आनेवाला दिन वेबमीडिया का- रीता जायसवाल

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आने वाला दिन सौ फीसदी वेबमीडिया का ही है। इसकी संभावाएं भी अपार है लेकिन जन आकांक्षाओं पर खरा उतरने के साथ ही मानवीय मूल्यों और अपनी सभ्यता-संस्कृति की थाती सहेजने की चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। धीरूभाई अंबानी ने जब दुनिया करलो मुट्ठी में का स्लोगन दिया था तो मोबाईल के इस क्रांतिकारी युग की कल्पना भी नहीं की गई थी। आज मोबाईल फोन ने दुनिया को मुट्ठी के बजाए चुटकी में कर रखा है। अब सूचना ही नहीं तमाम अकल्पनीय सेवाएं हमारे दरवाजे पर दस्तक देती नजर आ रही हैं। ऐसे में मीडिया जगत की थाती को महज प्रिंट के दायरे में सीमित रख कर कैसे सोचा जा सकता है। वह भी ऐसे मौसम में जब लोगों की मानसिकता चट मगनी पट विवाह की और मोबाईल फोन की सेवाओं व संचार सेवा से जुड़ी कंपनियों ने राजा से लेकर रंक तक और शहर की गलियों से लेकर देहात की चट्टी तक इंटरनेट पहुंचा दिया हो। गांव के कोने में बैठा व्यक्ति जहां अखबार सुलभ नहीं है वहां भी लोग मोबाईल पर समाचार देख रहे हैं। ऐसे में यह कैसे सोचा जा सकता है कि लोग किसी घटना अथवा देश-दुनियां के ताजातरीन मुद्दों की जानकारी के लिए सुबह होने अथवा अखबार आने तक का इंतजार करेंगे। वेबमीडिया की बढ़ती संभावनों के ही मद्देनजर प्रिंट मीडिया ने ईपेपर मुहैया कराया है लेकिन यह भी प्रिंट का ही प्रतिरूप होने से शायद उतनी लोकप्रियता न हासिल कर सके। वजह भी साफ है, एक तो प्रिंट मीडिया बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों के हाथों की कठपुतली बन चुकी है। दूसरा यह कि इसकी लोकप्रियता, उपयोगिता और विश्वसनियता तब थी जब अखबार मिशन का हिस्सा हुआ करता था, आज उस मानसिकता को लाभ-हानि से जोड़ कर इसे कारोबार का रूप दे दिया गया है। तीसरा यह कि घर-घर पहुंच बनाने में सफल बड़े अखबार प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से किसी न किसी राजनीतिक घरानों से प्रभावित हैं। उनकी अपनी ढपली अपना राग है। उनका खबरों के प्रति अगल मापदंड है। अखबारों से जुड़े पत्रकारों के भी हाथ बंधें हैं। उनके सामने अपनी खबरों को कॉरपोरट घरानों द्वारा तय किए गए मानकों के अनुरूप देने की विवशता है। जनता कहें अथवा पाठक वर्ग वह भी दिग्भ्रमित है। वह यह तय नहीं कर पा रहा है कि सच्चा कौन-झूठा कौन। चौथा और अहम यह कि भारतीय संस्कृति-सभ्यता, मान-मर्यादाओं की अनदेखी कर समाज के 15 फीसदी संपन्न तबकों के पाश्चात्य रहन-सहन को शेष 85 फीसदी सामान्य तबकों के सामने परोसने की नापाक कोशिशों से आम पाठक मर्माहत हैं। वह विकास चाहता है लेकिन अपनी सभ्यता-संस्कृति की बुनियाद पर। वह समाज को टूटते-बिखरते और युवाओं को अनियंत्रित होते देख रहा है। इसके लिए वह इलेक्ट्रानिक मीडिया के साथ ही प्रिंट मीडिया को जिम्मेदार मानता है। मजबूत विकल्प का अभाव और घटना, दुर्घटना और परिवर्तनों को जानने की ललक में लोग प्रिंट मीडिया को स्वीकार किए हुए हैं। दौड़ती-भागती दुनियां के इस दौर में पाठक वर्ग ऐसे सूचना तंत्र की जरूरत महसूस कर रहा है जो उसे सूचना देने के साथ ही उसके पीछे की हकीकत को भी निष्पक्ष भाव से उसके सामने रखे। एक ऐसे पटल की भी जरूरत शिद्दत से महसूस की जाने लगी है जो विकसित समाज के साथ ही पिछड़े समाज की हकीकत को हूबहू पेश कर सके। वैसे भी अब चाहत सिर्फ सूचना तक सीमित नहीं रही। लोग न्यूज-व्यूज के साथ ही कुछ अंदर की बातों को भी पीड़ित-प्रभावित लोगों की जुवानी जानना चाहते हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रनिक मीडिया के गिने-चुने साहित्यकारों, व्यंगकारों और लेखकों के जमीनी हकीकतों से दूर विचारों को सुनते-पढ़ते पाठक ऊब चुकी है। अब जो नया तबका अंगड़ाई ले रहा है, उसके पास कंप्यूटर है, लैपटॉप है लेकिन समय कम है। फुर्सत मिलते ही उसे सूचना चाहिए और साथ में उससे जुड़ी आगे-पीछे की जानकारी भी। वह भी एक क्लिक में। ये सारी चाहत वेबमीडिया ही पूरी कर सकता है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रिंट मीडिया के पास सीमित स्थान है और वेबमीडिया के पास स्थान का कोई अभाव नहीं है। दूसरी बात यह भी है कि सामान्य तबके के दुःख-दर्द को प्रिंट मीडिया मौजूदा राजनीति, अखबार के विस्तार और लाभ-हानि की कसौटी पर कसने के बाद ही स्थान देगा। बेवमीडिया के सामने ऐसी कोई बाध्यता सामने नहीं आएगी। इस समय वेबमीडिया से जुड़ी जो थोड़ी बहुत साइटें सामने आईं हैं उनकी सूचनाओं की प्रस्तुति और उसके बाबत की जा रही बेबाक टिप्पणी से ऐसे ही आसार नजर आते हैं। अहम यह भी है कि आम पाठक भी सीधे वेबमीडिया से जुड़ता जा रहा है। जो यह साबित कर रहा है कि आनेवाला समय निःसंदेह वेबमीडिया का है। यह बात दीगर है कि अभी मोबाईल की तरह कंप्यूटर और लैपटॉप हर हाथ में अपनी पहुंच नही बना सका है। लिहाजा प्रिंट मीडिया की वकत बनी हुई है। जिस दिन कंप्यूटर की भी पहुंच घर-घर हो जाएगी वेबमीडिया की पूछ बढ़ जाएगी।

1 COMMENT

  1. अभी दिल्ली दूर है. आज भी महज आबादी के 1% से कम लोग ही वेब से समाचार पढते है. लेकिन संचारकर्मियो के बीच इंटरनेट खासा लोकप्रिय हो चला है.

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