेगा।
हिन्दू संगठन शब्द सुनकर जिनके मन में इस प्रकार के पूर्वाग्रह बन गये हैं उन्हें संघ समझना कठिन ही होगा। तब उनके द्वारा संघ जैसे प्रखर राष्ट्रवादी संगठन को, राष्ट्र के लिए समर्पित संगठन को संकुचित, सांप्रदायिक आदि शब्द प्रयोग आश्चर्यजनक नहीं है। हिन्दू के मूल स्वभाव उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनियां के सभी मतपंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला। वे यहां आये, बसे। कुछ मत यहां की संस्कृति में रचबस गये तथा कुछ अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ रहे। हिन्दू ने यह भी स्वीकार कर लिया क्योंकि उसके मन में बैठाया गया है रुचीनां वैचित्र्याद्जुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामपर्णव इव॥ अर्थजैसे विभिन्न नदियां भिन्नभिन्न स्रोतों से निकलकर समुदा्र में मिल जाती है, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्नभिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टे़मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अन्त में तुझमें (परमपिता परमेश्वर) आकर मिलते है। शिव महिमा स्त्रोत्तम, इस तरह भारत में अनेक मतपंथों के लोग रहने लगे। इसी स्थिति को कुछ लोग बहुलतावादी संस्कृति की संज्ञा देते हैं तथा केवल हिन्दू की बात को छोटा व संकीर्ण मानते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि भारत में सभी पंथों का सहज रहना यहां के प्राचीन समाज (हिन्दू) के स्वभाव के कारण है।
उस हिन्दुत्व के कारण है जिसे देश केसर्वोज्च न्यायालय ने भी जीवन पद्घति कहा है, केवल पूजा पद्घति नहीं।हिन्दू के इस स्वभाव के कारण ही देश बहुलतावादी है। यहां विचार करने का विषय है कि बहुलतावाद महत्वपूर्ण है या हिन्दुत्व महत्वपूर्ण है जिसके कारण बहुलतावाद चल रहा है। अतरू देश में जो लोग बहुलतावाद के समर्थक हैं उन्हें भी हिन्दुत्व के विचार को प्रबल बनाने की सोचना होगा। यहां हिन्दुत्व के अतिरिक्त कुछ भी प्रबल हुआ तो न तो भारत ॔भारत’ रह सकेगा न ही बहुलतावाद जैसे सिद्घांत रह सकेंगे। क्या पाकिस्तान में बहुलतावाद की कल्पना की जा सकती है? इस परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस देश की राष्ट्रीय आवश्यकता है। हिन्दू संगठन को नकारना, उसे संकुचित आदि कहना राष्ट्रीय आवश्यकता की अवहेलना करना ही है।
संघ के स्वयंसेवक हिन्दू संगठन करके अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। संघ की प्रतिदिन लगने वाली शाखा व्यक्ति के शरीर, मन, बुदि्घ, आत्मा के विकास की व्यवस्था तथा उसका राष्ट्रीय मन बनाने का प्रयास होता है। ऐसे कार्य को अनर्गल बातें करके किसी भी तरह लांक्षित करना उचित नहीं। संघ की प्रार्थना, प्रतिज्ञा, एकात्मता स्त्रोत, एकात्मता मंत्र जिनको स्वयंसेवक प्रतिदिन ही दोहराते हैं, उन्हें पने के पश्चात संघ का विचार, संघ में क्या सिखाया जाता है, स्वयंसेवकों का मानस कैसा है यह समझा जा सकता है। प्रार्थना में मातृभूमि की वंदना, प्रभु का आशीर्वाद, संगठन के कार्य के लिए गुण, राष्ट्र के परंवैभव (सुख, शांति, समृदि्घ) की कल्पना की गई है। प्रार्थना में हिन्दुओं का परंवैभव नहीं कहा है, राष्ट्र का परंवैभव कहा है। स्वाभाविक ही सभी की सुख शांति की कामना की है। सभी के अंत में भारतमाता माता की जय कहा है। स्वाभाविक ही हर स्वयंसेवक के मन का एक ही भाव बनता है। हम भारत की जय के लिए कार्य कर रहे हैं। एकात्मता स्त्रोत व मंत्र में भी भारत की सभी पवित्र नदियों, पर्वतों, पुरियों सहित देश व समाज के लिए कार्य करने वाले प्रमुख व्यक्तियों (महर्षि वाल्मीकि, बुद्घ, महावीर, गुरूनानक, गांधी, रसखान, मीरा, अंबेडकर, महात्मा फुले सहित ऋषि, बलिदानी, समाज सुधारक वैज्ञानिक आदि) का वर्णन है तथा अंत में भारत माता की जय। इस सबका ही परिणाम है कि संघ के स्वयंसेवक के मन में जातिबिरादरी, प्रांतक्षेत्रवाद, ऊंचनीच, छूआछूत आदि क्षुद्रा विचार नहीं आ पाते। जब भी कभी ऐसे अवसर आये जहां सेवा की आवश्यकता पड़ी वहां स्वयंसेवक कथनीकरनी में खरे उतरे हैं।
जब सुनामी लहरों का कहर आया तब वहां स्वयंसेवकों ने जो सेवा कार्य किया उसकी प्रशंसा वहां के ईसाई व कम्युनिष्ट बंधुओं ने भी की है। अमेरिका के कैटरीना के भयंकर तूफान में भी वहां स्वयंसेवकों ने प्रशंसनीय सेवा की है। कुछ वर्ष पूर्व चरखी दादरी (हरियाणा) में दो हवाई जहाजों के टकरा जाने के परिणाम स्वरूप 3 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई। दुर्भाग्य से ये सभी मुस्लिम समाज के थे उनकी सहायता करने ॔सेक्यूलरिस्ट’ नहीं गये। सभी के लिए कफन, ताबूत आदि की व्यवस्था, उनके परिजनों को सूचना देने का काम, शव लेने आने वालों की भोजन, आवास आदि की व्यवस्था वहां के स्वयंसेवकों ने की। इस कारण वहां की मस्जिद में स्वयंसेवकों का अभिनंदन हुआ, मुस्लिम पत्रिका ॔रेडिएंस’ ने ॔शाबास 3.’ शीर्षक से लेख छापा। ऐसी अनेक घटनाओं से संघ का इतिहासभरापडा है। गुजरात, उ+डीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, अंडमाननिकोबार आदि भयंकर तूफानों में सेवा करने हेतु पूरे देश से स्वयंसेवक गये, बिना किसी भेद से सेवा, पूरे देश से राहत सामग्री व धन एकत्रित करके भेजा, मकान बनवाये। वहां चममकपज लोग स्वयंसेवकों के रिश्तेदार या जातिबिरादरी के थे क्या? बस मन में एक ही भावसभी भारत माता के पुत्र हैं इसलिए सभी भाईभाई है। अमेरिका, मॅरीशस आदि की सेवा में भी एक ही भाव “वसुधैव कुटुम्बकम्।’ शाखा पर जो संस्कार सीखे उसी का प्रकटीकरण है। प्रख्यात सर्वोदयी एस. एन. सुब्बाराव ने कहा आर एस एस मीन्स रेडी फॉर सेल्फलेस
सर्विस। दूसरा दृश्य भी देखेंजब राजनीतिज्ञों व तथाकथित समाज विरोधी तत्वों द्वारा विशेषकर हिन्दू समाज को विभाजित करने के प्रयास हो रहे हैं तब स्वयंसेवक समाज में सामाजिक समरसता निर्माण करने का प्रयास कर रहे हैं। महापुरूष पूरे समाज के लिए होते हैंउनका मार्ग दर्शन भी पूरे समाज के लिए होता है तब उनकी जयंती आदि भी जाति या वर्ग विशेष ही क्यों मनायें? पूरे समाज की ही सहभागिता उसमें होनी चाहिये। समरसता मंच केमाध्यम से स्वयंसेवकों ने ऐसा प्रयास प्रारम्भ किया है तथा समाज के सभी वर्गा को जोडने, निकट लाने में सफलता मिल रही है, वैमनस्यता कम हो रही है। दिखने में छोटा कार्य है किन्तु कुछ समय पश्चात यही बडे परिणाम लाने वाला कार्य सिद्घ होगा। मुस्लिम, ईसाई, मतावलम्बियों के साथ भी संघ अधिकारियों की बैठकें हुई हैं किन्तु कुछ लोगों को ऐसा बैठना रास नहीं आता। अतरू परिणाम निकलने से पूर्व ही ऐसे प्रयासों में विघ्नसंतोषी विघ्न डालने के प्रयास करते रहते हैं। गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोग, वनवासी, गिरिवासी, झुग्गीझोपडियों व मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का दुरूखदर्द बांटने, उनमें आत्मविश्वास निर्माण करने, उनके शैक्षिक व आर्थिक स्तर को सुधारने के लिए भी सेवा भारती, सेवा प्रकल्प संस्थान,वनवासी कल्याण आश्रम व अन्य विभिन्न ट्रस्ट व संस्थायें गठित करके जुट गये हैं हजारों स्वयंसेवक। इनके प्रयासों का ब+डा ही अज्छा परिणाम भी आ रहा है। इस परिणाम को देखकर एक विद्वान व्यक्ति कह उठे आर एस एस यानिरिबोल्यूसन इन सोशल सर्विस। राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी स्वयंसेवक खरे उतरे हैं। सन 4748, 65, 71 के युद्घ के समय सेना को हर, प्रकार से नागरिक सहयोग प्रदान करने वालों की अंग्रिम पंक्ति में थे स्वयंसेवक। भोजन, दवा, रक्त जैसी भी आवश्यकता सेना को पड़ी तो स्वयंसेवकों ने उसकी पूर्ति की। यही स्थिति गत करगिल के युद्ध के समय हुई। इन मोर्चों पर कई स्वयंसेवक बलिदान भी हुए हैं। अनेकों घायल हुए हैं। इन्होंने न सरकार से मुआवजा लिया न ही मैडल। यही है निरूस्वार्थ देश सेवा। संघ का इतिहास त्याग, तपस्या, बलिदान, सेवा व समर्पण का इतिहास है, अन्य कुछ नहीं। सेना के एक अधिकारी ने कहा॔॔राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का रक्षक भुजदंड है।’’ राष्ट्रीय सुरक्षा का मोर्चा हो, दैवीय आपदा हो, दुर्घटना हो, समाज सुधार का कार्य हो, रूकुरीति से मुक्त समाज के निर्माण का कार्य हो, विभिन्न राष्ट्रीय व सामाजिक विषयों पर समाज के सकारात्मक प्रबोधन का विषय हो..और भी ऐसे अनेक मोर्चों पर संघ स्वयंसेवक जान की परवाह किये बिना हिम्मत और उत्साह के साथ डटे हैं तथा परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहे हैं, परिवर्तन आ भी रहा है। इस अर्थ में विचार करेंगे तो स्वयंसेवक राष्ट्र की महत्वपूर्ण पूंजी है। काश! इस पूंजी का सदुपयोग, राष्ट्र के पुनर्निर्माण में ठीक से किया जाता तो अब तक शक्तिशाली व समृद्घ भारत का स्वरूप उभारने में अच्छी और सफलता मिल
सकती थी। अभी भी देर नहीं हुई है। विभिन्न दलों के राजनैतिक नेता, समाजशास्त्री, विचारक, ङ्क्षचतक पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर ॔स्वयंसेवक’रूपी लगनशील, कर्मठ, अनुशासित, देशभक्ति व समाज सेवा की भावना से ओत प्रोत इस राष्ट्र शक्ति को पहचान कर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में इसका संवर्धन व सहयोग करें तो निश्चित ही दुनिया में भारत शीघ्र समर्थ, स्वावलम्बी व सम्मानित राष्ट्र बन सकेगा। पिछले 85 वर्षों से स्वयंसेवकोंका एक ही स्वप्न हैभारतमाता की जय।

18 COMMENTS

  1. शैलेन्द्र भाई सर्व-प्रथम एक बार पुनश्च बधाई आपके बेहद सुन्दर लेख पर, मैं देख रहा हूँ इतनी अधिक मात्रा में सकारात्मक टिप्पणियाँ, आप अपने सात्विक उद्देश्य में सफल रहे हैं.

  2. yahee to dikkat hai kee hindoo ”vasudhaiv kutumbakam” manta hai par sanghee nahee mante… wo to puri dhartee ko apnee riyasat aur jageer mante hai…tabhee na RAAJTANTR me hui vidwesh kari aur dharmik dhanchon ko giraye jane ka badla LOKTANTR me bhee usee tarah lene ke lie aisi ghridit kriya karke sampaadit karte han jo RAAJTANTRO ke samay hee hota tha… loktantr aur “”VASUDHAIV KUTUMBKAM” se upjane wala BHRATRITV bus hinduwon ke mad men dekhten hain.
    वो इस बात से सहमत नहीं होते की देश की जनसँख्या से उपजे खतरे को कम करने के लिए जनसँख्या का कम होना एक बेहतर कदम है’ बल्कि वो अन्य धर्मावलम्बियों की जनसँख्या के आंकड़े दिखाकर हिन्दुओं को धुन्वाधार जनसँख्या बढ़ने की बात अपने सम्मेलनों में पिलाते हैं….रही बात देशभक्ती की तो संघियों का सारा उपक्रम देशभक्ति से ज्यादा धर्मभक्ति का रहता है….वो मानकर चलते हैं की देशभक्ती उन्ही की बपौती है…और पूरी देशभक्ती पाकिस्तान , बंगलादेश और इसके प्रकारांतर से musalmaanon की jadon में vishvaman करने में kharch karte हैं….ये है इनकी देशभक्ती का असली पैटर्न ….

  3. (१) इंग्लैंड की शाखा में, प्राईम मिनिस्टर मार्गारेट थॅचर “वर्ष प्रतिपदा के- (हेडगेवार का जन्म दिन भी) उत्सव में आयी थी। क्यों? कि, पुलीस रपट के अनुसार स्वयंसेवक अनुशासित, और संस्कारी पाए गए थे, इसलिए।शाखाके कारण, हिंदु बहुल बरो (जिला) में, हिंदु-युवा-गुनाहों का प्रमाण न्यूनतम आया था।जानते हैं, उसने क्या कहा? उसने कहा, कि हम सभीको इस melting pot में melt होने के लिए, कहते हैं।पर आपसे मैं ऐसा नहीं कहूंगी।आप मेल जोल से रहते हैं। अपनी संस्कृति बनाए रखिए, और उसे आप अपने मित्र, अन्य युवाओं में भी फैलाएं।
    यदि संघ आतंकवादी होता, तो क्या ऐसा घटता? हिंदु तो, वसुधैव कुटुम्बकम्‍ में मानता है। कृण्वन्तोऽविश्वम्‍ आर्यम यही है। संसार को आर्य (सभ्य और संस्कारी)बनाएंगे।

    (२) सोचिए, जिस गांधी जी की हत्त्या को, संघके माथे मढा जाता है, उस गांधी के गुजरात में बहुसंख्य गुजराती संघको आज दोष देता दिखाई नहीं देता। कुछ कॉमन सेन्स से भी तो सोचा जाए।
    गुजरातमें, हिंदु मुसलमानसे नव(9) गुना है।तो, हिंसा-शक्ति भी(9) नव गुना हुयी। तो क्या हिंदू ने मुसलमान की हिंदु हत्त्याओं से, नव(9) गुना हत्त्याएं की?
    जब, गोधरा रेलमें 58-59 यात्री जिंदा जले।तो, साधारण शाकाहारी, गुजराती(जिसमें बहुत जैन भी है) क्रोधित हुआ।कुछ प्रतिक्रिया भी हुय़ी।मेरी ऐसी ही अपेक्षा थी। आपकी क्या अपेक्षा थी? कि, दूसरा गाल धरें, और उससे भी दूगुना हिंदु मरवा दें? उत्तर दे सकेंगे?

  4. हर व्यक्ति और संगठन में कोई न कोई कमी निकाली जा सकती है. पर ज़रा बुधी का प्रयोग करके बिना पूर्वाग्रह के देखें तो समझ आयेगा की समाज और राष्ट्र के लिए त्याग और बलिदान करने की शिक्षा संघ के इलावा कौन दे रहा है ? केवल कमियाँ ही गिनाने का पूर्वाग्रह हो तो संघ के महत्व और योगदान को नहीं समझा जा सकता.
    – सघ की छवि बिगाड़ने में एक बड़ा कारण भाजपा के प्रति उसका झुकाव है. पर संघ और एनी देशभक्त संगठनों की मज़बूरी यह है की कोई और भारतीय संस्कृति को समर्थन देने वाला राजनैतिक दल नहीं उभर रहा. ऐसा हुआ तो अनेक संघी हैं जो भाजपा को छोड़ कर उस दल के सहयोगी बन जायेंगे. बाबा रामदेव के प्रयासों से ऐसा संभव हो भी सकता है. भाजपा तो अपने घोषित उद्देश्यों पर खरी उतरती नज़र नहीं आ रही.
    यदि भाजपा सही साबित hoti तो विकल्प की ज़रूरत न rahati और sanhg के raastrwaadi wichaaron को राजनैतिक star पर saakaar kiyaa जा सकता. पर khed है की bjp kasauti पर khri नहीं utar रही और संघ की badnaami का कारण बन रही है.

  5. durbhagy se man pahle sanghee tha jo iskee ek community ke khilaf dwesh failane wali gatividhiyon ke karan mujhe sangh chhodna pada…..

  6. एक बात और संघ की गतिविधीया पर द्रष्टि-पात करके ही में उसका प्रशंसक बन गया हूँ, मैं समझता हूँ की संघ के आलोचकों को बिना किसी पूर्वाग्रह के उसके किये सद्कार्य अवश्य देखना चाहिए. मेरा संघ से इससे ज्यादा वास्ता नहीं रहा, पहले मैं भी यही सोचता था की सुबह सुबह खाकी नेकर पहन कर ये करना क्या चाहते है लेकिन जब उनके कार्य देखे तब समझ में आया की इनका उद्देश्य सिर्फ लोगों को राष्ट्र प्रेम की शिक्षा देना है.राष्ट्र की और समाज की सेवा करना है.

  7. अखिल जी मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं, मैं जानता हूँ की यदि कोई कांग्रेस के विचारों से बहुत ज्यादा इत्तेफाक रखता है (पर क्यों यह वह खुद नहीं जानता) और कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष है, केवल वह ही ऐसी बात करेगा.(ये धर्म निरपेक्षता किस चिड़िया का नाम है) शायद इसके लिए मुझे कश्मीर के विस्थापित हिन्दुओं से धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा समझनी होगी. या फिर उन लोगों से पूछनी होगी जिन्होंने काश्मीरी पंडितो को उनकी ही पुश्तेनी ज़मीन से उखाड़ फेका. हाँ आपको एक बात धर्म-परिवर्तन के बारे में समझाने की कोशिश अवश्य करूंगा अगर आप इसके उद्देश्यों से अनभिग्य है तो और अगर जानबूझ कर अनजान बने हुए है तो में क्या इश्वर भी आपको समझा नहीं सकता, धर्म-परिवर्तन का उद्देश्य उस धर्म के मूल स्थान(उद्गम स्थान) से भावनात्मक रूप से जोड़ देता है, और ग्राहम स्टेंस यही काम कर रहा था, यह भी सही है की इसका मतलब ये नहीं हुआ की दारा सिंह ने ह्त्या करके अच्छा काम किया, लेकिन ग्राहम स्टेंस निर्दोष नहीं था जब सरकार कोई कदम उठा ही नहीं रही हो तो किसी किसी का संयम टूट जाता है, रही बात गोडसे की तो उसने सही किया या नहीं इसके लिए आपको गहन अध्ययन करना होगा, आपकी भी दाद देनी होगी की गोडसे को आपने सिर्फ बदमाश कहके ही छोड़ दिया उसको आतंकवादी नहीं बताया जबकि देश में शहीद भगत सिंह को भी कुछ लोग आतंकवादी साबित करने में लगे हुए हैं.

  8. और संघ की गतिविधियों पर द्रिस्तिपात करेंगे तो जो पाएंगे वो निम्नवत (व्यवहार और यहाँ लिखित दोनों रूपों में निम्नवत है….
    १- गांधीजी की हत्या में संलग्न एक बदमाश आतंकी का जुड़ाव उस समय तक संघ की गतिविधियों से रहा..गृहमंत्री सरदार पटेल की भी जाँच में ये सच सामने आया था.
    २-असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा किसकी उपज हैं, जिन्होनें आतंकी गतिविधियों में संलग्न होना खुद स्वीकार किया है.
    ३-ग्राहम स्टेंस को जलाने वाला बदमाश दारा सिंह किस संगठन का उत्पाद था ये भी जानने की जरूरत है.
    ४-लोकतंत्र में एक इबादत-स्थल को गिरा देने की जिम्मेदारी और इस ध्वंश पर सत्ता पाने की चली गई नाकाम साजिश के पीछे कौन था, ये बताने की जरूरत नहीं…
    ५-और गुजरात के राजाधिराज जो ‘प्रजाधर्म’ निभाने से ज्यादा रुची ‘हिन्दू धर्म’ निभाने में लगे रहे ताकि कुर्सी-धर्म बनी रहे….
    लिस्ट लम्बी है शुभेच्छुओं, ये कहना नहीं चाह रहा था…लेकिन आपने मुह में ऊँगली दाल के बुलवाना चाहा तो कहना पड़ा ‘सर्वश्री भोंसले जी’

  9. प्रिय लेखक बंधू आपके लेख पर की गयी टिप्पणियों में सिर्फ मधुसूदन जी एवं शुक्ला जी की टिप्पणियाँ वज़नदार हैं बाक़ी सारी टिप्पणियों पर ध्यान ना दे( मेरी भी टिप्पणी में भी कोई दमदारी नहीं है ) मैं तो भाजपा की कायरता से इतना ज्यादा दुखी हूँ की जहां भी मौक़ा मिलता है इन्हें अवश्य बुरा भला कहताहूँ.

  10. संघ के बारे में तरह-तरह के विचार प्रस्तुत किए गए है लेकिन अधिकांश पूर्वाग्रह से प्रेरित कहे जा सकते है। आखिर कोई यह समझने का प्रयास क्यों नहीं करता कि क्या कारण है कि संघ विचार परिवार तमाम अवरोधों के बावजूद बढता ही जा रहा है। संघ ने विचार की धरातल पर जहां सभी वादों- समाजवाद, साम्यवाद, नक्सलवाद को पटखनी दी हैं वहीं राजनीतिक क्षेत्र में भी कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ा है। पहले भारतीय राजनीति गैर कांग्रेसवाद के आधार पर चलती थी अब यह गैर भाजपावाद हो गया है। संघ के सभी आनुषांगिक संगठन आज अपने-अपने क्षेत्र के क्रमांक एक पर है। भारतीय मजदूर संघ, विद्यार्थी परिषद्, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद् आदि…सेवा के क्षेत्र में वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती की सक्रियता प्रशंसनीय है। इस पर बहस होनी चाहिए कि कांग्रेस और वामपंथ का आधार क्यों सिकुड़ रहा है और संघ भाजपा के प्रति जन-समर्थन क्यों बढ़ रहा हैं। पिछले पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में माकपा-भाकपा और माले का खाता क्यों नहीं खुल पाया। कांग्रेस पिछले कई चुनावों से लगातार पराजय का मुंह क्यों देख रही है। देश की जनता अब समझदार हो गई है। वह देखती है कि कौन उसके लिए ईमानदारीपूर्वक काम कर रहा है और कौन केवल एयरकंडीशन कमरों में बैठकर महज जुगाली कर रहा है। समाजसेवा के नाम पर कांग्रेस-वामपंथियों की क्या उपलब्धि है। इस बात में दम है कि ‘अंधेरे की शिकायत करते रहने से कहीं बेहतर है एक दिया जलाना’।

  11. सत्तर के दशक में बाबुराव पटेल के, मदर लँड (या इंडिया) में, छपा स्मरण है।
    ===>१९४७ की १४ अगस्त को पाकीस्तानके Dawn के अग्रलेख में लिखा था।
    “संघ अगर १९२५ के बदले १९३५ में जन्मा होता, तो पाकीस्तान का क्षेत्रफल दूगुना होता।और अगर १९१५ में ही जन्मा होता तो पाकीस्तान शायद मिलता ही ना।”
    यह (DAWN ) का लिखा है, Organiser का नहीं।
    संघके ५०० सौ से भी अधिक स्वयंसेवक विभाजन के समय हिंदुओं को सुरक्षित लाने में बलिदान हुए हैं। पू. गुरूजी उनका स्मरण कर के दुःख व्यक्त किया करते थे। कहते थे, मेरे ५०० से अधिक स्वयंसेवक कभी भारत लौटे ही नहीं।
    १९४७ की मई-जून की, सिंध-पंजाब के, ओ टी सी कॅम्प, जब विभाजन का समाचार मिला, तो गुरूजी ने सारा भविष्य़ अनुमानित कर लिया था।
    कॅम्पों को नियत समय से पहले (१० एक दिन) समाप्त किए थे। आदेश दिया कि हिंदू समाजके सारे सदस्य सुरक्षित रूप से भारत रवाना करने के बाद ही स्वयंसेवक सबसे पीछे भारत आये। आदेशका पालन स्वयंसेवको ने प्राणों की बाजी लगा कर किया। और ५०० से अधिक स्वयंसेवक बलिदान हुए थे।
    कभी “ज्योति जला निज प्राण की” यह ऐतिहासिक पुस्तक पढें। लेखक है (१)माणिक चंद्र वाजपेयी और (२) श्रीधर पराडकर। ५७० पृष्ठों का ग्रंथ है।

  12. RAMESH SACHDEVA Says: कहते हैं।
    (१) बिलकुल जनाब देश भक्ति के नाम पर नोजावानो को निम्बू की तरह चूसा जाता है।
    मैं==>शायद आपको ऐसा अनुभव आया हो। प्रश्न: क्या ऐसे निंबू को चूसकर किसी का स्वार्थ संघ में पोषा जाता है क्या?
    (२) सचदेव जी==>” और यदि किसी को कोई काम पद जाये तो आदर्श वाद का पाठ पढ़ा कर उसका पेट भरा जाता है”
    प्रश्न: किसका पेट भरा जाता है?
    (३) सचदेव जी==> “सरे के सरे स्वयंसेवक वोते डलवाने के लिए क्या नहीं करते. घर में जरुरत पड़ने पर क्या करते है?”
    प्रतिक्रिया मेरी: स्वयंसेवक अपनी इच्छासे कार्य करे, वह उसकी स्वतंत्रता है। आपकी घरेलु समस्या लगती है।
    (४) सचदेव जी:==>गुरु दक्षिणा इतनी नहीं इतनी डालो.
    प्रतिक्रिया मेरी: नहीं डाली तो क्या दंड दिया जाता है?
    (५) सचदेवजी: कैंप करो.—पर्चारक बनो—इच्छा मत करो—भगवान सब ठीक करेगा।
    कोई बाध्य थोडे ही करता है। नहीं, तो कौनसी फांसी लगती है?
    ========================
    यह सारा अच्छे संस्कारका ही परिणाम है।
    संघके लिए-देशके लिए किए हुए कार्योमें भी सात्विक प्रसन्नता प्राप्त होती है।त्याग का भी उच्च कोटि का, आनंद ही हुआ करता है। सारे देशभक्तो नें यही किया था। सावरकर को ५० वर्ष काला पानी जाना पडा था। कारावास में बिना हनिमून पत्नी मिलने हयी, तो रो पडी। बोली अपने घरके चूल्हे में कभी आग जले गी ही नहीं। वीर जी ने कहा, रो नहीं। इसके कारण सारे भारतीयोंके चूल्हों मे और घरो में कल प्रकाश होगा। संक्षेप में ही कहा है।
    शुभेच्छाएं। सविनय।

  13. शैलेंदर जी,मुझे नहीं pata akhir aapne kis liye aar es es ki इतनी वकालत ki hai jabki aar es es ki gatiwidhiyan kitni samaajsewi हैं,ye baat to jag zahir hai.फिर bhi aap क्यों उसकी इतनी वकालत कर रहे हैं समझ में नहीं आया.

  14. बिलकुल जनाब देश भक्ति के नाम पर नोजावानो को निम्बू की तरह चूसा जाता ह और यदि किसी को कोई काम पद जाये तो आदर्श वाद का पाठ पढ़ा कर उसका पेट भरा जाता है
    सरे के सरे स्वयंसेवक वोते डलवाने के लिए क्या नहीं करते. घर में जरुरत पड़ने पर क्या करते है?
    गुरु दक्षिणा इतनी नहीं इतनी डालो.
    कैंप करो.
    पर्चारक बनो
    इच्छा मत करो
    भगवान सब ठीक करेगा.

  15. sangh ke parti har rastr vadi ke dil me adar hoga par unka kya kare jo angrgo se purn swaraj nahi le rahe the or jab karnti karyo ki vajah se gore bhag gaye to unka banaya atyachari kanuno ko sanvudhan ka nam dekar poojane lag gaye unki nai pidi aj us gulami ko jari rakhane wali pustak ko bharat ki akhandta ka partik mante ho bharat ki bhahulta ka karn lekhak ne spast kiya he or is pitdu soch ka sangh angh samna karta he isliye in pitduvadiye ke nisane par rahta he ye log apni soch se ubharne ka pryas nahi karte balki us soch ko pakka karne ke liye rastr bhakto par nisana sadhate he

  16. अखिल जी आपकी जानकारी बेहद कम हैं इस विषय पर अगर जानकारी नहीं है तो कृपया इससे जुड़े लोगों का अपमान करने की चेष्टा ना करें.

  17. संघ की आतंकी विद्वेश्कारी भूमिकाओं पर भी कुछ द्रिश्त्पात करते तब न आपको विवेकी या नीर क्षीर विवेकी कहा जाता…….जो संगठन भारत की बहुलता वादी संस्कृती को ही नकारकर केवल खुद की महानता और हिन्दुइस्म के गौरवगान पर टिका हो वो क्या भारतीय संविधान की मूल प्रेरणा और भावनावों का रक्षक होगा या भक्षक… और एक बात हम किससे संचालित हों…किसी अर्वाचीन स्थापित और कूप-मंडूक विचारों के समुच्चय तत्व ‘धर्म’ से या आधुनिक मांगों के समुच्चय ‘संविधान’ से’ ये भी आपके सोचने के लिए आपके विवेक पर छोड़ दे रहा हूँ………मेरा यह मानना है की कोई भी संगठन जो बहुलतावाद की बात करेगा, भारत की सामासिक संस्कृती की बात करेगा वो कभी किसी धर्म विशेष के वाद से संचालित न होकर समाज के प्रत्यक्ष प्रश्नों और सच्चाइयों से झूझेगा…….क्या आर. एस.एस jaise anya dharmon के संगठन aisa kar paa rahe han?

  18. भैया शैलेन्द्र क्यों साम्प्रदायिक संघ का गुणगान कर रहे हो जबकि इसमें और सिमी में कोई फर्क नहीं है(जैसा की रौल विन्ची ने दोनों को सामान बताया था) ये देश सेवा करे, चरखी-दादरी में सेवा करें अकाल,बाढ़ या कोई भी आपदा आने पर अपनी जान की बाज़ी लगा दे लेकिन इस देश में अगर साम्प्रदायिक होने का ठप्पा नहीं लगवाना चाहते हो तो संघ द्वारा किये सारे अच्छे कामों को नज़रंदाज़ करना ही होगा, आपने देखा ही होगा पहले हिंदुत्व के सहारे भारत की सत्ता पर काबिज होने वाली भाजपा ने भी शर्मनिरपेक्षता(धर्मनिरपेक्षता )की हुआ-हुआ शुरू कर दी है, इन्होने भी संघ का खूब दोहन किया है, लेकिन जब समय आया तो सुदर्शन जी का साथ छोड़ कर भाग खड़े हुए, आज इस अवसरवादिता को कहते हैं समझदारी………. भैया शैलेन्द्र बाबू हमारा दुर्भाग्य ही यह है की भारत के आस्तीन में सांप ही सांप हैं कांग्रेस और वामपंथी तो जो कर रहे हैं उनसे हमें कोई शिकवा नहीं है क्योंकि उनका जो काम है वो उसे बखूबी कर रहे है लेकिन जिन्हें हम अपना समझ रहे हैं वो धर्मनिरपेक्षता के चक्कर में क्या कर बैठे कुछ नहीं कहा जा सकता…………. मैंने अपने मन की भड़ास निकालने की कोशिश की है क्षमा करें, लेकिन भाजपा का सुदर्शन जी से किनारा करना मुझे बेहद नागवार गुजरा था, हालांकि भाजपा के कुछ लोगों का तो मैं बेहद सम्मान करता हूँ जिनमे से नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान रमण सिंह प्रमुख है और संघ के तो एक-एक व्यक्ति का मैं ह्रदय से आदर करता हूँ मैंने उनकी निस्वार्थ भाव से की गई सेवाओं को बेहद करीब से देखा है, आपका लेख अति-उत्तम है. ऐसे ही लिखते रहिये

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