कविता

कविता / मेरा मन

ई मेल के जमाने मेंmann_chahe

पता नहीं क्यों

आज भी मेरा मन

ख़त लिखने को करता है।

मेरा मन

आज भी

ई टिकट की जगह

लाईन में लग कर

रेल का आरक्षण

करवाने को करता है।

पर्व-त्योहारों के संक्रमण के दौर में

मेरा मन

बच्चों की तरह

गोल-गप्पे खाने

को करता है।

फोन से तो

मैं हमेशा डरा रहता हूँ

पता नहीं

कौन, कब

कौन सी

खबर सुना दे

बिना किसी भाव के

बिना किसी संवेदना के

शायद इसीलिए

आज भी

मेरा मन

टेलीग्राम का इंतजार

करने को करता है।

ऐसे खतरनाक समय में

इसलिए लोगों

मेरा मन

गुजरे पलों में

जीने को करता है।

-सतीष सिंह