मृत्युंजय दीक्षित
देश में बढ़ रही असहिष्णुता के नाम पर विरोध जताने हेतु तथाकथित साहित्यकारों ,फिल्मकारों और वैज्ञानिको की ओर से जहा पुरस्कार वापसी का सिलसिला लगातार जारी हैं वहीं दूसरी ओर असहिष्णुता के मुददे पर जिसप्रकार से दोनों ओर से बयानबाजी की जा रही है उससे बहस काफी जोरदार और रोचक होती जा रही हैं । इस सिलसिले में जिस प्रकार के बयान आ रहे हैं उससे यह साफ पता चल गया है कि यह सबकुछ एक बहुत ही सुनियोजित व नियोजित साजिश के तहत हो रहा है और इसमें वे सभी ताकतंे एकजुट हो गयी हैं जो नहीं चाहती थीं कि कंेद्र में कभी भी भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल जाये और पीएम नरेंद्र मोदी जैसा देशभक्त और पूर्ण रूप से ईमानदार व्यक्ति प्रधानमंत्री बनकर बेईमानों के बुरे दिन ला दे।
उधर असहिष्णुता के नाम पर और साहित्यकारों,फिलमकारेां और वैज्ञानिकों का साथ दिखाने और बिहार चुनावांे के अंतिम चरण में धार्मिक आधार पर धु्रवीकरण कराने के लिए कांग्रेस के सांसदों ने श्रीमती सोनिया गांधी व युवराज राहुल गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया और देश के राष्ट्रपति को भी अपने झूठ सेे बहकाने का असफल प्रयास किया है। राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल किया गया है वह बेहद खतरनाक व साम्प्रदायिकता से ओतप्रेात तथा पूरे विश्व में भारत की छवि को गहरा आघात पहुँचाने वाली है। यह बात अब बिलुकल सही प्रतीत हो रही है कि विश्व में पीएम मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है तथा बिहार में भी भाजपा हारे- चाहे जीते लेकिन भीड़ के मामले में कम से कम पीएम मोदी ने सभी दलों को चैंकाया है। इन्हीं सब बातों से चिढ़कर कांगे्रस ने असहिष्णुता का घिनौना नाटक रचा तथा यह भी साफ हो गया है कि पुरस्कार वापसी करने वाले तथाकथित लोग और कांग्रेस के बीच आंतरिक तालमेल बन चुका था जिनका नेतृत्व नेहरू जी की रिश्तेदार नयनतारा सहगल कर रहीं थंी।
खबर है कि जिन लोगों ने अपने पुरस्कार वापस किये हैं उनकी किसी न किसी मामले व फर्जीवाड़ें की जांचे विभिन्न संबंधित विभागों की ओर से की जाने लगी हैं। इसपूरे प्रकरण में सबसे रोचक व गंदे बयान वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब व फिल्म अभिनेता शाहरूख खान के आये हैं जिनपर जबरदस्त राजनीती हो रही है। फिल्म अभिनेता शाहरूख खान के असहिष्णुता संबंधी बयान के बाद सोशल मीडिया और टी वी चैनलों पर गर्मागर्म बहसें प्रारम्भ हो गयी हैं तथा दोनों ही ओर से जबर्दस्त शक्ति प्रदर्शन भी प्रारम्भ हो गये हैं। शाहरूख खान को वैसे भी इस प्रकार की राजनीति से बचना चाहिये था साथ ही उन्हंे यह भी पता होना चाहिये कि यदि आज वे फिलम दुनिया के बादशाह बनकर बैठे हैं तो वह हिंदू जनमानस के कारण ही हैं। यदि बहुसंख्यक हिंदू जनमानस के लोग सामूहिक रूप से उनकी फिल्मों का बहिष्कार करने लग जायें तो उनको दिवालिया होने में जरा सी भी देर नहीं लगेगी। भारत को असहिष्णु बताकर फिल्म अभिनेता शाहरूख खान ने अपनी असलियत बता दी है। खबर है कि आयकर विभाग की ओर से उन्हें सम्मन भेजा जा चुका है इसी के बाद उनकी नजर में देश में असहिष्णुता का वातवावरण पैदा हो गया है। फिल्म अभिनेता शाहरूख खान पहले भी विवादों में रह चुके हैं। साथ ही इस बात की भी अफवाहें हें कि उनकी फिल्मों में डान दाऊद इब्राहीम का पैसा लगता है जिसकी फंडिग पर भी लगातार नजर रखी जा रही है तथा यह भी अफवाहें हैं कि सरगना दाऊद अब बहुत दिनों तक मस्ती से अपना साम्राज्य नहीं चला सकता तथा उसकी दुकान बंद होने वाली इन सब बातों से भी शाहरूख खान जैसे लोग घबरा गये हैं । यह वहीं शाहरूख खान हैं जिनकी अमेरिका में तलाशी ली गयी थी। जिन्होंनें माई नेम इज खान नाम से विवादित फिलम बनाकर सुर्खियां बटोरी थीं लेकिन वह फिल्म फ्लाप हो गयी थीं वही एक हिंदी मैगजीन में भी विवादित बयान देकर अपने को देशभक्त बताने का नाटक किया था।
शाहरूख की असहिष्णुता पर कई सवालिया निशान लग रहे हैं । बाबा रामदेव ने अपने बयान में शाहरूख खान से पुरस्कार वापस लौटाने की जो मांग की है वह उचित है। इसी बयानबाजी के बीच पाकिस्तानी आतंकी हाफिज सईद ने भी एक टिवट करके भारत में मोदी सरकार में बढ़ रही असहिष्णुता पर बयान जारी करते हुए कहा कि भारत में जिन मुसलमानों को परेशानी का अनुभव हो रहा हो वे पाकिस्तान चले आयं के बाद शाहरूख जैसे लोगों के चेहरे से मुखौटा उतर गया है। यहां पर शाहरूख खान जैसे लोगों से यह पूछना जरूरी हो गया है कि जब विगत वर्षो से कांग्रेस के नेतृत्व में कमजोर सरकारे चल रही थी तथा दूसरी आरे 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद भीषण दंगे हुए फिर मुंबई में भीषण धमाके हुए तथा 26/11 जैसी निर्मम आतंकवादी घटना घटी तब शाहरूख खान जैसे लोग कहंा थे और क्याकर रहे थे। पिछले दस वर्षों से देश में सूटकेस की सरकार चल रही थी और घोटालों का दौर चल रहा था तब उनकी सहिष्णुता कहां छिपी बैठी थी। जब पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर घोर अत्याचार हो रहे थे तब शाहरूख खान जसे लोगों की असहिष्णुता कहां चली जाती है। शाहरूख खान जैसे लोग अपनी फिल्मों में हिंदू लड़की को मुस्लिम लड़कें के साथ रोमांस करते तो दिखलाते हैं लेकिन क्या उनमें किसी मुस्लिम लड़की को हिंदू लड़के साथ रोमांस करते दिखाने का साहस हैं ? शाहरूख खान का असहिष्णुता संबंधी बयान एक ढकोसला और धोखा है । वे अब अपनी देशभक्ति के चाहे जितने भी दावे कर लें या कसमें खाले के उन पर से विश्वास एक बार उठ चुका है। उनकी असलियत की पोल खुल चुकी है।
इस बीच एक वामपंथी इतिहासकार हैं इरफान हबीब। इन साहब ने तो मीडिया में चर्चा में आने के लिए और देश के वातावरण को बिगाड़ने के लिए बयान दे डाला कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस में कोई्र अंतर नहीं हैं। इन साहब को लगता है कि किसी ने मुफ्त में विदेशी शराब पिला दी उसके बाद प्रेस में बयान देने के लिए आ गये। अब समय आ गया है कि इरफान हबीब जैसे लोगों को संघ की वास्तविकता को समझने के लिए संघ की शाखाओं में बुलाया जाये ताकि इनका मस्तिष्क सही ढंग से चल सके। आईएस जैसे संगठन अपनी खूनी गतिविधियों का विडियो बनाकर मीडिया जगत में प्रस्तुत करते हैं जबकि संघ समाज व देश सेवा में लगा एक संगठन हैं । हबीब ने एक प्रकार से संघ परिवार की घोर मानहानि की है। ऐसे लोगो की दुकाने बंद हो चुकी है आज यह तथाकथित लोग बहुसंख्ष्क हिंदू समाज को सहिष्णुता का राग पढ़ा रहे हैं । एक प्रकार से यह बहुसंख्यक हिंदू समाज पर बौद्धिक आतंकवाद का नया हमला है। इय प्रकार की गतिविधियों से यह साफ पता चल रहा है कि यह सभी लोग एकजुट होकर मोदी सरकार व देश की छवि को खराब करना चाह रहे हैं तथा इनकी प्रबल इच्छा है कि भारत संयुक्तराष्ट्र महासभा में स्थायी सदस्यता न पा सके साथ ही हिंदी भाषा को भी वैश्विक मंच परसम्मान व मान्यता न मिल सके। उन्हें पता है कि यदि पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्थायी सीट पाने में सफल हो गये तथा हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता अगर इनके शासनकाल में मिल गयी तो फिर इन सबकी राजनीति के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जायेंगे। अतः पुरस्कार वापस करने वाले लोग, असहिष्णुता पर बयान देने वाले लोग राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने वाले लोग देश के अच्छे दिन आने के विरोधी हैं तथा साजिश कर रहे हैं कि देश की जनता का विकास न हो सकते तथा विदेशों में बैठे आतंकी आका भारत न आ सकें व कालेधन का खुलासा न हो सके।
प्रेषकः- मृत्युंजय दीक्षित
असहिष्णुता की बात तो बस बिहार चुनाव के मध्ये नजर उठाई गई थी, लेकिन मामला तो रुक नही रहा। और फिलहाल उनकी बोलती बन्द है। फिर चुनाव या कोई अन्य उचित अवसर आएगा तो सारे एल्सेसैयन एवं जर्मनशैफर्ड नस्ल के जीव एक साथ भौंकना शुरू कर देंगे।