अनूठे गौ सेवक भाईजी

आशीष कुमार ‘अंशु’

‘कुल्लू के अंदर दूध ना देने वाली गाएं किसानों के लिए बड़ी समस्या बनती जा रहीं हैं, इसी प्रकार बिलासपुर, मंडी में बंदरों का आतंक हैं। हिन्दू समाज के लोग अपनी धार्मिक आस्था की वजह से इन्हें मारते नहीं हैं। जिसकी वजह से उन्हें नुक्सान भी उठाना पड़ता है।’

बागवानी अनुसंधान केन्द्र सेऊबाग कुल्लू के वरिष्ठ वैज्ञानिक जेपी शर्मा के अनुसार- बंदरों को संभालने और सड़क पर घूम रही गायों को आश्रय देने के लिए इन क्षेत्रों में कुछ संस्थाएं काम भी कर रहीं हैं। लेकिन सड़क पर घूम रही गायों और उत्पात मचा रहे बंदरों की तुलना में इन संस्थाओं की संख्या नगण्य है।

बात कुल्लू के आस पास के क्षेत्रों में सड़क पर छोड़ दी गई गाय की करें तो इन पर लगाम नहीं लगाया जा सकता। ना ही उन गरीब किसानों पर जुर्माना लगाना सही होगा, जो गाय का दूध बंद होते ही उसे घर निकाला दे देते हैं। चूंकि उन किसानों के लिए अपना घर चलाना मुश्किल होता है। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होेती। अब ऐसे गाय के चारे के ऊपर प्रतिदिन चालिस से पचास रुपए खर्च करना आसान बात तो नहीं है।

कुल्लू के ही सुरेन्द्र मेहता ने ऐसी गायों की सेवा के लिए एक नायाब रास्ता निकाला है। वे ऐसे लोगों की टीम जोड़ने में लगे हैं जो गौ सेवा को अपना धर्म माने। गौ सेवा के लिए ऐसे लोग तैयार कर रहे हैं, जो थोड़ा-थोड़ा ही सही लेकिन गौ सेवा में अपना सहयोग करें। हो सकता है, आपको उन्हें सुरेन्द्र मेहता नाम से तलाशने में मुश्किल हो लेकिन उनके उपनाम ‘भाईजी’ से जानने वाले आसानी से मिल जाएंगे। फिर उन्हें ढूंढ़ना मुश्किल नहीं होगा। यहां एक खास बात यह है कि सुरेन्द्रजी ने अपने सेवा के काम के लिए कोई एनजीओ या ट्रस्ट नहीं बनाया हुआ। मीडिया से भी सम्मानजनक दूरी बनाकर रखते हैं। उनका मानना है कि व्यक्ति के अंदर प्रचार की भूख उसके काम में बाधा लाती है। सेवा के काम में लगे लोगों को अपने काम में ही विश्वास रखना चाहिए। प्रचार में नहीं।

भाईजी कुल्लू में रोगियों का प्राकृतिक चिकित्सा, योग और आयुर्वेद के माध्यम से निशुल्क ईलाज करते हैं। प्रतिदिन उनके पास तीस चालिस मरीज आ जाते हैं। रविवार के दिन इनकी संख्या 150 के आस पास होती है, चूंकि रविवार को टोकन लेकर दूसरे शहरों के मरीज भी आ जाते है। भाईजी बताते हैं, रविवार को सुबह नौ बजे से बैठे-बैठे रात के नौ भी बज जाते हैं। ईलाज के लिए आए मरीजों इनके पास ईलाज तो निशुल्क होता ही है, साथ साथ उनके चाय, नाश्ते और भोजन की चिन्ता भी भाईजी करते हैं। इसके बदले भी मरीजों या उनके परिजनों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता। ईलाज के दौरान दूसरे शहर से आए रोगी को रोकने की जरुरत है तो उनके रहने का इंतजाम भी भाईजी करते हैं।

ऐसा नहीं इन सारी सेवा के बदले भाईजी को कुछ चाहिए नहीं होता, वह अपनी मांग मरीज के स्वस्थ हो जाने के बाद रखते हैं। जिसने चुका दिया तो भला, जिसने नहीं चुकाया उसका भी भला। वह अपने मरिजों की रोग मुक्ति के बाद सबसे पहले उसका मांसाहार छुड़ाते हैं। यह उनका पहला अध्याय है। दूसरा अध्याय है, पशु प्रेम। प्रतिदिन अपने घर में एक रोटी अतिरिक्त बनाने और उसे घर के आस पास किसी पशु को खिलाने की प्रेरणा भाईजी देते हैं। उनके संपर्क लोग महीने में एक बार गांव के बच्चों के साथ मिठी रोटी लेकर गांव की परिक्रमा करते हैं और उन घरों में जाते है, जहां पशु पालन होता हैं। वहां बच्चों के हाथ से पशुओं को मिठी खिलवाई जाती है। इससे गौ माता और बच्चे के बीच परस्पर एक रिश्ता बनता है। भाईजी की प्रेरणा से बहुत से गांवों में ऐसे स्वयंसेवी भी तैयार हुए हैं जो तीन महीने में एक बार गाय दांतों की सफाई नमक से करते हैं। सफाई के लिए गाय के जबड़े में अपना हाथ देना पड़ता है। इस सफाई से गाय को चारा चबाने में सुविधा होती है।

इस समय भाईजी की प्रेरणा से अलग अलग कई तरह के सेवा के कार्य कुल्लू क्षेत्र में चल रहे हैं। अनामिकता के भाव के साथ काम करने की भाईजी की यह शैली किसी को भी प्रेरित कर सकती है। भाईजी की भगवान कृष्ण में गहरी आस्था है। वे कहते हैं, मैं तो सिर्फ निमित हूं, करने वाला तो वह है जो ऊपर बैठकर सबको नचाता है।

2 COMMENTS

  1. सोने पे सुहागा है यह लेख देश को ऐसे लोगो क़ि सक्त जरुरत है सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद

  2. आशीष जी .भाईजी…..आप दोनों बंधुओं को हार्दिक बधाई ….आप लोगों का कार्य प्रसंसनीय है ………….
    लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर छत्तीसगढ़

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