डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हत्या के अनसुलझे प्रश्न

पिछले दिनों 20 मार्च को पंजाब के माधोपुर में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भव्य मूर्ती का अनावरण किया गया। माधोपुर पंजाब का वही स्थान है जहां से जम्मू कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ मुखर्जी को 11 मई 1953 को शेख अब्दुल्ला ने हिरासत में ले लिया था। माधोपुर पंजाब का अंतिम छोर है और वहां से रावी नदी को पार करके जम्मू कश्मीर प्रांत प्रारंभ हो जाता है। उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट टाईप का परमिट लेना पडता था। डॉ मुखर्जी बिना परमिट लिए जम्मू कश्मीर में गए थे। और वहां गिरफ्तार होने के दिन बाद ही 23 जून को जेल में ही उनकी संदेहजनक परिस्थितियों में मौत हो गयी। इस घटना को लगभग 6 दशक बीत चुके हैं। छ दशकों बाद पंजाब सरकार ने इस अमर शहीद की मूर्ती स्थापित कर प्रशंसनीय कार्य किया है। मूर्ती का अनावरण करने के कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी, पंजाब के उपमुख्यमंत्री श्री सुखवीर सिंह बादल उपस्थित थे। हजारों की संख्या में जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली इत्यादि राज्यों से डॉ मुखर्जी को श्रद्धांजलि देने के लिए लोग उपस्थित थे।

यह शहीद के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की श्रद्धांजलि थी। परंतु डॉ. मुखर्जी की रहस्यमय मृत्यु से सम्बंधित एक प्रश्न उसी प्रकार सलीब पर लटका रहा जिस प्रकार 23 जून 1953 को लटक रहा था। वह प्रश्न था डॉ. मुखर्जी की मृत्यु या फिर हत्या से सम्बंधित षड्यंत्र को बेनकाब करना। डॉ.मुखर्जी की मृत्यु के पश्चात उनकी मां ने पं. नेहरु को एक पत्र लिखकर अपने बेटे की मृत्यु की जांच करवाने की मांग की थी। तब नेहरु ने उसे लिखा था -मैं इसी सच्चे और स्पष्ट निर्णय पर पहुंचा हूं कि इस घटना में कोई रहस्य नहीं। डॉ. मुखर्जी की मां श्रीमती योगमाया देवी ने नेहरु को जो पत्र लिखा वह बडा मार्मिक था और दुर्भाग्य से अभी भी अपने उत्तर की तलाश कर रहा है। योगमाया देवी ने लिखा – मैं तुम्हारी सफाई नहीं चाहती , जांच चाहती हूं। तुम्हारी दलीलें थोथी हैं और तुम सत्य का सामना करने से डरते हो। याद रखो तुम्हें जनता के और ईश्वर के सामने जवाब देना होगा। मैं अपने पुत्र की मृत्यु के लिए कश्मीर सरकार को ही जिम्मेदार समझती हूं और उस पर आरोप लगाती हूं कि उसने ही मेरे पुत्र की जान ली। मैं तुम्हारी सरकार पर यह आरोप लगाती हूं कि इस मामले को छुपाने और उसमें सांठगांठ करने का प्रयत्न किया गया है।’ यहां तक की पश्चिमी बंगाल की कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री डा. विधानचंद राय ने मुखर्जी की हत्या की जांच सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश से करवाने की जांच की। कांग्रेस के ही पुरुषोत्तम दास टण्डन ने भी डॉ. मुखर्जी हत्या की जांच की मांग की।

डॉ मुखर्जी को जिस तथाकथित जेल में रखा गया था वह उस समय एक उजाड स्थान पर स्थित थी और वहां से अस्पताल कई मील दूर था। जेल में टेलीफोन की भी व्यवस्था नहीं थी मृत्यु से पूर्व डॉ. मुखर्जी को 10 मील दूर के अस्पताल में जिस गाडी में ले जाया गया उसमंे उनके किसी और साथी को बैठने नहीं दिया गया। और सबसे बडी बात यह कि डॉ. मुखर्जी की व्यक्तिगत डायरी को रहस्यमय ढंग से गायब कर दिया गया। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से यह भी स्पष्ट होता है कि मुखर्जी को हिरासत में लेने के लिए भ किसी न किसी स्तर पर साजिश हुई। पंजाब सरकार डॉ. मुखर्जी को माधोपुर में ही हिरासत में ले सकती थी लेकिन वहां उन्हें गुरुदासपुर के उपायुक्त ने सूचित किया कि सरकार ने आपको जम्मू कश्मीर जाने की अनुमति दे दी है। कुछ प्रमुख समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रकाशित भी कर दिया। लेकिन मुखर्जी को जम्मू कश्मीर में प्रवेश करते ही लखनपुर में हिरासत में ले लिया गया परन्तु उन्हे जम्मू में न रखकर लखनपुर से लगभग 500 किलोमीटर दूर श्रीनगर में बीमारी की हालत में ही एक जीप में डालकर ले जाया गया। इतनी लम्बी यात्रा उनके लिए घातक थी। परन्तु पुलिस अधिकारी उन्हें श्रीनगर ले जाने में अडे रहे। लखनपुर में उन्हें हिरासत में लेने का शेख अब्दुल्ला सरकार और नेहरु सरकार को एक लाभ यह हुआ कि उच्चतम न्यायालय उनकी गिरफ्तारी के बारे में दखलंदाजी नहीं कर सकता था। जम्मू कश्मीर राज्य उच्चतम न्यायालय की पहुंच के बाहर था। सबसे बढकर, डॉ. मुखर्जी के ईलाज के समस्त दस्तावेज संदेहास्पद परिस्थितियों में छिपा लिए गए। इन्हीं समस्त साक्ष्यों को देखते हुए भारतीय जनसंघ समेत देश के अनेक प्रबुद्ध लोगों ने डॉ.मुखर्जी की हत्या की जांच की मांग की। शेख अब्दुल्ला की सरकार पर मुखर्जी की हत्या में मिलीभगत होने का शक इतना गहरा रहा था कि कुछ समय बाद ही अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन मुखर्जी की हत्या की जांच के लिए सरकार तैयार नहीं।

आज इस घटना को घटे 57 वर्ष हो गए है इस दौरान जम्मू कश्मीर में कई सरकारें आयीं और कई गयी। बीच में राज्यपाल के शासन भी रहे। इसी प्रकार दिल्ली मंे अनेक सरकारें बदली। बदली हुई सरकारों में देश के लगभग प्रत्येक राजनीतिक दल को किसी न किसी रुप में सत्ता में भागीदारी मिली। लेकिन किसी ने भी डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की हत्या से पर्दा उठाने का साहस नहीं किया। अब जब उसी स्थान पर, जिसको लांघकर डॉं मुखर्जी ने षड्यंत्रकारी मृत्यु के पंजे में चले गए थे, उनका हाथ उठाए हुए एक आदमकद बुत खडा हो गया है तो लगता है वह उठा हुआ हाथ हर आने जाने वाले से प्रश्न कर रहा है कि मेरी मृत्यु के पीछे की षड्यंत्रकारी शक्तियों को कौन बेनकाब करेगा। जब रात्रि गहरा जाती है तो वहां केवल रहता है डॉ. मुखर्जी का साया और रावी नदी की हाहाकार करती लहरें। रावी नदी का यह अभिशाप कहा जाय या उसका सौभाग्य की उसे शहीदों की शहादत की बारबार साक्षी बनना पडता है। ब्रिटिश शासकों ने जब भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु की अर्द्धरात्रि को हत्या कर उनके शवों को मिट्टी का तेल डालकर जलाने का प्रयास किया तो लोग उन अधजले शवों को उठाकर ले गए और रावी के किनारे ही उनका संस्कार किया। यही रावी एक दूसरे शहीद श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जाते हुए देखती रही और अब उसी रावी के किनारे पर माधोपुर में पंजाब सरकार ने डॉ. मुखर्जी का बुत खडा कर दिया है। रावी प्रश्न करती है अपने इस शहीद पुत्र, जो हुगली से चलकर उस तक पहुंचा था, के हत्यारों के बारे में। लेकिन रावी के इस प्रश्न का उत्तर कौन देगा? रावी पर से गुजरते हुए लगता है डॉ. मुखर्जी उदास मुद्रा में खडे हैं। शायद, उनका और रावी का प्रश्न एक ही है। परन्तु इसका उत्तर देने का साहस कोई नहीं कर पा रहा। वे भी नहीं जिन्होंने स्वयं ही कभी यह प्रश्न उठाया था।

-डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

7 COMMENTS

  1. Yaha Rastrabhakto के साथ यही होता आया है. चाहे वो shree mookharjee हो या Shashtri जी हो या Upadhyay जी हो.सभी को yaha raj kar rahe deshdrohiyo ने हटा दिया.

  2. पोंगा पंडित पोंगा तो था हि, थोथा भी था, और छीछराभी, जिसने आर एस एस परभी मन गढंत आरोप लगाते हुए,(जो न्यायालयमें कभी प्रमाणित नहीं हुए) प्रतिबंध लगाया था। आज तक, उससे प्रोत्साहित कारणोंसे, सारे गुजरातमें (देशमेभी) आर एस एस से घृणा है। श्यामाप्रसादजीके खूनमे सहायकभी वही प्रमाणित होगा। इस डरके कारण जांच नहीं करवायी गयी। रामने धोबीके कहनेपर सीता जी की अग्नि परीक्षा करवाई थी।पर पोंगा पंडित मुखर्जीकी माँ की बिनती पर भी क्यों अडा रहा? दालमें क्या काला था? वैसे, माउंट बेटन और इंग्लैंडको आर एस एस के प्रबल होनेसे(भारत विश्व शक्ति बननेका) डर था।इस डर के कारण और नेहरुकी आर एस एस विरोधी मानसिकता ध्यानमे रखकर, माउंट बेटनने उन्हे उकसाया, और आर एस एस पर, प्रतिबंध लगवाया।और, देशभक्तिसे प्रज्वलित युवाओंको कारागृहोमें ठूंसा गया। इतिहास उन्हे क्षमा नहीं करेगा।इससे बडा भ्रष्टाचार और क्या हो सकता है?यह भ्रष्टाचार की परंपराभी यहींसे शुरू होती है। और, इसी, कारण भारतका उत्थान आज तक विलंबित होता रहा। विश्वमे सबसे बडी स्वयंसेवी संस्था, और बुद्धिमान सुपुत्र, भारतके पास होते हुए भी भारत दीनता का अनुभव करता है। एक दिन ऐसा आएगा, जब सारे कारस्थान सामने आएंगे।सच्चायीको कब तक छुपाओगे? नोबेल प्राइज़ की लालचमें एक तिहायी कश्मीर गंवानेवालाभी और कौन है?

  3. यही तो विडम्बना है देश की कि हर चीज गुप्त बना दी गयी है…. हमें सब कुछ जानने का अधिकार है… षड़यन्त्र करने वाले ही इसे उजागर नहीं होने देते…

  4. महामना दिनदयाल जी की संदेहास्पद अवस्था मे मृत्यु के बारे तो पता था। लेकिन श्यामा प्र मुखर्जी जी के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था, यह जानकर बेहद दुखः हो रहा है। निःसन्देह देश को छद्म विदेशी शासन से मुक्त कराने मे उन्होने महत्वपुर्ण योगदान दिया था। लेकिन उनके द्वारा शुरु किया गया काम अभी बाकी है। हमे उनके बलिदान से प्रेरणा लेते हुए शीघ्रताशीघ्र काम पुरा करने के लिए आगे आना चाहिए।

Leave a Reply to sunil shukla Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here