यूपी : दलितों को लेकर भाजपा-बसपा में टकराव

bspसंजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश में कानून व्ववस्था का बुरा हाल है। आपराधिक तत्वों के हौसले इतने बुलंद हैं कि उनके कहर ने न खादी बच पाई है न खाकी। आम जनता की तो बात ही अलग है। वह तो हमेशा से गेहूं में घुन की तरह पिसती रहती है। समाज का कोई ऐसा तबका नहीं बचा होगा जो अपने आप को सुरक्षित महसूस करता हो,लेकिन हमारे नेतागण कानून व्यवस्था के मामले में भी वोट बैंक की राजनीति करने से नहीं चूक रहे हैं। पीडित का भी जाति और धर्म देखा जाता है। यही वजह है यूपी दो पक्षों के झगड़े को भी जातीय रंग दे दिया जाता है। अगर पीड़ित सामान्य श्रेणी का है तो उसके साथ चाहें जितना उत्पीड़न हो जाये कोई नेता मुंह नहीं खोलता है,लेकिन किसी मुसलमान, दलित या अन्य ऐसी किसी बिरादरी के साथ कोई छोटी सी भी घटना घट जाये तो हमारे नेतागण जमीन आसमान एक कर देते हैं। मौका चुनाव मौसम का हो तो फिर बात ही दूसरी है। इसी वजह से यूपी में आजकल दलित- दलित का खेल खूब चल रहा है। प्रदेश में चैतरफा दलितों पर अत्याचार का रोना-रोया जा रहा है। हकीकत पर पर्दा डालकर हवा में तीर चलाये जा रहे हैं। दलितों का मसीहा बनने की होड़ में कई दल और नेता ताल ठांेक रहे हैं। किसको कितना फायदा होगा यह तो कोई नहीं जानता है,लेकिन ऐसा लगता है कि बसपा को दलित वोटों में सेंधमारी से बड़ा नुकसान हो सकता है। 2014 के आम चुनाव में दलितों का जो रूझान बीजेपी की तरफ देखा गया था, उसका सारा श्रेय मोदी को दिया गया था। लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुल पाया था। इसके बाद से अपने आप को दलित वोटों का लंबरदार समझने वाली मायावती बीजेपी और मोदी के ऊपर कुछ ज्यादा ही हमलावर हो गई हैं। देश के किसी भी कोने से दलितों के ऊपर अत्याचार की कोई घटना प्रकाश में आती है तो मायावती उसे तुरंत हाईजेक कर लेती है। चाहें गुजरात हो या बिहार अथवा देश का अन्य कोई हिस्सा, जहां कहीं से भी दलितों पर अत्याचार की खबर आती हैं, माया वहां पहुंच जाती हैं। राज्यसभा में किसी भी विषय पर चर्चा चल रही हो माया उसको दलितों पर अत्याचार की तरफ मोड़ देती हैं। माया ही नहीं कांगे्रस के रणनीतिकार प्रशांत कुमार,जदयू नेता नीतिश कुमार,आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल,लालू यादव आदि नेताओं की भी नजरें दलित वोटरों पर लगी रही हैं। बीएसपी सुप्रीमो मायावती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लगातार ललकार रही हैं कि वह दलितों पर अत्याचार के मुद्दे पर सहानुभूति जताने की जगह दलितों पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।

यह ऐसा मसला है जिस पर सभी दल बैकफुट पर नजर आते हैं, लेकिन अबकी से मोदी टीम इस मसले पर मायावती को ‘माइलेज‘ देने को तैयार नहीं हैं। माया के साथ कांगे्रसी भी दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर कदम ताल करते दिख जाते हैं। उधर, जिस मुखरता के साथ माया और कांगे्रस दलित उत्पीड़न के मुद्दे को हवा देने में लगे हैं, बीजेपी नेता भी उतनी मुखरता से दलितों पर अत्याचार की घटनाओं का प्रतिवाद कर रहे हैं। बीजेपी कतई यह नहीं चाहती है कि यूपी के चुनाव में दलित उत्पीड़न की घटनाएं विरोधियों के लिये सियासी हथियार बनें। मोदी का गोरक्षा के नाम पर तांडव करने वालों के खिलाफ सख्त बयान को इसी से जोड़कर देखा गया था। मोदी ही नहीं केन्द्रीय गृह मंत्री और यूपी की सियायत के दमदार ‘खिलाड़ी’ रह चुके राजनाथ सिंह के साथ पार्टी के अन्य नेता भी इस कोशिश में हैं कि किसी भी सूरत में बीजेपी और मोदी छवि दलित विरोधी न बने। इसीलिये राज्य में कहीं कोई दलित उत्पीड़न की घटना हो रही है तो इसके लिये बीजेपी या मोदी कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं,यह सवाल माया जैसे नेताओं से पूछा जा रहा है। राजनाथ सिंह विरोधियों से कह रहे हैं,’ दिल पर हाथ रखकर कहिये,क्या बढ़े हैं दलितों पर अत्याचार। पुराने आंकड़ों के द्वारा भी यह समझाया जा रहा है कि दलितों की इस स्थिति के लिये कांग्रेस का 55 वर्षो का शासन जिम्मेदार है। वहीं दलितों के उत्पीड़न के नाम पर मायावती के हो-हल्ले को कम करने के लिये बीएसपी से बगावत करने वाले स्वामी प्रयाद मौर्या को बीजेपी ने अपनी शरण में लेकर नया दांव चला है। स्वामी अपनी पूर्व बहनजी का चिट्ठा जनता के सामने खोलने में लगे हैं,मायावती दलित नहीं दौलत की बेटी हैं,जैसे बयान भी सियासी फिजाओं में गंूज रहे हैं।
दलितों को अपने पाले में खिंचने के लिये बसपा-भाजपा के बीच चल रहे दंगल को उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार अपने हिसाब से हवा दे रही है।वह चाहती है ‘सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।’ इसी लिये मायावती पर सीधा हमला बोलकर दलितों की नाराजगी मोल नहीं लेने की रणनीति के तहत सपा सुप्रीम कोर्ट के सहारे माया का इतिहास खंगाल रही है। बसपा राज में दलित महापुरूषों के बने स्मारकों में हुए भ्रष्टाचार को जगजाहिर करके दलितों के बीच यह मैसेज पहुंचाया जा रहा है कि मायावती ने जब दलित महापुरूषों को नहीं छोड़ा तो वह दलितों का क्या भला करेंगी। अखिलेश सरकार के लिये दलित वोट बैंक की सियासत का दरवाजा तब खुला जब सुप्रीम कोर्ट ने उससे पूछा कि बसपा राज में लखनऊ और नोयडा में दलित महापुरूषों के स्मारकों के कथित भ्रष्टाचार की जांच के मामलों में सरकार क्या कर रही है। पहले से ही मायावती को घेरने में लगी सपा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बसपा सुप्रीमों मायावती और महासचिच नसीमुद्दीन के खिलाफ खिलाफ जांच तेज कर दी गई है। जो स्मारक और पार्क जांच के दायरें मंे है उसमें अंबेड़कर सामाजिक परिवर्तन स्थल, काशी राम स्मारक स्थल, गौतम बौद्ध उपवन इको ंपार्क, नोएड़ा का अंबेड़कर पार्क शामिल है। सपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के उस सवाल के बाद यह जबाव आया था जिसमें कोर्ट ने अखिलेश सरकार से पूछा था कि उसने मायावती सरकार के 2007 से लेकर 2011 तक के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन मंत्री नसीमद्द्ीन सिद्दीकी पर लोकायुक्त रिपोर्ट में लगे अरोपों की जांच के बारे में क्या किया है।
बहरहाल, लोकसभा और राज्यसभा में दलित उत्पीड़न पर चर्चा के बाद बसपा या अन्य दल मोदी सरकार से संतुष्ट हो जायेंगे, इस बात की संभावना काफी कम है। न ही इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा राज्य सरकारों को इन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कड़ा से कड़ा कदम उठाने की सलाह का कोई ज्यादा असर पड़ेगा दी। कांटे से कांटा निकालने की जुगत में लगे भाजपा नेता और तमाम केंद्रीय मंत्री विपक्ष, खासतौर पर कांग्रेस पर दलितों पर उत्पीड़न के मुद्दे को राजनीतिक रंग देने का आरोप लगा रहे हैं। केन्द्रीय मंत्र वैंकेया नायडू का कहना सही है कि हम सबको अल्पकालिक फायदे के लिए घटनाओं को राजनैतिक रंग देने से बचना चाहिए। इससे अनुसूचित जाति, जनजाति और दलितों का भला नहीं होगा।

1 COMMENT

  1. यू पी के 18 प्रतिशत दलित वोट मायावती का मुख्य आधार हैं , भा ज पा ने मौर्य को ले कर एक बड़ी सेंध लगाई है , वह कितनी कारगर होती है यह समय बताएगा , लेकिन कांग्रेस का ताल ठोक कर मैदान में आ जाना उनको हिला रहा है , भा ज पा से ज्यादा असर बी स पा पर पड़ेगा इसलिए माया भा ज पा के पीछे पड़ी हैं क्योंकि कांग्रेस व दलितों का पुराना रिश्ता रहा है , व वे यह भी जानती हैं कि दलितों का कांग्रेस की तरफ झुकाव वे नहीं होने देंगी , मौर्य व अन्य दलित नेता जो छोड़ कर गए हैं वे ही मुख्य अंतर पैदा करेंगे
    इधर मुस्लिम वोट बैंक भी बसपा सपा व कांग्रेस में बाँटने की संभावना बन गयी है इसलिए मायावती का चिंतित होना स्वाभाविक है , ब्राह्मण वोट भी बंटने की ज्यादा गुंजाईश है इसलिए भी वह परेशां है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress