कविता

प्रेम का अनोखा मर्म

गोकुल का नंदकिशोर तेरो दीवानो भयो
रम्य-रमणीक रूप साँवरे को मोह गयो।
पढ़ रहे अब यह नैन नैनों की मूक भाषा
प्रेम ने तिहारे बदल दी प्रीत की परिभाषा।

 ब्रज के कान्हा संग है बरसाने की छोरी 
 अमर प्रेम का प्रतिरूप यह युगल जोड़ी। 
 भूलीं सबकुछ कृष्ण-प्रेम में राधा किशोरी 
 प्रेम के इस रूप ने प्रेम की परिपाटी तोड़ी। 

 प्रेम नहीं जानता प्रेमी को खुद से बाँधना 
 यह तो है जीवन की महान तप-साधना। 
 नहीं बना प्रणय राधा का कृष्ण की बाधा 
 अनुराग को अपने गहन समर्पण से साधा। 

 तुमसे ही संभव थी ऐसी प्रीत हे राधा !
 कृष्ण-जीवन तुम बिन है अधूरा-आधा। 
 जगत को दिया प्रेम का अनोखा मर्म 
 कर्तव्य-राह को चुना जीवन का धर्म। 

 जीवन भर सहा प्रियतम का वियोग 
 संभव नहीं सबके लिए यह कठिन योग। 
 श्रध्देय है आपका यह पवित्र प्रणय 
 करबद्ध हो कर रहे आपको विनय। 

 लक्ष्मी अग्रवाल