राजनीति

उत्तर प्रदेश में मचा चुनाव पूर्व का घमासान

निर्मल रानी

उत्तर प्रदेश राज्य में होने वाले विधानसभा के आम चुनाव वैसे तो हमेशा ही पूरे देश के लिए उत्सुकता का विषय बने रहते हैं। परंतु इस बार खासतौर पर इन चुनावों पर पूरे देश की नज़र टिकी हुई है। इसके कई कारण हैं। एक तो यह कि प्रदेश की राजनीति में यह पहला मौका था जबकि पिछले चुनावों में बहुजन समाज पार्टी अपने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई तथा इन दिनों अकेले दम पर अपना कार्यकाल पूरा कर रही है। लिहाज़ा देश की नज़र इस बात पर है कि ‘‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’’ की बात करने वाली बसपा तथा उसकी नेता एवं प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती अपने उपरोक्त नारों पर अमल कर पाने में कहां तक खरी उतर पाई हैं।

और यह भी कि बहुजन हिताय की बात करते-करते सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय की बातें करने का उन्हें लाभ हुआ है या नुकसान यह भी आने वाला चुनाव ही तय करेगा। दूसरी ओर विपक्षी दलों में मची इस बात की प्रतिस्पर्धा पर भी सभी की नज़रें टिकी हैं कि आखिर कौन सा दल स्वयं को मुख्य विपक्षी दल के रूप में राज्य में स्थापित कर पाता है। फिलहाल चुनाव पूर्व गठबंधन के नाम पर सिवाय कांग्रेस व राष्ट्रीय लोकदल में हुए समझौते के अन्य किसी राजनैतिक दल के साथ किसी भी पार्टी के चुनाव पूर्व गठबंधन किए जाने का कोई समाचार नहीं है। परंतु चुनाव का समय नज़दीक आते-आते इस प्रकार के होने वाले किसी गठबंधन से इंकार भी नहीं किया जा सकता।

बहरहाल, चुनाव पूर्व जैसा कि होता चला आ रहा है सत्तारुढ़ दल अर्थात् बहुजन समाज पार्टी अपने तरकश के सभी तीर चलाने में मसरूफ है। पिछले दिनों बड़े ही आश्चर्यजनक तरीके से राज्य विधानसभा का एक दिन का सत्र बुलाकर चंद मिनटों में ही लेखानुदान पारित करा दिया गया तथा प्रदेश को चार भागों में विभाजित करने जैसा अति महत्वपूर्ण एवं अतिसंवेदनशील प्रस्ताव भी आनन-फानन में पारित कर राज्य के बंटवारे संबंधी गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी गई। इसके अतिरिक्त बहुजन समाज से पटरी बदलकर सर्वजन समाज की ओर रुख करती हुई बसपा ब्राह्मण मतों को आकर्षित करने के लिए एक बार फिर तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है।

इन सबके अतिरिक्त टिकट बंटवारे को लेकर भी पार्टी में भीषण घमासान की खबरें हैं। हालांकि अभी चुनाव आयोग द्वारा राज्य विधानसभा चुनाव के संबंध में न तो कोई तिथि घोषित की गई है न ही इस संबंध में कोई अधिसूचना जारी हुई है। परंतु अभी से लगभग सभी राजनैतिक दलों द्वारा अपनी-अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा किए जाने का काम शुरु कर दिया गया है। खबरों के अनुसार बसपा में लगभग तीन दर्जन विधायकों को पार्टी इस बार चुनाव मैदान में पुनरू उतारने नहीं जा रही है। ऐसे में ज़ाहिर है इनमें से अधिकांश विधायकों ने अभी से बागी तेवर दिखाने शुरु कर दिए हैं और ऐसे विधायक अब दूसरी पार्टियों की ओर देख रहे हैं।

ज़ाहिर है टिकट वितरण के इस वातावरण में एक बार फिर सौदेबाज़ी की भी पूरी खबरें आ रही हैं। समाचारों के अनुसार बसपा के जिन विधायकों को इस बार पार्टी के टिकट से वंचित रखा जा रहा है उससे दहशत खाए हुए अन्य पार्टी विधायक सभी श्शर्तों्य को पूरा कर टिकट लेने की जुगत में लग गए हैं। बहराईच ज़िले के एक बसपा विधायक के करीबी सूत्रों ने बताया कि उसकी ओर से बहुत बड़ी धनराशि पार्टी हाईकमान तक पहुंचा दी गई है ताकि उसका टिकट सुनिश्चित हो सके। और यदि किसी कारणवश उसे टिकट नहीं भी दिया जाए तो उसके स्थान पर उसके बेटे को पार्टी का टिकट दिया जाए। ज़रा गौर कीजिए कि करोड़ों की भारी-भरकम राशि केवल पार्टी को देकर टिकट लेने वाला व्यक्ति यदि चुनाव जीत भी गया तो वह पांच वर्ष के अपने कार्यकाल में किस प्रकार अपनी इस रकम की भरपाई कर सकेगा? इसी प्रकार की खबरें राज्य के अन्य कई संभावित उम्मीदवारों के निकट सूत्रों से आनी शुरू हो गई हैं।

उधर कांग्रेस पार्टी हालांकि अपने युवराज राहुल गांधी को तुरुप के पत्ते के रूप में मुख्य चुनाव प्रचारक की हैसियत से मैदान में उतारकार पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की आस लगाए हुए है। परंतु हकीकत में कांग्रेस को राज्य में भारी गुटबाज़ी का भी सामना करना पड़ रहा है। मोटे तौर पर राज्य कांग्रेस इस समय तीन प्रमुख गुटों में विभाजित है। एक तो पुराने कांग्रेसियों का गुट जो स्वयं को ही वास्तविक कांग्रेसी समझते हैं तथा इस बात के इच्छुक रहते हैं कि कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्य से संबंधित निर्णय उनकी मंशा के मुताबिक तथा उनकी सलाह से ही लिए जाएं।

दूसरा गुट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीटा बहुगुणा जोशी का है। रीटा बहुगुणा इससे पूर्व अखिल भारतीय महिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा थीं तथा यहां से उन्हें सीधे प्रदेश अध्यक्ष बना कर लखनऊ भेजा गया। पार्टी में कुछ वर्ष पूर्व ही नई एंट्री होने तथा प्रदेश अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर उनके आसीन होने के कारण पुराने कांग्रेसी उन्हें पूरी तरह से हज़म नहीं कर पा रहे हैं। और तीसरा नया गुट केद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का है। पुराने समाजवादी नेता रहे बेनी प्रसाद वर्मा निश्चित रूप से मुलायम सिंह यादव से भी वरिष्ठ समाजवादी नेता हैं। वे समाजवादी पार्टी में अपेक्षित सम्मान न मिल पाने के कारण समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। उनकी वरिष्ठता का ख्य़ाल करते हुए कांग्रेस ने उन्हें केंद्रीय मंत्री पद भी नवाज़ा है। बेनीप्रसाद वर्मा का मानना है कि पिछले संसदीय चुनावों में प्रदेश में कांग्रेस को मिली सफलता में उनकी भी बड़ी अहम भूमिका है।

कांग्रेस पार्टी की उपरोक्त गुटबाज़ी टिकट बंटवारे में भी खुलकर सामने आ रही है। प्रत्येक धड़ा अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलवाए जाने की कोशिश में लगा है। इनमें कई गुटों के नेता दूसरे दलों के नाराज़ प्रत्याशियों पर भी डोरे डालने की कोशिश में लगे हैं। यहां भी पैसों के लेनदेन की खबरें सुनने को मिल रही हैं। उदाहरण के तौर पर गत् दिनों राहुल गांधी ने बहराईच ज़िले का दौरा किया तथा वहां एक जनसभा को संबोधित किया। यह क्षेत्र बेनी प्रसाद वर्मा का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है। वैसे भी बहराईच आमतौर पर समाजवादियों का गढ़ रहा है।

निज़ामुद्दीन खां, सैय्यद ज़रगाम हैदर जैसे कई समाजवादी इसी ज़िले से संबंधित थे। लिहाज़ा बेनी प्रसाद वर्मा अपनी दूरदर्शी राजनीति अर्थात् प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की जुगत बिठाते हुए इस क्षेत्र में अपने शुभचिंतकों को टिकट दिलवाए जाने के पक्षधर हैं। परंतु क्षेत्र के पारंपरिक कांग्रेसियों को वर्मा की यह चाल रास नहीं आ रही है। इसी लिए राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेसजनों ने बहराईच की जनसभा के दौरान काफी हंगामा किया तथा पहले से तैयार रखा गया बेनी प्रसाद का पुतला उसी जनसभा में फंूक डाला। यह कांग्रेसी प्रदर्शनकारी बहराइच, क़ैसरगंज तथा नानपारा विधानसभा क्षेत्रों में बेनी प्रसाद वर्मा समर्थक उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट दिए जाने की कोशिशों का विरोध कर रहे थे।

जबकि कुछ सूत्रों के हवाले से यह भी खबर आ रही है कि पार्टी को दिए जाने के नाम पर पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं द्वारा कुछ लोगों से इस आश्वासन पर पैसे भी ले लिए गए हैं ताकि उन्हें पार्टी का टिकट दिलवाना सुनिश्चित किया जा सके। पार्टी टिकट को लेकर अन्य राजनैतिक दलों की ओर से भी इसी प्रकार के समाचार प्राप्त होने शुरु हो गए हैं। बड़े आश्चर्य की बात है कि अन्ना हज़ारे तथा बाबा रामदेव जैसे स्वयंभू भ्रष्टाचार विरोधी श्पुरोधा्य उत्तर प्रदेश से ही अपने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का सार्वजनिक शंखनाद करने जा रहे हैं तो दूसरी ओर इन सबसे बेपरवाह राजनैतिक दल व इनके कुछ नेता टिकट वितरण जैसे श्सुनहरे अवसर्य को धन उगाही के सर्वोत्तम माध्यम के रूप में अपनाए जाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। इन घटनाओं को उत्तर प्रदेश में चुनाव पूर्व मचे घमासान का मात्र श्रीगणेश ही समझा जाना चाहिए।